गुरुवार, 16 जून 2011

परिणाम - परीक्षा

                                        
                                                                                        
                   कुछ उक्तियाँ या कहावतें हर समाज में सदियों से अपनी लगातार सार्थकता बनायीं हुई हैं जैसे रात्रि में जल्दी सोने एवं प्रातः जल्दी उठने की आदत एक आदमी को स्वस्थ,संपन्न एवं बुद्धिमान बनाती हैं(अंग्रेजी कहावत )अथवा
                                  अभिवादनशीलस्य,नित्य वृद्धोपशेविन |
                                  चत्वारि तस्य वर्धन्ते,आयुर्विद्यायशोबलं | (संस्कृत श्लोक )
इन उक्तियों का सत्यापन न तर्क से हो पाता है न ही विज्ञान से, परन्तु परिणाम ने इन्हें सदैव सत्यापित किया है | जरा सोचिये कि भला किस ब्यक्ति को स्वस्थ,संपन्न एवं बुद्धिमान होना या कहलाना अच्छा नही लगता,या कौन अपनी आयु,विद्या,यश एवं बल को बढाना नही चाहता | अब यदि ये चीजें चाहिए तो प्रबंधन की भाषा में इन्वेस्मेंट(लागत)  का जिक्र भी कर लें | बस आदत को संस्कारित कर स्वभाव बनालें, उत्पादन मिलना प्रारंभ हो जायेगा | इस सन्दर्भ में यदि पीछे देखना है तो महात्मा गाँधी,अलवर्ट आइन्स्टीन  एवं कवीन्द्र रवीन्द्र के जीवन दर्शन का अनुशीलन करें |
               आइये चले, ब्रत लें रात्रि में जल्दी सो जायेंगे, प्रातः जल्दी उठ जायेंगे,किसी को प्रणाम, नमस्ते,सलाम,शुभ दिन या शुभ रात्रि,विनयी भाव से करेंगे और वृद्धों की नित्य सेवा करेंगे | फिर परिणाम परीक्षण की प्रतीक्षा करें |
               परन्तु यह इतना सरल एवं आत्मसाती नही है |सब कुछ अपने पास होने पर भी आज की जीवन शैली इन पुराने परीक्षित चर्याओं की स्वभाव से जुडाव नही होने देती हैं । यही चिंता है जो परंपरा की कड़ी को तोड़ रही है ,और सबकी  बैयक्तिक ऊर्जा को क्षीण कर रही हैं ।
             अब से अपना नही तो अपने भावी पीढ़ी की सोचें कि उन्हें वे सब देंगे जिनकी आपको स्वयं के लिए कामना है | हमें उन्हें सरल एवं सरस जीवन देना ही चाहिए जो हमारें अग्रजों ने पाया है या पूर्वजो को इन लोकोक्तियों को आत्मसात करने से स्वतः उपलब्ध थीं |
अंततः 
इस भीषण गर्मी में,यदि चाय के लिए ग्वाले के यहाँ दूध  न मिले तो............|
गरमी में चाय पीनें की आदत को कोसें क्योकि गाय,भैस,तो हम पाल नही सकते | कंज्यूमर तो हम बने बनाये हैं,प्रोड्यूसर कहाँ से लायें |

शुक्रवार, 10 जून 2011

BEING PROACTIVE

                                         
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History witnesses that great people were those who were proactive. They more offenly did not wait for action to arise and then to bounce back with reactions.
Remember Mahatma Gandhi had to react so many actions of Britishers and Indians during freedom struggle of the nation . But he was a proactive personality. Had he not been proactive, our freedom movement would have been different and present generation would have not seen India, as it seems today.
It is true never the less, today also. The persons, at peak, are highly proactive led by their vision. Let's we also try to test.
When people all aver the world are celebrating so many days of every year as special days for some cause are the other, why not some days as proaction day, simplicity day or be natural day. It may help in taking human civilization near to minus artificiality. It is need of the hour for young generation to try it in their own interest and in the greater interest of the nation emerging as new global power.  
 Thought for today :-
ठंडक में गरम चीजें अच्छी लगाती हैं,और गरमी में ठंडी चीजें,क्योकि सबकी रुझान शून्य की ओर ही होती है,और यही सास्वत हैं |

गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

हंगामा क्यों !

