मंगलवार, 16 अप्रैल 2013

बीजेपी !सावधान

        लोकसभा चुनाव की रणभेरी अभी बजी भी नहीं कि धर्मनिरपेक्षता के नामपर भाजपा का एक सहयोगी दल उसके चरित्र और चेहरे पर ग्रहण लगाने पर तुल गया । आम आदमी जदयू के इस शतरंजी चाल से नहीं बल्कि भाजपा के इस मौकेपर अनिर्णय की स्थिति पर अचंभित है । बीजेपी की वैशाखी सहारे खड़ा बिहार का मुख्यमंत्री जब  बीजेपी के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता एवं गुजरात के मुख्यमंत्री को नान - सेक्यूलर कहतेहुये उसके विकास माडल को ख़ारिज किया ,तत्काल बीजेपी को इस मारेसि मोहिं कुठाँव का मुंहतोड़ प्रतिकार गठबन्धन तोड़कर करना चाहिए था,परन्तु ऐसा नहीं हुआ । फिर देश के दूसरे सबसे बड़े राजनीतिक दल को ऐसे लांछन सहने का कोई बडा लाभकारी कारण होना चाहिए जिसे आम आदमी नहीं समझ पा रहा है । जहाँ नरेन्द्र मोदी की लोक प्रियता के आधार पर आगामी चुनाव में बीजेपी केलिए दोसौ का आंकड़ा पार होने की संभावना है,वहां बीस के आसपास खेलने वाला टंगड़ी मार रहा है ।
        भारतीययुवा मतदाता की सोच है कि अब चुनाव विकास ,बेहतरी एवं भ्रष्टाचार मुक्ति जैसे मुद्दों पर लड़े और जीते जांय जबकि अधिकांश दल और नेता जाति एवं धर्म के नाम पर समाज को तोड़कर चुनाव लड़ने में दक्ष हैं । ऐसे लोग अपने कुटिल चाल में सफल भी होते रहे हैं ।चाल फिर चल दिया गया है ।इसलिए सावधान बीजेपी । मुद्दे से  भटकना  आत्मघाती हो सकता है । पूरा देश कांग्रेस के अधिनायकवाद, भ्रष्टाचार, कुशासन एवं संवेदनशून्यता से त्रस्त है। सभी चाहते हैं कि बीजेपी जैसा राष्ट्रीय दल देश को चलाने एवं कांग्रेस को राजनीतिक टक्कर देने की स्थिति में बना रहे । यह हमारे लोकतंत्रऔर विकास केलिए आवश्यक  है ।इस अपेक्षा पर भी बीजेपी को खरा उतरना है ।
        गुजरात में  सामने दिखता विकास एवं इसके प्रतीक नरेद्र मोदी आज ऐसे दो कारण हैं जिनसे प्रेरित होभाजपा का खोया जनाधार वापस भाजपा की ओर मुड़ने की सोच रहा है ।देश के हर नुक्कड़-चौराहे पर, विविध मंचों पर, समाचारपत्रों एवं सोशल मिडिया में मोदी का देश का सर्वाधिक लोकप्रिय नेता
होना स्वीकृत एवंचर्चित विषय है । विभिन्न विचारधाराएँ भी चाहती हैं कि आगामी लोकसभा चुनाव भाजपा से नरेन्द्र मोदी एवं कांग्रेस से राहुल गाँधी के भावी प्रधान मंत्री पद की दावेदारी मुद्दे पर हो । अतः सामने कांग्रेस को देखते हुए तत्कालभाजपा को अपनी पार्टी की ओर से नरेन्द्र मोदी को भावी प्रधान मंत्री पद का दावेदार घोषित करना चाहिए और पूरी पार्टी को एक जुट होकर आडवानी जी के दिशा निदेशन में चुनाव में कूद पड़ना चाहिए । यदि दोसौ का आंकड़ा बीजेपी छू लेती है तो सरकार बीजेपी नेतृत्व वाली गठबंधन ही बनाये गी और जदयू इधर -उधर झांकती दिखेगी । इसके बिपरीत लक्ष्य से पिछड़ने पर कोई गठजोड़ काम नहीं बना सके गा । फिर रणभूमि में उतरने से पहले अर्जुन की भांति मोह क्यों ?
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अंततः
जबतक हमारे देश में प्रधान मंत्री और मुख्य मंत्रियों का चुनाव सीधे मतदाताओं के मतदान से होने की संवैधानिक ब्यवस्था नहीं होगी ,भ्रष्टाचार मिटाने का कोई निर्णायक प्रयास नहीं होगा ,सीबीई जैसी संस्थाएं स्वायत्त नहीं होंगी और बिना आमदनी बढ़े महंगाई बढती रहे गी ;आम आदमी असहाय मतदाता बना रहेगा ।
16 April 2013                                            Mangal-Veena.Blogspot.com
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रविवार, 7 अप्रैल 2013

