रविवार, 23 सितंबर 2012

कॉंग्रेटिक्स

               भ्रष्टाचार- भ्रष्टाचार------ सुनते खीज उठी केंद्र की कांग्रेस नीत सरकार ने अंततः एल .पी .जी .को टी .जी .(टियर  गैस ) के रूप में प्रयोग कर ही दिया ।पूरा देश हैरान ,परेशान व विकल हो उठा है कि लोकतांत्रिक सरकार अपने ही लोगों के साथ ऐसा  क्रूर मजाक कैसे कर सकती है  ।घटना क्रम कुछ यूँ  बयान करता  है -
               हुआ यह कि  जब कोलगेट से शर्मसार एवं उसके चलते विरोध से तंग आ चुकी पार्टी कोर -ग्रुप की बैठक हुई होगी तो अधिकांश ने दुहाई दी होगी कि कोलगेट कांड तो पार्टी हित में किया गया था ।अब ये विरोधी  हैं कि  नाक में दम कर रखे हैं और यदि इन्हें नियंत्रित करने के लिए तत्काल कोई कड़ा कदम नहीं उठाया गया तो ये हमारी सत्ता की किला में घुस सकते हैं ।गंभीर मुद्रा  बनाते हुए अध्यक्ष    ने जब पूछा कि  उन्हें कैसे नियंत्रित किया जाय तो किसी अर्थशास्त्री  का सुझाव आया कि  जैसे  आँसू गैस छोडे बिना भीड़ तितर -बितर नहीं होती है वैसे ही बहुत समय से शस्त्रागार में  सँजो  कर रखे गये कोटा एवं मूल्यवृद्धि से सुसज्जित एल .पी .जी .को बिना छोड़े जनता व विरोधी तितर -वितर नहीं होंगे ।क्षण भर  के लिए गंभीरता फिर पूरे हाल में मुस्कराहट तैर गई होगी ।इसी बीच किसी हिम्मती ने पूछा की यदि  एल .पी .जी .चला देंगे तो वह तो कांग्रेसी और गैर कांग्रेसी राज्यों में कोई अंतर नहीं करेगी ।इस बात को ध्यान में रखते हुए अध्यक्ष एवं  अर्थशास्त्री जी ने कुछ ऐसा सर्वसम्मत निर्णय सुनाया ----" मंत्री समूह की बैठक के नाम पर सरकारी आदेश जारी करो कि अब एक वर्ष में एक गैस कनेक्शन पर मात्र छः सिलेंडर एक परिवार को उपदान पर दिये जायेंगे ताकि लोग महीने में दस बारह दिन ही खाना खा -पका सकें ।शेष बीस दिन खाना नहीं खायेंगे तो मँहगाई भी तो सर पर पैर रख कर भागेगी ।यदि जनता को रोज ही खाना खाने का शौक है तो शेष सिलेंडर खुले बाजार दर से ख़रीदे ।आदेश कुछ ऐसा गोल -मोल बनवाइए की काला -बाजारी एवं अराजकता को बढ़ावा मिले । अध्यक्ष  की ओर से कांग्रेस शासित राज्यों को सुझाव भी भेजो कि वहाँ की जनता को वर्ष में तीन अतिरिक्त सिलेंडरों  पर उपदान दें ताकि वे अन्य राज्यों की जनता से अपने राज्य की जनता को बेहतर बता सकें।" कोर- ग्रुप के  सभी सदस्य अध्यक्ष के प्रति आभार ब्यक्त करते हुए वापस चले जाते हैं ।
              कांग्रेसी कार्यकर्ता पुनः रौब झाड़ रहें हैं कि एक तीर से केवल दो शिकार करने का जमाना गया ।एक  एल .पी .जी . से हमारे अध्यक्ष ने अनगिनत निशाने साधा है ।कोलगेट हजम। ममता दीदी ख़तम ।सरकारी खजाना लबालब ।आँसू बहाती  जनता घरों में ।कृपादृष्टि  के  लिए मायावती बहन एवं मुलायम जी  सरकार के गेट पर और आगामी चुनाव में विजय दिलाने के लिए तीन सिलिण्डर का जनता को लालच अलग से ।वाह! इसे कहते हैं कॉंग्रेटिक्स जो दुनियाँ में भारतीय कांग्रेस के अलावा किसी को सुलभ नहीं है । जिन्हें आनंद के लिए ज्ञान पाना हो और नित्य प्रार्थना करते हो; हे प्रभो ! आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये;  उनके लिए बेहतर होगा कि वे कॉंग्रेटिक्स में डिप्लोमा या डिग्री हासिल करें ।कमाई और सुख -सुविधा की कोई सीमा नहीं ।खुला अनन्त आकाश चहूँओर है ।मन --रे --गा   -- और गाये जा कि अब इससे बढ़िया रो --ज --गा --। --। --। --र --र  की  गारण्टी नहीं। मनरेगा हो या वालमार्ट- बेरोजगारों को रोजगार देने एवं पार्टी के लिए वोट पाने की ही अफीमी ब्यवस्था है।