                                  
                        जब जनता को  यकीन हो गया कि  भारत  में सारी-की  सारी कुब्यवस्था  भ्रष्टाचार से अनुप्राणित पुष्पित एवं पल्लवित है, तो वह सारे दुःख-दर्द झेलते हुए भ्रष्टाचार  के विरुद्ध उठ खडी हुई और अन्ना साहब के माध्यम से मुखरित हुई जिसे सारी दुनियाँ  ने देखा और सुना | इससे भारतीय लोकतंत्र की बेजोड़ जीवन्तता भी विश्व पटल पर महसूस की गई |
                         अब समय आ गया है की भारतीय संसद एवं सांसद,विधायिकाएं एवं विधायक जन आकांक्षा को यथाशीघ्र मूर्तरूप दें | लोकपाल विधेयक की मंशा विल्कुल पाक एवं साफ़ हैं |समय आगया है जबसभी विधानविशेषज्ञों,कानूनविदों,राजनेताओं  एवं बुद्धिजीविओं को इसे संवैधानिक जामा तत्काल पहनाना चाहिए | मीडिया से भी अपेक्षा है की बढ़ते कदम की रिपोर्टिंग हो एवं कदम पीछे खीचने बालो को लोकतंत्र की इस पवित्र मांग की याद दिलाई जाय |
                          परन्तु अजीब से हालात हो रहे हैं । चर्चाएँ आम भ्रष्टाचार पीड़ित जनता एवं समाजसेवियों के बीच हो रही हैं जबकि नेता लोग तो संदर्भ को ही परिधि के बाहर घसीट रहे हैं । 
पिछले सप्ताह से बक्तब्य  देने वाले आदती लोग (राजनेता )अमरूद एवं हाथी जैसी  बातें कर रहे हैं | फिर भी कहूँगा की हाथी यदि अपने को सुराज की परिधि में लेले तो अमरूद की बेहतरी स्वयं सुनिश्चित होगी |
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अंततः 
                          लोगो के बीच स्वार्थ के सामंजस्य को मित्रता एवं स्वार्थ की टकराहट को दुश्मनी कहते हैं |
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दिनाँक 14.4.2011                                       mangal-veena.blogspot.com
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रविवार, 10 अप्रैल 2011

नवांकुर

                         लोग कहते हैं, कि समय से पहले कुछ नही होता | बीते  कई वर्षों से भारतीय जन मानस भ्रष्टाचार  की पीड़ा से कराह रहा है | दुष्यंत के शब्दों में :-
                                     हो गयी है पीर पर्वत सी, पिघलनी चाहिए |
                                     अब हिमालय से कोई, गंगा निकलनी चाहिए ||  
पिछले सप्ताह यह यकीन हो गया कि हिमालय से गंगा को निकालने वाला भागीरथ अन्ना हजारे के रूप में अवतरित हो गया है | मूक ब्यथा को वाणी मिल गयी | विजय हो इस जन-वाणी की |अन्ना साहब के  साथ   सब लोग आगे बढ़ें । अन्ना साहब हम भी तुम्हारें साथ हैं | 
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अंततः 
                         आज ही हमारे एक मित्र जमील साहब हमसे मिलने आये | वे बहुत खुश थे। कहने लगे " अन्ना साहब के आन्दोलन का दफ्तरों में बहुत अच्छा असर पड़ रहा है । जिस काम के लिए कल तक पांच की मांग थी, आज वह काम दो में होने लगा | "
जमील साहब ने कहा- आइये! आज समोसा एवं लौंगलता  की पार्टी करते हैं  |
                        जय हो आन्दोलन की !
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दिनाँक 10 . 4 . 2011                              mangal-veena.blogspot.com
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शनिवार, 19 मार्च 2011

होली का हुलास

                                              

                              पंसारी की दूकान में  कल एक आदमी आया | बड़े उत्साह से अपने से कम उम्र वाले दूकानदार से बोला "मुन्ना, गुझिया बनाना है; ये सामान फटा फट दे दो -- काजू - ५ रूपये का, किशमिश - २ रूपए, पोश्ते का दाना २ रुपये, गरी- २ रुपये,पाव किलो सूजी ,आधा किलो मैदा  ।"  दूकानदार पुडिया बना कर उस आदमी को सामान पकडाया एवं उसके दिए पचास रुपये में से ३७ रुपये काट कर १३ रूपए वापस कर दिया | लम्बा डग भरते हुए वो आगे बढ़ गया| मै वहीँ खड़ा सोचने लगा कि जब काजू ५०० रुँपये, किशमिश २५० रुपये, पोश्ते का दाना ५५० रुपये, एवं गरी ७० रुपये प्रति किलो बिक रहें हों, वो आदमी पुड़ियों में  इन जींस के कितने टुकड़े ले  गया होगा एवं उनसे कितनी गुझिया  बन सकेंगी । कुछ भी हो उसकी इस खरीददारी ने उसके घर में होली की तैयारियों को रॉकेट सी रफ़्तार तो दे ही दी होगी । 

