बुधवार, 29 मई 2013

भ्रष्ट्राचार की स्वीकृति

                           उम्मीदवारों में यदि समान गुण एवं योग्यता हों तो उन्हें चुनावी मुद्दा नहीं बनाया जा सकता है ।चुनाव होते ही इसलिए हैं कि तुलना के आधार पर बेहतर नीतियों ,योग्यता ,शुचिता एवं सेवा की संभावनाओं से भरे ब्यक्ति को किसी चुनाव आधारित पद पर बैठाया जा सके । दुर्भाग्यवश हमारे देश में ये सारे मापदंड अर्थहीन होते जा रहे हैं । जुगाड़ या अर्थबल द्वारा जिस राजनैतिक दल से टिकट मिल जाय उस समय उस दल की नीति ही उम्मीदवार की नीतिक आस्था है ; उम्मीदवारी के लिए शैक्षणिक योग्यता या दक्षता नाम की कोई चीज इस देश में है नहीं ; शुचिता गंगा -यमुना की भाँति मैली हो चुकी है और सेवाभाव अब स्वसेवा बन चुकी है ।फिर जनता बेहतर उम्मीदवार का निर्णय कैसे करे जबकि भ्रष्टाचार तो न अछूत रहा न निंदनीय । इसे तो समाज से लगभग स्वीकृति ही मिल गयी है ।
                            मुद्दे समय सापेक्ष होते हैं । यह आवश्यक नहीं है कि जो मुद्दे कलतक समाज केलिए अहम् रहे हों आज भी प्रासंगिक हों । उदाहरण केलिए उपनिवेशवाद के दौर में श्वेत और अश्वेत का मुद्दा इतना प्रबल हुआ करता था कि चुनाव की स्थिति में अन्य मुद्दे गौण हो जाया करते थे । परन्तु आज ऐसा कुछ नहीं है । बराक ओबामा  अमेरिका जैसे देश में वहाँ का राष्ट्रपति पद चुनाव बिना इस मुद्दा के उछले जीते हैं ।भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष से स्वतंत्र होने के कुछ वर्षों बाद तक नेताओं में आचरण की सभ्यता सबसे बड़ी कसौटी थी ।अंग्रेजों के भ्रष्टाचार के विरूद्ध हमारे नेताओं के पास शिष्टाचार ही था कि पूरे भारतवासी उनके पीछे खड़े थे ।   
                             स्वतंत्रता केसाथ हमें नौकरशाही में प्रचलित भ्रष्टाचार एवं अंग्रेजी शिक्षा पद्धति विरासत में मिले । शास्त्री युग केबाद भ्रष्टाचार के आकार -प्रकार एवं विविधता में नए -नए आयाम तेजी से जुड़ने लगे । फिर अंतर्राष्ट्रीय उपभोक्तावादी संस्कृति ने आग में घी का काम किया। फ़लतः समाज के हर क्षेत्र -शिक्षा ,स्वास्थ्य ,न्याय ,अभियंत्रण ,कानून ब्यवस्था ,सरकारी सेवा ,यहाँ तक कि समाज सेवा पर भ्रष्टाचार का चटक रंग चढ़ता चला गया । इस होड़ में भ्रष्टाचार जनित त्वरित एवं आशातीत उपलब्धियों ने नेताओं को सर्वाधिक प्रभावित किया क्योंकि जो नेतागिरी से इतर कुछ करने योग्य न थे वे लाभ की संभावना से ओत -प्रोत दिखने लगे ।आज स्थिति यह है कि नेताओं की सम्पत्ति उद्योगपतिओं से भी तीब्र गति से बढ़ रही है । इनमें से कुछ तो धरती ,आकाश और पाताल तक डकार जाने केबाद भी शालीन ,शिष्ट एवं माननीय हैं ।भ्रष्टाचार से पैसा ,पैसे से साधन सम्पन्नता ,साधन से पद और पद से प्रतिष्ठा सबकुछ राजनीति में सुलभ है । यह पूछना ही निरर्थक है कि पैसे शिष्टाचार से कमाया कि भ्रष्टाचार से । रही बात मतदाताओं की तो उन्हें सब पता है क्योंकि उन्हें और उनके परिवार को भी आये दिन भ्रष्टाचार मद में खर्च या आमदनी का जुगाड़ करना पड़ता है ।हमाम में सब नंगे । तात्पर्य कि सर्व ब्यापकता के कारण अब यह कोई मुद्दा नहीं है ।
                            हाल ही में बीजेपी कर्नाटक एवं हिमांचल में चुनाव हार गयी । जीतने वाली पार्टी ने शोर मचाया कि उसने भ्रष्टाचारी सत्ता दल को उखाड़ फेंका । परन्तु वहाँ की जनता की सोच रही कि जब वहाँ की पूरी सत्ता भ्रष्ट थी तो मुख्य मंत्री मात्र को बलि चढ़ा देने से पूरी की पूरी ब्यवस्था ईमानदार कैसे हो गई । जनता बेईमानी भुगतती रही , लूट देखती रही और सत्ताधारियों की ईमानदार होने की धौंस भी सुनती रही -समय आने पर निर्णय सुना दिया । कुछ ऐसे ही निर्णय की बड़े चुनाव में भी संभावना है । उसमें भी भ्रष्टाचार नहीं बल्कि उससे आगे की बातें मुद्दा बनेंगी ।
                            परन्तु देश हित में है कि भ्रष्टाचार मुद्दा बना रहे । नीतियाँ भी चुनाव की शर्त बनी रहें क्योंकि शिष्टाचार केसाथ नीतियाँ सदैव अर्थ रूप में जुड़ी होती हैं । यदि भारत को बचाना है तो अन्ना हजारे समय की माँग हैं और उन्हें तथा उनकी माँगों को नकारना आत्मछलावा है ।सचमुच यदि भ्रष्टाचार को चुवावी मुद्दा बनाना है तो मतपत्र में "कोई भी पसन्द नहीं "का एक विकल्प दिया जाय । बदलाव की बयार बहने लगेगी ।
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अंततःएक पैराडाक्स --
भ्रष्ट सरकार के एक भ्रष्ट मंत्री ने बयान दिया कि भ्रष्टाचारियों को बक्शा नहीं जाय गा
 और उन्हें कठोर से कठोर सजा दी जायगी ।
29 May2013                                                   Mangal-Veena.Blogspot.com
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बुधवार, 15 मई 2013