अंततः
            प्रधानमंत्री द्वारा देश के ऊपर आर्थिक संकट की बात उठाने पर उत्तर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री का बयान आया है कि यदि आर्थिक संकट है तो उसके लिए जिम्मेदार कौन है ।जनता ने तो उन्हे चुनकर मौका दिया है ।क्या गहरा सन्देश दिया गया है कि यदि अब भी संकट है तो मौका मत गँवाइये  जनाब । संख्याबल  आप के साथ है ।चार बांस चौबीस गज ,अंगुल अष्ट प्रमान --------

CONGRETICS(Congress+ Politics) :- means politics played by congress party in India .Perhaps it is a patent politcs trademark for congress party of India .  Copy to 1. Oxford Dictionary and 2. B.J.P Hqrs ND.   



बुधवार, 12 सितंबर 2012

भरोसा टूट गया

जी हाँ; भरोसा टूट गया। फिर तो आप जो थे-वह नहीं हैं। यह मानकर अपनी मति के अनुसार मैं जो समझूँ , वह आप हैं। उटपटांग वाक्य परन्तु सीधा-साधा सन्देश। कोलगेट कांड में सीबीआई ने कई कंपनी कार्यालयों में  छापा मारा। फिर श्री अरविन्द केजरीवाल का खुलासा आया कि सीबीआई ने छापे से पहले ही कम्पनियों को सचेत कर दिया था कि छापे मारे जायेंगे। सीबीआई एक बार पुनः स्वायत्तताविहीन एवं सत्यनिष्ठा से दूर दिखने लगी। आम लोगों को यकीन हो गया कि भ्रष्टसत्ता के अधीन एवं उसके इशारे पर काम करने वाली यह संस्था सत्यनिष्ठ हो ही नहीं सकती। गई भैंस पानी में। कभी अच्छी खबर आती है कि सीबीआई ने अपने विभाग के ही अधिकारी को घूसखोरी में रंगे हाँथ पकड़ लिया है तो जनता की समझ बनती है कि यह सब चोर- सिपाही वाला खेल है। क्यों नही सीबीआई कभी अपने मालिक घराने को रंगे हाँथ पकड़ती है? वाह रे भरोसे का संकट।
         हाल में सुब्रह्मण्यमस्वामी जी  ने चिदंबरम महोदय को दो-जी (2 जी ) में लपेटने का न्यायालयीय प्रयास किया । सब टांय-टांय फिस्स हो गया। सत्ताधारियों का तेजहीन चेहरा खिल उठा। परन्तु जनता में राय बनी कि  न्यायालय सत्ता की वीटो पॉवर प्रेशर में आ गया।यह कैसे हो सकता है कि जब सरकार ने कम्पनियों से कहा कि दो जी (प्लीज गिव ) तो लो जी समूह में ए राजा साहब के अलावा अन्य महोदय लोग नहीं रहे होंगे ।अब तो माननीयों को भरोसामाई मंदिर जाकर पूजापाठ करना चाहिए कि माई भरोसा बहाल करें ।
         भरोसा-भंग विभागों में पुलिस महकमें का अपना रुतबा है। पुलिस थाने का कोई अधिकारी हमारे एक मित्र को फर्जी केस से उनका नाम निकालने का आश्वासन, बिना लक्ष्मी दर्शन, दे दिया। मित्र का खाना-पीना छूट गया क्योंकि शुभचिंतकों ने उन्हें बताया कि यह तो किसी शनि, राहू या केतु जैसे ग्रह के कुदृष्टि की आहट है। पुलिस पैसा न ले और कोई सत्यनिष्ठ काम कर दे- यह तो हो ही नहीं सकता। बाद में पता चला कि वह अधिकारी कर्तब्यपरायण था और सचमुच मेरे मित्र को उबार दिया था। परन्तु जनता क्या करे, अपवाद को नियम तो नहीं कहा जा सकता।
