सोमवार, 31 दिसंबर 2012

यह नूतन वर्ष सुहावन हो...




 जो बीत गया सो बीत गया, यह नूतन वर्ष सुहावन हो।
.................................जीवन तरु में नव पल्लव हों,उसपर उमंग की चहचह हो।
.................................मीठे फल सबके हाथ लगें , यह नूतन वर्ष  सुहावन  हो।
हर सोच सफलता में बदले,यश गौरव का उन्नायक हो।
भाई - चारा ,सहयोग  बढ़े , यह नूतन  वर्ष  सुहावन हो।
.................................धन-धान्य और परिवार बढ़े,सब रिश्ते मंगलदायक हों ।
.................................नारी की घर-घर पूजा   हो, यह नूतन वर्ष  सुहावन हो।
अपने तो अपने होते हैं ,  इस जीवन में वे  गैर न हों ।
जो रूठे उन्हें मना लेंवे, यह नूतन वर्ष सुहावन  हो ।
.................................परिश्रम में सोंधी खुशबू हो, यह धरती भरी वनस्पति हो।
.................................तन-मन से सभी नीरोगी हों, यह नूतन वर्ष सुहावन हो।
बीते अनुभव सब नींव बने,उसपर एक भवन भरोसा हो।
सब  धर्म दिव्य दरवाजे  हों, यह नूतन वर्ष सुहावन  हो।
.................................सारे सद्भाव  झरोखे हों ,  भीतर वह सत्य अकेला हो ।
.................................तँह साथ प्रार्थना करें सभी,यह नूतन वर्ष सुहावन हो।
मानव की सेवा साध्य बने, यह संवाहिका सहायक  हो।
सब बोलें भारत की जय हो , यह नूतन वर्ष सुहावन हो।
.................................मेरी बौनी अभिलाषा है, सब मस्त रहें , सब  अच्छा  हो।
.................................सब विन-विन सिचुएशन में हों,यह नूतनवर्ष सुहावन हो।
जो बीत गया सो बीत गया, यह नूतन वर्ष सुहावन हो।
31st DECEMBER 2016                                   Mangal-Veena.Blogspot.com

गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

रेप का नाश हो

                       हमारा लोकतंत्र पुष्ट हो रहा है ।साथ ही साथ समाज में धर्म ,कर्म एवं कुकर्म भी खूब फल -फूल रहे हैं ।बिना कारण कोई कार्य नहीं होता है ।अतः सोलह दिसंबर की रात नई दिल्ली में एक युवती केसाथ हुए जघन्य बलात्कार केलिए भी भारत के बुद्धिजीवी ,नेता ,प्रशासक,समाजसेवक,अखबार एवं मिडिया केलोग अनेकानेक कारण बता रहे हैं साथही प्रस्तावित समाधान की झड़ी लगाये हुए हैं ।ऐसा लगता है कि यदि उन्हें एक मौका मिल जाय तो वे रेप को समूल नष्ट दें।केंद्र एवं दिल्ली की सरकारें उठे बवंडर से हांफ रही हैं। दिल्ली पुलिस अवाक् है कि कहां की आफत आ पड़ी।
                      बेचारी पीड़िता पहले दिल्ली फिर सिंगापुर के एक अस्पताल में तेरह दिनों तक मौत से जूझते हुए हम भारतीयों को हमारे कर्तब्य की याद दिलाती रही।करोड़ों भारतवासी दुआ करते रहे कि वह मौत पर विजय पाए और न्यायपालिका /ब्यवस्था उसे तत्काल एवं यथेस्ट न्याय दे।।रेपिस्टों को सजा दिलाने केलिए बहुत बड़ी संख्या में युवक एवं युवतियों ने राजधानी को इस कदर सर पर उठा लिया कि पुलिस कार्यवाही पर उतर पड़ी और दिल्ली पुलिस का एक कर्ताब्यनिष्ट सिपाही इस रेप पर बलि चढ़ गया।भीड़ उमड़ी थी न्याय मांगने कि एक दहला देनेवाला अन्याय हो गया।दामिनी स्वयं भी पूरे देश को झकझोरते हुए बलिदान हो गई।यह सब बड़ा ही दुखद है।सच तो यह है कि ऐसे प्रदर्शनों से यह कुकृत्य विरामबिंदु पर पहुँचने वाला नहीं है।कुछ महीना पहले (09.07.2012)गुवाहाटी में एक ऐसा ही जघन्य रेप हुआ था।खूब हो-हल्ला भी मचा था।रेपिस्टों को पकड़कर कानून के हवाले कर दिया गया।समाज और सरकार ने अपने कर्तब्य का इतिश्री समझ लिया ।ऐसा ही होता हुआ इस बार भी दिखता है।रेपिस्ट कानून के हवाले हो चुके हैं।सरकार लूला-लंगड़ा प्रयास करेगी कि उन्हें कड़ी से कड़ी सजा मिले।तबतक रेप कहीं और कई घिनौने नाच कर चुका होगा क्योंकि रेप एक विकृत मनोदशा है जो परिस्थिति एवं समय को अनुकूल पा रेपिस्टों के सर पर सवार हो जाता है और फिर समाज रेप का एक नया नंगा नाच देखता है।          
                       यह रेप आतंकवाद के स्लीपिंग माड्यूल जैसा हो गया है जो हमारी बहन,बेटिओं के इर्द -गिर्द पूरे देश में पैठा हुआ है।रेपिस्ट मुहल्ले या गाँव में किसी पड़ोसीरूपमें,कार्यालय में किसी बास या सह्कर्मीरूपमें,सड़क पर किसी यात्रीरूप में, विद्यालय में किसी शिक्षक या छात्ररूप में,राजनीति में किसी नेतारूप में या रिश्तों में किसी रिश्तेदाररूप में यत्र -तत्र सर्वत्र विद्यमान हैं।सावधानी हटी कि दुर्घटना घटी।रेप सर्वकालिक है और बढ़ते -घटते कलंकित चंद्रमा की भांति यह अतीत में था,वर्तमान में वीभत्स ताण्डव कर रहा है और भविष्य में भी शायद रहेगा परन्तु इस रेप ने हम भारतवासियों को गहरे चिंतन की ओर ढकेल दिया है कि हम क्या थे,क्या हैं और आगे क्या होना चाहते हैं।इस सन्दर्भ में वे असंख्य लोग वन्दनीय हैं जो इस रेप के विरुद्ध आवाज उठाये हैं।ठीक है कि क्रियारूप में हम कुछ भी करलें, जो "हुआ" उसे "नहीं हुआ " नहीं बनाया जा सकता है परन्तु एलार्म बजा दिया गया है कि भारत अब ऐसा कुकृत्य बिलकुल सहन नहीं करे,रेपिस्टों को सरकार एवं न्यायालय तत्काल एवं कठोरतम दंड दें और महिलाओं की मर्यादा सर्वोपरि सुनिश्चित करे।साथ ही समाज से सरकार तक सभीलोग सत्यनिष्ठा से अपना कर्तब्य निभाएं,हर संभावना को घेर दें जो ऐसे कुकृत्य केलिए अवसर पैदा करते हों और एक -एक महिला एवं पुरुष को इस बुराई के प्रति जागरूक एवं संवेदनशील बनादें फिर निश्चय ही हमारी धरती से इस कुकृत्य का उन्मूलन हो सकेगा।इन सारी ब्यवस्था के बावजूद महिलाओं को सावधानी रूपी सुरक्षा घेरा सदैव अपने साथ रखना चाहिए --    
                                         बेटी ,बहना ,भार्या ;सदा  रहो  होशियार ।
                                         ना जानें रेपिस्ट ये ;कौन भेष मिल जांय ।
                    अब जबकि पूरे देश के एकस्वरीय शंखनाद से सोलह दिसंबर को  महिला के साथ हुई रेप दुर्घटना इतिहास के पन्नों में एक घुमावबिंदु की तरह अंकित होने जा रही है, हम भारतीयों को दामिनी के बलिदान को शीश झुकाते हुए प्रति वर्ष इस दिन को महिला सम्मान दिवस के रूप में मानना चाहिए और हर भारतवासी को यह संकल्प दुहराना चाहिए कि ---- 
रेप का नाश हो ;उत्पीड़न समाप्त हो ; नारी का सम्मान हो ;भारत महान हों ।साथ -साथ हर स्तर पर जागरूकता के कार्यक्रम चलने चाहिए क्योंकि यह वह प्रकाश है जिससे सभी कुकर्म रूपी अंधकार डरते हैं।इसकी अगुआई सरकार करे ,समाजसेवी करें ,पंडित और मौलवी करें।निवेदन है कि लोग मेरे उद्गार को गंभीरता से मनन करेंगे क्योंकि हम अपनी बहन ,बेटी,पत्नी और माताओं की मर्यादा की बात कर रहे हैं कि जिनके बिना हमारा अस्तित्व ही नहीं है।
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अंततः
आइए नारी के प्रति श्रद्धा पर महाकवि जयशंकर प्रसाद को याद करें -
                                       नारी तुम केवल श्रद्धा हो ,विश्वास -रजत -नग पगतल में ।
                                       पियूष श्रोत  सी बहा करो ,जीवन  के  सुन्दर समतल  में ।
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नोट :पाठक कृपया इस सन्दर्भ में इसी ब्लाग पर हमारा लेख गुवाहाटी कांड या ईश्वर के अवतार का समय भी देखें।

























मंगलवार, 4 दिसंबर 2012

सब विन - विन सिचुएशन में हों ,यह नूतन वर्ष .....

छः दिसंबर 1992को बाबरी मस्जिद विध्वंश के बाद नव वर्ष की शुभ कामना
देनेवाली अपनी कविता को और आगे बढ़ा रहा हूँ और निम्न पंक्तियों से
अपने समस्त शुभेक्षुओं, पाठकों एवं टिप्पणीकारों को नवागत वर्ष के लिए
ठेर सारी शुभकामनाएं संदेशित करता हूँ ।
                                                 कविता
जो बीत गया सो बीत गया,यह नूतन वर्ष सुहावन हो।
.................................जीवन तरु में नव पल्लव हों,उसपर उमंग की चहचह हो।
.................................मीठे फल सबके हाथ लगें , यह नूतन वर्ष  सुहावन  हो।
हर सोच सफलता मे बदले,यश गौरव का उन्नायक हो।
भाई - चारा, सहयोग बढे , यह नूतन  वर्ष  सुहावन  हो।
.................................धन-धान्य और परिवार बढ़े,सब रिश्ते मंगलदायक हों ।
.................................नारी की घर-घर पूजा   हो, यह नूतन वर्ष  सुहावन हो।
अपने तो अपने होते हैं ,  इस जीवन में वे  गैर न हों ।
जो रूठे उन्हें मना लेंवे, यह नूतन वर्ष सुहावन  हो ।
.................................परिश्रम में सोंधी खुशबू हो, यह धरती भरी वनस्पति हो।
.................................तन-मन से सभी नीरोगी हों, यह नूतन वर्ष सुहावन हो।
बीते अनुभव सब नींव बने,उसपर एक भवन भरोसा हो।
सब धर्म दिव्य दरवाजे  हों , यह नूतन वर्ष सुहावन  हो।
.................................सारे सद्भाव  झरोखे हों ,  भीतर वह सत्य अकेला हो ।
.................................तँह साथ प्रार्थना करें सभी,यह नूतन वर्ष सुहावन हो।
मानव की सेवा साध्य बने, यह संवाहिका सहायक  हो।
सब बोलें भारत की जय हो , यह नूतन वर्ष सुहावन हो।
.................................मेरी बौनी अभिलाषा है, सब मस्त रहें , सब  अच्छा  हो।
.................................सब विन-विन सिचुएशन में हों,यह नूतनवर्ष सुहावन हो।
जो बीत गया सो बीत गया, यह नूतन वर्ष सुहावन हो।
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# - विन-विन सिचुएशन :- हमारी भी जय हो, तुम्हारी भी जय हो की स्थिति।



  

शुक्रवार, 23 नवंबर 2012

क्या कल होगा यही इंडिया

                                           कविता 

                              क्या कल होगा यही इंडिया, विश्वशक्ति इस दुनियाँ में ?
जनता लुटती बीच बजरिया, देव  लुटें   देवालय     में ।
खेती लुटती खेत, कियरिया, जहर मिले फलसब्जी में।
मिला कास्टिक, तेल, यूरिया, दूध  बनावें  पानी  में ।
जो भी मिलता सभी जहरिया,गडबड सब कुछ मण्डी में ।
                              क्या कल होगा यही इंडिया, विश्वशक्ति इस दुनियाँ  में ?
पूजा पाठ भये पंडलिया, सब कुकर्म इस पेशे में ।
लम्पट ठोंगी सब प्रवचनिया, जनता इनके चरणों में ।
पहले नेता फिर नौकरिया, साथी  स्याह कमाई  में ।
अब अभियंता भी आ जुडिया, देश डूबता तिकड़ी में ।
                              क्या कल होगा यही इंडिया, विश्वशक्ति इस दुनियाँ में ?
न्यायान्याय  किताबी बतिया, चले जुगाड़ कचहरी में ।
नोट खेलावे चोर-सिपहिया, बाछें  खिली वकालत  में ।
मिलजाये डॉक्टरी डिगिरिया,खाओ कमीशन चेकअप में ।
मर जायें  या जीयें  रोगिया, नोट  तुम्हारे   पाकेट  में ।
                              क्या कल होगा यही इंडिया, विश्वशक्ति इस दुनियाँ में ?
नाचें, गावें, तोरें  तनिया, भ्रष्ट आचरण जीवन में ।
वसनहीन गौरांग बदनिया , सबसे ऊपर रेटिंग .में ।
कोई न बहना,बेटी,न भइया, टी.वी.धारावाहिक में।
मन्दाकिनी मरी अनुसुइया, देख  बेशर्मी  नारी  में ।*
                              क्या कल होगा यही इंडिया, विश्वशक्ति इस दुनियाँ में ?
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*सती अनुसुइया माता सीता को समझाती हैं :-
                        जग पतिब्रता चारि विधि अहहीं । वेद पुरान संत सब कहहीं ।
उत्तम के अस बस मन माहीं । सपनेहुँ आन पुरुष जग नाहीं ।
                        मध्यम पर पति देखइ कैसे । भ्राता  पिता  पुत्र  निज   जैसे ।
धर्म विचारि समुझि कुल रहही।सो निकृष्ट तिय श्रुति अस कहही ।
                      बिनु अवसर भय तें रह जोई । जानेहु अधम नारि जग सोई । 
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अंततः 
घमंड या अहंकार तुमको झुकने नहीं देता है। झुकोगे नही तो कोई तुम्हे उठाकर गले लगाएगा नहीं। हाँ तुम्हे झुकाने का लगातार प्रयास करता रहेगा।  अतः समाज के गले लगना है तो अपने घमंड रुपी दुश्मन को मारो और झुकना सीखो।
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सोमवार, 12 नवंबर 2012