A reminiscence-on 1st PunyaTithi+ of Late Dr Kesar

Kesar was nearly three and a half years younger to me.We almost all barefoot students with little clothings were getting our early education in a nearby Basic Primary School at Siristi Varanasi.This door and window free kachcha/pucca school was having four rooms to accomodate students of five classes but was gifted with good open space ,ambience and a pucca well for the reason that ,earlier,it was an Indigo processing cum collection centre during British period.An event of those schooling days is still fresh in my memory.In 1960-61,I was in 5th and Kesar in 2nd standard.Kesar was doing exceptionally well in studies.
Like other years Autumn came with message of seriousness towards our studies.Our extra curriculum activities were to ensure beautiful flower plantaton on boundaries and dividers with regular watering and attractive up-keep of the premises for which groups were formed in rotation.One day evening when students were taking Hindi dictation,our Head Master Late Sri Markandey Maurya noticed that Kesar was absent from the class.When searched he was found watering the plants alone.Teacher called him to attend the class but at that moment Kesar was not having a Deshi pen ready to write.So he rushed to my classroom and asked for a knife and started to sharpen his stick(Sarpat grass)in order to give its edge a nib shape .The knife slipped and made a deep cut on his right thigh with rush of blood.I became badly afraid with the happening and helpless about what to do .Before others could rush to help ,Kesar took my gamchha(thin towel),banded wounds and asked me to drop at home .The class activities were halted and the Head Master arranged a bicycle to take Kesar home.I remember well ,all the students of my village followed that bicycle running all the way.A Hakim from neighbour bazar was called to provide medical aid.In days when Kesar was recovering the H.M.visited my village with me to see Kesar.While chatting with my father and Kesar he asked,"Kesar!when all students were supposed to be in class,why were you busy in watering the plants and flowers?---Munshijee!actually the asignee team  was not honest on that day in watering the plants and I doubted their survival for want of water so I dared ----was his reply.
The wounds healed. Every thing resumed but the cut mark existed on his thighs for ever.So was the nature loving early life of a simple scientist.What to say of memory?
Date.16.5.2013                                                         Mangala Singh and family
Ashok Vihar Varanasi
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N B:+=Death Anniversary
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सोमवार, 13 मई 2013

