शुक्रवार, 26 दिसंबर 2014

भारतीयता के दरकते कगार

************भारत के इतिहास में सन दो हजार चौदह कुछ विशेष उपलब्धियों के लिए सदैव अविस्मरणीय रहे गा। इस वर्ष अंतरिक्ष क्षेत्र में छलाँग लगाते हुए मंगल ग्रह पर पहुँच भारत ने विश्व में अपना डंका बजाया। वंशवाद ,जातिवाद एवँ क्षेत्रवाद की तिकड़ी तोड़ते हुए एक बहुमत वाली सरकार के नेतृत्व में हमारा लोकतंत्र विकास की ओर अग्रसर हुआ। धर्मनिरपेक्षता की छद्म व्याख्या ध्वस्त हुई। भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस के लिए देश की जनता ने यह देश हुआ बेगाना की धुन सुनाई।  अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उभरते भारत के सशक्त प्रतिनिधित्व के लिए प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी को देश ही नहीं पूरे विश्व में अपार लोकप्रियता मिली।श्री मोदी के पहल पर ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने विश्व में प्रति वर्ष योग -दिवस मनाने का निर्णय लिया।देश की झोली में शान्ति के लिए एक नोबेल पुरस्कार आया तो देश के योग्यतम पूर्व प्रधानमन्त्रियों में अग्रणी श्री बाजपेई एवँ स्वनामधन्य स्व महामना मालवीय को भारतरत्न से अलंकृत किया गया।इतना ही नहीं भारतीय संस्कृति की झोली में कोच्चि की सडकों से किस ऑफ़ लव का खुला प्रदर्शन भी आया।अधिकतर उपलब्धियों से भारत खुश हुआ.. .  परन्तु इस किस ऑफ़ लव ने विवाद ही नहीं खड़ा किया बल्कि समाज को असहज करते हुए भारतीय संस्कृति के एक कगार को ढहा दिया।
************जब कोच्चि में युवाओं ने विरोध या प्रदर्शन का यह अभिनव प्रयोग किया तो समझ में नहीं आया कि हमारी संस्कृति विकासोन्मुखी फ़ैलाव ले रही है अथवा बाहरी संस्कृतियों के दबाव से संक्रमित होती जा रही है। घटना हुई तो पुलिस उनपर कार्यवाही करती दिखी। वहाँ के उच्च न्यायलय को उसमें हस्तक्षेप करने जैसा कुछ नहीं दिखाई दिया। मीडिया ने पुलिस के मॉरल पुलिसिंग के अधिकार पर बहस करा दिया। भारतीय संस्कृति के परम्परावादियों ने इसे संस्कृति को नष्ट करने  वाला कुत्सित प्रयास माना जबकि आयोजन करने वाले एवँ उन जैसे युवा स्वतन्त्र सोच वाले लोगों ने इसे अपना अधिकार बताया।बताएं भी क्यों न। हमारी संस्कृति को इस पड़ाव तक लाने में सिनेमा ,टीवी एवँ आधुनिक सञ्चार जगत के साथ -साथ इन लोगों ने पचासों वर्षों से भगीरथ प्रयास किया है।इनके योगदान द्वारा ही हम लोग पूर्ण भारतीय परिधान से न्यूनतम परिधान ,एकान्तिक प्यार व्यवस्था से कहीं भी प्यार व्यवहार,दूत सन्देशन से फेस बुक ,एसएमएस इत्यादि सन्देशन ,वात्सल्य चुम्बन से उन्मुक्त श्रृंगारिक चुम्बन ही नहीं अपितु स्वच्छ और शालीन मनोरंजन विधाओं से आगे बढ़ अभद्र एवँ हिंसा फ़ैलाने वाले चलचित्रों व धारावाहिकों  तक पहुँचे हैं।यह उन्हीं की कर्षण शक्ति है जो युवतियों को पबों तक ले जाती है या किसी मेरठ के पार्क में अपने प्रेमी के साथ युगल जोडी बन बैठाती है। फिर सांस्कृतिक विकर्षण से प्रेरित हो श्री राम सेना वाले पब पर टूट पड़ते हैं या पुलिस वाले ऑपरेशन मजनू चला प्रेमी युगलों को पीट देते हैं। संभावना है कि भविष्य में पूर्ण नग्न प्रदर्शन सशक्त विरोध का माध्यम बने और अवरोधक शक्तियाँ व्यवस्था ,तर्क ,निर्णय और समर्थन के समक्ष घुटनें टेक दें। परन्तु इसे कोई नकार नहीं सकता की पार्श्व प्रभाव भारतीय समाज केलिए बहुत ही पीड़ादायी होगा।
************आगे बढ़ती सभ्यता के साथ सांस्कृतिक बदलाव एवँ परिष्करण अवश्यमेव होते रहते हैं। आबाल बृद्ध पूरे  समाज के लिए सहजता के कारण ये बदलाव आत्मसात भी हुए हैं जिससे हमारी अद्भुत संस्कृति अविरल विस्तार पा रही है।चूँकि भूमण्डलीकरण के इस दौर में विश्व की सभी संस्कृतियाँ एक दूसरी से प्रभावित हो रहीं हैं,हर भारतीय का यह कर्तव्य है कि वह अपनी संस्कृति की मूल आत्मा एवँ विशिष्ठता को अछुण्ण रखते हुए इसे और सुन्दर व सरस बनायें। किसी भी नए प्रयोग या कृत्य से यदि समाज असहज हो तो निश्चय ही हम अपने प्रयोग पर पुनर्विचार करें कि अपनी संस्कृति को कहीं उथला तो नहीं कर रहे हैं। जौहर प्रथा ,बाल विवाह ,बहु विवाह ,स्पृश्यता ,पशु बलि इत्यादि  ऐसी  प्रथाएँ थीं जिन्हें हमारी संस्कृति ने असहजता के कारण अतीत में बाहर का रास्ता दिखाया और अपनी समृद्धि बढ़ाई।आज को देखें तो कल तक श्रद्धा और स्नेह से अभिसिंचित रही चरण स्पर्श की आदर्श प्रथा आज चाटुकारिता एवँ स्वार्थपूर्ति की एक विधा बन कर हमें असहज कर रही है। जब कोई पुलिस अधिकारी सैफई महोत्सव में मुलायम परिवार के किसी सदस्य के चरण के पास झुक बैठता है ,कोई पुलिस कर्मी किसी डीआईजी के चरण पकड़ उसके जूते का फीता बाँध रहा होता है या कोई प्रशासनिक अधिकारी किसी मन्त्री का चरण पकड़ते दिखता है तो हम भारतीय असहज हो जाते हैं। अतःपरिष्करण के क्रम में अपनी ही संस्कृति से उपजी इस अपसंस्कृति को समाप्त करने का समय हो चुका है।
************हो सकता है कि नए प्रयोग करने वालों को शंका हो कि उनके कृत्य में गलत क्या है। हमारे धार्मिक ग्रन्थ गीता में जब करने योग्य कर्म और न करने योग्य कर्म के विषय में अर्जुन को संशय हुआ तो कृष्ण ने निर्णय के लिए शास्त्र को प्रमाण मनाने की बात कही।  यथा -
------[तस्माच्छास्त्रं प्रमाणं ते कार्यकार्यव्यवस्थितौ। ज्ञात्वा शास्त्रविधानोक्तम् कर्म कर्तुमिहार्हसि।]
अतः हर भारतीय संस्कृति धर्मी, प्रश्न चिन्हित कार्य में शास्त्रों को प्रमाण मानते हुए, विकास एवं नए प्रयोगों की ऊँचाइयाँ छुए जिससे सहज रहते हुए समाज अग्रगामी हो सके। समय रहते आत्ममंथन करने से ज्यादा सुसंस्कृत एवँ विकासोन्मुखी नई पीढ़ी सामने आएगी। कल का दायित्व आज पर है।दूसरों की सहजता को दृष्टिगत रखते हुए यदि प्रदर्शन करने वाले ,फिल्मबनाने वाले ,धारावाहिक गढ़ने वाले ,व्यवस्था सुनिश्चित करने वाले ,मीडिया के लोग ,साहित्यकार ,संगीतकार ,वैज्ञानिक ,कलाकार व अन्य सभी वर्गों के लोग नए -नए अनछुए विकासोन्मुखी कार्य समाजहित मे करेंगे तो दो हजार चौदह की भाँति हर नया वर्ष अभूतपूर्व उपलब्धियों से भारत को गौरवान्वित करता रहे गा। रग -रग में भारतीयता दौड़े गी तब हर भारतीय के आभामण्डल से विश्व चमत्कृत होगा ही ।  इति।
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अंततः
ब्लॉग के सभी सुधी पाठकों ,टिप्पणीकारों ,जागरण जंक्शन परिवार के साथियों और अपने शुभेक्षुओं को देहरी तक आ पहुँचे नव वर्ष के लिए मैं शुभ कामनाएँ प्रेषित करता हूँ। वर्ष दो हजार पन्द्रह के भाग्य विधाता से याचना करता हूँ कि वे आप सबको स्वास्थ्य ,समृद्धि ,सहजता एवँ सरसता से ओतप्रोत रखें और पंद्रह चौदह से बेहतर हो। सहकारिता के लिए अपने परिवार को भी कृत्यज्ञता ज्ञापित करता हूँ तथा नववर्ष में उनके साथ और जुड़ाव एवँ सहभागिता का संकल्प लेता हूँ।शुभमस्तु।    ... मंगला सिंह
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वाराणसी दिनाँक 27 . 12 . 2014                               mangal-veena.blogspot@gmail.com
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सोमवार, 15 दिसंबर 2014