युवाओं के प्यार से जुड़ा यौन अपराध

            यदि प्यार शब्द LOVE का समानार्थी है तो जी हाँ, युवाओं का प्यार यौन अपराधों को बढ़ावा देता है। पहले भी यह शब्द भारतीय समाज में था, परन्तु इतना ब्यापक नहीं था जितना पश्चिमी सभ्यता के भौतिकवाद में। राधा-कृष्ण, नल-दमयन्ती, दुष्यंत-शकुंतला जैसे शालीन एवं अनुकरणीय उदाहरण हमारे अपने भारत के हैं जिनकी तुलना आज के युवाओं के प्यार से करना न ही उचित है न संभव। आज हम जिस प्यार की बात करते हैं, वह शब्द और संस्कृति पश्चिमवालों ने बड़े प्रयास से विदेशी शिक्षा एवं भारतीय सिनेमा के माध्यम से भारत में स्थापित किया और अब वेलेन्टाइन डे की स्वीकृति के साथ उस प्यार का पूर्ण प्रदार्पण हो चुका है।
            आज भारत में बनने वाले अधिकांश फार्मूला चलचित्रों के विषयवस्तु प्यार एवं अपराध के प्रेरक ही तो हैं। जो सिनेमा में होता है, वह कालेज और विश्वविद्यालयों में अनुकरण होकर, समाज में जहर की तरह फैलता है। आज के युवक एवं युवतियां जब प्यार की उम्र में पहुचते हैं तो तो इनके दो छोर बनते है, पहला सुन्दर काया  और सम्पन्नता वाला छोर, दूसरा इससे आंशिक या पूर्ण वंचित छोर। कोई रिझने में मुग्ध तो कोई रिझाने में और कोई असफल होने पर यौन अपराधों में लीन। अपराध का सम्बन्ध सदैव भूख से रहा है और यदि प्यार के कारण यौन अपराध हो रहा है तो निश्चय ही यह प्यार एवं इसमे ब्यवधान भी किसी अन्य शारीरिक भूख के कारण हैं और कुछ नहीं। फिर अपराध तो अपराध है और इसमें कमी लाने के लिए इस प्यार की संस्कृति में बदलाव लाना भी सभ्यता की पुकार है।
            हाल ही में एक अंग्रेजी समाचार पत्र के सम्पादकीय पृष्ठ पर एक दृष्टिकोण छपा था कि फ़िल्में हमें वह देती हैं जो हम चाहते है। बड़ी अजीब बात है कि मनोरंजन से जुडी इंडस्ट्री का उद्देश्य मनोरंजन से अलग क्यों होना चाहिए। यह इंडस्ट्री आज अधिकांशतः लव,सेक्स,हिंसा,यौन अपराध, रेप को उकसाती(induce) है, नकि कुछ देती है। यह उद्योग लोगों से मनोरंजन के नाम पर पैसा लेकर उन्हें गलतियों की ओर प्रेरित कर रहा है। इन्हें अपराध एवं प्यार के नायाब तरीके बताने एवं उकसाने का दायित्व किसने सौपा है?सिर्फ पैसा ने या सामाजिक दायित्व ने- एक दिन इसका सभी को उत्तर देना होगा। युवाओं का प्यार जिस रास्ते पर जा रहा है वह रास्ता विषम एवं विनष्टकारी है। समाज जितना जल्दी चेत जाय, हमारी सभ्यता के लिए उतना के लिए उतना ही अच्छा होगा क्योंकि प्यार करना सबका हक़ है और उससे वंचित होने पर अपराध बढ़ने की सदैव संभावना रहेगी।
            अच्छी बात है कि युवाओं एवं उनमें प्यार को धनात्मक दिशा देने के भी अभिनव प्रयास हो रहे हैं ।अभिभावक वर्ग भी चौकन्ना हो गया है । सेक्स एजुकेशन के लिए गंभीर प्रयास हो रहे हैं । बहुत सारी फ़िल्में स्वस्थ मनोरंजन या प्यार को केंद्र में रख कर सही दिशा में बन रही हैं ।  अतः भविष्य में यौन अपराधों में कमी की आशा भी की जा सकती है ।
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अंततः
Films give us what we want.-----------------------------------------------------NO.                                                      
Films give us what pays them crores even at the cost of let society go to hell .
7 April 2013                                                               Mangal-Veena.Blogspot.com
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शनिवार, 6 अप्रैल 2013