दीपावली

 *************** किसी भी पर्व के आगमन पर उसकी पृष्ठभूमि व परम्परा के स्मरण का भी अपना एक आनन्द है।अस्तु ,दीपावली ,दीवाली  या दीपोत्सव  विश्व के प्राचीनतम एवं लोकप्रिय  त्योहारों में एक है।आर्य संस्कृति के साथ प्रारूपित यह त्योहार उमँग और ख़ुशियों के साथ सबको आरोग्य ,धनसंपदा ,कौशल विकास  व कल्याण की कामना करने का अवसर प्रदान करता है।यह दुनियाँ की एकमात्र त्योहारी श्रृंखला है जिसमें पुरुषार्थ ,परार्थ ,परमार्थ ,विज्ञान ,अध्यात्म ,अन्धकार व प्रकाश ;सभी समाहित हैं।प्रमुख त्योहार के दिन, अमावस की अँधियारी को दूर भगाती दीपावलियाँ मानवीय उमंगों के साथ भीनी-भीनी ठण्ड की आंचल तले भारत भूमि पर ऐसी आकाशगंगीय छटा बिखेरती हैं मानो दरवाजे पर आहट देती शीत ऋतु का स्वागत कर रही हों।आज के व्यवहार में यह दीप सुन्दरी अपनी सम्पूर्ण मनोहारी परम्पराओं के साथ कार्तिक कृष्ण पक्ष की धनतेरस को सांध्यवेला में हुलसित होती इस धरा पर अवतरित होती है और पाँच दिनों तक जन -जन को रंग -विरंगी खुशियों से सराबोर करती और कर्मयोग की प्रेरणा  देती हुई वर्ष परिक्रमा की ओर  बढ़ जाती है।
***************विजय पर्व दशहरा के साथ ही दीपावली अपने आगमन की आहट दे देती है ।खेतों में धान ,ज्वार ,बाजरा ,उरद ,मूँग इत्यादि खरीफी फसलों की बालियाँ व फलियाँ सुनहरी हो उठती हैं और किसान को खलिहान चलने का संदेश देती हैं ।साथ ही वातावरण ,धरती और आकाश स्वच्छ होने का संकेत देने लगते हैं। फिर क्या सभी लोग अपने घर -द्वार ,गली-कूचा ,गौशाला ,घूर ,खेत -खलिहान व आस -पास की श्रमसाध्य सफाई  करते हैं और अनाज को सीवान से खलिहान होते हुए घर लाते हैं।उपज के साथ  नगरों में भी कृषिजन्य व्यवसायों का नया सिलसिला चल पड़ता है ।हाट बजार में अब तक गुड़ ,शक्कर ,फल , सब्जी इत्यादि की आमद भी जोर पकड़ लेती है ।साथ में स्वच्छ धरती ,सुथरे जलाशय ,समशीतोष्ण मौसम ,व्यवसायियों को प्राप्त कारोबारी अवसर ,मजदूरों को प्राप्त त्योहारी ,कर्मियों को मिला  बोनस और  बेतन भी इस त्योहार में  इन्द्रधनुषी आकर्षण भर देते हैं ।एक लोकोक्ति है कि सदा दीवाली संत घर ;जो गुड़, पय(दूध ), पुर्ना (अनाज ) होय ।ऊपर से सबके मन में यह दृढ विश्वास कि जैसा दीपावली का दिन  वैसा पूरा वर्ष ।अतः लोग इस त्योहार की विविध एवं उत्कृष्ट तैयारी में कोई कोर -कसर नहीं छोड़ते हैं ।                
***************समय के साथ ग्रामीण एवं नगरीय परिवेश बदले हैं,आर्थिक तंतु  बदल गए हैं, यहाँ  तक कि स्नेह एवं दीप भी रूप बदल कर मोमबत्ती, बिजली बल्ब की लड़ियाँ  एवं लेज़र लाइट हो गए हैं, परन्तु अविरल भारतीय  परम्परा से  इस त्योहार को जीवंत स्नेह निरन्तर  मिल रहा है और आज भी इसमें कोई  ह्रास नहीं हुआ है। लगातार पांच दिनों तक चलने वाला यह पर्व कार्तिक महीने के कृष्णपक्षीय धनतेरस  से चल कर शुक्लपक्षीय द्वितिया को विराम लेता है। हर हिन्दू परिवार धनतेरस को लक्ष्मी - गणेश की लघु प्रतिमा , कोई धन प्रतीक जैसे नया बर्तन, सोने या चाँदी का सिक्का , आभूषण तथा लड्डू - मिठाई बाज़ार से  नकद  क्रय कर घर लाता है। देर सांझ को शुभ -लाभ रूप लक्ष्मी - गणेश की दीप जला कर आराधना होती है।हिन्दू परिवारों का भरसक प्रयास होता है कि वे बड़ी खरीद  -विक्री आज के दिन ही करें। अतः आज के दिन भारतीय बाजारों में करोड़ों करोड़ रुपये की धन वर्षा होती है और अनेकानेक गृहोपयोगी वस्तुएँ घरों में आती हैं।  आज ही के दिन समुद्र मंथन से लक्ष्मी के साथ आरोग्य के देवता धनवन्तरि का पृथ्वी पर अवतरण हुआ था । अतः औषधि विधा वाले आज धन्वन्तरि भगवान की पूजा करते हैं। धर्मराज यम के पूजन की भी प्राचीन परंपरा चली आ रही है।
*************** दूसरे दिन छोटी दिवाली या नरकासुर चतुर्दशी मनाने की परंपरा है, जिसे नरक नाम के असुर को भगवान श्री कृष्ण द्वारा दिए गए वचन के अनुपालन में समस्त भारतवंशी हजारों वर्षों से बड़ी श्रद्धा से निभाते चले आ रहे हैं। इस क्रम में साँझ को पुराने दीप में तेल - बाती कर यम का दीया दरवाजे के बाहर रखा जाता है। कुछ पंचांग आज के दिन पवन पुत्र हनुमान की जयंती का भी उद्घोष करते हैं और तदनुसार धूम -धाम से हनुमदजयन्ती हर्षोल्लास से मनाते है। अयोध्या में यह पर्व बड़े ही धूम धाम से मनाया जाता है।
*************** मुख्य दीपावली पर्व अमावस्या की संध्या बेला से प्रारंभ होता है।  यह पर्व सर्वप्रथम,इसी दिन जगत जननी माता सीता और लक्ष्मण के साथ लंका विजयोपरांत मर्यादापुरुषोत्तम भगवान् श्री राम के घर लौटने पर, अयोध्यावासियों ने मनाया था। इस दिन संध्यावतरण होते ही लोग सर्व प्रथम देवालयों में दीप जलाते हैं, फिर ग्रामदेवता, कुल देवता एवं घूर को दीप प्रकाश समर्पित करते हैं। तत्पश्चात घर, बाहर, सर्वत्र दीपावली ही दीपावली।  अँधेरी रात में दीप प्रकाशों से दूर भागती , सिमटती अंधियारी की मनोरम छटा देखते ही बनती है। जिसने प्रकाश पुंजों को घनी अंधियारी पर विजय पाते न देखा हो उन्हें ऐसे दृश्य की एक झलक पाने का यत्न करना चाहिए। दीपावली सजाने के बाद पूरा कुनबा उमंग एवं सौहार्द के वातावरण में पकवान, तले सूरन (जमीकंद) एवं मिठाई का आनद उठता है। मान्यता है कि यदि हिन्दू दीपावली के दिन सूरन न खाए तो उसका अगला जन्म छछुंदर या इस तरह के किसी नीच योनि में हो सकता है। मौज मस्ती करते हुए देर रात्रि में विद्यार्थी अपनी पुस्तकों को, पंडित अपनी पोथी को, धनवान अपने धन को, विद्वान् अपनी वाणी को, व्यवसायी अपनी बही को, वैद्य अपनी औषधि शास्त्र को, तांत्रिक अपने तंत्र विद्या को, चोर अपनी चोरी को,जुआरी  अपनी द्यूत को जगाते हैं। अल्पना किये हुए जगमगाते घर पूरी रात्रि खुले रहते हैं क्योंकि मान्यता है कि लक्ष्मी जी का रात्रि के उत्तरार्ध में सर्वाधिक स्वच्छ ,आलोकित और मनोरम घरों में पदार्पण होता है। दादी माँ जलते दीप को परई से ढँक कर इस रात काजल की कालिख तैयार करती हैं जिससे लोग वर्षपर्यंत अपनी आँखों की ज्योति दुरुस्त रखते हैं। भोर मुहूर्त में घर की वरिष्ठ महिलायें सूप की थाप से दरिद्र महाराज को घर के कोने -कोने से  खेद कर सीवान तक ले जाती हैं और वहीँ इकठ्ठा होकर सभी सूपों को जला देती हैं।भोर में जब सूप बजाती महिलाएं  घरों से निकलती हैं तब उनकी  कोरस  की रागधुन सुनते ही बनती है ।लोग कहते हैं कि दरिद्र भगाए सूप को ततक्षण जला कर तापने से सारे चर्म रोग नष्ट हो जाते हैं और ब्यक्ति भब्यता को प्राप्त होता है ।इस प्रकार लोग दरिद्रता को दूर भगा लक्ष्मी कृपा आवाहन कर नव प्रभात की ओर बढ़ते हैं ।बंगाल में इस रात काली पूजा की प्रबल प्रथा है ।परन्तु इतने सुन्दर पर्व को, अत्याधिक पटाखेबाजी जनित  ध्वनि प्रदूषण और पर्यावरण छति ने बहुत कलंकित किया है। अरबों रुपये स्वाहा कर हम अपने श्रवण शक्ति खोने ,दमा -खाँसी को आमंत्रित करने ,वायु को दूषित करने व आस -पास गन्दगी फ़ैलाने का उपक्रम करते हैं।जूए का खेल भी इस त्योहार का दामन नहीं छोड़ रहा हैं।ये  व्यवहार के नकारात्मक पहलू हैं। अतःहमें इस पावन पर्व को ऐसी कुरीतियों से मुक्त करना चाहिए।     
***************चौथे दिन कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा कों गोवर्धन पूजा होती है, जिसमें विधान के अनुसार मंदिरों में अन्नकूट होता है। गोवर्धन पूजा का स्पष्ट सन्देश है कि पूजा उसकी की जाये जो बेहतर जन सेवी हो।जैन ,गुजराती और वनिक समुदाय इस दिन को नव वर्षारंभ के रूप में मनाता  है। सामान्यतः आज लोगों का इष्ट मित्रों से मिलना - जुलना होता है और होती है सबके पास सबके लिए सद्भावना एवं शुभेच्छा ।
***************पांचवे दिन अंतिम पायदान पर भैया-दूज या यम- द्वितिया मनाई जाती है जिसके पृष्ठ भूमि में धर्मंराज यम एवं उनकी बहिन यमी (यमुना) की एक स्नेहमयी पौराणिक गाथा है।दूसरी स्मरणीय कथा यह है कि जब नरकासुर का बध क़र श्री कृष्ण घर लौटे तो आज ही के दिन लाडली बहन सुभद्रा ने उनके मस्तक पर अक्षत, कुमकुम, रोली लगाकर स्वागत किया एवं उन्हें मिठाईयां खिलायीं थी । भैय्या दूज भाई - बहनों के बीच मधुर रिश्तों का एहसास कराने  एवं एक दूसरे के प्रति कर्तव्यों को याद दिलाने व निभाने का व्रत लेने वाला  पर्व है। इस दिन कायस्थ समाज चित्रगुप्त महाराज,जो धर्मराज यम के महा लेखाकार माने जाते हैं,  की पूजा- आराधना करता है।लोग इसे कलम पूजा भी कहते हैं।इन मान्यताओं के अलावा देश के विभिन्न अंचलों में दीवाली क़े साथ अन्य बहुत सी किम्बदंतियाँ व कथाएँ जुड़ी हुई हैं जिनके अनुसार रिवाजें भी मनाई जाती हैं। इस प्रकार  व्यवहार से मंडित दीपावली ,देव दीपावली को आमंत्रित करते हुए, विदा हो जाती है और मानवता को ऊर्जा, उमंग एवं साहस बढ़ा जाती है ताकि शीत ऋतु में उद्यमिता एवं कृषिधर्मिता सानुकूल रहे।सत्य एवं प्रकाश के विजय पर  दीपमालिका  सजाने  वाली इस शानदार दिवाली को बारंबार नमन।  
------------------------------शुभं करोति कल्याणं ,आरोग्यं धन संपदा ।
------------------------------शत्रु बुद्धि विनाशाय ,दीप ज्योति नमस्तुते ।
परन्तु ---- जलाओ दीये पर रहे ध्यान इतना 
                 अँधेरा धरा पर कहीं रह न जाए।
                  लगे रोशनी की झड़ी झूम ऐसी 
                  निशा की गली में तिमिर राह भूले।(श्री गोपाल दास नीरज ) 
दिनाँक 27  अक्टूबर 2016 संवत 2073 ------------------------------- मंगलवीणा 

******************************************************************************************
अंततः
***************सभी सनेही पाठकों ,मित्रों एवं शुभेच्छुओं को धनतेरस ,धन्वन्तरि जयंती ,छोटी दीवाली ,हनुमद्जयन्ती ,शुभ दीपावली ,लक्ष्मी -गणेश पूजनोत्सव ,गोवर्धन पूजा ,भैयादूज ,यमद्वितिया , चित्रगुप्त पूजनोत्सव एवं नव वर्षारम्भ की ढेर सारी शुभ कामनायें।इस अवसर पर पर्व के सन्देश पर बढ़ते  हुए हमें स्वच्छता, आरोग्य एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए समर्पित होने का ब्रत भी लेना चाहिए।
 शुभम अस्तु।----------------------------------------------------------------------------------------------- मंगलवीणा