         वैसे भरोसा-भंग मामले में हमारा देश भारत भी कम करम फूटा नहीं है। चीन पर भरोसा करे की पाकिस्तान पर। हाल ही में चीन के रक्षामंत्री भारत आये सो जानकारी के अनुरूप कुछ अधिकारियों को डाली, दस्तूरी या टिप देने का उपक्रम किये। हम तो चौंक गये कि इसके पीछे चीन की क्या मंशा होगी। भारत के विदेशमंत्री अभी पाकिस्तान गये तो वहां की विदेशमंत्री मैडम हीना रब्बानी खार, पीछे न देखकर, आगे साथ-साथ डग भरने की इच्छा जताने लगी। सभी भारतीय कृष्णा साहब की खैर मनाने लगे कि कहीं वे खार खाए पाकिस्तान की खार मैडम की बात में न आ जाँय वरन पीछे न देखने पर पीठ में फिर छूरा भोंका जा सकता है।प्रभु भरोसे जीने वाला यह नरम देश क्या करे। परमात्मा जानते हैं कि दुनियां के अन्य देशों को जब वहां के लोग चला रहे हैं  भारत को तो उन्हीं का भरोसा है। नहीं तो इस देश के कैसे लोग और कैसी लोकशाही।
         नवोदित भरोसा भंगियों में अरबपति एवं करोड़पति कथावाचक धर्मगुरू या उपदेशक उभरे हैं जो बड़े-बड़े  सत्तासीनों  एवं धनपतियों से सांठ-गांठ  कर भोली-भाली जनता का भरोसा लूट रहे हैं। बोरे में भरे रुपये चढ़ाने  वाले भक्तों पर ईश्वर की असीम कृपा बरसा रहे हैं और गरीबों को कोपर की भाँति चूसकर बदले में ईश्वर प्रदत्त कर्म का फल खिला रहे हैं। ये भोली-भाली जनता को क्या नहीं दे सकते-ईश्वर कृपा, पुत्र-पुत्री, आरोग्य, पाप-शमन, आशीर्वचन या सब कुछ। बदले में इन्हें तो केवल साधुभेष में इंद्रवत सत्ता, भोग-विलास, इन्द्राणियाँ, उड़नखटोला, परिचारिकाएँ, अपार धन-दौलत से भरी पूरी एक अमरावती चाहिये- बस। मन बेचैन होने लगता है कि अब धरमं शरणं आगच्छामि से भाग कर कहाँ जांय।
        वर्षा के दिनों में नदी को जब जलघमंड हो जाता है, वह दोनो किनारों(कगारों) से अपना रिश्ता भूल जाती है कि वे उसे सागर तक पहुँचाते हैं। फिर कगारों को धक्के दे-देकर गिराने लगती है। जब कगारों को याद आता है कि यह तो भरोसा-भंग कर रही है तब वे कगार गिर-गिरकर नदी के पाट को इतना फैला देते हैं कि वह सिमट कर तलहटी में भागने लगती है। सो निराशा जैसी कोई बात नहीं।

अंततः

रहिमन पानी रखियें, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरें, मोती, मानुष , चून ।।







सोमवार, 3 सितंबर 2012

सिच्छक हौं सिगरे जग को तिय....