ये माफ़ी-वाफी क्या है

************इन दिनों माफ़ी की माँग करने वालों ने देश एवं संसद को सर पर उठा रखा है। विशेषकर माननीयों के ऐसे अमाननीय आचरण पर नागरिक स्तब्ध हैं।प्रतिनिधियों की ऊर्जा रचनात्मक कार्यों से इतर संकीर्ण प्रयोजनों में बर्बाद हो रही है और शालीनता तार -तार ---। धन्य हैं हमारे जनप्रतिनिधि कि लोकसभा की अध्यक्ष महोदया को उनसे पूछना पड़ा कि क्या क्षमा माँगने केलिए नियमित रूप से संसद में एक समय निर्धारित कर दिया जाय। हंगामा करनेवालों को पता है कि वे गांधी की विचारधारा को सर्वाधिक हानि पहुँचा रहे हैं फिर भी अपने  कृत्य केलिए उन्हीं की दुहाई भी। महात्मा की विचारधारा तो यह सिखाती है कि विवादस्पद वक्तव्य देने वाले से पुनर्विचार का आग्रह तो किया जा सकता है परन्तु हठ या बल प्रयोग से उसकी विचारधारा को जीता नहीं  जा सकता।
************किसी व्यक्ति का स्टेटमेंट ,वक्तव्य ,बयान या उद्गार उसके विचार या चिंतन की  धारा का सारांश होता है। जब अनचाही गलती या भूल होती है तो व्यक्ति स्वतः संज्ञान लेता है और अपराधबोध से मुक्ति के लिए माफ़ी माँग लेता है परन्तु जब किसी के वक्तव्य का विपरीत विचारधारा वाले संज्ञान लेते हैं और क्षमा याचना का दबाव बनाते हैं तब वे भूल जाते हैं कि येन केन प्रकारेण क्षमा मँगवाना किसी की विचारधारा को दबाने का बलात प्रयास है। माफ़ी मँगवाने से अहम की संतुष्टि हो सकती है परन्तु माफ़ी माँगनेवाले के ह्रदय परिवर्तन की कोई गारण्टी नहीं।प्रयोग के तौर पर जिन लोगों ने क्षमा याचना किया है ,उनका झूठ पकड़ यंत्र से जाँच करा कर देखा जा सकता है कि उनका ह्रदय परिवर्तन हुआ क्या। गौतम बुद्ध ने अंगुलिमाल से उसकी विचारधारा पर पुनर्विचार का ही मात्र आग्रह किया था परन्तु परिणाम ऐसा कि लोगों के सामने वह दुर्दांत डाकू एक सद्पुरुष के रूप में सामने आया।गांधी जी के सत्य एवँ अहिंसा का यही आग्रह पूरी दूनियाँ में पूजा जाता है।देश की दशा एवँ दिशा में धनात्मक बढ़त एवँ सद्भावना के लिए विपरीत बयानोँ का आग्रहपूर्वक पुरजोर विरोध होना चाहिए। ऐसे विरोध का स्वागत भी होना चाहिए परन्तु विरोध केलिए विरोध अभिब्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुठाराघात  है।
************गांधीवाद भारत की एक परमपूज्य विचारधारा है जिसने भारत को स्वतंत्रता ही नहीं दिलाई ;पूरी दुनियाँ को एक नई दार्शनिक सोच दी जिसके समक्ष आधुनिक सभ्यता भी नतमस्तक है। परन्तु भारत के शत प्रतिशत लोग गाँधीवादी ही हों-ऐसा न तो गांधी के समय था ,न आज है न कल होगा। हर भारतीय की गांधी में श्रद्धा निर्विवाद रूप से होनी चाहिए परन्तु विश्वास की अनिवार्यता कदापि नहीं। सन 1944 में जिन लोगों ने सेवा ग्राम पहुँच कर जिन्ना से गाँधी के प्रस्तावित बैठक का उनके सामने विरोध किया था ,वे लोग भी महात्मा में श्रद्धा रखते हुए अन्य सोच के साथ देश के लिए चिंता कर रहे थे।महात्मा गाँधी की हत्या की याद आते ही नाथूराम के लिए मन घृणा से भर जाता है  परन्तु उसपर चर्चा या विमर्श को नकारना क्यों ?किसी न किसी विचारधारा से वह भी प्रेरित एवँ उद्द्वेलित रहा होगा। 30 जनवरी 1948 से पहले के नाथूराम के व्यक्तित्व एवँ कृतित्व के मूल्यांकन की चर्चा प्रासंगिक तो हो ही सकती है।तात्पर्य यह कि नाथूराम के नाम पर उत्तेजित हो उठना किसी उत्कृष्ठता का परिचय नहीं  देता।हमारी संस्कृति तो इतनी शालीन है कि हम रावण व कंस को भी गुनते हैं।
***********मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की अयोध्या में उनकी  जन्मस्थली पर मंदिर निर्माण भी एक ऐसा विषय है जिसकी पक्षधर विचारधारा पर किसी का वक्तव्य आते ही पहाड़ टूट पड़ता है।यह जानते हुए भी कि सिक्ख ,इस्लाम , ईसाई ,बौद्ध इत्यादि सभी धर्मों से अति प्राचीन धर्म हिंदुत्व है और उसमें भी श्री राम प्रथम पूज्य अवतार हैं ;यदि कोई कह दे कि हम सभी राम के वंशज हैं तो समझिए कि उसने कोई गंभीर अपराध कर दिया।प्रभु के जन्मस्थान पर भव्य मन्दिर बनाने की बात कर दी तो उससे भी बड़ा अपराध।  न्यायालय से जल्दी निर्णय की अपेक्षा कर दे तो न्यायिक प्रक्रिया का बाधक बने और उससे आगे कोई आग्रह हो तो वैमनष्यता का वाहक।संभवतः वोट की राजनीति के कारण विरोध उगलने वाले झुठलाना चाहते हैं कि धर्म के सन्दर्भ में विभिन्न धर्मावलम्बी लोग श्री राम को मानें या न मानें परन्तु हर धर्म के अनुयाई और सारे देशवासी उनमें तथा उनमें स्थापित आदर्शों में अपार श्रद्धा तो रखते ही हैं। यह जानते हुए कि सद्भावना भारतीय जनमानस की आत्मा है; कुछ राजनीति एवँ धर्म के ठेकेदार भृगु ऋषि की भाँति उसकी छाती पर पांव मार रहे हैं और जनाकांछा वाली समस्या के समाधान की बात करने वालों को घसीट रहे हैं। जनता इन्हें पाठ पढ़ाई है और यदि समझ में नहीं आ रहा है तो और स्पष्ट पढ़ाएगी।
************भारतीय संविधान के प्रति शपथबद्ध हर नागरिक को अभिब्यक्ति की स्वतंत्रता है। अभिब्यक्ति यदि शालीनता से विभूषित हो तो सोने में सुगंध।समाज के हित में मन ,वाणी तथा शरीर से चिंतनशील लोगों को दुराग्रह रहित होकर शालीनता से अपना वक्तब्य देते रहना चाहिए।इससे समाज अग्रगामी होता है। विरोध भी तभी गरिमामयी होगा जब वह आग्रह का अनुगामी होगा।जनता तो सब समझती है। ये देश चलानेवाले और देश  चलाने केलिए छटपटानेवाले माननीय लोग क्यों नहीं समझ पा रहे हैं। अरे भाई !ये माफ़ी -वाफी क्या  है।
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************चिन्तन श्रोत :साध्वी निरंजन ज्योति सांसद फतेहपुर ,स्वामी साक्षी महराज सांसद उन्नाव ,योगी आदित्य नाथ सांसद गोरखपुर एवँ माननीय श्री राम नाइक राज्यपाल उत्तर प्रदेश के हाल के वक्तव्य और संसद तथा उसके बाहर विरोधी दल के माननीय सांसदों एवँ नेताओँ द्वारा मचाया गया शोर -शराबा।
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अंततः
************"महाजनों येन गतः स पन्थाः" का तात्पर्य यह भी है कि जिसके चलने से पथ
************ या रास्ते का निर्माण न हो वह महाजन या बड़ा आदमी नहीं हो सकता।।।।।।
दिनाँक 14 . 12 . 2014                                 mangal-veena.blogspot.com@gmail.com
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बुधवार, 1 अक्तूबर 2014