शुक्रवार, 2 नवंबर 2012

भारतीय लोकतंत्र प्रहरी परीक्षा 2012

परिचय :1.पाठकों  के लिए सभी प्रश्न पढ़ना अनिवार्य  है ।सभी प्रश्नों के अंक समान  हैं ।
              2.प्रश्नों  में उल्लिखित आंकड़ो एवं तथ्यों का सत्य या असत्य से कोई न कोई संबंध है ।
              3.यह प्रश्नपत्र एक साहित्यिक रचना है जिसका प्रयोजन देश में हो रहे भ्रष्टाचारों की लम्बाई- चौड़ाई का अंदाज लगाना है। 
              4.प्रथम दस उच्चतम अंक पाने वाले पाठकों को पाठकों के माध्यम से श्रेष्ठ लोकतंत्र प्रहरी पुरष्कार से          सम्मानित करने पर विचार किया जा सकता है वशर्ते इस चयन प्रक्रिया में भी कोई घोटाला न हो जाय ।
        प्रश्न 1-निम्न लिखित घोटालो को पुराने से नये की ओर खुलने वाले समय क्रम में ब्यवस्थित करें 
अ .कोलगेट                ब .कामनवेल्थ गेम्स             स .एस बैंड (एंट्रिक्स -देवास ) 
द .अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा नईदिल्ली                       य .2-जी 
       प्रश्न2.भारत में वर्तमान समय मे घोटाले की मानक इकाई (माइ )क्या है 
अ .लाख करोड़ रु  (1000000000000)    ब .करोड़ रु (10000000)      स .लाख रु (100000)                      संकेत -हमारे देश  में अब अरब, खरब की नहीं बल्कि लाख करोड़ की बात होती है  ।
       प्रश्न3.निम्न लिखित सारिणी  में अ वर्ग में घोटालों  के नाम तथा ब वर्ग में उनकी राशि अंकित है ।तीर लगा कर दिखाएँ कि  किसका किससे  सम्बन्ध है -
  अ   वर्ग                                                     ब   वर्ग 
क .कोलगेट                                            0.36 माइ रु  
ख .2-जी                                                2.00 माइ रु 
ग .एस बैंड (एंट्रिक्स -देवास )                  1.76 माइ रु 
घ .कामनवेल्थ गेम्स                              1.86 माइ  रु  
       प्रश्न4.स्वतंत्र भारत का पहला कुल 197.39 करोड रु का बजट स्व .श्री आर .के .खड़मुखम चेट्टी ने संसद में सन 1947-48 में प्रस्तुत किया था जब कि प्रश्न 4 में वर्णित  घोटालों  की कुल कीमत लगभग 6 माइ रु है इस आधार पर निम्न आकडों में सही अनुपात पर  y का निशान लगायें 
अ .      1    :     3030               ब .     3030    :    1             स .      1     :       100    द .   1    :     1000
संकेत : स्वतंत्र भारत के प्रथम बजट के कई हजार गुने घोटाले हाल के दो -तीन वर्षों में हुये हैं 
       प्रश्न5.निम्न लिखित घोटालों /भ्रष्टाचारों का किस राज्य से सम्बन्ध है - तीर लगाएं 
                चारा -घोटाला                           हरियाणा 
                एनआरएचएम                          बिहार 
                 लवासा सिटी                            उत्तर प्रदेश 
                लैंड स्कैम्स                               महाराष्ट्र 
      प्रश्न6.डिश प्रोपोर्शनेट एसेट(श्रोत से असंगत संपत्ति )मामलों में निम्न में से कौन व्यवसाय के लोग सर्वाधिक स्वनाम धन्य हुए हैं ।
अ . नेता        ब .  नौकरशाह        स .  व्यवसायी      द .    किसान
संकेत  :डी .ए . से जुड़े पाँच माननीयों के नाम मन में  स्मरण  करें ।
      प्रश्न7.भारत में तीस रूपया प्रतिदिन से कम कमाने वाले गरीबी में डूबे  रहते हैं और उसके ऊपर  तुरंत अमीर की भांति पंख लगा उड़ने लगते हैं।फिर भी यदि सभी सवा सौ करोड़ लोग कामनवेल्थ गबन की राशि अपने पास से सरकारी खजाने में जमा करने का प्रण करें और तीस रूपया प्रति दिन कोष में जमा करें तो यह राशि कितने दिन में सरकारी कोष  में जमा हो जाएगी ।
अ .     लगभग 10 दिन           ब .1 दिन        स .आधा  दिन           द .एक  महीना
संकेत :नवरात्र के नौ दिन व्रत से भी यह भरपाई नहीं हो सकती है ।
       प्रश्न8.यह मानते हुए कि एक आई .ए .एस .अधिकारी अपने जीवन काल में औसतन पैंतीस वर्ष नौकरी करता है और प्रतिमाह एक लाख रुपये वेतन पाता है, वह सामान्य वेतनभोगी की भांति  पूरे सेवाकाल में   कितनी पूँजी खड़ा  कर सकता है ।
अ .प्रतिमाह खर्च के बाद 50%बचत करते हुए लगभग दो करोड़ रुपये
ब .प्रतिमाह खर्च के बाद 25%बचत करते हुए लगभग एक  करोड़ रुपये
स .प्रतिमाह खर्च के बाद 20%बचत करते हुए लगभग पचासी लाख  रुपये 
संकेत :सूचना के अधिकार तहत तीस वर्ष से अधिक नौकरी कर चुके 100 आई .ए .एस .अधिकारियों द्वारा अर्जित सम्पत्ति का विवरण  माँगा जा सकता है अन्यथा मध्य प्रदेश के आई .ए .एस .दम्पत्ति को याद किया जा सकता है ।
       प्रश्न9:रुपयों की गणना में दशमलव के दो अंक दाहिने बाद सभी अंक छोड़ (इग्नोर ) दिये जाते हैं ।अतः निम्न लिखित घोटालों में किस घोटाले को घोटाला नहीं मानना चाहिए और इण्डिया अगेंस्ट करप्शन को इसके लिए क्षमा मांग लेनी चाहिए ।
अ .डॉ .जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट                        71 लाख रु 
ब .महाराष्ट्र सिचाई घोटाला                                     .70माइ रु 
स .2-जी घोटाला                                                     1.76माइ रु 
द .कोलगेट घोटाला                                                 1.86माइ रु 
संकेत :कृपया बेनी प्रसाद बर्मा जी से संपर्क करे ।
       प्रश्न10. आज की परिस्थिति में इनमे से कौन सा स्लोगन राष्ट्रीय स्लोगन बनाया जा सकता है ।
अ .उद्योगी पुरुष (घोटाले बाज )शेर की भाँति लक्ष्मी अर्जित करते हैं ।
ब .ना इज्जत की चिंता ना फिकर किसी अपमान की -जय बोलो सरकार की ।
स .शार्टटर्म सत्ता की सेवा -घोटाले में ही मेवा ।
द .गली -गली बेईमान हैं --फिर  भी देश महान है।
संकेत :भारत :घोटाले बाज (उद्योगी ): : जंगलराज : शेर ।                                                                            --------------------------------------------------------------------------------------------------------------------
        यदि प्रश्नावली समाप्त हो गई हो तो ध्यान दें - सुनने में आया है कि हमारे प्रधान मंत्री जी बीते दशहरे से  अतीव प्रसन्न हैं क्योंकि स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक श्री मोहन भागवत ने दशहरे पर यह बयान ,कि देश में भ्रष्टाचार के लिए वर्तमान शिक्षा जिम्मेदार है ,देकर यूपीए सरकार को भ्रष्टाचार से दोष मुक्त कर दिया है एवं उसे भविष्य की शिक्षा नीति के लिए मार्ग -दर्शन भी दे दिया है ।अब समस्यायें आने पर वे भी  नागपुर आर एस एस मुख्यालय जा सकते हैं ।फिलहाल शिक्षा को चुस्त -दुरुस्त करने के लिए मनमोहन सरकार एक प्रस्ताव पर विचार कर सकती है कि आम  बजट में करदाताओं के ऊपर इनकम टैक्स पर शिक्षा सेस के अलावा कुछ प्रतिशत अतिरिक्त घोटाला निवारक शिक्षा सेस लादा जाय क्योंकि घोटालों का शिक्षा से चोली दामन सा साथ है।फिर संघ से शिक्षा का वह माडल तैयार कराया जाय जो भ्रष्टाचार से निपटती रहे और सरकार इस पाप -दोष से मुक्त हो जाय ।तत्कालिक राहत के लिए आर एस एस के सौजन्य से दोनों गुरु भाई कांग्रेस  और बीजेपी अब भ्रष्टाचार का मुद्दा समाप्त मान कर आगामी संसद सत्र को सुचारुरूप से चलायेंगे ।वे दोनो दल अब न भ्रष्टाचार देखेंगे ,न सुनेंगे ,न बोलेंगे ।इसका सबसे बड़ा लाभ यह होगा कि मिडिया ,प्रबुद्द लोग ,मैंगोपीपुल ,अन्ना जी ,केजरीवाल साहब ,बाबा रामदेव अब अन्य मुद्दों पर ध्यान दे सकेंगे दूसरी ओर घोटाले बाज भी अब नये कारनामों का ताना -बाना बुनने में ध्यान लगायेंगे ।क्या बात है मनमोहन जी ने  एक ही गेंद से सारे घोटा लों की गिल्ली ही उड़ा दिया ।यही  तो नहीं था इस बार दशहरे पर रावण दहन का रहस्य ?जय बोलो सरकार की ।
अंतत:
Think over it :Everybody intends to rule with flexibility to be ruled upto certain extent . 


सोमवार, 15 अक्तूबर 2012

PITRIVISARJANAM

A fortnight (Paksha or 15 days) called as Pitripaksha and dedicated to pay reverence to the Pitars(ancestors) in Heaven ,comes to its end on this last day i.e.the day of Pitrivisarjan, today on 15th of October 2012.
 
Observing Pitripaksha with full sincerity and discipline is a deep rooted Hindu tradition to remember Pitars by descendants. During the fortnight members of a family try to live in a Tapaswee like routine and perform rituals like offering Pind-daan (Balls of cooked rice Atta etc.) say offering of eatables and Tarpana (Jal-Arpan) etc. to their Pitars-who always bless their families on this earth.
 
It did not mean much to me till May 2012 when Swargeeya Kesar left for Heavenly abode.But now I believe that these rituals or religeous actions are aimed to translate the memories, respect, feelings and inner thoughts into physical and religeous display. So the fortnight deserves appriciations because it is the time to recall, talk and think about great human values and simplicity of Late Kesar.
 
On this day we all family members pay our respect and say Visarjanam to all Pitras right from Bhishma Pitamaha to revered Kesar.......

गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

सूरज कभी पूरब में भी उगता है

इट इज हाट के दौर में जब कोई फील गुड अहसास कराने वाली ख़बर आती है तो लगता है अब भी सूरज कभी पूरब में उगता है।
            बीते हाल में बिहार राज्य के किसी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह की बात आई जिसमें राष्ट्रपति, वहां के राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री को भाग लेना था। निमंत्रण पत्र पर राष्ट्रपति महोदय के नाम के साथ विशेषणार्थ महामहिम का मसौदा था जिस पर शायद राष्ट्रपति जी का सुझाव आया कि उनके नाम के साथ महामहिम न लगाया जाय, बेहतर होगा कि श्री लगाया जाय; साथ ही समारोह के मंच पर उनकी कुर्सी अन्य अतिथियों के समतल ही लगाई जाय। राष्ट्र के प्रथम भवन के प्रथम नागरिक से लोकतंत्र को पहला पसंदीदा विचार सुनने को मिला। यह प्रशंसनीय सोच राष्ट्रपति को निश्चय ही आम आदमी के समीप ले जाती है। शीर्ष पर विराजमान महानुभाव के इस सोच परिवर्तन का  राष्ट्रपति भवन से ग्रामसभा भवन तक  हर स्तर पर एक तो  बड़ा ही अनुकरणीय असर होगा दूसरे वे अपने को स्व. ज्ञानी जैल सिंह की परंपरा से अलग भी दिखा सकें गे।
             सोच को  आगे बढ़ाते हुए राष्ट्रपति भवन से कुछ इस प्रकार का प्रोटोकाल जारी भी कर दिया गया है कि देश में राष्ट्रपति महोदय को संबोधन के लिए हिज इक्सलेंसी शब्द का प्रयोग नहीं होगा और महामहिम के स्थान पर राष्ट्रपति जी/महोदय प्रयोग किया जायेगा। जब प्रथम भवन से लोकतंत्र  के साथ सामंजस्य बैठाते प्रोटोकाल की शुरुआत हो ही गई है तो सर्वप्रथम चर्चा राष्ट्रपति शब्द पर होनी चाहिए। यह शब्द किसी भी तरह प्रेसीडेन्ट का समानार्थी नहीं है। पति शब्द सदैव दम्भ एवं स्वामित्व का बोध कराता है और स्वयं को पति कहलाना अपने दम्भ एवं स्वामित्व भाव पर मुहर लगवाता है। शिष्टाचार की कसौटी पर किसी एक का पति होना अच्छी बात है परन्तु कईयों का पति होना बुरी बात है- ठीक वैसे ही जैसे किसी एक की पत्नी होना अच्छी बात है परन्तु बहुतों की पत्नी होना बहुत ही बुरी बात है।
             समय आ गया है कि भारतीय लोकतंत्र के प्रथम नागरिक अपने को देशपाल, भारतपाल, प्रथम सेवक, राष्ट्र सेवक, राष्ट्राध्यक्ष या प्रेसीडेन्ट कुछ भी कहलायें  परन्तु राष्ट्रपति शब्द को निरस्त करें। इसी प्रकार राष्ट्रपति-भवन के लिए देश निवास, भारत-भवन, प्रथम-भवन, प्रेसीडेंट हाउस जैसे समानार्थी किसी संबोधन को मान्यता दें ताकि भारत में एक नई लोकशाही धारा प्रेसीडेन्ट हाउस से निकले। इस विषय पर राजभाषा में एक राष्ट्रब्यापी चर्चा चला कर सूरज को पूरब में उगते देखा जा सकता है। राष्ट्रपति जितना ही आम होंगे, उतना ही गरिमा एवं महिमा मंडित होते चले जाएँ गे।
अंततः 
सन्निकट विजयादशमी एवं दुर्गापूजा के शुभावसर पर समस्त पाठकों एवं टिप्पणीकारों को उल्लासपूर्ण त्योहार के लिए सहृदय शुभकामनाएं। देश के प्रथम नागरिक एवं राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी साहब को भी नई पहल के लिए धन्यवाद एवं दुर्गा पूजनोत्सव पर मंगलमय एवं मंगलकारी कामनाएं।     