*****************शिक्षक दिवस पर शिक्षकों को समर्पित एक अनुरोधपत्र ****
***************शिक्षा रुपी अँगुली का संबल दे मानव सभ्यता को समय सापेक्ष निरंतर आगे बढ़ाने वाले शिक्षकों को शिक्षक दिवस (05 सितम्बर ) पर कोटिशःसाभार धन्यवाद। आज की वैश्विक महामारी करॊना के दौर से पूर्व विश्व प्रतिस्पर्धा में भारत की विकास दर सराहनीय चल रही थी , इसके लिए भी शिक्षकों को साधुवाद। वर्तमान कल-युग या भौतिकवादी युग में कोई भी अस्वीकार नहीं कर सकता कि  विज्ञान, व्य़वसाय, उद्योग एवं प्रबंधन में रोजगार के असंख्य अवसर दिलाने में हमारे शिक्षकों, प्रशिक्षकों एवं संकायों का शीर्ष योगदान रहा है और वे अनवरत हमारी सभ्यता को भौतिक उपलब्धियों के नये-नये उपहार दे रहे हैं।इतना ही नहीं वे अपार बौद्धिक सम्पदा निर्माण करने के साथ करोड़ों श्रम शक्ति को जीविकोपार्जन का प्रशिक्षण देकर उनके घरों में रोजी-रोटी का सहारा बना रहे हैं। गोस्वामी जी ने आज की शिक्षा का कुछ ऐसा  ही उद्देश्य बताया था कि "उदर भरे सोई धर्म सिखावहिं।"
***************शिक्षकों में हमें पूर्ण श्रद्धा है। फिर भी शिक्षक-दिवस पर "शिक्षक स्वयं क्या पाया  एवं क्या खोया" पर एक संक्षिप्त परिचर्चा भी सामयिक ही मानी   जायगी। आज शिक्षक विपन्नता की सीमा से बाहर निकलकर भौतिकवादी सम्पन्नता की ओर उद्यत हुआ है, यह एक उपलब्धि है जबकि वह आदर एवं आस्था विहीन हो रहा है, यह एक हानि है। शिक्षक सभ्यता को सतत आगे बढ़ा रहा है, यह एक प्रत्यक्ष उपलब्धि है, परन्तु शिक्षा के शिवत्व एवं सौन्दर्य पर संदेह उपजने लगा है-यह एक सचेतक हानि है। कल का सुरभिसिक्त  गुलाब आज निर्गंध किंशुक (टेसू) हो रहा है।
***************मूलतः शिक्षक वह है जो ज्ञान के साथ समाज के नैतिक संस्कारों की सुरक्षा का, शिक्षा के माध्यम से ,वायदा (गारंटी) दे। जो ऐसा नहीं करता वह गुरु, प्रशिक्षक, दीक्षक, दार्शनिक, उपदेशक या कुछ भी हो सकता है परन्तु शिक्षक नहीं हो सकता क्योकि वह समाज को तो सभ्यतर बना ही नहीं रहा है। वह शिक्षक दिवस पर बहुतों से चरण स्पर्श करा सकता है पर आत्म-संतुष्ट नहीं हो सकता क्योंकि उसने स्वयं को आदरणीय या नमनीय बनाया ही नहीं है। भारत में करोड़ों शिक्षकों एवं शिक्षितों के रहते, समाज को खोखला करने वाली बुराइयाँ जैसे  भ्रष्टाचार, कालाधन, जातिवाद, धर्मवाद, आतंकवाद, नक्सलवाद, महिला उत्पीडन, नशाखोरी इत्यादि  सुरसा की भाँति विकराल हो रही हैं । यह स्थिति पुष्ट करती है कि  वर्तमान शिक्षा के साँचे से संस्कारी सजावट की लकीरें मिटा