शहीद की अवधारणा

                          बहुत हो -हल्ला और मीडियाबाजी के बावजूद एक भारतीय नागरिक स्व श्री सरबजीत को न तो सरकार पाकिस्तान की जेल से आजाद करा पाई न जेल में ही घायल किये जाने पर उसे इलाज केलिए जीवित अपने देश ला सकी । अंत में उसका पार्थिव शरीर देश लौटा और देश की माटी में विलीन हुआ । जो कुछ हुआ ,उससे हर भारतीय को बड़ी ही पीड़ा हुई ।जीते जी जो कुछ दिनों केलिए ही सही अपने गाँव व देश न लाया जा सका ;मरने पर अतिसक्रिय केंद्र और राज्य सरकारें श्रद्धासुमन से शुरुआत कर उनके परिवार पर लक्ष्मी की बरसात करते हुए उनके बच्चों को नौकरी देने में दत्तचित्त हो गयीं । यह सब तो ठीक था ।  असामान्य एवं चौकाने वाली बात तो तब हुई जब सरबजीत को बहादुर लाल और शहीद तक घोषित कर दिया गया ।
                          शहीद की बात आई तो शहीदी क्षेत्र के सपूतों की याद आई कि क्या स्व सरबजीत शहीद भगत सिंह ,चन्द्र शेखर आजाद की श्रेणी का आत्मबलिदानी था । कदाचित नहीं । लगता है हमारे देश मेंशहीदनामकसम्मानपरिभाषित है ही नहीं ।सच यह है कि शहीद एक  अवधारणा है जिसका दायरा पूर्णरूपेण अस्पष्ट है या बनाया जा रहा है । शब्दकोष की मानें तो देश और समाज केलिए आत्मबलिदान करने वालों को शहीद कहते हैं ।फिर इसी परिपेक्ष्य में या तो इशारे को समझा जाय या मान लिया जाय कि सरकार केपास शहीद घोषित करने केलिए न मानक योग्यता शर्तें हैं न इस सम्मान केलिए कार्य क्षेत्र परिभाषित हैं । तभी तो जिसे मन में आया शहीद कह दिया।ऐसे सम्मानसूचक विशेषण और भी हैं जो मात्र अवधारणा रूप में रह गए हैं जैसे महात्मा ,बापू ,नेताजी ,महामना,लौहपुरुष ,लोकनायक इत्यादि जिन्हें आजकल चाटुकारिता केलिए प्रयोग में लाया जाता है। देश में खिलाड़ियों ,साहित्यकारों ,संगीतकारों ,फिल्मकारों इत्यादि केलिए उनके क्षेत्र से जुड़े परिभाषित सम्मान हैं जो मानकों के आधार पर उनके विशेष योगदान केलिए उन्हें दिए जाते हैं परन्तु जिन नायकों के त्याग और बलिदान से हम हैं ,हमारा राष्ट्र है और हमारे राष्ट्र का गौरव है ;उनके साथ लगे सम्मानसूचक शब्द मात्र अवधारणा हैं या यूँ कहें कि अब्यक्त ,अपरिभाषित एवम अनारक्षित हैं ।
                         किसी देश की कोई भी सरकार एक ब्यक्त ब्यवस्था होती है फिर वह अवधारणा पर कैसे काम कर सकती है । सरकार का प्रथम कर्तब्य है कि वह विशेष सम्मानसूचक शब्दों को जाने ,उनका दुरुपयोग रोके और आवश्यकता पड़ने पर उनकी पेटेंटिंग कराए । सरकार से अब यह तत्काल अपेक्षा है कि वह शहीद शब्द  की भी लिखित ब्याख्या दे और स्पष्ट करे कि शहीद किसको कहा जायगा । फिर उसके प्रति क्या सम्मान एवं जिम्मेदारियाँ होंगी । हमारे अतीत के राष्ट्र नायकों एवं शहीदों की श्रेणी में किसी की घोषणा से पूर्व सरकार को चाहिए कि सारे मानकों पर हर केस का गहन परीक्षण करे अन्यथा सच्चे सपूतों के साथ हमलोग कृतघ्नता के दोषी होंगे ।
                         मानकों पर खरा उतरने की बात ही क्या हो जब हम भारतीयों का एक बड़ा वर्ग अभी भी नहीं जान पाया है कि यह सरबजीत वस्तुतः कौन था ,वह क्या करता था और कैसे पाकिस्तान पहुँच गया !या तो वह स्वयं सीमा लाँघ कर पाकिस्तान पहुँचा होगा या सीमा लंघा कर उसे पाकिस्तान पहुँचाया या खींच लिया गया होगा । इन तीनों स्थितियों में किसी न किसी का कोई मन्तब्य रहा होगा ।पाकिस्तान कहता रहा है कि वह दहशतगर्द था जो पाकिस्तान में  दहशत फ़ैलाने आया था । हमलोग सुनते हैं कि वह भूलवश सीमा लाँघ गया था । सब मिलाकर ऐसा लगता है कि सीमा लाँघने और लंघाने का काम बार्डर पर होता रहता है । फिर तो पाकिस्तान की जेलों में ऐसे बहुत सारे सरबजीत होंगे । मन नहीं मानता ,कहीं आंधी -तूफान और चक्रवाती हवाएँ इन सीमावर्ती वासिन्दों को सीमापार फेंक तो नहीं देती हैं ;फिर दोनों ही सरकारें सारे काम -काज छोड़ ऐसे बदनसीबों के पीछे पिल पड़ती हैं ताकि अन्य बातों से जनता का ध्यान हटाया जा सके । अब सरबजीत मामले में सबकुछ ख़त्म होने के बाद सरकार को उनकी एक रीयल स्टोरी जारी कर देनी चाहिए ताकि शंका निर्मूल होसके और शहीद की अवधारणा प्रश्न चिन्हित न हो ।
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अंततः
अर्जुन ने अपना विचार व्यक्त किया
                          चंचलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बल्वददृढं ।
                          तस्याहं  निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करं ।६ /३ ४
श्री भगवान ने समाधान बताया --
                          असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलं ।
                          अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते । ६ /३ ५
(मनकी चंचलता निरंतर अभ्यास एवं वैराग्य से ही मिटाई जा सकती है)
13 May 2013                                                         Mangal-Veena.Blogspot.com
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