रविवार, 23 सितंबर 2012

कॉंग्रेटिक्स

               भ्रष्टाचार- भ्रष्टाचार------ सुनते खीज उठी केंद्र की कांग्रेस नीत सरकार ने अंततः एल .पी .जी .को टी .जी .(टियर  गैस ) के रूप में प्रयोग कर ही दिया ।पूरा देश हैरान ,परेशान व विकल हो उठा है कि लोकतांत्रिक सरकार अपने ही लोगों के साथ ऐसा  क्रूर मजाक कैसे कर सकती है  ।घटना क्रम कुछ यूँ  बयान करता  है -
               हुआ यह कि  जब कोलगेट से शर्मसार एवं उसके चलते विरोध से तंग आ चुकी पार्टी कोर -ग्रुप की बैठक हुई होगी तो अधिकांश ने दुहाई दी होगी कि कोलगेट कांड तो पार्टी हित में किया गया था ।अब ये विरोधी  हैं कि  नाक में दम कर रखे हैं और यदि इन्हें नियंत्रित करने के लिए तत्काल कोई कड़ा कदम नहीं उठाया गया तो ये हमारी सत्ता की किला में घुस सकते हैं ।गंभीर मुद्रा  बनाते हुए अध्यक्ष    ने जब पूछा कि  उन्हें कैसे नियंत्रित किया जाय तो किसी अर्थशास्त्री  का सुझाव आया कि  जैसे  आँसू गैस छोडे बिना भीड़ तितर -बितर नहीं होती है वैसे ही बहुत समय से शस्त्रागार में  सँजो  कर रखे गये कोटा एवं मूल्यवृद्धि से सुसज्जित एल .पी .जी .को बिना छोड़े जनता व विरोधी तितर -वितर नहीं होंगे ।क्षण भर  के लिए गंभीरता फिर पूरे हाल में मुस्कराहट तैर गई होगी ।इसी बीच किसी हिम्मती ने पूछा की यदि  एल .पी .जी .चला देंगे तो वह तो कांग्रेसी और गैर कांग्रेसी राज्यों में कोई अंतर नहीं करेगी ।इस बात को ध्यान में रखते हुए अध्यक्ष एवं  अर्थशास्त्री जी ने कुछ ऐसा सर्वसम्मत निर्णय सुनाया ----" मंत्री समूह की बैठक के नाम पर सरकारी आदेश जारी करो कि अब एक वर्ष में एक गैस कनेक्शन पर मात्र छः सिलेंडर एक परिवार को उपदान पर दिये जायेंगे ताकि लोग महीने में दस बारह दिन ही खाना खा -पका सकें ।शेष बीस दिन खाना नहीं खायेंगे तो मँहगाई भी तो सर पर पैर रख कर भागेगी ।यदि जनता को रोज ही खाना खाने का शौक है तो शेष सिलेंडर खुले बाजार दर से ख़रीदे ।आदेश कुछ ऐसा गोल -मोल बनवाइए की काला -बाजारी एवं अराजकता को बढ़ावा मिले । अध्यक्ष  की ओर से कांग्रेस शासित राज्यों को सुझाव भी भेजो कि वहाँ की जनता को वर्ष में तीन अतिरिक्त सिलेंडरों  पर उपदान दें ताकि वे अन्य राज्यों की जनता से अपने राज्य की जनता को बेहतर बता सकें।" कोर- ग्रुप के  सभी सदस्य अध्यक्ष के प्रति आभार ब्यक्त करते हुए वापस चले जाते हैं ।
              कांग्रेसी कार्यकर्ता पुनः रौब झाड़ रहें हैं कि एक तीर से केवल दो शिकार करने का जमाना गया ।एक  एल .पी .जी . से हमारे अध्यक्ष ने अनगिनत निशाने साधा है ।कोलगेट हजम। ममता दीदी ख़तम ।सरकारी खजाना लबालब ।आँसू बहाती  जनता घरों में ।कृपादृष्टि  के  लिए मायावती बहन एवं मुलायम जी  सरकार के गेट पर और आगामी चुनाव में विजय दिलाने के लिए तीन सिलिण्डर का जनता को लालच अलग से ।वाह! इसे कहते हैं कॉंग्रेटिक्स जो दुनियाँ में भारतीय कांग्रेस के अलावा किसी को सुलभ नहीं है । जिन्हें आनंद के लिए ज्ञान पाना हो और नित्य प्रार्थना करते हो; हे प्रभो ! आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये;  उनके लिए बेहतर होगा कि वे कॉंग्रेटिक्स में डिप्लोमा या डिग्री हासिल करें ।कमाई और सुख -सुविधा की कोई सीमा नहीं ।खुला अनन्त आकाश चहूँओर है ।मन --रे --गा   -- और गाये जा कि अब इससे बढ़िया रो --ज --गा --। --। --। --र --र  की  गारण्टी नहीं। मनरेगा हो या वालमार्ट- बेरोजगारों को रोजगार देने एवं पार्टी के लिए वोट पाने की ही अफीमी ब्यवस्था है।

अंततः
            प्रधानमंत्री द्वारा देश के ऊपर आर्थिक संकट की बात उठाने पर उत्तर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री का बयान आया है कि यदि आर्थिक संकट है तो उसके लिए जिम्मेदार कौन है ।जनता ने तो उन्हे चुनकर मौका दिया है ।क्या गहरा सन्देश दिया गया है कि यदि अब भी संकट है तो मौका मत गँवाइये  जनाब । संख्याबल  आप के साथ है ।चार बांस चौबीस गज ,अंगुल अष्ट प्रमान --------

CONGRETICS(Congress+ Politics) :- means politics played by congress party in India .Perhaps it is a patent politcs trademark for congress party of India .  Copy to 1. Oxford Dictionary and 2. B.J.P Hqrs ND.   



बुधवार, 12 सितंबर 2012

भरोसा टूट गया

जी हाँ; भरोसा टूट गया। फिर तो आप जो थे-वह नहीं हैं। यह मानकर अपनी मति के अनुसार मैं जो समझूँ , वह आप हैं। उटपटांग वाक्य परन्तु सीधा-साधा सन्देश। कोलगेट कांड में सीबीआई ने कई कंपनी कार्यालयों में  छापा मारा। फिर श्री अरविन्द केजरीवाल का खुलासा आया कि सीबीआई ने छापे से पहले ही कम्पनियों को सचेत कर दिया था कि छापे मारे जायेंगे। सीबीआई एक बार पुनः स्वायत्तताविहीन एवं सत्यनिष्ठा से दूर दिखने लगी। आम लोगों को यकीन हो गया कि भ्रष्टसत्ता के अधीन एवं उसके इशारे पर काम करने वाली यह संस्था सत्यनिष्ठ हो ही नहीं सकती। गई भैंस पानी में। कभी अच्छी खबर आती है कि सीबीआई ने अपने विभाग के ही अधिकारी को घूसखोरी में रंगे हाँथ पकड़ लिया है तो जनता की समझ बनती है कि यह सब चोर- सिपाही वाला खेल है। क्यों नही सीबीआई कभी अपने मालिक घराने को रंगे हाँथ पकड़ती है? वाह रे भरोसे का संकट।
         हाल में सुब्रह्मण्यमस्वामी जी  ने चिदंबरम महोदय को दो-जी (2 जी ) में लपेटने का न्यायालयीय प्रयास किया । सब टांय-टांय फिस्स हो गया। सत्ताधारियों का तेजहीन चेहरा खिल उठा। परन्तु जनता में राय बनी कि  न्यायालय सत्ता की वीटो पॉवर प्रेशर में आ गया।यह कैसे हो सकता है कि जब सरकार ने कम्पनियों से कहा कि दो जी (प्लीज गिव ) तो लो जी समूह में ए राजा साहब के अलावा अन्य महोदय लोग नहीं रहे होंगे ।अब तो माननीयों को भरोसामाई मंदिर जाकर पूजापाठ करना चाहिए कि माई भरोसा बहाल करें ।
         भरोसा-भंग विभागों में पुलिस महकमें का अपना रुतबा है। पुलिस थाने का कोई अधिकारी हमारे एक मित्र को फर्जी केस से उनका नाम निकालने का आश्वासन, बिना लक्ष्मी दर्शन, दे दिया। मित्र का खाना-पीना छूट गया क्योंकि शुभचिंतकों ने उन्हें बताया कि यह तो किसी शनि, राहू या केतु जैसे ग्रह के कुदृष्टि की आहट है। पुलिस पैसा न ले और कोई सत्यनिष्ठ काम कर दे- यह तो हो ही नहीं सकता। बाद में पता चला कि वह अधिकारी कर्तब्यपरायण था और सचमुच मेरे मित्र को उबार दिया था। परन्तु जनता क्या करे, अपवाद को नियम तो नहीं कहा जा सकता।
         वैसे भरोसा-भंग मामले में हमारा देश भारत भी कम करम फूटा नहीं है। चीन पर भरोसा करे की पाकिस्तान पर। हाल ही में चीन के रक्षामंत्री भारत आये सो जानकारी के अनुरूप कुछ अधिकारियों को डाली, दस्तूरी या टिप देने का उपक्रम किये। हम तो चौंक गये कि इसके पीछे चीन की क्या मंशा होगी। भारत के विदेशमंत्री अभी पाकिस्तान गये तो वहां की विदेशमंत्री मैडम हीना रब्बानी खार, पीछे न देखकर, आगे साथ-साथ डग भरने की इच्छा जताने लगी। सभी भारतीय कृष्णा साहब की खैर मनाने लगे कि कहीं वे खार खाए पाकिस्तान की खार मैडम की बात में न आ जाँय वरन पीछे न देखने पर पीठ में फिर छूरा भोंका जा सकता है।प्रभु भरोसे जीने वाला यह नरम देश क्या करे। परमात्मा जानते हैं कि दुनियां के अन्य देशों को जब वहां के लोग चला रहे हैं  भारत को तो उन्हीं का भरोसा है। नहीं तो इस देश के कैसे लोग और कैसी लोकशाही।
         नवोदित भरोसा भंगियों में अरबपति एवं करोड़पति कथावाचक धर्मगुरू या उपदेशक उभरे हैं जो बड़े-बड़े  सत्तासीनों  एवं धनपतियों से सांठ-गांठ  कर भोली-भाली जनता का भरोसा लूट रहे हैं। बोरे में भरे रुपये चढ़ाने  वाले भक्तों पर ईश्वर की असीम कृपा बरसा रहे हैं और गरीबों को कोपर की भाँति चूसकर बदले में ईश्वर प्रदत्त कर्म का फल खिला रहे हैं। ये भोली-भाली जनता को क्या नहीं दे सकते-ईश्वर कृपा, पुत्र-पुत्री, आरोग्य, पाप-शमन, आशीर्वचन या सब कुछ। बदले में इन्हें तो केवल साधुभेष में इंद्रवत सत्ता, भोग-विलास, इन्द्राणियाँ, उड़नखटोला, परिचारिकाएँ, अपार धन-दौलत से भरी पूरी एक अमरावती चाहिये- बस। मन बेचैन होने लगता है कि अब धरमं शरणं आगच्छामि से भाग कर कहाँ जांय।
        वर्षा के दिनों में नदी को जब जलघमंड हो जाता है, वह दोनो किनारों(कगारों) से अपना रिश्ता भूल जाती है कि वे उसे सागर तक पहुँचाते हैं। फिर कगारों को धक्के दे-देकर गिराने लगती है। जब कगारों को याद आता है कि यह तो भरोसा-भंग कर रही है तब वे कगार गिर-गिरकर नदी के पाट को इतना फैला देते हैं कि वह सिमट कर तलहटी में भागने लगती है। सो निराशा जैसी कोई बात नहीं।

अंततः

रहिमन पानी रखियें, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरें, मोती, मानुष , चून ।।







सोमवार, 3 सितंबर 2012

सिच्छक हौं सिगरे जग को तिय....

*****************शिक्षक दिवस पर शिक्षकों को समर्पित एक अनुरोधपत्र ****
***************शिक्षा रुपी अँगुली का संबल दे मानव सभ्यता को समय सापेक्ष निरंतर आगे बढ़ाने वाले शिक्षकों को शिक्षक दिवस (05 सितम्बर ) पर कोटिशःसाभार धन्यवाद। आज की वैश्विक महामारी करॊना के दौर से पूर्व विश्व प्रतिस्पर्धा में भारत की विकास दर सराहनीय चल रही थी , इसके लिए भी शिक्षकों को साधुवाद। वर्तमान कल-युग या भौतिकवादी युग में कोई भी अस्वीकार नहीं कर सकता कि  विज्ञान, व्य़वसाय, उद्योग एवं प्रबंधन में रोजगार के असंख्य अवसर दिलाने में हमारे शिक्षकों, प्रशिक्षकों एवं संकायों का शीर्ष योगदान रहा है और वे अनवरत हमारी सभ्यता को भौतिक उपलब्धियों के नये-नये उपहार दे रहे हैं।इतना ही नहीं वे अपार बौद्धिक सम्पदा निर्माण करने के साथ करोड़ों श्रम शक्ति को जीविकोपार्जन का प्रशिक्षण देकर उनके घरों में रोजी-रोटी का सहारा बना रहे हैं। गोस्वामी जी ने आज की शिक्षा का कुछ ऐसा  ही उद्देश्य बताया था कि "उदर भरे सोई धर्म सिखावहिं।"
***************शिक्षकों में हमें पूर्ण श्रद्धा है। फिर भी शिक्षक-दिवस पर "शिक्षक स्वयं क्या पाया  एवं क्या खोया" पर एक संक्षिप्त परिचर्चा भी सामयिक ही मानी   जायगी। आज शिक्षक विपन्नता की सीमा से बाहर निकलकर भौतिकवादी सम्पन्नता की ओर उद्यत हुआ है, यह एक उपलब्धि है जबकि वह आदर एवं आस्था विहीन हो रहा है, यह एक हानि है। शिक्षक सभ्यता को सतत आगे बढ़ा रहा है, यह एक प्रत्यक्ष उपलब्धि है, परन्तु शिक्षा के शिवत्व एवं सौन्दर्य पर संदेह उपजने लगा है-यह एक सचेतक हानि है। कल का सुरभिसिक्त  गुलाब आज निर्गंध किंशुक (टेसू) हो रहा है।
***************मूलतः शिक्षक वह है जो ज्ञान के साथ समाज के नैतिक संस्कारों की सुरक्षा का, शिक्षा के माध्यम से ,वायदा (गारंटी) दे। जो ऐसा नहीं करता वह गुरु, प्रशिक्षक, दीक्षक, दार्शनिक, उपदेशक या कुछ भी हो सकता है परन्तु शिक्षक नहीं हो सकता क्योकि वह समाज को तो सभ्यतर बना ही नहीं रहा है। वह शिक्षक दिवस पर बहुतों से चरण स्पर्श करा सकता है पर आत्म-संतुष्ट नहीं हो सकता क्योंकि उसने स्वयं को आदरणीय या नमनीय बनाया ही नहीं है। भारत में करोड़ों शिक्षकों एवं शिक्षितों के रहते, समाज को खोखला करने वाली बुराइयाँ जैसे  भ्रष्टाचार, कालाधन, जातिवाद, धर्मवाद, आतंकवाद, नक्सलवाद, महिला उत्पीडन, नशाखोरी इत्यादि  सुरसा की भाँति विकराल हो रही हैं । यह स्थिति पुष्ट करती है कि  वर्तमान शिक्षा के साँचे से संस्कारी सजावट की लकीरें मिटा दी गई हैं। आज शिक्षक प्राचीन भारत का भिच्छाभोगी नहीं है। मध्ययुगीन भारत का मास्टर भी नहीं है कि करे मास्टरी दो जन खाय। वह तो आज का सर्वसुख संपन्न, प्रचुर वेतनभोगी और शिक्षा-उद्यमी है जो समाज को नये-नये उत्पाद एवं विपणन की विधियाँ दे रहा है। ऐसे शिक्षकों से अपेक्षा है कि वे अब  भी साँचे को संस्कारिक बना लें और हमारे आज को कल में ऐसे ढालें कि वह सत्यम, शिवम्, सुन्दरम से ओत-प्रोत हो।
 ***************वैसे भी यह दुस्साहस ही होगा कि कोई गैरशिक्षक शिक्षक को शिक्षा दे; सो मेरा आशय उन्हें आज के दिन याद दिलाने का है कि  कोई लाख जतन कर लें परन्तु स्वर्णिम सपनों के भारत का निर्माण तब तक नहीं हो सकता जब तक शिक्षक हमारे सपनों को साकार करने का ब्रत नहीं लेते हैं। इसके लिए उन्हें सुदामा जी की इस मान्यता से बाहर निकलना होगा कि-
      "सिच्छक हौं सिगरे जग को तिय,
        ताको कहाँ तुम देती हो सिच्छा।।"
फिर अपनी पत्नी सुशीला को शिक्षिका के रूप में स्वीकार कर द्वारिका पुरी की ओर प्रस्थान करना होगा। तुलसी को अपने ढ़र्रे से  इतर रत्नावली से शिक्षा पाकर समाज-कल्याण के लिए समर्पित होना होगा।सामाजिक संत्रास से बाहर निकलने के लिए हर सीता को अनसूया से शिक्षा लेना होगा एवं मूर्ख कालिदास को महाकवि कालिदास बनने के लिए विद्योत्तमा की शिक्षा पर अमल करना होगा। ऐसा कुछ अवश्य घटित हुआ था कि लोग कहते हैं "उपमा कलिदासस्य।" भारत के सन्दर्भ में आज का दिन चाहता है कि शिक्षक आपसी विमर्श से अपना ऐसा आदर्श  निरूपित  करें कि  भारत का हर शिक्षक हर उदाहरण से बेहतर हों। तभी स्व सर्वपल्ली डा  राधाकृष्णन  जैसे शिक्षक के सपनों का भारत विश्व क्षितिज पर उदित हो सके गा। -----------------------------मंगलवीणा  
वाराणसी ,दिनाँक 03 सितम्बर  2012 --------------mangal-veena.blogspot.com 
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अंततः
 पडोस की दुकान से कुछ घरेलू सामान खरीदा जिसकी कीमत बनिया  ने 90 रुपयें बताया । मैंने एक 100 रुपयें का नोट दिया । सामान के साथ बनियाँ ने मुझे दो ईट काउंटर से आगे बढ़ातें हुयें बोला " आज कल ईंट  हॉट केक की तरह बिक  रहा है। इसे छुट्टा के बदले दे रहा हूँ। यदि कल वापस करियेगा, 12 रुपयें दूंगा।" मैं निरुत्तर था। मंहगाई की जय हो। आने वाले दिनों में लोग भट्टों से ईंट खरीदने की सोच भी नही पाएंगे, पंसारी इन्हें दो चार की संख्या में बेचेंगे।-------------------------मंगलवीणा 
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शुक्रवार, 24 अगस्त 2012