                                संपन्न लोग क्रय अपनी आवश्यकता (मात्रा) के हिसाब से करते हैं, परन्तु साधारण लोग अपनी आवश्यकता  को क्रय शक्ति में ढाल लेते हैं । गुझिया, पापड़ सबके घर बन रहे हैं I  लगने- लगाने के लिए रंग गुलाल, खाने खिलाने के लिए पापड़ गुझिया  , फिर तो होली ही होली है I

                                कैसे रिश्ते  कैसे नाते, गली गली में होली   है।
                                जो मन भावे सो कह डालो,बुरा न मनो होली है।
                                कटुता भूलो मस्ती लूटो, फिर तो होली होली है।
                               आज बने हम सभी भंगेड़ी,छ रा र रा ये होली है।

                               परन्तु सोचनीय है कि त्योहार की ए उमंगें सर्वत्र समान पेंग नहीं भरती हैं I  ये तीज त्योहार भी संस्कृति के अनमोल उपहार हैं जो हौसले की पात्रता पर बरसते हैं। मज़ा आता यदि पूरे  समाज में आर्थिक समरसता की उमंगे होती एवं होली का सब पर समान चटख रंग चढ़ता ।
                               मैंने भी सोचा है कि प्रति दिन मुझसे कुछ ऐसा हो जाय जिससे किसी के चेहरे पर, कुछ पल ले लिए ही सही, ख़ुशी दौड़ जाय ।
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दिनाँक 19 . 3 2011                       mangal -veena .blogspot . com
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मंगलवार, 8 मार्च 2011

महिलादिवस

यदि पुरुष  महिलाओं के साथ अपने नैसर्गिक पवित्र संबंधों को यथा शब्द समझें और तदनुसार आचरण के लिए सदैव तत्पर रहें तो हमारा समाज वर्ष पर्यन्त महिला दिवस मना सकता है। वैश्विक सभ्यताओं ने यह प्रमाणित किया है कि नारी के प्रति श्रद्धा एवँ सम्मान किसी समाजिक सभ्यता की शिखर कसौटी हैं।जिस समाज में नारी के प्रति दुर्ब्यवहार या दुराचार हुआ वह समाज पतित हो नष्ट -भ्रष्ट हो गया। अपनी बहन देवकी के साथ कंस का निन्दनीय वर्ताव ,धृतराष्ट्र की राजसभा में दौपदी का चीरहरण ,रावण द्वारा पराई नारी का अपहरण या सीरिया ईराक़ में आईएसआईएस द्वारा वहाँ की महिलाओं पर हो रहे दुराचार इसके कुछ एक उदहारण हैं। आधुनिक  नारी के प्रति सम्मान  से सत्य ,शिव , सुन्दर समाज का सृजन होगा। फलतःउनकी अशक्तिकरण से सशक्तिकरण की यात्रा द्वारा हमारी अति प्राचीन ब्यवस्था की पुनर्स्थापना ही तो होगी ।यदि ऐसा होता है तो माँ से जुडे बेटे, बहन से जुडे  भाई, पत्नी से जुडे  पति या महिला से जुडे पुरुष की स्वेच्छाचारिता कैसी ।संस्कार शिक्षा के अभाव में आज महिलाओ का अबलारूप यत्र-तत्र देखने में आता है | यदि माताएं,बहनें,महिलाएं नई पीढ़ी को रिस्तो के प्रति यथेष्ठ सम्मान का संस्कार देने का अभियान चला सकें तो हमारा समाज एक  दिन क्या पूरे वर्ष महिलादिवस मना सकता है | जिसमे श्रद्धा हो,उनके प्रति असम्मान हो ही नहीं सकता | शर्त है कि समाज में नारी में के प्रति श्रद्धा हो | मानवता की जननी को आज महिला दिवस आठ मार्च को शत-शत नमन |
------------------------- आज के दिन भारतीयों को सुन्दर गुनगुनाने वाले गीतों के गीतकार शाहिर लुधियानवी को भी श्रद्धा से प्रणाम करने का मन करता है | उनके गीत सुन्दर ही नहीं , सार्थक और सदाबहार हैं| क्या आज के गीतकारो के लिए उनमे कोई सन्देश नही है |
------------------------- हमारे लिए यह दिन और भी मनोरम है क्योंकि आठ मार्च १९७५ को मैं और मिंटो एक हो कर जीवन की यात्रा पर चल पड़े थे और यह हमारे शादी की छत्तीसवीं वर्षगांठ है |
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अंततः
-------------------------शनिवार १९-०२-११ को गोरखपुर से वाराणसी वापसी में आजमगढ़ से आगे रात्रि के लगभग ९:३० बजे हमारे जीप की लाइट आगे चल रही एक ट्रक पर पड़ी | उस पर पीछे लिखे इस्तहार ने हमे चौका दिया - विश्वास केवल वहम है और सच्चाई मात्र झूठ | यह इश्तिहार कहीं दूसरे ट्रक पर लिखे - नेकी कर जूता खा - से ज्यादा चौकाने वाला तो नहीं ?
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दिनाँक 8.3.2011                                                     mangal-veena.blogspot.com
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रविवार, 20 फ़रवरी 2011