बुहारी के दिन बहुरे

**********किसके सितारे कब चमक जाँय ;यह तो प्रभु जानें या ज्योतिषी जोड़ें ,घटायें। पर यह ध्रुव की भाँति अटल है कि कभीं न कभीं सबके अच्छे दिन आते हैं।कुछ ऐसा ही बुहारी ,बढ़नी ,झाड़ू या कूँचे के साथ हो रहा  है। जो झाड़ू कभी भँगी ,भिस्ती ,मेहतर या झाड़ूबरदार के हाथ रहकर उनको रोटी की आश जगाए रखता था ,वह आज सार्वजनिक स्थानों पर बड़े -बड़े नेताओं ,नौकरशाहों ,उद्योगपतिओं ,समाजसेविओं के हाथ सुशोभित हो रहा है। लोगों को ईर्ष्या होने लगी है कि दिन बहुरे तो झाड़ू की भाँति। यह नंगा फटेहाल देशी झाड़ू अब ब्रांडिंग एवँ पैकेजिंग के साथ शालीन हो चुका है। साथ ही इस कारोवार से जुड़े दस्तकार ,निर्माता ,विक्रेता सभी मस्त हैं। हों भी क्यों न। अब यह भारी खपत और अच्छे मुनाफे का धँधा बन चुका है। कवि रहीम ने ठीक कहा था कि चुपचाप समय का उलट - फेर देखो।जब अच्छे दिन आयगें तो बनते देर नहीं लगेगी। सो हर घर ,गली ,गाँव ,मुहल्ला ,सड़क ,रेल ,दफ्तर,स्कूल  ,अस्पताल ,अत्र-तत्र ,सर्वत्र पूरे भारत में यदि कोई चीज चलन और चर्चा में है तो वह झाड़ू और स्वच्छता ही है।आशा करनी चाहिए कि समग्र स्वच्छता के ईमानदार क्रियान्वयन की निरन्तरता से विश्व में भारत की छवि स्वच्छ भारत के रूप में अवतरित होगी।
**********झाड़ू की सफलता बीते तीन -चार वर्षों के घटनाक्रमों की वर्तमान अभियान में परिणति है।त्वरित सिंघावलोकन करें तो इसका श्रीगणेश अन्ना हजारे की भ्रष्टाचार पर झाड़ू चलाने वाले आन्दोलन के साथ हुआ।अन्ना द्वारा जन लोकपल विधेयक के लिए चलाया गया आन्दोलन वास्तव में स्वतंत्रता के बाद का पहला सामाजिक पुनर्जागरण शँखनाद था जिसने भ्रष्टाचार एवँ सड़ी गली ब्यवस्था के विरोध में  पूरे देश के अंतर्मन को झकझोरा। जनता शनैः शनैः राष्ट्रहित, जनहित एवँ  स्वच्छ सामाजिक ब्यवस्था को जनतांत्रिक तरीकों से आगे बढ़ाने लगी। आन्दोलन में अग्रणी रहे अरबिंद केजरीवाल तथा उनके साथी अवसर का लाभ उठाते हुए एक राजनितिक दल बना लिए और झाड़ू लेकर चल पड़े- राजनितिक एवँ भ्रष्टाचारीय गन्दगी साफ करने। लोगों ने उन्हें सिर आँखों पर बैठाया और झाड़ू लेकर चलने वालों की बाढ़ आ गई।अभिनव प्रयोग में इन्हें दिल्ली राज्य की सत्ता भी मिल गई।परन्तु जल्दी ही जनता समझ गई कि ये भी भ्रष्ट सत्तेबाजों की भाँति सत्ता लोलुप हैं और इनकी महत्वाकांछा भी पूरे देश की सत्ता हथियाने की है नकि अन्ना के संकल्प को सफल करने की।इस प्रकार इनकी सत्ता और संभावना दोनों समाप्त हो गईं। परन्तु जनता ने झाड़ू चलाना तय कर लिया था और उन्हें राष्ट्र स्तर पर नरेंद्र मोदी में सबसे विश्वसनीय  एवँ योग्य झाड़ू चलाने वाला विकल्प दिखने लगा था। अतः ऐतिहासिक सूझ -बूझ का परिचय देते हुए भारी बहुमत ने अपने सपनों का झाड़ू प्रधान सेवक श्री मोदी को पकड़ा दिया। आशा के अनुरूप मोदी जी अनेकानेक क्षेत्रों में पूरी क्षमता से झाड़ू चलाने लगे हैं और झाड़ू का इक़बाल बुलंद हो रहा है। आज कार्यपालिका ,न्यायपालिका ,विधायिका और संचार माध्यम सभी स्वच्छता के प्रति अभूतपूर्व गम्भीर हो गए हैंऔर स्वच्छ भारत मिशन की गाड़ी तेज गति से दौड़ने जा रही है।
**********इस बुहारी के अनेक पर्याय ही नहीं अपितु विस्तार देने वाली ढेर सारी सहायक क्रियाएँ भी हैं यथा पोंछा लगाना ,धूल  झाड़ना ,धुआँ उड़ाना ,प्रकाश करना ,फिनायल ब्लीचिंग या क्लोरिनेट करना ,ऑक्सीजन उत्सर्जन के लिए अधिकाधिक पेंड़ -पौधे लगाना,रासायनिक कचरे का प्रबंधन करना ,कूड़े  का निरंतर अंतिम निस्तारण करना इत्यादि इत्यादि। इन सबसे बड़ी सहायक क्रिया है-- गन्दगी या तो की ही न जाय या न्यूनतम की जाय और कूड़े का निस्तारण बुहारी करने से उसके अस्तित्व मिटाने तक की जाय।इन सभी क्रियाओं को समाहित करते हुए स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत भारत सरकार का एक उत्कृष्ट कदम है। इसकी सफलता के लिए देश के हर नागरिक की सहभागिता अपेक्षित है। यह सहयोग हमें असहज भी नहीं लगाना चाहिए क्योंकि हिन्दुस्तानी संस्कृति ही स्वच्छता की नींव पर खड़ी हुई है। परंपरागत तौर पर हमलोगों की अपनी, अपने घरों एवँ द्वार- दरवाजों की स्वच्छता बेमिशाल होती है यहाँ तक कि हमारी एक पूज्य देवी के हाथ सदैव झाड़ू शोभायमान रहता है।परन्तु उस परिधि से बाहर हमें सार्वजानिक स्थलों जैसे सरकारी चिकित्सालय ,विद्यालय ,कार्यालय ,रेलवे स्टेशन ,बस पड़ाव,गली , सड़क, नदी,बाजार इत्यादि में गन्दगी करने ,देखने और सहने की आदत सी बन गई है। एक प्रचलित कथन है कि जिससे छुटकारा मिलना सम्भव न हो उसके साथ रहना सीख लो।इस सोच से बहार  निकलने और स्वच्छ भारत निर्माण का समय आ गया है क्यों कि झाड़ू के सितारे आसमान छू रहे हैं।
**********महात्मा गाँधी अपने जीवन में स्वतंत्रता से अधिक स्वच्छता को महत्व देते थे। स्वच्छता जीवन पर्यन्त उनकी चर्या में समाहित थी। इसकी छाप आज भी साबरमती या सेवाग्राम आश्रम में द्रष्टब्य है। महात्मा जी की अगुआई में हुई जनजागृति ने हमें स्वतंत्र भारत दिया परन्तु स्वच्छ भारत का स्वप्न वर्षों से स्वप्न बना रहा। अब दूसरी जन जाग्रति ने वर्तमान सरकार की अगुआई में  हमें स्वच्छ भारत देने की ठान ली है। अतः अपनी -अपनी भूमिका निभाते हुए स्वच्छ भारत अभ्युदय का उत्सव मनाना चाहिए। स्वतंत्र भारत का स्वच्छ भारत होना महात्मा की पुनीत जयन्ती पर उन्हें सर्वाधिक प्रिय श्रद्धांजलि होगी। यह झाड़ू की ही बलिहारी है कि स्वच्छ भारत  अवतरित हो रहा है। बुहारी तेरे दिन बार बार बहुरे।
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अंततः
विजय पर्व दशहरा की सभी सुधी प्रिय पाठकों को मंगल कामनाएँ। सुत्योहारमस्तु।___मंगल वीणा
दिनाँक :2 अक्टूबर 2014  स्थान :वाराणसी
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रविवार, 7 सितंबर 2014