धन्यवाद होली ,स्वागत नवरात्रि 2013

                       विषम परिस्थितियों में बेहतरीन प्रदर्शन केलिए बीती होली को धन्यवाद । इस त्योहार की लोकप्रियता का ही कमाल है कि  स्थापना दिवस (वसंत पंचमी) से मुख्य उत्सव होते हुए बुडवा मंगल तक हुडदंगियों को संविधान से कई गुना अधिक बोलने एवं मनमानी की स्वतन्त्रता मिल जाती है।यहाँ तक कि संविधान के रखवाले भी यही बडबडाने लगते हैं कि बुरा ना मानो होली है। मंहगाई, पश्चिमी विक्षोभ एवं पूर्वी दबाव को दरनिकार करते हुए यह होली जवान एवं मदमस्त होकर भारतीयों पर छाई और छाई रही।
                      होरियार एवं हुड्दंगी, टोली में अपनी स्वतंत्रता का एहसास करते हुए, राहगीरों से जबरदस्ती चन्दा उगाही किये। फिर दारू, मुर्गा एवं भंग उड़ाते हुए लाऊड स्पीकरों से कान फाडू अश्लील गाने बजा- बजा कर ध्वनि नियंत्रण की माँ बहन करते रहे। नतीजन अभद्रता के चलते अपनी ही बहू - बेटियां घरों में कैद रहीं।
                      दूसरी ओर घुसहे विभाग के कर्मचारी दनादन फाइलों को आगे बढा कर अपनी शाही होली की व्यवस्था किये तो सूखे विभाग वाले आश्वासन एवं झूठ- झाठ का सहारा  ले अपना जुगाड़ बैठाये। व्यवसायी मिलावट, घट- तौली और जिंसो की मनमानी कीमत से पैसा बनाये तो मजदूर बिचारे पूरे परिवार को मजदूरी पर झोंककर या उधारी मांगकर जुगाड़ किये । अमीर सबपर भारी तो किसान लहलहाती फसल के बल पर उत्साहित हुआ । सब मिलाकर क्रूर महँगाई से मोर्चा लेते हुए सभीलोग अपने -अपने ढंग से रिकार्डतोड़ होली खेलने में रम गए ।
                      फिर क्या था ,असली -नकली खोया भी खूब बिका ;गुझिया ,पापड़ और पकवान भी खूब बने । रंग ,गुलाल ,पिचकारी एवं टोपियों के नए -नए चीनी संस्करण भी धूम मचाये । ब्रांडेड जीन्स ,शर्ट्स ,टॉप्स एवं जूतों -चप्पलों की हर घर में क्रेज रही । चूँकि किसी न किसी ढंग से लक्ष्मी सबके पास पहुंची थी ,पूरे जोश केसाथ होली जलाई गई ,एकसेएक बढ़कर हुड्दंग हुए ,रंग कुरंग भी खूब बरसे और जोरा -जोरियाँ भी हुईं । संत (आशाराम बापू )से श्रोता तक,सधवा से विधवा(मथुरा ) तक,दिगम्बरियों से अम्बरधारियों तक और क्या कहें होरियारों से पुलिस तक सभी मर्यादा से बगावत करते दिखे । महंगाई,कुब्यवस्था एवं परेशानियों की बारहोमासी पिचकारी मारनेवाले नेताओं ने भी जनता को होली का मुबारकवाद देकर खूब चिकोटी काटा ।यही तो एक त्यौहार है जब हास्यकवियों के पौ बारह होते हैं । उल्लू ,गधा ,भैंस,सांड ,ऊंट केरूप में उन्हें लोटपोट सुना और सराहा गया । होली के गीत भी अवध एवं ब्रज परंपरा से आगे बढ़ते हुए फिल्मों को लाँघ कर ठेठ देशी फूहड़पनतक पहुँच गए । असहनीय अश्लीलता केसाथ एक और विशेष बात रही कि घर -घर में चीन को होली खेलते पाया गया।
                    कुल मिलाकर ऐसा लगा कि भाँग ,दारू ,बेहयाई एवं अश्लीलता के साथ अब होली जवान हो गई है और नई पीढ़ी चाहती है कि यह होली बारहोमासी हो जाय ।बुढ़वा मंगल भी उल्टे जवान होता गया जैसे -जैसे चालाक  मूर्ख बनते गये।होली का दौर समाप्त हुआ तो रेल ,सड़क और जहाज पर रेलम -पेल है क्योंकि अब लोग कार्यक्षेत्र की होली खेलने भाग रहे हैं । सारांशतः सबने पाया कि बीती होली मोटा -मोटी शानदार ,जानदार एवं शांतिपूर्ण रही ।
                    आगे स्वागत है चैत्र का जब जनसैलाब अगले पर्व -पड़ाव अर्थात नवरात्रि की ओर अग्रसर होगा । यही है पारम्परिक तीज -त्योहारों के रूप में उमंगों का झोँका जो भारतीयों को तरोताजा बनाये रखता है । इस पवित्र माह को ,मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जन्मदिन मनाने ,शक्ति के नव रूपों के दर्शन -पूजन करने एवं ग्रीष्म जनित  बीमारियों से बचाव केलिए मां शीतला को पूजने का स्वावसर प्राप्त है । इस माह का अनुभव करना है तो प्रातः किसी मदमाते महुए केपास से निकलें या चैती गुलाब की बगिया से अन्यथा अमरावती ही सही । कहीं न कहीं अपनी सुमधुर ध्वनि से ऋतुराज का स्वागत करती कोयल सुनाई दे जायगी । ऐसी सुखद परम्परा केलिए पूर्वजों को साधुवाद ।
दिनाँक 6 अप्रैल 2013 संवत 2070 -                         Mangal-Veena.Blogspot.com
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