सेंगर राजपूतों के कुलदेव श्रीनाथजी

जानकारी हेतु यात्रा किया : ५ फरवरी  २०११    
सड़क रास्ता : गाजीपुर से बलिया मार्ग पर मुहम्मदाबाद से आगे रसरा तहसील मुख्यालय के लिए सड़क निकलती है जो तमसा(तौंसा) नदी को लखनेश्वर महादेव के पास पार  करती है |
वाराणसी से दूरी :  गाजीपुर ८० किलोमीटर + रसरा ४५ किलोमीटर + टीकादिउरी   (नगपुरा १५ किलोमीटर )
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                             बलिया जिले के रसड़ा तहसील मुख्यालय में श्री नाथ जी की समाधि नाम से एक बहुत ही प्रसिद्ध तीर्थ स्थल स्थित है | समाधि संकुल में कई एकड़ भूमि पर कई घाटों वाला एक भव्य जलाशय ,पुस्तकालय,शिवालय, बड़ा मेला मैदान और श्री नाथ जी का भव्य विशाल मंदिर है। इसी मंदिर के गर्भगृह में श्री नाथ जी की समाधि है | पुजारियों का कहना है कि मंदिर कम से कम 4०० वर्ष पुराना हो सकता है | मंदिर एवं तालाब की निर्माण शैली स्वयं इसकी प्राचीनता बयान करती है |लोग बताते हैं कि जब श्री नाथ जी का देहावसान हुआ तो उनकी मुख्य समाधि उनके अनुआयियों द्वारा रसरा में बनवाई गई । फिर उनके उपयोग  की चीजें जैसे छड़ी,वस्त्र,छाता, इत्यादि की स्थापन से निम्न स्थानों पर भी समाधियाँ बनाई गईं--
 (1 )रतसाढ़  (2 )महराजपुर (3 )टीकादिउरी  (4 ) नागपुर देहरी एवं  (5 ) कन्सो
                              इन्ही स्थानों पर हर पाँचवें साल प्रति स्थान श्री नाथ जी की 151 बोरें गेहूं के आटें एवं देसी घी का रोट चढ़ा कर 150 गाँव के सेंगर वंशज इनकी आराधना करते हैं | इन मेलों मे लाखो की भीड़ जुटती है |मुख्य मंदिर में स्थापित श्री नाथ जी की पूजा सभी जाति, धर्म, संप्रदाय के लोग करते हैं | इनके दर्शन के बाद वहीँ  पास मे स्थित श्री रोशन शाह के मज़ार पर शीश झुकाने की प्रबल मान्यता है | इसी कारण यह स्थान हिन्दू एवं इस्लाम संस्कृति का समादर करने वाला अनुकरणीय पवित्र पीठ जैसा है । किस वर्ष रोट कहाँ  चढ़ेगा-इसका निर्णय छह स्थलों की प्रबंध समिति करती है ।  
                             लगभग दो बजे रसड़ा से चलकर तीन बजे टीका दिउरी पहुँचा | वहाँ  नगपुरा गाँव से बाहर तमसा तट पर स्थित  श्री( अमर ) नाथ जी का  दर्शन कर अभिभूत हो गया | तमसा में अब भी अच्छा जल का प्रवाह था | वहां बताया गया कि श्री नाथ जी के बचपन का नाम श्री सत्य प्रकाश राव (राजा) था, जो सन्यास के बाद अमरनाथ हुआ एवं समाधि के बाद श्री नाथ जी हो गया | मान्यता के अनुसार श्री नाथ जी शैव (शिव भक्त) थे एवं अलौकिक शक्तियों से परिपूर्ण थे |
सेंगर राजपूतों के रसड़ा बंध पहुचने की ऐतिहासिक जानकारी वहाँ कम लोगो में है | केवल इतना ही इंगित कर सके कि शायद वे लोग कई सौ बर्ष पहले मध्यप्रदेश से इटावा उत्तरप्रदेश होते हुए बलिया आये एवं रसड़ा क्षेत्र में एक बड़ी रियासत बना लिये । अंग्रेजो के समय तक वे काफी शक्ति सम्पन्न हो चुके थे | यह आश्चर्य की बात है कि अंग्रेज शासक  श्री नाथ जी को दो रुपये प्रति बर्ष लगान ( भूमि टैक्स ) देते रहे जो अंग्रेजो के जाने के कई बर्षो बाद तक चलता रहा | शायद जार्ज पंचम ( ब्रिटिश सम्राट ) श्री नाथ जी के अदभुत चमत्कारों की लोहा मानते थे | टीका दिउरी में समाधि के पीछे जार्ज और उनके बच्चो के भित्ति चित्र अंकित है | टीका दिउरी  की उपजाऊ हरीतिमा ने मनमोह लिया | वहां के पुजारी को मैंने अपना सेंगर(राजपूत) होने की बात बताते हुए उनके पुस्तिका में अपने परिवार का पता अंकित कराया, रोट का प्रसाद ग्रहण किया एवं पूरे घर के  लिए प्रसाद सुरक्षित रख लिया | 
                        पूर्वजो की जन्म भूमि एवं तमसा की गोंद, जहाँ हमारे पूर्वज पले,बढे और पीढ़ियाँ आगे बढ़ी, देखकर बहुत रोमांचित हुआ । परन्तु उनके पिछले तार व हमारे वर्तमान तार जुड़ने की जानकारी न मिलने से भविष्य में खोज जारी रखने की योजना बनाते घर वापसी का राह लिया |
                      । । यही हैं हमारे कुल देवता श्री श्री नाथ जी महाराज । ।
क्रमशः...............
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दिनाँक : 2 0 . 2 . 2011                  Mangal-veena.blogspot.com @Gmail.com
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गुरुवार, 3 फ़रवरी 2011

