सोमवार, 24 जून 2013

दशा बदलती है

                              श्री लाल कृष्ण आडवानी ने बीजेपी के इतिहास पुरुषों के साथ मिलकर विचारधारा का जो बाग लगाया ,सींचा ,पल्लवित एवं पुष्पित किया ;वह कुछ वर्षों से क्रमशः मुरझाया है ।परन्तु प्रसन्न करने वाली बात यह है कि इस दल में एक ऐसा ऊर्जावान माली आगे आया है जिससे बाग के लहलहाने एवं फलित होने की संभावना ही  नहीं बढ़ी है अपितु पूरे देश की खुशहाली एवं विकास की उम्मीद जगी है । अतः आडवानी जी को अब अपना पूरा अनुभव एवं सामर्थ्य इस परिणाम के लिए झोंक देना चाहिए । आडवानी सत्तापक्ष में नहीं हैं अतः वे भीष्म पितामह नहीं हो सकते । हाँ वे कर्मयोगी हैं और उन्हें वैसा ही बना रहना चाहिए । उनके योगदान को न बीजेपी भुला सकती है न देश; परन्तु सबका अपना समय होता है ।
                             पूर्वांचल में एक प्रचलित कहावत है -दस बरस में दशा बदलती ,पाँच कोस पर बोली । भले ही पुरनियों ने दशा को अपने परिवार ,उसकी आर्थिक स्थिति एवं समाज के संदर्भ में लिया होगा परन्तु आज भी यदि देश में हो रही राजनीति को इस दस वर्ष की कसौटी पर परखा जाय तो कहावत की सटीक पुष्टि होती है । बीजेपी नीत राजग को केंद्र की सत्ता से बाहर हुए और काँग्रेस नीत संप्रग को सत्ता पर बैठे हुए दस वर्ष पूरे होने वाले हैं । इस बीच काँग्रेस ने देश को भ्रष्टतम एवं अक्षम शासन ब्यवस्था देने का अपने ऊपर अमिट कलंक लगा लिया ,वहीँ बीजेपी केन्द्र की सत्ता बेदखली से अबतक हिमाँचल प्रदेश ,राजस्थान ,झारखंड ,उत्तराखंड और कर्नाटक से अपना पत्ता साफ कराते हुए बिहार से भी निर्वासित हो चुकी है ।परिवारवादी काँग्रेस में जहाँ राहुल को सर्वाधिक शक्तिशाली उत्तराधिकारी बनाया जा चुका है वहीँ आम लोग ,बीजेपी के जमीनी कार्यकर्ता एवं देश के युवा बीजेपी के नरेन्द्र मोदी  को अगला प्रधान मंत्री बनते देखना चाहते हैं ।इस दशा परिवर्तन ने बीजेपी के लिए एक अभूतपूर्व उत्साहजनक स्थिति उपलब्ध करा दी है । फलतः जनाकांछा के चलते मोदी नायक रूपमें बीजेपी के रंगमंच पर उभर रहे हैं और आडवानी नेपथ्य के पीछे जाने का संकेत पा रहे हैं । आडवानी आज भी एक आदरणीय नेता हैं किन्तु देश को चीन से प्रतिस्पर्धा करने वाला  गुजरात माडल विकास चाहिए जिसकी संभावना केवल मोदी में है ।
                            आगामी चुनाव में मतदाताओं को दो खुले विकल्प मिलने वाले हैं । पहला कि युवराज की ताजपोशी कर दी जाय  दूसरा कि विकास की राह पर बढ़ चलें । सारे भ्रष्टाचार एवं बुराइयों के बावजूद ताजपोशी रोकना एक कठिन कार्य है क्योंकि प्रदेशीय एवं अन्य परिवारवादी दल आपना हित साधने केलिए धर्मनिर्पेक्षता की माला जपते फिर वहीं शरणागत हो जांयगे । अतः ऐसे दलों पर जनता एवं बीजेपी के रणनीतिकारों को पैनी नजर रखनी होगी ।उलट दशा में यदि मतदाताओं में दूसरे विकल्प की लहर उठी तो विभिन्न प्रदेशों के छत्रप धर्मनिर्पेक्षता की परिभाषा बदलते इधर -उधर भागते मिलेंगे और उसी समय आडवानी एवँ बीजेपी के अन्य नेताओं के मार्गदर्शन एवं कूटनीतिक भूमिका की सर्वाधिक अपेक्षा होगी । अबतक हुए सारे सर्वेक्षण मोदी के पक्ष में ऐसी लहर बनने का संकेत दे रहे हैं । यहाँ तक कि चौराहों और गलियों की चाय -चर्चा में भी मोदी सर्वोपरि चल रहे हैं कारण कि वे पूरे भारत में गुजरात की तरह विकास और खुशहाली चाहते हैं ।इन्टरनेट ,फेसबुक ,ट्वीटर पर  तो वे सर्वाधिक लोकप्रिय हैं ही ।
