रविवार, 10 फ़रवरी 2013

मिशन 2014 या मिशन मोदी?

देश के सारे राष्ट्रीय एवं प्रान्तीय राजनैतिक दल सन 2014 के आम लोक सभा चुनावी युद्ध में उतरने के लिए    अपनी वाणी, बाणसंधान एवं बागडोर को तराश रहे हैं। यह लगभग तय है कि इस युद्ध में या तो संप्रग गठबंधन पुनः राजग गठबंधन को पटखनी देकर इसके भावी अस्तित्व पर प्रश्नचिन्ह लगा देगा या राजग गठबंधन सत्तारूढ़ संप्रग को अहंकारी रथ से विरथ कर उसे आम जनता के आक्रोश रुपी सरशैय्या पर लिटा देगा। संप्रग का सबसे बड़ा घटक दल कांग्रेस है और उसने जयपुर में संपन्न हुए चिंतन शिविर तक यह शंखनाद कर दिया है कि मिशन 2014 के लिए चुनाव बागडोर राहुल गाँधी के हाथ होगी, बाणी उनकी होगी और बाण भी उनकी तरकश से निकलेंगे। कांग्रेस एक ऐसा राजनीतिक दल है जिसका अध्यक्ष पद या विजय की स्थिति में प्रधानमंत्री पद ऐसे लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई का हो जाता है जिसमे केवल नेहरू/ गाँधी परिवार ही फिट बैठता है या यह परिवार किसी भी अपने विश्वाश पात्र को उसमे फिट कर देता है।
     इसके विपरीत राजग के प्रमुख घटक दल भाजपा के साथ सबसे ज्वलंत प्रश्न बागडोर का है। अटल-आडवानी युग ढलान पर है और इस दल में परिवारशाही भी नहीं है। वाणी एवं वाणसंधान से अति संपन्न यह पार्टी योद्धाओं से कंगाल है। जिनका पौरुष रथपति भर का नहीं है , वह महारथी बने घूम रहा है और जो थोड़े से महारथी हैं, उन्हें बागडोर पकड़ाने में पार्टी के भीतर अत्यन्त घबराहट है।गडकरी की नैया भँवर में फँसने पर  रातोरात जब राजनाथ सिंह को इस दल का दुबारा अध्यक्ष घोषित किया गया होगा तो निर्णायक मंडल के ध्यान में राजनाथ सिंह की प्रबंधन दक्षता, सामूहिक नेतृत्व, संयोजन कुशलता एवं पूरे दल में इनकी स्वीकार्यता जैसी बातें अवश्य आई होगीं, परन्तु इनके अलावा उम्मीद की जाती है कि निर्णय करने वाले लोग राजनाथ सिंह का राजनैतिक क्रेडिट एकाउंट भी मिशन 2014 के सन्दर्भ में खँगाले होंगे, जैसे कि आम लोगो में इनका ब्यक्तिगत आकर्षण, समाज सेवा के क्षेत्र में इतिहास, चुनावसंचालन व विजय दिलाने की कोई पूर्व उपलब्धि, लोकप्रियता पर कोई सर्वे रिपोर्ट, गृह जनपद चंदौली एवं सुदूर राज्यों में इनकी लोकप्रियता इत्यादि। परन्तु उपर्युक्त मापदंडों पर आम आकलन में राजनाथ सिंह कहीं से भी सर्वोत्तम फिट केस नहीं लगते हैं। फिर भी इन मानकों से समझौता करते हुए भाजपा अध्यक्ष पद की आज की आवश्यक लम्बाई-चौड़ाई एवं ऊँचाई में इन्हें फिट कर दिया गया।यदि राजनाथ सिंह नए अवतार में सामने नहीं आते हैं तो ऐसे निर्णय से यथास्थिति बरकरार रखा जा सकता है, अप्रत्याशित उछाल नहीं पाया जा सकता है।