बंशीधर ! विजयी भव ।


                                 जिस समाज में बहनों की शादी, गाँव में पिता का दबदबा, कलवार और कसाई पर रौब, माता की रामेश्वर एवं जगन्नाथ यात्रा सब घूस की कमाई पर टिकी हो एवं  पंडित अलोपीदीन की  जाँची -परखी मान्यता हो कि न्याय और नीति लक्ष्मी के खिलौने हैं ; वहां एक ईमानदार बंशीधर का हश्र वही हो सकता है जो मुन्शी प्रेमचंद ने "नमक का दरोगा " कहानी में उकेरा है। सत्य, निष्ठा एवं ईमानदारी का निरा अकेला प्रतिनिधि बंशीधर तभी प्रासंगिक होता है जब भ्रष्टाचार, दातागंज के अलोपीदीन की स्वयं की ब्यवस्था के लिए ,खतरा बन जाता है। हमारे समाज में ब्याप्त  भ्रष्टाचार  का यह चित्रण अस्सी से सौ वर्ष पूर्व ब्रिटिश ज़माने का है। स्वाधीनता के बाद  भी ब्यवस्था में कोई सुखद परिवर्तन नही हुआ है।  पंडित अलोपीदीन अपना आकार और बढ़ा रहे हैं और उनकी विचारधारा टस से मस न होकर पुष्टतर होती जा रही है। ऐसे पिताओं की संख्या बढ रही है जो मानते हैं कि ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है । इसीलिए ऊपरी कमाई में बरकत होती है।
                               बंशीधर, जो आज के अन्ना हजारे, बाबा रामदेव, उनकी टीम और उनके समर्थकों का प्रतिनिधि है, के हाथ ईमानदार संघर्ष है और आशा है कि  भारत को, दूसरी एवं असली आजादी, अंग्रेजों द्वारा स्थापित एवं देशी सत्ताधारियों द्वारा निज हित में पोषित ब्यवस्था को उखाड़फेंकने के बाद मिलेगी। सत्ताधारियों की ललकार  स्वीकारते हुए अन्ना हजारे की टीम उन्हीं के मैदान में उनसे दो-दो हाथ करने आगे बढ़ रही है, वहीं बाबा ने अलोपीदीन रुपी सत्ता को अगले चुनाव तक उखाड़ फेंकने का संकल्प लिया है।  भ्रष्टाचार का दंश झेलने वाले जानते हैं कि इस आन्दोलन को "मै समय हूँ " ने आगे बढ़ाया है और वही शंखनाद कर रहा है कि ब्यवस्था परिवर्तन के विरोधी सत्ताधारियों को उन्हीं के जंग-ए-मैदान में जन-नायक बंशीधरों के हाथ पराजित होना है । उनमे से कुछ को अलोपीदीन का चोला उतार मुन्शी बन्शीधर की धारा में शरणागत हो जाना है और तब उन्हें गर्व से कहना होगा कि संसद, सांसद, सत्ता, कार्यपालिका, न्यायपालिका यहाँ तक कि संविधान भारतीय जनता की सेवा और उनकी खुशहाली के लिए हैं। दस करोड़ जनमत पाए अनैतिक सत्ताधारी इस भ्रम में मदमस्त हैं कि वे सवा अरब भारतीयों के सेवक नहीं शासक हैं। वे जानकर भी अनजान हैं कि एक अरब पंद्रह करोड़ लोगों को  उनके भ्रष्ट कर्मो से घिन्न आता है।
                             चूंकि संसद में पहुँच  कर लड़ाई के लिए ललकारा जा रहा है इसलिए लड़ाई से पहले आन्दोलनकारियों को  लाजिस्टिक्स तैयार कर लेना चाहिए जैसे हर बंशीधर को अपने माँ, बाप, बहन, भाई एवं समाज को भ्रष्टाचार  के विरूद्ध उठ खड़ा होने का शपथ दिलाना चाहिए। बन्शीधरों की दिन दूनी रात चौगुनी संख्या बढाई जानी चाहिए। उन्हें याद होना चाहियें कि कुछ बरस पहले हमारे पूर्व राष्ट्रपति डॉ. कलाम ने स्कूल के बच्चों को कुछ ऐसा ही शपथ दिलाने का प्रयास किया था। यह एक बड़ा विजन था जो आज मिशन का काम कर सकता है। यह भी ध्यान रखा जाय कि कोई अलोपीदीन नकली बंशीधर बन कमांड सेंटर में घुसपैठ न कर जाए।फिर अन्ना हैं, बाबा हैं, और सवा अरब लोंगो की आकांक्षा है जिनकी पीड़ा से उपजा यह आन्दोलन है। सत्य के लिए सत्य है कि बंशीधर विजयी होगा और भारत अपने स्वर्ण युग की ओर बढ़ता चला जायेगा। बीता कल याद दिलाता है कि  पंडित रावन जब राक्षस रावन बना तो अपनी लंका की रनभूमि पर मारा गया। युवराज कंस जब आतताई राजा बना तो अपनी रणभूमि मथुरा में मारा गया और जर्मनी का शासक हिटलर जब नाजी तानाशाह बन दुनियाँ पर विश्वयुद्ध थोपा तो उसकी निर्णायक पराजय बर्लिन में ही हुई। अब संसद में सत्ताधारियों की पराजय की बारी है।
                          यद्यपि  भ्रष्टाचार  का जन्म आदिकाल में शिष्टाचार के साथ ही हुआ होगा,  परन्तु पूरे समाज का इस पर प्रबल एवं विजयी दवाव बना रहता था। एक ओर जहाँ सामाजिक बहिष्कार एवं घृणा थी दूसरी ओर कठोरतम दंड थे। समय के साथ आक्रमणकारी एवं लुटेरे सत्ताशीन होकर शिष्टाचार की नींव हिलाने लगे और समाज का चारित्रिक क्षरण होता गया। वर्तमान भेषधारी भ्रष्टाचार अंग्रेजी शासन की देन है। सन सैंतालिस में देशी शासकों ने सत्ता ग्रहण करते समय बड़े ही निर्विकार रूप से भ्रष्टाचार को ग्रहण कर लिया। अंग्रेजों को यह हमेशा याद था कि  वे परदेशी थे और कभी न कभी देश छोड़ना था। इस कारण भ्रष्टाचार को विविध आयाम न दे सके थे ।जब भारतीयों ने सत्ता संभाली तो वे भारतीयता के मामले में निश्चिन्त थे। वे थोडा आगे बढे और तय किये कि  घूमने और मौज मस्ती के लिए विदेश जांय; जमकर भारतीय संसाधनों को लूटें और काले धन को  विदेश में सुरक्षित करें। इस प्रकार भ्रष्टाचार की बेल-बल्लरियां जितनी फैलेंगी उसकी छाँव में बैठ ये लोग उतना ही जनता को लाचार बनाते रहेंगे। यथार्थवादी कहानीकार मुंशी प्रेमचंद के समय से अब तक भारत में भ्रष्टाचार की कुछ ऐसी ही यात्रा रही है। आज जब बढ़ते भारत के दोनों क़दमों में भ्रष्टाचार  और काला धन बेड़ियों की तरह रुकावट बन रहे हैं तो इन्हें तोड़ने के लिए हर प्रबुद्ध एवं पीड़ित नागरिक अन्ना एवं रामदेव रुपी आन्दोलन बन रहा है। हाल ही में इन्फोसिस के संस्थापक श्री नारायणमूर्ति ने जमशेदपुर में दैनिक जागरण  समाचार पत्र से बातचीत में कहा था कि  हम सभी अन्ना हजारें बनें। क्या बात है, यह एक मार्मिक अपील थी । बर्तमान चरण में सबको चिंता है कि कहीं फरियाई ऊरद झेंगरा में (भोजपुरी कहावत) न चली जाय। इसका समाधान तर्क नही संकल्प है और यह सत्य संकल्प कहता है कि  उसका ही नाम विजय या बंशीधर है। अतः बंशीधर आगे बढ़ो और विजयी भव् ।
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दिनाँक 24 अगस्त 2012                                          mangal -veena . blogspot . com
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रविवार, 29 जुलाई 2012

कुछ ख़री - खोटी बातें


दादा भारत के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए , उन्हें हम सर्वश्रेष्ठता के लिए बधाई देते हैं । बिसात कैसी भी बिछाई गयी हो, दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश का सबसे बड़ा चुनाव जीतना उतना ही बड़ा मायने भी रखता है । दिल्ली में अनशन पर बैठी अन्ना टीम ने पीछे मंच पर पंद्रह भ्रष्ट केंद्रीय मंत्रियो की फोटो टांग रखी थी । दादा ने राष्ट्रपति पद का शपथ ग्रहण किया - टीम को बात समझ में आयी और दादा की फोटो को किसी आवरण से ढक दिया । दादा शिष्टाचार युक्त हो गए। अन्ना टीम की ओर से आदर्श आचरण का यह नमूना, अधूरा ही सही, सराहनीय रहा । अन्ना समर्थको और सरकार को राहत मिलनी चाहिए को उनका प्रयास रंग ला रहा है । भ्रष्टाचार पंद्रह से चौदह हो गया, आगे भी घटता ही रहेगा  । 

जेहन में बात आई की गणित के कुछ सिद्धांत सीधे  एवं' उलटे दोनों प्रकार सत्य सिद्ध होते हैं जैसे दोनों बिन्दुओं को न्यूनतम दूरी से मिलाने वाली रेखा को सीधी  रेखा कहते हैं । इसके उलट सीधी रेखा से जुडी दो बिन्दुओं की उस रेखा पर दूरी न्यूनतम होती है अर्थात न्यूनतम दूरी से सीधी रेखा और सीधी रेखा से न्यूनतम दूरी । यह सिद्धांत देश काल से परे और प्रश्नातीत है । इसे अन्ना की टीम भी झुठला नहीं सकती । चूँकि  कोई भ्रष्ट नागरिक देश का राष्ट्रपति नहीं हो सकता इसलिए मानना ही होगा उस पद पर बैठा व्यक्ति भ्रष्ट नहीं है । फिर हमारे महामहिम का शिष्ट , सदगुणी , ईमानदार एवं शानदार होना सत्य ही सत्य है । आगे देखना होगा की समान गुणधर्मिता के  सिद्धांत शेष माननीयों पर कब और कैसे लागू होते हैं । जनता समय समय पर भौचक होती रहेगी । 

इधर मीडिया वाले उछाल  रहें हैं की अन्ना आन्दोलन की धार कुंद हो रही है क्योंकि भीड़ नहीं जुट रही है । सत्ताधारियों की बाछें खिल रहीं हैं की आन्दोलन दम तोड़ रहा है और उन्हें उनका  भविष्य फिर उज्ज्वल दिखने लगा है । विरोधी भी पूरे देश में, कहीं तुम - कहीं हम, खेल रहें हैं । उधर बाबा रामदेव की टीम पर सरकारी ब्रह्मास्त्र का प्रहार हो चुका  है । इन सबके बावजूद आम जनता एवं युवाओं का सच यह है उन्हें अन्ना हजारे एवं रामदेव में भारत का सुनहरा भविष्य दिखने लगा है । सभी लोग गौर से इन शांतिपूर्ण आंदोलनों पर माननीयों की प्रतिक्रिया का आकलन कर रहें हैं और उचित समय एवं मंच की प्रतीक्षा में हैं । किसी को भी नहीं भूलना चाहिए की भीड़ जुटाना अब कोई उद्देश्य नहीं है । उद्देश्य तो विदेशों से काला धन भारत में लाना और भारत को भ्रष्टाचार मुक्त कराना है ।

भीड़ का यदि पूर्वावलोकन करें तो पहली बार जब  अन्ना साहब अनशन पर बैठे , देश का आम आदमी सड़क पर उतर आया कि  अब हम जन लोकपाल ले कर लौटेंगे । आन्दोलन निर्णायक होने से पहले अन्ना टीम आश्वासन के झांसे में आ गयी । आम जनता हाथ मलते रह गयी ।  मुंबई में फिर  शीतकाल में अनशन ठान लिए । कब क्या और कैसे करना है - इसपर कोई स्पष्ट पुकार नहीं लगाई गयी । अब चतुर्मासा में टीम फिर अनशन पर आ गयी । अरविंद , मनीष  और गोपाल बैठे ही थे ,  वयोवृद्ध अन्ना भी ठान लिये । मुद्दा में जुड़ाव आया है की पंद्रह भ्रष्ट केंद्रीय मंत्रियों के रहते जन लोकपाल बिल पारित नहीं हो पा रहा है - यह जन जन को बताना है । अरे भाई ! हम भारतीय प्राचीन काल से मानते रहें हैं की चतुर्मासा में एक जगह ठहर कर समय बिता लेना चाहिए । ऐसे में लोग बरसात एवं वायरल झेलने से बच रहें हैं  । फिर भी यदि बाबा या अन्ना आवाज़ देते हैं तो भारत का हर त्रस्त नागरिक उनके साथ खड़ा मिलेगा । आवश्यकता है तो स्पष्ट निर्देश एवं सुगठित पुकार की । 

दूसरी ओर सरकार भी प्रयासरत है कि  एक सरकारी लोकपाल बिल पास हो जाए और काले धन पर हां-हूं होता रहे तो इन शोर- शराबा करने वालों से जान बचे । साँप मर जाए और लाठी भी न टूटे । परन्तु हो कैसे -- इसी  में  सारे  दल एवं नेता डूब-उतरा रहें हैं । भला ऐसा बिल क्यों पास करें जिसमे उनका कोई भविष्य नहीं । यदि सीबीआई जैसा ब्रह्मास्त्र पास में न हो तो सरकार की हनक कैसी । उससे बड़ी बात - यदि करोड़ों  में काली कमाई नहीं तो नेतागिरी क्यों । फिर काली कमाई विदेश में छिपाने की सुविधा भी नहीं तो माननीय कैसा।ये यक्ष प्रश्न बिल पास करने वालों को खाए जा रहें हैं ।