ब्लॉग का श्रीगणेश

                        आज दिनांक ३ फरवरी २०११ को मै, वाणी की विनम्र वंदना करते हुए,  इस ब्लॉग पर अपने अनुभव और विचार अपने शुभेच्छुओं  के बीच रखने  एवं उसपर उनकी प्रतिक्रिया जानने की प्रक्रिया का श्रीगणेश कर रहा हूँ |
                        अपने समर्थकों एवं पाठकों से सहयोग की अभिलाषा है ।
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प्रथमतः
मेरी  भव  बाधा  हरो  राधा  नागरी  सोइ ।
जा तन की झाईं परत स्याम हरित दुति होइ । ------बिहारी
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मंगलवार, 25 जनवरी 2011

ब्लॉग : एक लेखा जोखा - मेरे अनुभवों का

 प्रिय सुधी पाठकों !                                      Mangal-Veena.Blogspot.com
यह ब्लॉग है  एक लेखा जोखा -
* मेरे अनुभवों , तजुर्बों एवं एहसासों का ...
*ज़िन्दगी एवं उसकी परीक्षाओं का .....  उनमे मेरी सफलताओं और शायद असफलताओं का  ...
*जो कुछ पा सका उसपर संतुष्टि का ..... जो न पा सका उसपर मूक झुंझलाहट का  ...
*जो लोग अब भी साथ हैं उनके प्रति कृतज्ञता का... जो साथ नहीं उनकी यादों का...
*कुछ मित्रों की मित्रता का, कुछ दुष्टों की दुष्टता का...
*कुछ अपने ढँग से काम करने की मेरी शैली का... कुछ करवाए गए कामों की प्रणाली का...
*कुछ सरकारी, कुछ गद्दारी, कुछ नून- तेल और रोटी - तरकारी का...।

आशा करता हूँ, इसमे आपको कुछ खुद अपनी झलक दिखेगी । आपके  समय और धैर्य के लिए कोटि कोटि धन्यवाद...

                                                                                                                 आपका
दिनाँक 25.1.2011                                                                                        मंगलासिंह 

प्रेरणा एवं सहयोग :मनीष सिंह सेंगर