असभ्य आचरण

**********आज दुनियाँ में मानवता को पीड़ा पहुँचाने वाले जितने भी कृत्य हो रहे हैं,वे सब के सब असभ्य आचरण की ऊपज हैं।चाहे यूक्रेन के ऊपर से उड़ रहे नागरिक विमान को प्रक्षेपास्त्र द्वारा बेधकर निर्दोष लोगों की हत्या हो ,गाजा में ऐसे लोगों का संहार हो जिन्हे यह पता न हो कि उन्हें क्यों मारा जा रहा है ,बच्चों के हाथ में बन्दूकें थमा उनसे निर्मम हत्या कराई जा रही हो ,धर्म के नाम पर अनेक देशों में हो रहे अधर्म हों अथवा रात -दिन हो रहे बलात्कार ,हत्या या अपहरण हों :-सब की सब आज की सभ्यता से उपजी असभ्यता हैं जिसमें समाज के हर वर्ग के लोगों का प्रत्यक्ष या परोक्ष योगदान है। अब दुनियाँ में घट रही इस तरह की घटनाएँ जब ग्यारह हजार वोल्ट का झटका मार रही हैं तो  मानवता बार -बार चीत्कार रही है और भीष्म पितामहों से पूछ रही है कि अब किस महाभारत की पृष्ठभूमि तैयार हो रही है। आचरण की असभ्यता से होने वाले अपराधों को केवल निन्दा,आलोचना, विरोध एवँ कठोर दण्ड से रोका जा सकता है। चूँकि ये दवाएँ आज के सभ्य समाज को कड़वी लगती हैं अतः तत्काल ऐसे लोगों को असभ्य बता उन्हें हासिए पर कर दिया जाता है।फलतः असभ्यता रूपी बीमारी बढ़ती जा रही है।
**********अतीत में सभी संस्कृतियों, धर्मों एवँ इनके आधार ग्रंथों में मानवता विरोधी कृत्यों को पाप मानते हुए उनकी सदैव निंदा की जाती थी  और कठोर वर्जना के प्रावधान थे। असभ्यता की परिस्थितियाँ पैदा ही न हों ;इसके लिए समाजसुधारक ,धर्माचार्य ,शिक्षक,आलोचक एवँ निंदक को समाज में सर्वोच्च सम्मान था और उनकी किसी भी टिप्पणी को शासन एवं समाज बहुत गंभीरता से लेता था।आहार -व्यवहार एवँ रहन -सहन के कुछ सर्वमान्य अनुशासन होते थे जो सबके लिए सुरक्षा कवच या लक्ष्मण रेखा का काम करते थे। तभी मानव सभ्यता विकास की ऊँचाइयों पर सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़ती गई और आज अपने उत्कर्ष पर है।विश्व की सारी संस्कृतियों का भूमण्डलीकरण हो चुका है। जो चीजें कभी स्वर्ग के देवी -देवताओं के लिए कल्पित थीं या तपोबल से किसी विरले व्यक्ति को प्राप्त होती थीं -वे सब कुछ आज विज्ञान द्वारा आम आदमी को सुलभ  हैं। दूसरे छोर पर इस विकास के साथ समाज में विलासिता और स्वच्छंदता आई। इन्हें पाने एवँ भोगने की अभिलाषा ने हमें सभ्यता की छाया तले असभ्य बना दिया है।यही आज की विडम्बना है कि हम बाहर से सभ्य दिखने वाले अन्दर से असभ्यता पसन्द करते हैँ ,असभ्य आचरण करते हैं और विरोध के स्वर को क्षीण करते रहते हैं।
**********यह असभ्यता मानव जीवन के हर पहलू में घुस -पैठ कर चुकी है। यह वेश -भूषा में आधुनिका बन घूम रही है;नई पीढ़ी की जुबान पर आधुनिकता बन तैर रही है ;कर्म क्षेत्र में मेनका की भाँति विश्वामित्रों को पथभ्रष्ट कर रही है;मनोरंजन में अश्लील हो गई है और अध्यात्म में धनोपार्जन हो गई है।पश्चिमी सभ्यता ,सिनेमा ,टीवी ,इंटरनेट व सोशल नेटवर्किंग्स इस असभ्यता के प्रमुख उत्पादन केंद्र बन गए हैं।असभ्य मनोरंजन, असभ्य हथकंडों से पारित करा कर विपणन की ब्यूहरचना द्वारा, समाज में परोसा जा रहा है और आक्रामक रणनीति अपनाते हुए कहा जाता है कि मनोरंजन में वही दिखाया जा रहा है जो लोग देखना पसन्द करते हैं।  वस्तुतः यह दुराचरण रूपी कालिया अपने अनेकानेक फनों से समाज रूपी यमुना में एक से बढ़ कर एक जघन्य अपराध रूपी विष का वमन कर रहा है और यमुना असह्य पीड़ा को झेलते हुए किसी कृष्ण की प्रतीक्षा कर रही है। आश्चर्य यह है कि कालिया अब अपने प्रमुख फन से हमारी बहनों ,बेटियों और महिलाओं को डसने लगा है।आए दिन दिल दहलाने वाले अपहरण ,बलात्कार एवँ हत्या की घटनाएँ हो रही हैं। एक की चर्चा हो रही होती है ,तबतक दूसरे तीसरे क्रूरतर कृत्य  ताजा मुख्य समाचार बन टीवी पर्दे पर उभरने लगते हैं।
**********यह भी सर्व विदित है कि हमारे देश की लोकतान्त्रिक शासन प्रणाली में ऐसे क्रूर अपराधिओं को कठोरतम दण्ड देने के प्रावधान हैं और इसके लिए हमारे पास  विश्व की मानी -जानी न्याय ब्यवस्था है फिर भी शासन का भय न होने एवँ पुलिस के निष्पक्ष एवं द्रुत अनुसन्धानी न होने से जनता सशंकित रहती है।अतः उसे हो हल्ला या पुलिस प्रशासन और सरकार के विरुद्ध प्रदर्शन करना पड़ता है। इलेक्ट्रानिक व प्रिंट मीडिया के लोग भी कूद पड़ते हैं।भारत में बुद्धजीविओं ,विशेषज्ञों एवँ नेताओं की प्रचुर सम्पदा है सो ये लोग भी विभिन्न चैनलों पर विराज जाते हैं और चैनलों पर शुरू हो जाता है अंतहीन बकवासी बहस। कहाँ किसी शिकार हुई बहन- बेटी की अंतहीन पीड़ा--- कहाँ बहस करने वालों का टीवी पर अपने को दिखाने का दम्भ--- और कहाँ चैनलों का समाचार परिधि से बाहर निकल कर चर्चा कराते हुए अपना टीआरपी बढ़ाने का प्रयास। सदमें में भी सबको अपनी पड़ी रहती है। इससे बड़ी सभ्यता से उपजी असभ्यता क्या हो सकती है ?
**********हद तो तब हो जाती है जब कोई वाजिब चिंतक ऐसे समय बहनों ,बेटिओं और महिलाओं केलिए कुछ ऐसा सुझाव दे देता है कि उन्हें रात में अकेले घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए ;या कि उत्तेजक वस्त्र पहन कर घर से बाहर नहीं निकलना चाहिए; अथवा उन्हें स्कूल ,कालेज और कार्यालयों में साड़ी या सलवार -कुर्ता ही पहन कर जाना चाहिए।सुझाव आया नहीं कि महिला संगठनों व अन्य कोनों से आवाज उठी कि यह महिलाओं की स्वतंत्रता पर अंकुश है ,औरतों को पुरुषों जैसी आजादी क्यों नहीं इत्यादि ,इत्यादि। अंततः बात चिंतक महोदय द्वारा क्षमा याचना तक पहुँचती है। बड़ा अजीब है कि असभ्यता का अस्तित्व तो हम मिटा नहीं पाते हैं परन्तु महिलाओं की सुरक्षा एवँ प्रतिष्ठा की वास्तविक चिंता करने वालों को बिना सार्थक चिंतन  के नकार देते हैं। नहीं भूलना चाहिए कि अनुशासन स्वतंत्रता को सुरक्षा प्रदान करता है।
**********बीते पन्द्रह अगस्त को लालकिले की प्राचीर से देशवासियों को सम्बोधित करते हुए प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा आचरण की असभ्यता पर की गई सूक्ष्म टिप्पणी हर परिवार को झकझोर देने वाली है। क्या यह सच नहीं है कि हमारी  बहन ,बेटी या बहुएँ जब घर से बहार निकलती हैं तो हम लोग ;कहाँ जा रही हो ,कैसे जा रही हो ,कौन साथ में है ,कब तक लौटो गी ,जल्दी लौट आना ,मोबाइल पर लोकेशन बताते रहना ,इत्यादि इत्यादि प्रश्न और सुझाव अवश्य देते है।वहीँ घर के लडके जब बाहर निकलते हैं तो हम उनसे ऐसा कुछ नहीं पूछते। वे देर रात तक कहाँ गायब रहते हैं - इसका भी संज्ञान नहीं लेते।स्पष्ट है कि समाज में लडकियों के लिए बन्धन ,अनुशासन और  संस्कार याद कराए जाते हैं जबकि लड़कों के लिए  ऐसा कुछ नहीं बल्कि स्वच्छन्दता ही स्वच्छन्दता। यह स्वच्छन्दता असभ्यता की भी जननी है और असभ्य लोगों में अपराधी बनने की प्रबल सम्भावना होती है। यह भी सभ्य समाज की असभ्यता का ज्वलंत उदहारण ही है कि बेटियों ,बहुओं के लिए घरों में  यहाँ तक कि विद्यालयों में शौचालय तक  उपलब्ध नहीं हैं। इस असभ्यता के चलते ही भारत सरकार हर घर में शौचालय और हर विद्यालय में लड़कियों एवं लड़कों केलिए अलग शौचालय बनाने की बृहद योजना लागू करने जा रही है। इस कदम से महिलाओं के स्वास्थ्य ,सुरक्षा व सम्मान के प्रति संवेदनशीलता दिखा हमलोग  कम से कम असभ्यता का एक कलंक मिटा सकें गे।
**********इसमें कोई संशय नहीं कि असभ्यता सावन -भादों की रात जैसी सर्वत्र पसर गई है। वहीँ पश्चिम से संक्रमित हमारी पूरब की संस्कृति और सभ्यता जीर्ण -शीर्ण हो रही हैंऔर संस्कारशालाओं अर्थात परिवारों व विद्यालयों से संस्कार विहीन पीढ़ियाँ तैयार हो रही हैं। फिर भी अपने ही ढंग में मस्त और ब्यस्त युवक -युवतियाँ अपने आहार -ब्यवहार व शैली को ही उन्नत सभ्यता समझते हैं।पाइथागोरस का तर्क है कि पतन के बाद उत्थान अपरिहार्य है और यह सुखद है कि  हमारी  संस्कृति ,सभ्यता और संस्कार की बेहतर पुनर्स्थापना के संकेत समाज में मिलने लगे हैं।समय चाहता है कि हम हेलो ,हाय ,हॉट एन सेक्सी को जहाँ हैं जैसे हैं ,वहीँ छोड़ कर सौम्य अभिवादन एवँ सम्बोधन से अपनी दिनचर्या आगे बढ़ाएँ , भारत की सोचें ,भारतीयता में जिएं ,भारतीयता को आगे बढ़ाएं और एक महान परंपरा वाले राष्ट्र का नागरिक होने पर  गर्व करना प्रारंभ करें। असभ्यता स्वतः घुटने टेक देगी।
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अंततः
**********विद्यया ,वपुषा ,वाचा ,वस्त्रेण विभवेन च।
**********वकारैः पञ्चभिर्युक्तः नरः प्राप्नोति गौरवम्।
पाँच वकारों अर्थात विद्या ,भब्य शरीर ,वाणी ,वस्त्र और वैभव से युक्त पुरुष गौरव को प्राप्त होता है। अतः इन पाँच वकारों को प्राप्त करने के लिए सतत प्रयत्न करना चाहिए।
दिनाँक: 7 सितम्बर 2014 .                            Mangal-veena.blogspot.com@gmail.com                        
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गुरुवार, 5 जून 2014