अंततः न सुनने वालो को अब कुछ खरी खोटी बातें सुना देनी चाहिए कि  नई पीढ़ी भ्रष्टाचार से नफरत करने लगी है और उसकी समझ भी बहुत कुशाग्र है  । वे  यह सुनकर बहुत गुनते हैं कि  लोक तंत्र में भी नेताओं के पास राज हैं और उन्हें छिपाने की उनमे प्रतिबद्धता भी । वे यह सुनकर भी चौंक जातें हैं -- जब कोई नेता - अभिनेता या कोई क्रिकेट सितारा कहता है कि  उसने अपना जीवन देश की सेवा में बिताया है । वे खूब समझते हैं कि  देश की सेवा हो रही है या देश से सेवा ली जा रही है । वे सर्वाधिक अचंभित यह जानकर हैं कि भारत का विदेश में जमा धन वापस लाने वाले  कानून और लोक पाल  बिल के विरोधी कौन और क्यों हैं । रात दिन अपने श्रम से भारत को विश्व शिखर पर पहुँचाने को उद्यत नयी पीढ़ी भारत को चीन या विश्व के किसी देश से पीछे देखने को राज़ी नहीं है । उनका स्पष्ट सन्देश है - 
                  हमें भ्रष्टाचार मिटाना है , कला धन वापस लाना है।
                  भावी इतिहास हमारा है , भारत को आगे जाना है ।।

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अन्ततः --
ज़रा सोचिये-- प्रधानमंत्री दंगाग्रस्त असाम  के दौरे पर बोले की यह दंगा भारत के चेहरे पर कलंक है परन्तु उनके कपड़े या चेहरे पर कलंक का कोई धब्बा नहीं दिखाई दिया |
दिनाँक 29.7.2012                                             mangal-veena.blogspot.com
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रविवार, 15 जुलाई 2012

गुवाहाटी काण्ड या ईश्वर के अवतार का समय

गुवहाटी में बीते सोमवार की रात जीएस रोड पर एक लड़की के साथ कुछ कुसंस्कारी लोगों ने अभद्र, घृणित, एवं हमारे सभ्य समाज में वर्जित कुकृत्य किया। यूट्यूब ने जब से विडिओक्लिप द्वारा इस घटना को दुनियां के संज्ञान में लाया है और आसाम पब्लिक वर्क्स नाम की एक संस्था ने बिलबोर्ड के माध्यम से लोगो में हिदायत जारी किया है, चारों तरफ हंगामा हो गया है। क्योंकि हमारा भारतीय समाज इस घटना से पूरी दुनियां में कलंकित हुआ है, अब तक कार्यवाही, रिपोर्टिंग और प्रतिक्रिया का दौर दौड़ पड़ा है। स्थानीय पुलिस अधिकारी कहते हैं कि वे एटीएम मशीन नही हैं कि अपराध का विवरण डाला और अपराधी हाथ में। महिला आयोग की सदस्याएं अपनी पूरी प्रतिक्रियां उड़ेल रही हैं कि सम्बन्धित प्रशासन से रिपोर्ट माँगी है, दौरा करेंगे, दण्ड सुनिश्चित करेंगे इत्यादि। केंद्र सरकार के मंत्रीगण बहुत गंभीर हुए हैं और राज्य सरकार को कानून ब्यवस्था की याद दिला रहे है। राज्य सरकार भी गंभीर हुई है। धर-पकड़ तेज होंगी और सरकार  एक समस्याटालू आयोग का गठन भी कर सकती है। क्रमशः सारी औपचारिकतायें पूरी होंगी और समय के साथ मामला नेपथ्य में चला जायेगा। अंत में शर्मिंदगी,चिंता, पश्चाताप, खेद, नियति एवं अवसाद उस पीड़ित लड़की और उसके घरवालों के शेष जीवन को अभिशाप बनकर घेर लेंगे जिससे वे लोंग इस जन्म में शायद ही उबर सकें। कहानी फिर कहीं किसी और रूप में दोहराई जाती रहेंगी।
परन्तु हम साधारण लोग इस अभूतपूर्व दुर्घटना से बेचैन हैं।  हम भरतवंशियों को क्या हो गया है कि चालीस लोग एक साथ एक कुन्ठा से प्ररित हो एक लड़की की इज्जत लूटने के लिए उसपर टूट पड़े। और तो और ऐसी निंदनीय घटना उनके क्षेत्र में घटने पर प्रतिक्रिया देते समय स्थानीय पुलिस अधिकारियों के चेहरे पर ग्लानि, खेद एवं पश्चाताप का भाव नहीं था। समाज को शर्मसार करने वाली घटना कहते समय मीडिया से रिपोर्टिंग करने वाले चेहरे शर्मसार होते नही दिख पा रहे हैं। न उनके पास भर्त्सना के कठोर शब्द हैं न इस लड़ाई में कूदने का अपना कोई तरीका। मीडिया के माध्यम से घटना की निंदा करने वालोँ की मुखमुद्रा भी करुण से रौद्र रस की ओर बढ़ती नही दिख रही है। कोई ऐसा नायक नही है जो कह सके कि अबऔर गुवहाटी  बर्दाश्त नहीं। घटना की वीडियोग्राफी करते समय रिपोर्टर को भी यह याद नही आया कि रिपोर्टिंग से पहले मानव की मानवता के प्रति सर्वोपरि ड्यूटी बनती है।  इस बीच मनोरंजन जगत एवं सामाजिक सरोकारियों से कुछ बहुत ही मार्मिक,सार्थक,सापेक्ष एवं संवेदनशील टिप्पड़ियां अवश्य आई हैं जो हम सभी को आईना दिखाने के लिए पर्याप्त हैं। क्या आज चालीस दु:शासनों द्वारा द्रौपदी के चीर हरण को हस्तिनापुर ऐसे ही देखती रहेगी। कहाँ गयी संवेदना। बस बहुत हो चुका। इस घटना पर हर भारतीय को लज्जित होना चाहिये और इसका कठोरतम से भी कठोर प्रतिकार होना चाहिए।
दूसरी ओर मेरा तो गाँधीवादी आग्रह है कि जिन भारीभरकम लोगो ने प्रतिक्रिया दिया है, कार्यवाही का भरोसा दिया है या कार्यवाही करने के लिए जिम्मेदार हैं - उनमे से कोई एक, अनेक या सबलोगों का एकगिल्ड आदर्श भारतीय बने  और उस लड़की एवं उसके परिवार को शतप्रतिशत अंगीकार(Adopt) कर ले। उनकी आर्थिक, सामाजिक, संस्कृतिक, कानूनी - सभी तरह की सुरक्षा की जिम्मेदारी वे लोंग उठाएँ और उन्हें न्याय दिलायें।  अस्वस्थ चल रहे अभिनेता राजेश खन्ना द्वारा अभिनीत हिंदी सिनेमा "दुश्मन" इस सन्दर्भ में अनुकरणीय उदाहरण हो सकता है। अच्छा होगा की जब यह पीड़ित लड़की बालिग हो जाय तो इसे महिला आयोग का सदस्या या अध्यक्षा बनाया जाय ताकि ऐसी परिस्थिति में उसकी सटीक प्रतिक्रिया हो सके।
न जाने क्यों यह घटना बार बार सोचने की ज़िद कर रही है कि एक, दो, पांच नही बल्कि बीस या उससे अधिक चालीस लोग एक साथ एक कुविचार से कैसे प्रेरित हो गये। उनमे से किसी की मानवता ने उसे विरोध का स्वर क्यों नही दिया?  कहीं ऐसा तो नही कि  कुछ लोगों ने बाकी को अंधेरे में रखते हुए ऐसा कुकृत्य रच डाला। आश्चर्य आकाशीय बिजली की भांति चौधियां रही है। ऐसी क्या खराबी हमारे लोकतंत्र में आ गई कि  इस तरह की प्रवित्तियाँ समाज में तेजी से उभर रहीं हैं और रिकार्ड दर रिकार्ड बना रही है।  जिज्ञासा को शांत  के लिए सरकार से निवेदन है कि वह गैर सरकारी विशेषज्ञों की एक समिति बनाये जो सामाजिक अध्ययन एवं विश्लेषण कर बताये कि हममे कहाँ और किस प्रकार के सुधार की आवश्यकता है। भय है कि यदि लोग अपनी सामाजिक संरचना भूल जायें और बड़ी संख्या में शासन और ब्यवस्था से बेख़ौफ़ हो जायें तो भारतीयता को कौन बचाएगा ? क्या भारत भूमि पर ईश्वर के अवतार का समय सन्निकट है?
अंततः 
जब पूरी दुनियाँ की निगाहें लन्दन में आयोजित हो रही ओलम्पिक खेलो पर टिकी हैं और किस देश के युवक-युवतियां कितने मेडल बटोर सकेंगे-पर बहस हो रही है, हम देशवासी  कुकृत्यों पर बहस में उलझे हैं।

शुक्रवार, 6 जुलाई 2012

सारी बीच नारी

आज भारत के शहरों एवं गाँवों में जिनके पास खाली समय है ज्यादा से ज्यादा टी.वी. देखने में ब्यतीत करते हैं। कारण  भी सीधा-सपाट है कि  समाचार, मनोरंजन, खेल-कूद, ब्यवसाय एवं भक्तिजगत की जानकारी सिंगल विंडो सिस्टम (एकल खिड़की ब्यवस्था ) से होती रहती है बशर्ते बिजली आती हो और चैनेल वाले विज्ञापन प्रसारण से खाली हों। आज से साढ़े पाँच हज़ार वर्ष पहले मिस्टर संजय के पास आँखो देखा हाल( टी.वी ) प्रसारण का लाइसेंस था और वे महाराज धृतराष्ट्र के लिए प्रसारण का कार्य करते थे । क्यों कि  महाराज अंधे थे, वे महाराज के सारथी का दायित्व भी संभालते थे । संजय ने महाभारत का आँखों देखा हाल इतना सटीक प्रसारित किया था कि पूरी दुनिया आज भी पवित्र श्री मदभगवदगीता को सर्वश्रेष्ठ जीवन दर्शन मानती है । इस प्रसारण की मुख्य बात यह थी कि इसमें ब्रेक या अल्पविराम नही था और विज्ञापन का भी कहीं उल्लेख नहीं मिलता है । तब से हजारों वर्ष निकल चुके हैं और कलयुग अपनी पराकाष्ठा पर है । जमाना अपभ्रंश का हो चुका है अतः टी.वी  प्रसारण शुद्ध होने की  अपेक्षा करना भी बेमानी है । प्रतिद्वन्दिता, अस्तित्व एवं ब्यवसाय हित के लिए इलेक्ट्रोनिक मीडिया के प्रसारण में विज्ञापन दूध के साथ पानी की भूमिका में आ गये हैं । जिसको जितना पानी मिल रहा है, मिला रहा है। बहुत सारे दर्शक रिमोट के बटन दबाते-दबाते एलर्जी के शिकार हो रहे हैं या असहाय होकर समाचार या मनोरंजन की चाह में विज्ञापन झेलते रहते हैं  ।
मैं भी समाचार चैनलों का विज्ञापन झेलते-झेलते कभी इतना थक जाता हूँ कि ऐसा लगता है मानो मैं चैनल ही विज्ञापन के लिए लगा रखा हूँ । फिर जब समाचार की झलक मिलती है तो त्वरित प्रतिक्रिया होती है कि  यह क्या आने लगा । हाल ही में जब यह समाचार पढा,देखा और सुना कि सरकार के प्रयास से चैनलों पर विज्ञापन के समय सीमित किये जायेंगे-अच्छा लगा । परन्तु कैसे? तत्काल समझ न सका । थोड़ी देर चिंतन-मनन के बाद बात समझ में आई कि  शायद अब टी.वी. वाले समाचार,मनोरंजन या अन्य कार्यक्रमों  में  विज्ञापन दिखायेंगे न कि विज्ञापन में ये कार्यक्रम। परन्तु यह संभव  कैसे होगा? आज सभी प्रसारण विज्ञापन प्रवृत्ति से संक्रमित है । विज्ञापन से भी प्रसारण के विषय बन रहे हैं और विषयबस्तु विज्ञापन के लिए प्रसारित किये जा रहे है  ।  कौन  करेगा नीर-छीर या  सारी-नारी विभेद? संशय ही संशय है ।
--------सारी बीच  नारी  है  कि नारी बीच सारी है।
--------सारी की ही नारी है,या नारी की ही सारी है।
ज्यादा माथा पच्ची न करते हुए विज्ञापन का समय कम करने के लिए मेरा सुझाव है कि विज्ञापनदाताओं एव चैनेल चलाने वालों को कीमत बढाओ-कीमत घटाओ क्लब ज्योइन कर लेना चाहिए । ऐसा करने पर चैनेल वाले विज्ञापन का समय  घटाकर विज्ञापन दरें बढ़ा सकते है, फिर कुछ प्रतिशत छुट देकर विज्ञापन दाताओं  को खुश कर सकते है । इसी प्रकार जब कंपनियाँ एक बार विज्ञापन पर कुछ प्रतिशत खर्च बढ़ाएंगी तो उपभोक्ता  वस्तुएं महँगी होंगी । आम जनता कराहेंगी तो कम्पनियाँ कुछ से कम प्रतिशत कटौती कर उनको रहत दे देंगी, फिर जनता कहेंगी की कम्पनी के जय हों । ज्यादा जानकारी कीमत बढाओ-कीमत घटाओ क्लब के सीनियर सदस्यों जैसे इंडियन आयल, भारतीय रेल, बिजली, पानी, डायरेक्ट-इनडायरेक्ट टैक्स, शिक्षा कर,  सेवा कर विभागों से ली जा सकती है । जनता को भी कमर टूटने एवं कराहने में विविधता का अनुभव होगा । हमे चरितार्थ भी तो करना है कि मारो कहीं-लगे वहीँ । लोकतंत्र में जनता का पैसा, जनता के द्वारा,जनता के नाम पर संग्रह करना ही चाहिए ताकि नंगी भूखी आवाम कृतज्ञता भरी नज़रों से जय-जयकार करती रहे ।
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अंततः 
 ------------ आषाढ़ का महीना बीत गया। किसी तरह आज उत्तर भारत में मानसून आया और आकाश में मेघदूत दिखे।
------------ कालिदास द्वारा छठी शताब्ती में रचित मेघदूत में वर्णन है कि षाढ़ माह के पहले दिन ही हिमालय से उज्जैयनी तक, अवनी से अम्बर तक मेघदूत सक्रिय हो जाते थे और बरसात के साथ काब्यकल्पना में नायक- नायिका के सन्देश भी बड़े मनोहारी ढंग से उनतक पहुँचाया करते थे । संस्कृत भाषा कालिदास जैसे कवियों की  कल्पना के उडान को लालित्यपूर्ण एवं मनोहारी अभिब्यक्ति प्रदान किया करती थी ।
------------ अब न  छठी शताब्दी का प्राकृतिक सौन्दर्य रहा, न कालिदास जैसा रचनाधर्मी।आइए ;चलें- इस विलंबित मेघदूत का हार्दिक स्वागत करें।
दिनाँक 6.7.2012                                         mangal-veena.blogspot.com
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मंगलवार, 3 जुलाई 2012