     सन् 2014 का मिशन राजनाथ सिंह से पूरा नहीं होगा यह पूरा होगा जनता के प्रबल समर्थन, महारथियों के  सही चयन एवं विलक्षण चुनाव संचालन से। आज कांग्रेस से वामदल तक, देश से विदेश तक, आम से खास  तक, शिक्षार्थी से शिक्षक तक तथा समाचार से मीडिया तक के लोग इस चर्चा में केन्द्रित हो गये हैं कि भारत का अगला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी या राहुल गाँधी। ये वह नरेन्द्र भाई मोदी हैं जो विकास के पर्याय एवं भारतीयता के प्रखर वक्ता के रूप में प्रतिष्ठित है। वह आज  सबसे लोकप्रिय नेता हैं साथही उनमे महारथियों के चयन का सफलतम अनुभव एवं चुनाव सञ्चालन की अद्भुत क्षमता है। फिर भी उन्हें उनके दल के लोग ही एक स्वर से भावी प्रधान मंत्री पद के दावेदार रूपमें स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं । राजग में आज कोई ऐसा दल नही है जो भाजपा के लिए नरेन्द्र मोदी को किनारे करने पर उनकी क्षतिपूर्ति कर सके। जदयू जैसे दल भाजपा से अलग हो बिहार के किस कोने में लग जायेगें ये वहाँ के आम लोग खूब जानते हैं। ऐसी स्थिति में भाजपा एवं इसके अध्यक्ष राजनाथ सिंह यदि मिशन 2014 को फतह करना चाहते हैं तो बिना विलम्ब के भाजपा की ओर से नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित कर देना चाहिए। फिर सभी शीर्ष नेताओ के साथ सलाह एवं स्वीकृति से सांसद प्रत्याशियों का चयन कर लेना चाहिए और जमीन पर उतरकर चुनाव अभियान में अभी से लग जाना चाहिए।चुनावी मुद्दे सर्वविदित हैं । प्रत्याशियों का आम विशेष होना और उसे आम लोगो तक जोड़ना जरूरी है।
     बीते कल में राजनाथ सिंह एक अति साधारण अध्यक्ष बन कर रह गये थे, इतिहास सफल होना नही सिखाता है परन्तु किसी भी सूरत में असफल नही होना अवश्य सिखाता है। समय है कि राजनाथ सिंह मिशन 2014 को मिशन मोदी घोषित करें एवं पूरा दल उनकी अगुआई में मोदी लाओ देश बचाओ अभियान में लग जाय। बड़ी संभावना होगी कि राजग के अन्य घटक दल व प्रांतीय छोटी-छोटी पार्टियाँ चुनाव बाद गुलदस्ते के साथ भाजपा खेमे में स्वयं पहुचें।  आम भारतवासी के समझ में अब जो प्रधान मंत्री पद की लम्बाई, चौड़ाई और ऊँचाई है उसमे आज की परिस्थिति में भाजपा से केवल और केवल नरेन्द्र मोदी ही फिट बैठते हैं ।
        यदि नरेन्द्र भाई मोदी फिट हो जाते हैं तो राजनाथ सिंह भी हिट होगें और उन्हें इस विजय का सेहरा भी बधेंगा। दूसरी स्थिति में यदि राजनाथ सिंह प्रधानमंत्री के चयन की बात चुनाव की बाद की स्थिति पर छोड़ते हैं तो इसका शुद्ध घाटा भाजपा को होगा तथा शुद्ध मुनाफा तथाकथित महारथियों को कुर्सी-कुर्सी खेल खेलने में मिलेगा। ऐसे हालात में राजनाथ सिंह के योगदान का आकलन बहुत ही नकारात्मक हो सकता है।
     जहाँ तक आम आदमी की बात है कई सर्वे रिपोर्ट आई हैं और उनके रुझान का संकेत दी हैं। यदि भाजपा आतंरिक कलह से जन आकांक्षा पर खरी नही उतरती है तो खास पार्टी से आम पार्टी बन चुकी भाजपा के  बकवास को कोई नही सुनने वाला है, इस पार्टी को जल्दी ही बताना होगा कि वह नरेन्द्र भाई मोदी को 2014 के चुनाव से पहले प्रधानमंत्री पद का दावेदार धोषित करेगी या चुनाव के बाद जोड़ तोड़ के लिए इसी प्रकार टाल-मटोल करती रहेगी। सच पूछिए तो पार्टी अध्यक्ष में जनता की कोई रूचि नही है। रुचि है तो मिशन 2014 अर्थात मिशन मोदी में।
10 February 2013                                                 Mangal-Veena.Blogspot.com
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रविवार, 3 फ़रवरी 2013

भारतीय रेल कोहिनूरी ......