सत्ता परिवर्तन

**********अधिकांश भारतीयों को अच्छा लग रहा है कि हमारा लोकतंत्र सही रास्ते पर चल पड़ा है । रास्ते की अवरोधक राजनीतिक वंश -वल्लरियाँ सूखने लगी हैं । देश में अन्ना आन्दोलन से उपजी आम आदमी पार्टी के अभ्युदय एवँ मुख्य राष्ट्रीय विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद पर श्री राजनाथ सिंह के मनोनयन के बाद बदलाव ने अपना रास्ता बहुत ही द्रुत गति से बनाना शुरू किया और कुछ ही महीनों में सोलहवीं लोकसभा के चुनाव समापन तक श्री नरेंद्र मोदी को प्रधान मंत्री पद पर आसीन कर एक बेहतर एवँ कल्याणकारी युग में प्रवेश कर गया ।आरम्भिक चरण में जब श्री सिंह ने भाजपा की  कमान सँभाला ,आम जन की अभिरुचि उनमें कम और इस बात में ज्यादा थी कि श्री मोदी भाजपा की ओर से प्रधान मंत्री पद के प्रत्याशी घोषित किए जाँय । इस दबाव के पीछे कारण यही था कि जनता काँग्रेस नीत सरकार को समूल उखाड़ फेंकने का मूड बना रही थी और पूरे देश में उसे नरेंद्र मोदी ही ऐसे नेता रूप में दिख रहे थे जो राष्ट्रीय पटल पर नायक की भूमिका निभा सकते थे । मात्र नमो में ही वह दम -ख़म था जो कुशासन ,महँगाई और भ्रष्टाचार की पर्याय बन चुकी काँग्रेस को टक्कर एवँ उसे तहस -नहस करने वाला मात दे सकता था ।
**********सब कुछ अनुकूल होता गया । नमो भाजपा की ओर से प्रधान मंत्री पद के प्रत्याशी घोषित किए गए । मिल बाँट कर सत्ता सुख भोगने वाले सारे विरोधी दल मोदी -निंदा में जुट गए ।  पिछले दस -बारह वर्षों से प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक समाचार माध्यमों ने जिस मोदी को विवादों में घेरे रखा वही मोदी उन पर नशा सा छाने लगे और समाचारों के शीर्ष विषय बन गए ।जहाँ कहीं मोदी की रैली होती लाखों श्रोताओं का समुद्र उमड़ पड़ता । अनदेखी और अनजान बनी काँग्रेस कहती रही कि उन्हें तो मोदी की कहीं लहर दिखती नहीं । आप कहती कि भ्रष्टाचार से हम लड़ रहे हैं और जनता हमें ही सत्ता सौंपे गी । प्रदेश स्तर की पार्टियाँ कहतीं  कि उनका तीसरा मोर्चा ही सरकार बनाए गा । बिरोधी दल मोदी नहीं बाकी सब कुछ पर आमादा होते गए । परन्तु भाजपा एवँ मोदी अपने सुशासन एवँ विकास के मुद्दे पर अडिग रहे । चुनाव मोदी वनाम मोदी- नहीं होता गया ।मोदी के पक्ष में समूचे देश की नई पीढ़ी ने सोशल मीडिया सँभाला ,बुद्धजीवियों ने बढ़ते जन समर्थन रूपी ऊर्जा की व्यूह रचना की और कार्यकर्ताओं ने मतदान प्रतिशत बढ़ाने का सँकल्प लिया ।जन -जन ने ठान लिया कि अबकी बार मोदी सरकार ।परिणाम घोषित हुए । मोदी के नेतृत्व में भाजपा को पूर्ण बहुमत एवँ भाजपा नीत राजग को प्रचंड बहुमत मिला । मोदी -नहीं खेमें वाले देश विदेश के लोग भौंचक एवँ अवाक् रह गए ।जनाकांछा पूरी हुई और अपार उल्लास बीच मोदी जी भारत के प्रधान मंत्री पद पर सुशोभित हुए ।लगता है कि अच्छे दिन आने वाले हैं।
**********यह चुनावी दौर जब कल भारतीय इतिहास का हिस्सा होगा ,तीन -चार प्रमुख घटनाएँ निश्चित रूप से उसमें उल्लिखित होंगी । आम आदमी पार्टी का पुच्छल तारे की भाँति भारतीय राजनीति के पटल पर उदित होना इनमें पहली घटना थी । निःसंदेह अन्ना आन्दोलन से कुछ अच्छे लोग जुड़े थे जबकि कुछ अन्य चालाक और अच्छे लोग थे । वे धैर्य और दृष्टि केसाथ देश की राजनीति में कुछ अभिनव प्रयोग कर सकते थे परन्तु सत्ता एवँ ख्याति के वशीभूत हो स्वयं महत्वकांछी बन गए और वैसे ही लोगों से चौतरफा घिर गए । काँग्रेस के विरोध पर खड़ी यह पार्टी कांग्रेस से सहयोग लेकर दिल्ली में सत्ता का खेल खेली ; फिर और  बड़ी महत्वकाँछा पूर्ति केलिए लोकसभा चुनाव में कूद पड़ी। जनता सतर्क हो गई कि  आप नमो के रास्ते का रोड़ा बन रही है और इसका आचरण भी अन्य विरोधी दलों जैसा ही है । फिर क्या था ।  पूरे देश में इस पार्टी की भी काँग्रेस व अन्य दलों की भाँति बुरी दुर्गति हुई और यह पुच्छल तारा चुनाव परिणाम के साथ तिरोहित हो गया ।
**********इस चुनाव में एक और उल्लेखनीय बदलाव यह आया कि भारत में धर्म निरपेक्षता /सेक्यूलरिस्म अपने मूल स्थान पर लौट आया । हमारे संविधान में यही एक ऐसा शब्द है जिसका सर्वाधिक दुरुपयोग हुआ ।  अधिकांश दल अनेक धर्मों वाले इस देश में सेक्युलरिस्म के नाम पर भ्रम एवं भय फैलाकर राष्ट्रवादी दलों को अछूत बनाये रक्खे और अपने पक्ष में बार -बार सत्ता पाते रहे। नई पीढ़ी ने इस छलावा को बड़ी बारीकी से पकड़ा और  इसे चुनावी मुद्दा से अलग कर जनता की ज्वलंत समस्याओं को आगे बढ़ाया। यह स्थापित हो गया कि विकास और सुशासन की बात करने वाले राष्ट्रवादी  केवल सेक्युलर -सेक्युलर रटने वालों से ज्यादा सेक्युलर हैं । यह अर्थ मिटा दिया गया कि किसी वर्ग विशेष की बात करना सेक्युलरिस्म है तो सभी वर्गों की बात करना नानसेक्युलरिस्म ।जनमत ने तय कर दिया कि सबकें लिए सुशासन एवं सबका विकास ही भारत केलिए आदर्श धर्मनिरपेक्षता की व्याख्या है। अतः आशा की जा सकती है कि आने वाले चुनावों में यह शब्द अपने मौलिक तात्पर्य को नहीं खोयेगा ।
**********परिवर्तन के दौर में तीसरा सबसे अहं ,सकारात्मक एवँ सराहनीय बदलाव लोकतंत्र के नाम पर वर्षों से स्थापित वंशवादी शासन व्यवस्था का उखड़ना  था ।काँग्रेस के नाम पर नेहरू -गाँधी परिवार ,डीएमके के नाम पर करूणानिधि परिवार ,सपा के नाम पर मुलायम सिंह यादव परिवार ,राजद के नाम पर लालू परिवार इत्यादि -इत्यादि ने अपना स्पष्ट पराभव देखा । जनता नहीं चाहती कि कोई सरकार किसी परिवार की कठपुतली बनकर चले ।जनता ने स्पष्ट कर दिया कि वंशतंत्र में लोकतंत्र नहीं हो सकता और जहाँ लोकतंत्र  है वहाँ वंशवाद पनप नहीं सकता । अतः राजनीतिक दलों को यथाशीघ्र वंशवादी बेड़ियाँ तोड़ कर अपनी प्रासंगिकता बहाल करना होगा । काँग्रेस मुक्त भारत का नारा अपने में बहुत सारे निहितार्थ समेटे हुए है ।इन मील के पत्थरों के अतिरिक्त राजनेताओं के भाषणों एवं उद्गारों में भाषा की अशिष्टता इस चुनाव में अपने चरम पर रही । चुनाव आयोग को कक्षा मॉनिटर की तरह नेताओं को डाँटते फटकारते और संतुष्ट होते पाया  गया ।आयोग करता भी क्या। हमारे देश में फिल्म सेंसर बोर्ड भी तो "चोली के पीछे क्या है "जैसे फ़िल्मी गानों को समझाने पर शिष्टाचार के हिसाब से ठीक -ठाक मान लेता है ।
**********अब बदलाव की बयार को जनता तक पहुँचाने का समय है । अपेक्षा प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी से है । यह गौण है कि उनके कैबिनेट मैं कौन लोग हैं या उनके सहयोगी कौन हैं।पहले राहत फिर सुशासन और विकास को भारत भूमि पर अवतरित होते देश का हर नागरिक देखना चाहता है । अच्छे दिन रूपी स्वप्न सुन्दरी की प्रतीक्षा है और भगीरथ प्रयास कसौटी पर ।
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अंततः
************जब सफलता मिलनी होती है ,परिस्थितियाँ स्वयँ अनुकूल होती जाती हैं । यथा जब पवनपुत्र हनुमान लंका दहन को उद्यत हुए तो उन्चासों पवन चलने लगे थे ।
++++++++++हरि प्रेरित तेहि अवसर चले मरुत उनचास ।
++++++++++अट्टहास करि गर्जा कपि बढ़ि लाग अकास । गोस्वामी तुलसी दास
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दिनाँक 5 जून 2014                              Mangal-Veena.Blogspot.com@Gmail.com
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गुरुवार, 17 अप्रैल 2014