तस्मै श्री गुरवे नमः

-------------------------------------  गुरु पूर्णिमा पर गुरु को समर्पित एक लेख -----------------                                                  -------------------- भारतीय संस्कृति की गुरु शिष्य परंपरा में गुरुपूर्णिमा गुरु के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने ,  उन्हें सादर स्मरण करने ,उनके चरणों में सविनय शीश झुकाने और अपनी श्रद्धारूपी पुष्पावलि अर्पित करने का पर्व है।भारत में प्रति विक्रमी वर्ष की आषाढ़ी पूर्णिमा को यह पर्व मनाया जाता है।  याद करें तो  गुरु   को  आचार्य,गुरु,अध्यापक,मास्टर,टीचर,फादर,उस्ताद,मौलवी,पंडित,भंते और न जाने किन-किन श्रेष्ठ नामों से विभूषित किया गया है और वह हर रूप में मानवता का सबसे पथ प्रदर्शक, सद्विचारो का वितरक, सत्य का  प्रवक्ता एवं रहस्य का समर्थ वक्ता रहा है। हर ब्यक्ति के जीवन में गुरु की कोई न कोई अनुकरणीय भूमिका किसी न किसी रूप में होती है जिससे उपकृत हो वह श्रद्धा से गुरु के सामने नतमस्तक होता है।पर्याय में जाएँ तो गुरु का सबसे प्राचीन अलंकरण 'गुरु' शब्द ही है जिसका उल्लेख वेदों एवं पुराणों मे बहुतायत से हुआ है । ध्यान दें तो यह शब्द नहीं बल्कि गुरु के व्यक्तित्व एवं ओज का सम्पूर्ण प्रतिनिधि है । वस्तुतः, गुरु की परिभाषा भी  'गुरु' शब्द से ही बनती है अर्थात, जो हमें अन्धकार(अज्ञान ) से प्रकाश (ज्ञान) की ओर उन्मुख करे, वह गुरु है । बाद के क्रम में उपजे सभी नामकरण समय एवं आवश्यकता के अनुरूप पर्याय बनते गये।

-----------------------------------  हमारे विचारकों ,कवि और लेखकों ने समय -समय पर गुरु के विषय पर बहुत ही मानक मन्तब्य दिए हैं। यथा - निर्गुणियाँ कबीर कहते हैं कि सद्गुरू की महिमा अनंत है। उन्होंने हम पर अनंत उपकार किये हैं । आँखों में ऐसी अनंत ज्योति उत्पन्न कर दी कि मैंने अनंत (निर्गुण ब्रहम ) को देख लिया । तभी तो ऐसे गुरु को पाने के लिए कबीर साहब काशी नगरी में  ब्रह्म मुहूर्त के समय गंगा घाट की सीढियों पर लेट गये ताकि गुरु का चरण उन पर पड़ जाये । फिर इसी उपकार से ऋणी कबीर के समक्ष जब गुरु और गोविन्द एक साथ आ जाते हैं, तो पहले गुरु के चरणों में पड़ते हैं,फिर गोविन्दमय  हो जाते हैं ।कारण बताते हैं कि गुरु की ही बलिहारी है; जिसने गोविन्द से साक्षात्कार कराया ।पद्मावत में मलिक मुहम्मद जायसी कहते हैं कि इस संसार में बिना गुरु के निर्गुण ब्रह्म को नहीं पाया जा सकता । जायसी जैसे पंथी को पंथ बताने वाला एक तोता ही था --
----------------------------गुरु सुवा जेहि पंथ देखावा ।
----------------------------बिन गुरु जगत को निर्गुण पावा ।
-------------------------------------- गोस्वामी जी तो सद्गुरु के समक्ष ऐसे नतमस्तक होते हैं कि चरणों के ऊपर उनकी आँखें उठती ही नहीं । वे भगवान राम के विमल यश का वर्णन करने के लिए अपने मन रुपी दर्पण की शुचिता श्री गुरु चरणों की धूल से सुनिश्चित करते हैं और कहते हैं :- 
----------------------------श्री गुरु चरण सरोज-रज, निज मन मुकुर सुधारि।
----------------------------बरनउं रघुवर विमल यश, जो दायक फल चारि 
इनके अनुसार मानव के चार परम उद्द्येश्यों का मार्ग श्री गुरु चरणों से होकर ही निकलता है। अपनी कालजयी रामचरित मानस की रचना करते समय वे शंकर रूप श्री गुरु की प्रार्थना निम्न पंक्तियों में करते हैं:-
-----------------------------बंदउं गुरु पद कंज, कृपा सिन्धु नररूप हरि ।
-----------------------------महामोह तमपुन्ज, जासु वचन रविकर निकर ।।
इस महाकाव्य में तो गुरु के ब्यक्तित्व का विविध रूपों में निरूपण हुआ है और इसकी अप्रतिम छटा भगवान् शंकर से काकभुसुंडि तक बिखरी पड़ी है।
--------------------------------------- वर्तमान में आतें हैं तो प्रख्यात दार्शनिक डॉ. राधाकृष्णन  गुरु  को आचार्य रूप में देखना चाहते हैं, ताकि उनके आचरण की अनुकरणीयता हो । पूज्य जैन मुनि तुलसी का कहना है कि शिक्षक गुरु बने ; जबकि पंडित मालवीय ने शिक्षक को पिता रूप में देखना चाहा। निष्कर्षतः सभी पर्याय व विशेषण गुरु में ही आकर समाहित हो जाती हैं। उनकी अनुभूति एवं उपस्थिति भी यत्र-तत्र सर्वत्र है । आज भी हम मंदिर जाएँ और हरिचर्चा सुनें; गुरुद्वारा जाएँ और गुरुबानी सुने ; मस्जिद जाएँ और क़ुरान-शरीफ़ की आयतें सुनें ;गिरिजाघर जाएँ जहाँ बाइबिल की पवित्र बातें हों ; पाठशाला जाएँ जहाँ बच्चे संस्कार के सांचे में ढल रहे हों या  कारखानों में चलते बड़े-बड़े संयंत्रो का सञ्चालन रहस्य देंखे । सबके सूत्रधार तो गुरु ही दिखते हैं । फिर ऐसे सूत्रधार  की खोज किसे नही होंगी ? निश्चय  ही वह सौभाग्यशाली है जिसे गुरु सद्गुरू रूप में मिलें और इसके विपरीत उस शिष्य के कर्म एवं संस्कार में कोई खोट है जिन्हे जीवन में एक अक्षम गुरु मिले क्योकि एक अंधा (अज्ञानी ) गुरु दूसरे अंधा (अज्ञानी) को भवकूप में गिरने से कैसे बचा सकता है ?
----------------------------------------शंकराचार्य प्रश्नोत्तरी में तो प्रश्न आया है कि  इस संसार में दुर्लभ क्या है। उत्तर है कि  इस संसार में सद्गुरु का मिलना दुर्लभ है क्योंकि जिसका मस्तक श्रुति हो, चेहरा स्मृति हो, दोनों हाथ नीति और रीति के  पर्याय हों, दोनों पांव गति एवं स्थिति स्वरुप हों, ह्रदय प्रेम या प्रीति का पर्याय हो अर्थात संत हो और जिसकी आत्मा ज्योति हो, वह गुरु है । इसमें भी गुरु का संत-ह्रदय होना एक बड़ा ही पारदर्शी लक्षण है, जिसका निरूपण गोस्वामी जी ने कुछ ऐसे किया है -
----------------------संत ह्रदय नवनीत समाना, कहा कबिन पर कहइ न जाना ।
----------------------निज परिताप द्रवहि नवनीता, पर दुःख-दुखी सो संत पुनीता ।
ऐसी अप्रतिम दयालुता तो एक सद्गुरु में ही हो सकती है । फिर इन सन्निवेशो से निर्मित गुरु का ब्यक्तित्व कृपा का सागर एवं साक्षात् प्रभु का रूप ही है । श्री मद्भगवदगीता में जब अर्जुन को श्री कृष्ण का विराटरूप  दर्शन मिलता है तो वे स्तुति करते हुए कहते हैं, "त्वमस्य पूज्यश्च गुरुर्गरीयान" (आप ही गुरुओं के गुरु हो ) । यहाँ ईश्वर की स्वीकृति हो जाती है कि स्वयं ईश्वर भी गुरु रूप ही हैं ।और अब इससे अधिक महिमा का क्या स्मरण किया जाय कि गुरु ही ,ब्रह्मा ,विष्णु , महेश्वर और साक्षात परब्रह्म हैं ।   
------------------------------------------अथ जिस सत्य के कारण जगत सत्य दिखाई देता है, जिसकी सत्ता से जगत की सत्ता प्रकाशित होती है, जिसके आनंद से जगत में आनंद फैलता है, उस सच्चिदानंद सद्गुरु को  नमन है और प्रार्थना है कि वे सद्गुरु समाज को सत्य , प्रकाश एवँ विकास की ओर उन्मुख करें।  
-----------यत्सत्येन जगत्सत्यम, तत्प्रकाशेन भाति तत ।
----------यदानन्देन नन्दन्ति, तस्मै श्री गुरुवे नमः ।। पञ्चदेवानाम परिक्रमा (3)----मंगल वीणा 
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वाराणसी ;;गुरूपूर्णिमा  संवत 2069                        mangal -veena . blogspot .com 
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बुधवार, 27 जून 2012

Tributes to the departed Professor

The nimbus of Sengar family has gone with the sudden demise of Late Dr. Kesar Singh due to heart attack at Piscataway New Jersey on 16.05.2012 at 8.00 PM. Ek toophan (Tempest) aaya aur us vartman ko ateet banakar chala gaya. Us Mahan Aatma ko ashrupurit shraddhanjali.
Though Dr. Kesar Singh was my younger brother, I used to call him Beta(son) to maintain that level of affection. Hereby I dedicate my writings till date on Blog to Late Sri Singh in his profound memories.
Further I convey my heartfelt gratitude to all those who mourned the death of Dr. Kesar Singh and cooperated in his funeral rites.
It took more than a months time in returning back on blog. I say sorry to all my readers and viewers.

गुरुवार, 10 मई 2012

साबरमती से सेवाग्राम (१)

एक सुअवसर १५ अक्टूबर सन २००० को मिला, जब अहमदाबाद यात्रा के दौरान मैं साबरमती आश्रम पहुंचा था | इधर-उधर घूमते हुए दत्तचित्त होकर आश्रम के प्रांगण से अनुभूति के तार जोड़ने का प्रयास करता रहा | पहली बार महात्मा गाँधी की अवधारणा वाले ग्राम-स्वराज एवं स्वतंत्रता के सरलार्थ को समझने का ही नही, देखने का मौका मिला | संयोगवश शरद ऋतु का समय था और रामराज्य का स्वरुप निर्धारित करने वाले गोस्वामी की अभिब्यक्ति याद आई, "पंक न रेनु सोह असि धरनी,नीति निपुन नृप कै जसि करनी |" अस्तु शारदीय शुचिता, सहजता एवं समरसता ने गाँधी-दर्शन के प्रति मेरी समझ को और आसान कर दिया | 
     समय आगे बढ़ा | सामाजिक सीकड़ों में बंधा मैं, एक साधारण आदमी, जैसे जीते बना जिया और निज जिम्मेदारियों में कभी उलझा और कभी सुलझा रहा | परन्तु जब भी साबरमती आश्रम  का ख्याल आता बड़ा सुकून मिलता | फिर पश्चाताप होता कि महात्मा ने परतंत्रता की बेड़ियाँ  तोड़कर, जो भारत सौपने का संकल्प लिया था, वह हमें क्यों नहीं मिला? कहाँ खो गया? सच तो यह है कि महात्मा के सपनों का भारत किसी पल  अपहृत  हो गया और हमें वह स्वतंत्र भारत मिला जिसमें न  सहजता है न सहिष्णुता है, न ग्राम-स्वराज  है न स्वाबलंबन, न समरसता है न संस्कृति और न सत्य ही है न अहिंसा | यहाँ तक कि न वह तालीम है न वे वैष्णव जन | बचे असहयोग एवं अवज्ञा सो वे तो खूब फूल-फल रहे हैं परन्तु सविनय विहीन होकर | फिर क्या मिला? मिला केवल ट्रान्सफर ऑफ़ पॉवर - सत्ता हस्तांतरण | अंग्रेजों ने चार्ज दिया और जैसा का तैसा भारतीय समकक्षों ने चार्ज ले लिया- बस |  
     जब भी किसी विचारवान से भारत के विकास  की बात करेंगें, वह गाँवों के विकास  को प्रथम एवं सर्वोच्च शर्त मानेगा | फिर भी गाँव उजड़ रहे हैं | शहरों की संख्या एवं उनकी आबादी आशातीत बढ़ रही है | ग्रामोद्योग को भारी उद्योग लगभग निगल चुके हैं | उत्पादक गिनती के हैं और दैत्याकार हो गये हैं | जहाँ देखिये उपभोक्ता ही उपभोक्ता | क्रयशक्तिहीन एवं अनुत्पादक जनसंख्या लगातार बढ़ रही है, जिसे गरीब कहते हैं | पूर्वीयता दम तोड़ रही है और पश्चिमीयता हमें आधुनिक सभ्य बना रही है | आज किसी की कोई भी उपलब्धि(गेन) सराहनीय है | साधन के शुध्द या अशुध्द होने का कोई मायने नहीं रह गया है | थ्योरी बखान गाँधी की अच्छी लगती है, परन्तु हम प्रेक्टिकल हक्सले एवं मैकाले का करते हैं | अब सह-उत्पाद के रूप में हम टूटन, घुटन, तनाव व भागम-भागी भी पाने लगे हैं | ये सह-उत्पाद ही हमारी सहजता, सरसता एवं संस्कृति को धरती की जलधारा भाँति नष्ट-भ्रष्ट कर रहे हैं | 
      महात्मा गाँधी को राष्ट्रपिता पुकारने वाले, उन्हें हर अवसर-सुअवसर पर नमन करने वाले तथा उग्र तपन में गाँधी नाम छतरी की शरण लेने वाले हम भारतीय यदि उनके सपनों के भारत को पुनः प्रतिष्ठित करने का पारदर्शी एवं एकमत प्रयास नहीं करते हैं तो इस विरोधाभास के लिए इतिहास के निरंतर दौर में आने वाली पीढियां हमें कोसेंगी | अब भी रुकने, सोचने और सही एवं शुध्द रास्ते पर चल पड़ने का समय है | बीते समय ने गाँधी-दर्शन को विश्व में सर्वोत्तम एवं नमनीय पाया है |
      मैं साबरमती को तीर्थ मानता हूँ क्योंकि वहीं मुझे सहजता, सरलता एवं भारतीय आत्मा की एक झलक मिली थी | आचरण की शुध्दता एवं ग्राम-स्वराज अवधारणा को  इंगित करने वाली साबरमती आश्रम-भूमि को शत-शत नमन | क्रमशः..................
अंततः  
If means are not pure (Gandhian), the ends (achievements) will lead to tensions and miseries. 