       एक यात्री को भारत में रेलयात्रा के दौरान हर कदम भारतीयता के दर्शन का अवसर मिलता है ।जब ट्रेन किसी नदीसेतु ,गुफा ,पहाड़ ,पठार ,जंगल ,घाटी या विशाल कृषि मैदान से गुजरती है तो देश की प्राकृतिक समृद्धि हर यात्री का मन मोह लेती है। स्टेशन दर स्टेशन विभिन्न वेशभूषा एवं बदलती बोली में संवाद करते लोग उतरते- चढ़ते चटक भारतीय संस्कृति का रंग विखेरते रहते हैं।भारतीय रेल का यह एक परिचय है ।परन्तु जब ब्यवस्था ,सुविधा एवं समयवद्धता से सामना होता है ;यात्री खीझ उठता है और फिर विदेशी रेल सेवाओं की शान में कुछ बोलकर अपनी भड़ास उतारता है ।
        सोचने की बात है कि ज्यादातर रेलयात्री; तीर्थयात्री ,देशाटनी,भ्रमणार्थी ,शिक्षार्थी ,पेशेवर ,ब्यवसायी ,रोगी एवं नौकरी से जुड़े लोग; होते हैं।रेल से इनकी अपेक्षा होती है -सुरक्षा,संरक्षा ,सफाई ,समयवद्धता ,साफसुथरा खानपान एवं मित्रवत ब्यवहार। इसके लिए इन्हें सममूल्य कीमत चुकाने में कोई संकोच नहीं हैं ।याद कीजिए एक यात्री अपनी जेब के अनुसार टिकट की श्रेणी बदल लेता है, लेकिन कम मूल्य पर अपने लिए टिकट नही माँगता है। यात्री को खाने की चीजों की कीमत कम करने की बहस करते नहीं देखा जाता, लेकिन खान-पान की गुणवत्ता पर हर यात्री कोसता रहता है। यात्री कभी  रेलवे से यह नहीं कहता कि गाड़ी तेज चला कर उसे जल्दी गन्तब्य तक पहुँचाओ, परन्तु वह इतना चाहता है कि कम से कम अपने सुनिश्चित समय पर ट्रेन अवश्य गन्तब्य पर पहुँचे। यात्री यह नहीं चाहता है कि यात्रा के दौरान उसे स्वास्थ्यलाभ  हो,परन्तु वह यह भी नहीं चाहता है कि उसे स्वास्थ्यहानि  जैसे बीमारी, खटमल, खसरा, चूहा प्रताड़न इत्यादि हो। आज के भारत का यात्री वर्ग आर्थिक रूप से इतना कमजोर नहीं है कि उसे खस्ताहाल रेल से डरावनी एवं तनावग्रस्त यात्रा करनी पड़े। फिर रेल उनकी माँग पर पर खरी क्यों नही उतर रही है? भारतीय रेल वाजिब किराया और वाजिब सेवा पर काम क्यों नही कर पाती है? यदि रेल सुनिश्चित करे कि  उसकी आमदनी का तर्कसंगत खर्च हो रहा है और वह सेवा से कम है तो यात्री को बढ़ा किराया देने में कोई विरोध  नहीं है। हाँ उपभोक्ता के रूप में वह इतना तो चाहेगा कि सेवा केलिए (वादा)कथनी और करनी में अंतर न हो।
        आज अहं सवाल एक दो या दर्जन भर ट्रेनों को 200 कि.मी./घंटा रफ्तार देने, कुछ विश्व स्तरीय स्टेशन बनाने अथवा ऐसे कोरिडोर का विकास  नहीं है, बल्कि चाहत है कि आज तक किये गये वादे को पहले जमीन पर उतरा जाय। आज भी भारतीय रेल की औसत गति पचास  कि.मी./घंटा से कम है।  लेट लतीफी की बात तो घंटो से आगे अब आधे दिन, पौने दिन या पूरे दिन में होने लगी है। स्टेशनों का तो कहना ही क्या - उजड़े सरायों से बुरे हाल हैं। क्या रेल  इतनी भी गारंटी नहीं दे सकती है कि वह अपनी समयसारिणी केलिए प्रतिबद्ध है और निश्चित समय पर गन्तब्य तक न पहुँचने  पर वह देर के लिए यात्री को किराये का कुछ प्रतिशत वापस करेगी ? क्या रेल अपने यात्रियों को सादा - स्वच्छ भोजन व  जलपान उचित मूल्य पर देने की प्रतिज्ञा पूरी नहीं कर सकती है? ये समस्याएँ कोई क्रायोजनिक इंजन बनाने जैसी तकनीकी तो नहीं है कि रेल समाधान में असहाय है।