गुजराती गौरव -एक चुनावी चर्चा

तीन -चार दिन पहले कच्छ गुजरात निवासी मेरे एक चिर परचित मित्र  का देर रात फोन आया । चूँकि रात में आने वाले फोन थोड़ा चौंकते हैं ,अतः झट उठकर मोबाइल सँभाला और हेलो बोल पड़ा ।
उधर से आवाज आई -साब जी नमस्ते । मैं नरायन भाई कच्छ से बोल रहा हूँ ।  देर रात में फोन करने से आप बिचलित तो नहीं हुए ।
बिल्कुल नहीं भाई ,नमस्ते । तुम कैसे हो ?घर -परिवार एवँ कच्छ का कुशल -छेम बताओ ।
सब भलो ।आप लोग कैसे हैं ?बनारस में नरेंद्र भाई मोदी का चुनाव अभियान कैसा चल रहा है ?
बहुत बढ़िया । फिरहाल मोदी जी की स्थिति सर्वोत्तम चल रही है । वे बनारस से चुनाव जीत सकते हैं । ऐसी प्रबल सम्भावना है । परन्तु तुम तो काँग्रेसी नेता एवँ ओहदेदार हो। फिर तुम्हें मोदी जी से सहानुभूति क्यों ?
दूसरी ओर से आवाज आती है "सा --ब जी !हमारे लिए भारतीय होना सर्वाधिक गौरव एवँ गुजराती होना प्रथम गौरव की बात है। मेरा काँग्रेसी होना तो बाद की बात है । आज नरेंद्र भाई हम गुजरातिओं के लिए गुजरात का गौरव हैं। हम सबकी शुभेक्षा है कि नरेन्द्र भाई देश के प्रधान मंत्री बनें ।
परन्तु तुम सरीखे काँग्रेसी मोदी जी को प्रधान मंत्री बनाने में क्या योगदान कर सकते हैं ?
अरे सा -ब जी !समझने का प्रयास करिए । राज की नीति को राजनीति कहते हैं । हम लोग भी अपने ढंग से काम कर रहे हैं ।अभी -अभी होटल वापस लौटे हैं । मस्तिष्क में कौंध हुई "होटल "
तुरन्त सवाल दागा -भाई तुम इस समय कहाँ से बात कर रहे हो ?
मैं इस समय दिल्ली हूँ और अभी एकाध सप्ताह यहीं रहूँ गा । हो सकता है कि बनारस आने का भी कार्यक्रम बनाऊँ । रात बहुत हो चुकी है । फिर किसी दिन चर्चा करें गे । जय भारत ।
नमस्ते भाई । ऐसा लगा कि लाइन कट चुकी है । मेरी नींद गायब थी । एक क्षण राज ---नीति का ध्यान आता तो दूसरे क्षण "जिसको न निज गौरव तथा निज देश पर अभिमान हो "का ध्यान आता । मुझे लगा कि कच्छ के लिए काशी का हाथ बढ़ाने का समय आ गया है ।
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अंततः -एक लघु कहानी
-----------------------------------------------रजाई वाला रमैया  -----------------------------------
**********रमैया अपने परिवार के साथ समाज के अन्य जंगल पर आश्रित परिवारों की भाँति जीवन यापन कर रहा था । कभी जाड़े में लकड़ी की बेच से उसे थोड़ी अच्छी कमाई हो गई ।  उसने मन ही मन सोचा कि बड़े लोग जाड़े में रजाई ओढ़ते हैं । उन्हें बड़ा मजा आता होगा । हमारी भी कोई जिन्दगी है ?पूरी सर्दी पुआल एवं कथरी में लिपटे बीत जाती है । उसने अपने को धिक्कारा कि पिछले साल भी उसने अपने बच्चों द्वारा इकठ्ठा किये गए सेमर की रुई को नून- तेल के चक्कर में महाजन को भेंट कर दिया था। न जाने कहाँ से हौसला बढ़ा ,झटपट बाजार की ओर बढ़ गया और एक नई रजाई खरीद कर ख़ुशी -ख़ुशी घर आया ।
**********पूरे परिवार में खुशियों की बाढ़ आ गई । पत्नी ने त्योहारी खाना बनाने का उपक्रम किया । तभी रमैया के साले साहब बहन का हाल समाचार लेने आ धमके । फिर क्या था । भोजन के बाद नई रजाई का  पहला आनन्द साले साहब उठाये । जब तक साले जी बहनोई के घर से विदा हुए ,पूरे समाज एवं रिश्तेदारों में यह बात जंगल की आग की तरह फ़ैल गई कि रमैया ने नई रजाई खरीदी है  ।जहाँ समाज में किसी के पास एक साबुत ओढ़ना नहीं वहाँ रमैया के पास नई रजाई ।आश्चर्य । फिर शुरू हुआ रमैया के यहाँ एक रिश्तेदार का आना तो दूसरे का जाना । वीटो वाले रिश्तेदार तो पांच- छः दिन से पहले हिलने का नाम न लिए । इस प्रकार जाड़ा बीतने को आया परन्तु रमैया और उसको बच्चों  को अपनी नयी रजाई ओढने का सौभाग्य न मिला । उलटे रिश्तेदारों के आव- भगत में पूरा घर बेहाल हो गया और गाँव के महाजन का क़र्ज़ भी उसपर बढ़ता चला गया ।
**********जिस रजाई को रमैया  बड़ी नियामत समझ कर घर लाया था उस  रजाई ने उसका सुकून छीन लिया । अब वह रात दिन उस रजाई से छुटकारा पाने की तरकीब  सोचने लगा  । एक अल -सुबह जब फूफा महोदय रजाई छोड़ कर बहार सैर पर निकले ,रमैया ने झट कौड़ा जलाया और रजाई को अग्नि के हवाले कर दिया।सारी बात समझते ही फूफा भी खिसक लिए ।रमैया के जाड़े एवं कष्ट का एक साथ अंत हो गया ।
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दिनाँक 17.04.2014                                    Mangal-Veena.blogspot.com@Gmail.com
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बुधवार, 26 मार्च 2014