बुधवार, 9 मई 2012

भारत में राष्ट्रपति चुनाव

 लोगों में चर्चा के लिए चर्चा है कि अगला राष्ट्रपति कौन | अखबार वाले जो छाप दे रहे हैं या टी. वी. वाले जो दिखा दे रहे हैं, उसी पर पक्ष-विपक्ष में बहस करते हुए लोग चाय-काफी कि चुस्की ले रहे हैं | चुनाव में सीधी सहभागिता न रहने से बहसियों में गुण-दोष को अच्छा आयाम भी मिल रहा है | पड़ोस के गाशिप सेंटर पर चल रही गरमागरम बहस में एक सज्जन कह रहे थे कि यहाँ तो हर बात बिना मतलब लोगों के बीच चर्चा के लिए पहुँचा दी जाती है | जब संविधान में लिखा ही है कि भारत का कोई भी नागरिक, जो ३५ वर्ष की आयु पूरा कर चुका हो और लोकसभा का सदस्य बनने की योग्यता रखता हो, राष्ट्रपति बन सकता है  तो कोई भी योग्यता रखने वाला नागरिक जिसके पक्ष में गणित बैठ जायेगी, राष्ट्रपति बन जायेगा | देश के बड़े-बड़े राजनेता तलाश में लग गये हैं और किसी न किसी को इस सर्वोच्च पद पर बैठा ही देंगे | ऐसा तो कहीं लिखा नहीं है कि राष्ट्रपति का कद डॉ. राजेंद्र प्रसाद, कबीन्द्र रबीन्द्र नाथ टैगोर, डॉ. होमी भाभा, आचार्य भावे, डॉ. लोहिया, लोकनायक, नानाजी  या डॉ. कलाम सा ही होना चाहिए | इतना जरूर है कि जो राष्ट्रपति चुना जाय, वह चुनने वाले राजनेताओं को अंतर्मन से अपना नेता माने और गाहे-बगाहे महसूस भी कराये कि वह उनके प्रति वफादार है | 
दूसरे सज्जन प्रतिवाद करते हैं कि कुछ भी हो भारत के राष्ट्रपति को किसी न किसी क्षेत्र जैसे कला, साहित्य, विज्ञान, कृषि, तकनीकी, चिकित्सा, या शिक्षा विशेषज्ञ होना ही चाहिए | तीसरे सज्जन बोल पड़े कि यह कौन सी बात है | कोई न कोई विशेषता तो हर राष्ट्रपति में मिलती रही है जैसे हमारी वर्तमान राष्ट्रपति  देश की प्रथम महिला राष्ट्रपति हैं और परस्पर सौहार्द्र बढ़ाने के लिए विदेश भ्रमण की हिमायती रही हैं | अंतर्राष्ट्रीय संबंधो में उनके भ्रमण से आज नही तो कल बड़ा उछाल आने वाला है |
 चौथे सज्जन सबको चुप कराते हुए बोल पड़े कि आप लोग फिजूल का माथा पच्ची कर रहे हैं | हमारे माननीय सांसद एवं विधायक हैं न इस काम को करने के लिए | ये लोग देश कि सर्वोच्च संस्था के सदस्य हैं और हम जब भी यह भूलते हैं, ये माननीय वहाँ बैठ कर एक सुर से हमें याद दिलाते रहते हैं कि सर्वोच्च वे ही हैं | अतः सब अच्छा होगा | ये चुनने वाले माननीय कोई न कोई योग्य महामहिम ढूंढ़ निकलेगें - एकमत से नहीं तो बहुमत से ही सही | साथियों ! संविधान में नागरिक के साथ आदर्श या आस्था का केंद्र जैसा कोई विशेषण  नहीं लगाया गया है जिससे आम आदमी की सोच का राष्ट्रपति आम जनता को मिले | हाँ यह पक्का है कि कोई बाबू राष्ट्रपति नहीं होगा क्योंकि वह लाभ  उठाता है, लाभ न उठाने वाला ही कोई राष्ट्रपति बनेगा | बाकी नेता की गति नेता जानें और न जाने कोय | सबको यत्र-तत्र निकलने का समय हो गया था |
अंततः 
         खबर है कि इस वर्ष आम की अच्छी फसल  आने वाली है अतः आम आदमी को सस्ते दर पर आम चखने का आनंद मिल सकता है | ऐसा ही हो | लेकिन अभी तो पचास  रुपये प्रति किलो के नीचे किसी भी किस्म का आम बाजार में नहीं मिल रहा है |








गुरुवार, 19 अप्रैल 2012

भ्रष्टाचार की आत्मब्यथा

                     एक वर्ष से अधिक हो गया ,हम दो राष्ट्रीय मुद्दों ;भ्रष्ट्राचार एवं विदेशों में जमा काला धन ;के बीच जी रहे हैं ।हम इन्हें सुन ,धुन एवं गुन रहे हैं ।इन मुद्दों के साथ ही देश के छितिज पर अन्ना हजारे  एवं बाबा रामदेव के रूप में दो महानायक अपनी टीमों के साथ उभरे हैं ।हमारी वर्तमान भ्रष्टतंत्र टीम एवं दूसरी तरफ अन्ना एंड बाबा टीम के बीच  लगातार क्रिकेट का खेल हो रहा है ।बालिंग एवं फील्डिंग सजाने की हर संभव पहल हो रही है ,किन्तु हमारी भ्रष्टतंत्र की टीम है कि इसके खिलाडी चौके -छक्के लगाना और तेज कर दिए हैं ,आउट होने का नाम ही नहीं ले रहे हैं ।देश की जनता पवेलियन से ठगी-ठगी यह मैच देख रही है और अंतर्मन से भारत -भाग्य -विधाता  से प्रार्थना भी कर रही है कि हे विधाता !हमारे राष्ट्र नायकों की टीम को अब तो जिता दो ।फिर भी निराशा पर निराशा ।
जनता के कानो तक कमेंट्री पहुँच रही है ।
                    भ्रष्टाचारी टीम का प्रबंधक कहते हुये सुना जा रहा है कि यह मैच २०-२० ओवर ,एक  दिवसीय  या पांच दिवसीय नहीं है ।यह तो वरसों -वर्ष चलेगा ।हम आउट होंगे तब न दूसरी टीम बैटिंग करेगी ।क्या जनता को पता नहीं कि ग्राउंड हमारा है ,खेल के नियम हम बनाते हैं  ,अम्पायर हमारे हैं ,अपील भी हमारे यहाँ आती है ,निर्णय भी हम करते हैं और कानून व्यवस्था भी हमीं सुनश्चित करते हैं ।यह तो भोली -भाली जनता का मन रखना है सो हम खेल भी रहे हैं ,नहीं तो अन्ना व बाबा की टीम को न जाने कब इंडियन क्रिकेट लीग बना दिये होते ।उन अगुवा भुक्तभोगियों से पूछो कि हम क्या हैं ।ये सटटा -बट्टा भी तो हमारे ही टूल्स हैं जो आवश्यकता पड़ने पर कसे नट्स  को अन्बोल्ट करने के काम  आते हैं ।
                     जनता तो भोली है ।ये आन्दोलन चलाने वाले भी चतुर नहीं हैं ,इतिहास की ओर नहीं झांकते । अरे भाई !तुममे कोई गुरु वशिष्ठ तो है नहीं जो राम जैसा चरित्र निर्माण करे और देश में रामराज्य आये।चाणक्य भी नहीं कि चन्द्रगुप्त का निर्माण कर सके और नन्द वंश का नाश हो ।तुम्हारे पास तच्छशिला या नालंदा जैसे गुरुकुल भी नहीं हैं ।कितने संस्थान हैं तुम्हारे पास जहाँ सदाचार में शोध ,मास्टर या स्नातक कि डिग्री दी जाती है ?तुमको क्या पता कि हम  भ्रष्टाचारी भी भ्रष्टाचार से ब्यथित हैं ।चाह कर भी हम अपने से बाहर न निकलने को विवश हैं ।यदि गौतम सामने आ जाएँ और हमारा ह्रदय परिवर्तन हो जाय तो क्या तथागत मार्ग पर चलने का अवसर एवं परिवेश हमें मिलेगा ? आन्दोलन के नायक कब समझेंगे कि हम उनसे भी ज्यादा आहत हैं और दिन -रात कोसते हैं कि देश में फैले भ्रष्टाचार ने हमें भ्रष्टाचारी बना दिया ।खुदा गवाह है  कि हम जन्मजात भ्रष्ट नहीं थे ।भले ही अच्छा न लगे परन्तु हमारे भ्रष्ट उपासकों को भारतीय होने पर उतना ही गर्व है जितना किसी अन्य को ।
                        अक्लमंदे इशारा काफी ।संकेत समझने का प्रयास करो ।यदि तुम विश्वामित्र ,चाणक्य ,द्रोण या कृप जैसे गुरुजन खोज सको ,नालंदा या तच्छाशिला जैसे गुरुकुल बना सको तो सदाचार में निष्णात राष्ट्रप्रेमी युवक एवं युवतियों का एक बड़ा वर्ग समाज में अवतरित होने लगेगा ।फिर क्या हम और क्या हमारी ब्यथा -दोनों स्वतः समाप्त हो जांयगी और जन लोकपाल  की अभिलाषा रखने वाला भारत अपने स्वर्णयुग  में पुनः प्रवेश कर रहा होगा ।चलते -चलते तुम्हे सारांश  बता दूं कि दिल  से हम  पितामह एवं गांधारी की तरह तुम  पांडवों की विजय  कामना करते हैं परन्तु कर्म  से अपनी दुर्योधनी अविजित  सत्ता के लिए कृतसंकल्प हैं ।आज  हमारा है ,कल  तुम्हारा हो तो हमें अच्छा लगेगा । क्रमशः ध्वनि कोलाहल  में खो जाती है और मानवीकृत भ्रष्टाचार कि ब्यथा कथा यहीं विराम लेती है ।
अंततः 
                         प्रतिदिन, कर्मक्षेत्र से खाली होने पर ,विश्राम के समय थोड़ा सोचिये कि पूरी दिनचर्या में आप ने कौन सा काम अन्य शेष कार्यों से अच्छा किया ।उसे याद आते ही आप आनंदित होंगे ।आगे आप द्वारा प्रतिदिन उससे भी बेहतर कार्य  सम्पादित होने लगेंगे ।फिर जीवन सरस एवं सार्थक लगने लगेगा ।   

शुक्रवार, 6 अप्रैल 2012

मौज मनाते चलो

     पूर्वजों ने सानंद जीवन के लिए हम भारतीयों को अनेकानेक सर्वप्रिय संस्कारों एवं त्योहारों का उपहार दिया है। ऊपर से कोई चाही हुई कामना पूरी होने पर या मनोवांछित वस्तु मिल जाने पर हमें तत्कालिक आनंदोत्सव सुलभ हो जाते हैं। परन्तु इस कल-युग में स्थिति यह है कि उम्र जैसे-जैसे बढती है, ये अवसर हमे कमतर गुदगुदाते हैं। यदि एक समय घर में बच्चे को सुन्दर खिलौना, युवक को उसका पसंदीदा परिधान एवं बृद्ध को उसके आँख पावर का चश्मा उपहार में दिया जाय और उनके आनंदित होने की पूर्णता व प्रतिक्रिया आँकी जाय तो उनमें आनंद का स्तर स्पष्टतः अलग-अलग मिलेगा। कारण है बालपन आनंद की स्थिति या घटना से निर्दोष व भोलेपन के साथ  शतप्रतिशत जुड़ता है जबकि बढते वय  का जुड़ाव क्रमशः घटता जाता है। यहाँ तक कि अपने को भद्र मानने वाले लोग तो चाहते हुए भी हँसने और आनंदित होने की स्वाभाविक क्रिया को भी छिपा ले जाने का स्वांग  करते हैं। फिर जिन्दगी के टंट-घंट इस  तरह उनको घेर लेते हैं कि मूल आदमी ही गायब हो जाता है। वैसे भी एक ही विषय या वस्तु जब किसी को आनंद से सराबोर करती है, उसी क्षण  अन्य को दुःख की दरिया में हिचकोलें भी करा सकती है।
     आनंदित जीवन की माँग है कि आदमी जब जिस काम में लगे, उसके साथ अधिकाधिक धनात्मकता से जुड़े,उसमे अपनी प्रबल उपस्थिति दे और हर लमहे को जीवंत जिए। कुछ ऐसी ही व्यवस्था वाराणसी, काशी या बनारस  ने सदियों से कर रखा है कि इस ज्ञान के केंद्र में जीवन कभी बोझिल न हो। बनारसी संस्कृति इसीलिए तीन लोकों से न्यारी मानी गयी है। यहाँ यदि आपको गंगा तीरे दीपावली के बाद देव दीपावली, होली बाद बुढवा मंगल का हास्य सम्मेलन और मूर्ख-दिवस  पर महामूर्ख  सम्मेलन  देखने व सुनने का अवसर मिले तो यकीन कर लेंगे कि आबालबृद्ध  समाज को हर्ष एवं उमंग से भरने एवं उससे जुड़ने  के लिए ये बनारसी क्या कुछ  करते हैं। इस जतन में वे अनुपम  छटा बिखेरने तथा मूर्ख  बनने एवं बनाने से भी परहेज नही करते। इस आनंद के लिए यहाँ ज्ञानी एवं तपस्वी भी साधना के दौर में कुछ  समय के लिए पागल बाबा बन जाया करते हैं। साधना की शीर्ष स्थिति भी तो परम आनंद ही है। बनारसी मंसा है कि मौज मनाते चलो।
     अभी एक अप्रैल को पुण्य सलिला तट पर महामूर्ख सम्मेलन हुआ। निःसंदेह इसका आयोजन चतुर लोगों ने किया था और आशय  था-कृतिम मूर्खता कर जन मानस को प्रफुल्लित करना। कार्यक्रम हल्का एवं अच्छा रहा रियल मूर्खों का तो इससे कोई लेना देना था नहीं।  किरदारों एवं आयोजको ने सुर्खियाँ बटोर लीं। कुछ  की कमाई तो कुछ  की धमाई हो गयी। इक्के- दुक्के दूर खड़े रियल मूर्ख  यह सब देख जोर-जोर से हँसते हुए बात कर रहे थे कि कौन किसको मूर्ख  बना रहा है। वास्तविकता रही कि रियल और आर्टिफिसियल  दोनों प्रकार के मूर्ख  आनंदित हुए। एक  अँगुली उठाने वाली(विद्या  में उत्तम ) विद्योत्तमा को दो अँगुलियाँ उठाकर मात देने वाले(विद्या विहीन ) मूर्ख  कालिदास को नकारा नहीं जा सकता है।
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 अंततः
 यदि आप हर्षित नहीं रहना चाहते हैं और हर्ष  की पूँजी भी नही है तो भी दुनियाँ रुकने वाली नहीं है।
               " सुख  दुख  में उठता गिरता,संसार तिरोहित होगा।
                मुड़कर न कभी देखेगा, किसका हित अनहित होगा।"                    - जयशंकर प्रसाद
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दिनाँक 6.4.2012                                       mangal-veena.blogspot.com
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