        जब कभी भारत सरकार  के नवरत्न  कम्पनियों जैसे भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, इंडियन आयल, नैवेली लिग्नाइट इत्यादि की बात होती है तो सोच उभरती है कि भारतीय रेल भारतीय कोहिनूरी रेल क्यों नही हो सकती है । ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि हर भारतीय की  ललक हो  कि  चलो रेल यात्रा का आनन्द उठायें और फिर तरो ताजा  हो काम पर लग जांय। सभी अनुभव करते हैं कि जब हम साइकिल, रिक्शा या टैक्सी से चलते हैं तो स्थानीयता का अनुभव करते है, बसों से चलते हैं तो प्रान्तीयता और जब रेल से यात्रा करते हैं  तो हमें भारतीयता की अनन्दानुभूति होती है। हो भी क्यों न- भारतीय रेल की परम्परा डेढ़ सौ वर्षो से अधिक पुरानी हो रही है और इसमे आवश्यक आवश्यकता से मनोरंजक आवश्यकता पूर्ति तक सारे संसाधन उपलब्ध हैं । ऐसे में हमारे देश के यात्री को न फ्रांस की रेल चाहिए न चीन की, उसे तो सम्पूर्ण अर्थो में भारतीय रेल चाहिए जो आधुनिक भारत में कोहिनूर की तरह चमकती दमकती हो।
        हर कमी को दूर करते हुए भारत सरकार और रेलवे बोर्ड को चाहिए कि वे भारतीय रेल को अपना यू यसपी(USP) बनायें । इसके लिए आज नवाचारी सोच एवं प्लानिंग केसाथ क्रियान्वयन समरूपता की सर्वोपरि आवश्यकता है । भारतीय रेल किसी राजनैतिक दल को खुश करने केलिए गिफ्ट पैक नही है, बल्कि  यह यात्रियों को खुश करने के लिए इस देश की सबसे बड़ी यातायात ब्यवस्था अर्थात भारतीय रेल सेवा है।ट्रेनों को निर्धारित स्पीड पर तथा रेलप्रबंधन सुधार को सुपर स्पीड में चलाने की आवश्यकता है। यात्री चाहता है कि उसे वाजिब किराये पर वाजिब सेवा मिले। उसे भाड़े में राहत नहीं , सेवा में सुधार चाहिए।। रेल बजट प्रस्ताव का समय निकट है । भारत सरकार व रेलवे बोर्ड को ईमानदार प्रस्ताव के साथ देशवाशियो के सामने आना चाहिए कि वे भारतीय रेल को कोहिनूरी भारतीय रेल बनाने केलिए क्या करने जा रहे हैं।यदि सरकार कुछ बड़ा सपना देखे तो हम भरतवासी कोहिनूरी सपने को सच करने का सामर्थ्य भी रखते हैं ।  
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एक यात्रा संस्मरण 
        दिनांक 27 अप्रैल 2012 को मुझे संघमित्रा की वातानुकूलित द्वितीय श्रेणी शयनयान में नागपुर से वाराणसी की यात्रा का अवसर मिला। जब भी इस यात्रा की याद आती है मै सिहर उठता हूँ। गंदे ट्वायलेट, गंदे डिब्बे, बदबूदार कम्बल और घटिया खाना तो रेल यात्रा के दौरान आदत में शामिल हो गये है परन्तु रात होते ही खटमलों और चूहों का ऐसा आक्रमण पूरे डिब्बे के यात्रियों पर हुआ कि हाहाकार मच गया। आगे पीछे सभी लोग उठकर बैठ गये। कोई बेडरोल फेक रहा था तो कोई हाथ, जूते या चप्पल से खटमल मार रहा था। कोई बर्थ के नीचे झोले चेक कर रहा था कि कहीं चूहे काट तो नही रहे हैं। चूहे उत्पात एवं खटमल आतंक  से पूरे बोगी में भगदड़ मच रही थी। खटमल पहनावे के अन्दर तक जा घुसे थे। भारतीय रेल का एक भयावह सच सामने था। किसी तरह डिब्बे के अन्दर टहलते, खुजलाते, खटमल मारते सबकी  रात बीती।
        28 अप्रैल 2012 को सुबह जब मै मुगलसराय स्टेशन पर उतरा तो लगा कि जेल से सश्रम सजा काट कर छूटा हूँ। घर पहुँच कर आवाज दिया कि  मुझे घर के बाहर ही पानी, साबुन और कपड़े दे दो, ताकि कपड़े धो कर नहाने के बाद घर में अन्दर आ सकूँ । श्रीमती जी ने पूछा- क्या हुआ? फिर मामला समझ कर उन्होंने तत्काल आवाज दिया कि रास्ते के सारे कपड़े धूप में ही छोड़ दीजिये नही तो घर में खटमलो का अभयारण्य हो जायेगा।
        यह है हमारी भारतीय रेल एवं इसकी प्रबंधन ब्यवस्था की एक झलक ।जय हो ....
3 February  2013                                                        Mangal-Veena.Blogspot.com
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