A homage to the compassion

My eldest brother Shri Shambhoo Narain Singh,who had been an exemplary poet of Hindi literature,passed away on 6.3.2014 at the age of eighty three years.Better known with nickname Akinchan Ji in the literary word ;he carried forward the great tradition of Shri Jaishankar Prasad in spirit as well as letters.Through out his life he was a teacher,a scholar,a philosopher and a Satsangi full of compassion.
During college days in 1960s Akinchan Ji published his first two books of poems namely 1.PREMMANDIR 2.JIVAN MALA having philosophical approach of life in stenza.He had such a passion for literature in those days that he convinced mother and aunt to sell their ornaments to meet the expenses of printing these books.Afterwards he also saw bundles of these books being sold to Noonwalah for buying common salt in exchange.But the best creation of this poet came in 1987 when an epic HANS KALADHAR reached in hands of Hindi scholars and comments sprang in news papers.This Mahakavya is based on story of Nala and Damyanti narrated in Mahabharata.This work has perfected all the parameters of a Mahakavya and thus a treasure of Hindi literature which may be compared well with Kamayani  for its literary richness.The epic has a very smooth journey with the umbrellas of nine Rasas and pretty clothings of Alankars on the platform of poetic standards.This epic is still waiting for its evaluation.His post 90s and unpublished writings viz poems ,proses,stories are left with his family awaiting publication.
Here are some stenza to recall the gret poet-
हे  नाथ ! दीनता  के  पीछे , जैसी  तव  करुणा  रहती  है ।
इस दास अकिंचन की आशा ,निशि दिवस उसी पर रहती है।
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स्वामी की चाह जान मन में
श्री जा पहुँची ज्यों निषध देश
सुख -शान्ति -साधनों में प्रवेश
पाकर बैठी ज्यों विविध वेश । 1 परिचय सर्ग
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नीरव अम्बर के  किस पथ से-
वह आई थी मेरे   समीप
फिर किस पथ से वह गई कहाँ
यह मुझे बता दे ,गगन -दीप । 35 स्वप्न -सर्ग
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अम्बर  परिधान पहन श्यामल
फहरा मादक छवि क्षितिज छोर
ज्यों सन्ध्या -श्री अञ्चल पसार
उनको पुकारती विभा -ओर । 2 6 निसर्ग -दर्शन सर्ग
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निज अहँकार के पोषण में
जीवन करता कल्मष रचना
चाहे जैसी भी सिद्धि मिले
उसमें न कहीं कुछ भी अपना । 59 हँस -प्रदीप (द्वितीय -कला )सर्ग
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With passage of time and research of his literary contributions the genius of this great poet will get its proper place.I have never seen a poet of such a high standard and of such a low popularity.This may be the plight of today,s marketing management.
 Passing away of Akinchan Ji is an irreparable loss to our family and to the literary world.With all our sentiments and sincerity we pay homage to his compassion .
O GOD !May his soul rest in peace .
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Date-26.3.2014                                   Mangal-Veena.Blogspot.Com
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सोमवार, 10 फ़रवरी 2014

समाजवादी टोपी एवं लाल बत्ती

--------------------इस वर्ष होने जा रहे आम लोकसभा चुनाव में अपनी -अपनी विजय केलिए भाजपा या काँग्रेस ही नहीं अपितु देश के सभी छोटे- बड़े राजनीतिक दल अपने आधुनिक रणकौशल केसाथ जनता के बीच उतर चुके हैं । सायकिल सवार समाजवादी भी लाल टोपी लगाये झुण्ड के झुण्ड उत्तर प्रदेश की सडकों पर निकल पड़े हैं । जनता को मोहक सपने दिखा कर उन्हें अपना सपना पूरा करना है । सपना एक ही है कि यदि किसी भाँति जनता एक बार फिर बहक जाती और लोकसभा चुनाव में उन्हें ज्यादा से ज्यादा सीटों पर विजयी बना देती तो जोड़ -तोड़ की कोई जुगत भिड़ा कर उनके नेता जी अर्थात मुलायम सिंह यादव भी चौथेपन में देश के प्रधान मंत्री वाली कुर्सी का नैसर्गिक आनन्द उठा लेते ।कितने दिन केलिए बैठ लेते -यह बात समाजवादिओं के सपना में गौण है । बैठने के बाद वे मनमोहन सिंह ,देवगौड़ा, स्व नरसिंह राव या स्व चौधरी साहब सिद्ध होंगे -यह भी इन लोगों का नहीं बल्कि इतिहासकारों का विषय होगा ।    
--------------------अभी नेता जी ने कहा है कि चुनाव से पहले कोई तीसरा मोर्चा नहीं होगा । बात भी ठीक है चुनाव परिणाम आने तक सारे विकल्प खुले रखना उनके हित में है । यदि अच्छी सँख्या में उत्तर प्रदेश से सीटें मिल गईं और सम्भावना का सिद्दांत काम कर गया तो मन माँगी मुराद पूरी नहीं तो सोनिया जी की शरण में तो वे पहले से हैं ही । सारे आकलन गलत होने की दशा में नेता जी तो कहते ही हैं कि अडवाणी जी देश के बड़े नेता हैं । चूँकि प्रदेश के बाहर समाजवादी दल अस्तित्व विहीन है अतः इन्हीं तीन विकल्पों में उन्हें अपनी जगह तलाशनी है । समाजवादी भूलें -न भूलें परन्तु उनके मुखिया कैसे भूल सकते हैं कि राष्ट्रपति चुनाव के समय वे ममता बहन का कितना साथ निभाए या नाभकीय मुद्दे पर वे बामपंथियों के साथ कितना चले ।
--------------------उत्तर प्रदेश में राजशाही ज़माने से दबंगई की एक सामन्ती धारा बहती है ।समाजवादियों में भी दबंगई की अपनी संस्कृति है। किसी को उठक -बैठक करा देना ,किसी जी हुजूरी न करने वाले अधिकारी को अपमानित कर देना ,जाति विशेष के अधिकारियों का योग्यता न होते हुए भी रुतबा बढ़ा देना ,कानून ब्यवस्था की धज्जियाँ उड़ते देखना या सैफई जैसे नाच -गाने का आयोजन सदा इनके शासन और शान में होता आया है । इनकी दबंगई कार्यालयों एवं सडकों पर दिखती है और एक वर्ग के नव युवकों को खूब भाती है।ऊपर से इस दल के बड़े नेताओँ का अपने छोटे कार्यकर्ताओं एवं परंपरागत मतदाताओं से गहरा जुड़ाव है । सोने में सुहागा कि उत्तर प्रदेश का जातीय समीकरण निर्विवादरूप से समाजवादियों की सबसे बड़ी मतपूँजी है ।
 --------------------दबंगई बढ़ाने एवं कार्यकर्ताओं में नया रक्त -संचार भरने केलिए उत्तर प्रदेश सरकार चाहती है कि हर जिले में उनके दस -पाँच नेता लाल बत्ती से सुशोभित हों और जनता में इनके साथ रहने के ग्लैमर का चकाचौंधी संदेश जाय । किसी को मंत्री ,किसी को राज्यमंत्री तो किसी को उनका दर्जा देकर लालबत्ती एवं सुरक्षा कर्मियों का कवच देना भी तो सरकार का दायित्व है ताकि समाजवादिओं में समाजवाद चहुँ ओर दिखे । यह तो माननीय उच्च न्यायालय है कि लाल बत्तियों की बाढ़ को रोक रही है । फिर भी समाजवादी सरकार उच्चतम न्यायालय जाने का मन बना चुकी है और यह बात माननीय न्यायालय के संज्ञान में लाये गी कि लाल बत्ती की सँख्या बढ़ाने से भला जनता का क्या लेना -देना है । अलबत्ता इससे तो हनक बढे गी कि पुलिस वाले खोई हुई  समाजवादी भैसें हर हाल में ढूंढ़ निकालें गे ।
-------------------- लाल टोपी और लाल बत्ती की युगलबंदी जनता को भली लग रही है या नहीं -यह तो चुनाव परिणाम ही बताएँ गे ।परन्तु समाजवादियों को इतना तो समझ लेना चाहिए कि अन्ना आन्दोलन से देश की जन चेतना जागृत हुई है और वह अब नेताओं को मात्र सेवक के रूप में देखना चाहती है । अभी समाजवादी सरकार जनता की कितनी और क्या -क्या सेवा कर रही है ;इसका सड़क और चौराहों पर आकलन हो रहा है । अब निर्णय ,धर्मनिरपेक्षता के छलावे पर नहीं, सामने दिखते विकास पर होगा । यह आगामी चुनाव का बड़ा ही दिलचस्प पहलू होगा कि उत्तर प्रदेश किस करवट बैठता है।  बेहतर होगा कि समाजवादी खास बनने का चक्कर छोड़ आम बनने का प्रयास करें और अपनी सारी ऊर्जा एवं संसाधन उत्तर प्रदेश के विकास और जनता की खुशहाली केलिए लगा दें ।
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अंततः
--------------------विकास वह चकाचौंध है जो दिखती है । इसे रैली,सड़क यात्रा या विज्ञापन द्वारा दिखाने की अवश्यकता नहीं पड़ती है ।
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दिनाँक 11 . 2 . 2014 -------------------------------------mangal-veena.blogspot.com
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बुधवार, 29 जनवरी 2014