                          इस मंथन में धर्मनिर्पेक्षता एक बड़ा प्रसंग है । सभी अनुभव करते हैं कि भारत में यह शब्द विभिन्न वर्ग के मतदाताओं को भ्रमित करने वाला शोर -मचाऊ हथियार बन चुका है जबकि सारे राजनैतिक दलों की शासन संस्कृति एक है । किसी भी पार्टी के शासन को परखा जाय तो दिखता यही है कि कुछ पेंच जो पूर्ववर्ती ने कसे थे ,उसे ढीला कर दिया गया और अन्य पेंच जो ढीले किये गए थे ,उन्हें कस दिया गया । जनता का धन या तो एक विश्वासपात्र मतदाता वर्ग पर खर्च कर दिया जाता है या अब्यवस्थित लूट खसोट हो जाती है -बस । इसमें भला धर्मनिरपेक्षता की क्या भूमिका हो सकती है ?परन्तु दुर्भाग्य से ऐसा है नहीं । सत्ता हथियाने या गँवाने में इसकी अहं भूमिका होती है । इसी छद्म हथियार ने आडवानी को पार्टी में हाशिया पर लाया और मोदी को केंद्र में । जैसे -जैसे वे पार्टी के बाहर ज्यादा धर्मनिर्पेक्ष और उदारवादी बनने का उपक्रम करते गए ,पार्टी की विचारधारा से अलग पड़ते गए और नरेन्द्र मोदी विचारधारा पर अटल रहकर चहेते बनते गए । मोदी उदय एवं आडवानी ढलान का यह भी एक बड़ा कारण रहा है ।
                         रही बात भारतीय जनता पार्टी की तो जदयू से गठबंधन टूटने के बाद उसे कुछ और खोना शेष नहीं है । आगे जदयू केलिए सबकुछ खोने की बारी होगी और बीजेपी केलिए पाने की । कुछ राज्यों में होने वाले चुनाव इसका संकेत देंगे और लोकसभा चुनाव के परिणाम इसपर मुहर लगा सकते हैं । चुनाव  से पूर्व बीजेपी को यह सोचना ही नहीं चाहिए कि उनके साथ गठबंधन में और कौन से दल जुड़ें गे । क्या पूर्व में अटल जी के नेतृत्व में बीजेपी गठबंधन बना कर चुनाव लड़ी थी ?पार्टी को जनाकांछा एवं युवाओं की सोच के अनुसार मोदी में अटल विश्वास रख चुनाव की दुन्दुभी बजानी होगी । एकता ,अच्छे प्रत्याशियों का चयन ,युद्ध स्तर का जनसंपर्क और काँग्रेस की सत्य कथाएँ आगामी लोकसभा चुनाव में वांछित बदलाव की नींव भरें गी बशर्ते पूरी पार्टी भीतर -बाहर ,अर्श से फर्श तक मन .कर्म और वाणी से एक रहे और वैसा ही दिखे । यह कौतुहल भरी प्रतीक्षा होगी कि तेज़ी से बदलती परिस्थितियाँ एवं देश के युवाओं की चाहत क्या मोदी को आगामी चुनाव के माध्यम से भारत का अगला प्रधान मंत्री बना पाती हैं । देश निर्णायक मोड़ पर है कि कौन सी सोच भारत को आगे बढ़ाती है ।
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अंततः
Think over it :--
Love and hatred are the two opposite poles of an axis of relation.
One can"t ride both ends at the same time.
24.06.2013                                      Mangal-Veena.Blogspot.com
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