दी गई हैं। आज शिक्षक प्राचीन भारत का भिच्छाभोगी नहीं है। मध्ययुगीन भारत का मास्टर भी नहीं है कि करे मास्टरी दो जन खाय। वह तो आज का सर्वसुख संपन्न, प्रचुर वेतनभोगी और शिक्षा-उद्यमी है जो समाज को नये-नये उत्पाद एवं विपणन की विधियाँ दे रहा है। ऐसे शिक्षकों से अपेक्षा है कि वे अब  भी साँचे को संस्कारिक बना लें और हमारे आज को कल में ऐसे ढालें कि वह सत्यम, शिवम्, सुन्दरम से ओत-प्रोत हो।
 ***************वैसे भी यह दुस्साहस ही होगा कि कोई गैरशिक्षक शिक्षक को शिक्षा दे; सो मेरा आशय उन्हें आज के दिन याद दिलाने का है कि  कोई लाख जतन कर लें परन्तु स्वर्णिम सपनों के भारत का निर्माण तब तक नहीं हो सकता जब तक शिक्षक हमारे सपनों को साकार करने का ब्रत नहीं लेते हैं। इसके लिए उन्हें सुदामा जी की इस मान्यता से बाहर निकलना होगा कि-
      "सिच्छक हौं सिगरे जग को तिय,
        ताको कहाँ तुम देती हो सिच्छा।।"
फिर अपनी पत्नी सुशीला को शिक्षिका के रूप में स्वीकार कर द्वारिका पुरी की ओर प्रस्थान करना होगा। तुलसी को अपने ढ़र्रे से  इतर रत्नावली से शिक्षा पाकर समाज-कल्याण के लिए समर्पित होना होगा।सामाजिक संत्रास से बाहर निकलने के लिए हर सीता को अनसूया से शिक्षा लेना होगा एवं मूर्ख कालिदास को महाकवि कालिदास बनने के लिए विद्योत्तमा की शिक्षा पर अमल करना होगा। ऐसा कुछ अवश्य घटित हुआ था कि लोग कहते हैं "उपमा कलिदासस्य।" भारत के सन्दर्भ में आज का दिन चाहता है कि शिक्षक आपसी विमर्श से अपना ऐसा आदर्श  निरूपित  करें कि  भारत का हर शिक्षक हर उदाहरण से बेहतर हों। तभी स्व सर्वपल्ली डा  राधाकृष्णन  जैसे शिक्षक के सपनों का भारत विश्व क्षितिज पर उदित हो सके गा। -----------------------------मंगलवीणा  
वाराणसी ,दिनाँक 03 सितम्बर  2012 --------------mangal-veena.blogspot.com 
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अंततः
 पडोस की दुकान से कुछ घरेलू सामान खरीदा जिसकी कीमत बनिया  ने 90 रुपयें बताया । मैंने एक 100 रुपयें का नोट दिया । सामान के साथ बनियाँ ने मुझे दो ईट काउंटर से आगे बढ़ातें हुयें बोला " आज कल ईंट  हॉट केक की तरह बिक  रहा है। इसे छुट्टा के बदले दे रहा हूँ। यदि कल वापस करियेगा, 12 रुपयें दूंगा।" मैं निरुत्तर था। मंहगाई की जय हो। आने वाले दिनों में लोग भट्टों से ईंट खरीदने की सोच भी नही पाएंगे, पंसारी इन्हें दो चार की संख्या में बेचेंगे।-------------------------मंगलवीणा 
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