भारतीय गणतंत्र की पैंसठवीं वर्षगाँठ

---------------बीते छब्बीस जनवरी को पूरे देश में यहाँ -वहाँ भारतीय गणतंत्र की पैंसठवीं वर्षगाँठ मनाई गई । जो लोग भारतीय तंत्र से सीधे या परोक्ष जुड़ें हैं वे इसे मनाने का चाक -चौबंद एवँ सफल उपक्रम किये । जो लोग इस तंत्र से सीधे या परोक्ष लाभार्थी हैं वे उत्सव का आनंद उठाए और अपना छबिप्रदर्शन भी किए । वर्षों से देखा गया है कि राष्ट्रीय पर्वों पर कर्मचारी बहुत आनंदित होते हैं जिन्हें पर्व के नाम पर एक दिन की छुट्टी मिल जाती है या वे लोग प्रसन्न होते हैं जिन्हें मिठाई खाने ,खेलने -कूदने या मौज-मस्ती का अवसर मिल जाता है । वे भी बहुत खुश होते हैं जिन्हें काफी प्रतीक्षा के बाद उस दिन केलिये व्यवस्था दायित्व निर्वहन के बदले छतिपूर्ति का भरपूर लाभ मिल जाता है । परन्तु गणतन्त्र चलाने वाले नेता और नौकरशाह रूपी तांत्रिकों के ख़ुशी एवं उमँग का क्या कहना जो ऐसे अवसरों पर सञ्चार माध्यमों से जनता को यह अनुभव कराते हैँ कि वे ही इस देश की सवा सौ करोड़ जनता के विधाता हैं । इन विशेष वर्गों से इतर शेष जन मानस से हमारे राष्ट्रीय पर्व भावनात्मक एवं ब्यवहारिक तौर पर जुड़ ( कनेक्ट ) नहीं पाये हैं । ढेर सारे कारणों में साफ़ दीखता कारण यह है कि गणतन्त्र चलाने वालों में जनता के प्रति कोई ईमानदार प्रतिबद्धता नहीं है और जनता में गणतंत्र चलाने वालोंके प्रति उनके नित नए कारनामों से उपजा घोर विकर्षण है।
---------------गणतांत्रिक देश बनने के बाद चौसठ वर्षों में अर्जित हमारी उपलब्धियों ने पूरी दुनियाँ का ध्यान खींचा है । परंतु चीन से विकास में अभी पीछे होने और विश्व शक्ति न बन पाने केलिए गणतंत्र चलाने वालों पर सदैव उँगली उठती रही है । गणतंत्र के उम्र का एक भारतीय नागरिक जब देश में ऊबड़ -खाबड़ ,गड्ढायुक्त ,धूल -गुबार भरी घटिया सडकों का संजाल देखता है , सड़क चौराहों पर पुलिस को अवैध वसूली करते पाता है ,कार्यालयों में किसी भी काम केलिए कर्मचारियों को सुविधा शुल्क माँगते पाता है या सरकारी अस्पतालों में स्वयँ अस्पताल को बीमार पड़ा देखता है तो वह निराश होकर गणतंत्र से डिस्कनेक्ट हो जाता है ।इसी वय का गंगा किनारे वसने वाला कोई दूसरा ब्यक्ति; जो लड़कपन में नित्य गंगा की धवल धारामेंतैराकी,स्नान,मज्जन एवं पान  का आनंद उठाया करता था ;आज जब उसी धाराविहीन और दुर्गंधयुक्त गंगा को मल- जल के साथ बहते देखता है तो उसे घोर निराशा होती है । ऋषियों -मुनियों की ब्यथा का तो कहना क्या । ऐसे ही एक कृषक अपनी उपेक्षा एवँ एक ब्यवसायी उसपर थोपी जानेवाली असुविधाओं के कारण डिस्कनेक्ट हो जाता है । डिसकनेक्सन  की ये सारी लड़ियां मिलकर जन को जनतंत्र से अलग कर दी हैं । फिर जन में जनतंत्र के लिए उत्साह कहाँ से आए ?
---------------इस निराशा के बीच पिछले एक -दो वर्षों से इन राष्ट्रीय पर्वों पर भागीदारी में कुछ अद्भुत बदलाव दिखने लगा है  जो मरुस्थल में किसी मरूद्यान सा प्यारा लगता है ।गली ,मुहल्ले में घूम -घूम कर सब्जी बेचने वाले अपनी रेहड़ी पर ,गाड़ी चालक अपने वाहन पर ,कुछ घरेलू लोग अपने घरों पर ,चाय -पानी वाले अपनी दुकानों पर ,यहाँ तक कि घुमन्तू लोग अपनी साइकिल पर छोटे -छोटे तिरंगे लहराते इन पर्वों पर प्रसन्न मन से कार्यशील दीखते हैं।सोने में सुहागा कि कुछ वर्ष पहले से हमारा तिरंगा भी सरकारी दायरे से आगे बढ़ कर जन -जन के हाथ पहुँचने का राह पा चुका है। यह परिदृश्य स्पष्ट संकेत देता है कि परिवर्तन की वयार चल पड़ी है और गणतंत्र का नया युग प्रारंभ हो रहा   है । नई पीढ़ी के युवा ही इस बदलाव के सूत्रधार एवं नायक हैं । इन युवकों में पुरानी पीढ़ी की अपेक्षा अधिकार और कर्तब्य की बेहतर समझ है । ये युवक भारत एवं इसके गणतंत्र को नई उँचाई देना शुरू कर दिए हैं । इन्हीं की उर्जाभरी सहभागिता से गणतंत्र चलाने वालों की सोच बदल रही है और जनता गणतंत्र से कनेक्ट हो रही है । जनता की आपसी विमर्श में तुरंत संपर्क माध्यम भी बड़ी भूमिका निभा रहे हैं । इन माध्यमों की सक्रियता ने भारत क्या पूरे विश्व में परंपरागत शासन प्रणाली को झकझोर दिया है ।आज का बदलाव कल के सुनहरे  भारत का शुभ संकेत है ।
---------------कितना अच्छा होता कि देश की निःस्वार्थ सेवा करने वाले अन्ना हजारे जी इस पर्व पर राजपथ पर विशिष्ट अतिथि के रूप दिखे होते या काले धन के विरुद्ध संघर्ष करने वाले बाबा रामदेव को इस अवसर पर पदमभूषण जैसा पुरस्कार दिया गया होता अथवा गणतंत्र को गंगा -यमुना बचाओ या जंगल और पर्यावरण बचाओ अभियान पर केंद्रित (फोकस )किया गया होता । निःसंदेह भारत एक दिन अनुकरणीय राष्ट्र बने गा जब हमारे सांस्कृतिक एवं धार्मिक पर्व राष्ट्रीय पर्व बन जाएँ गे और राष्ट्रीय पर्व सांस्कृतिक एवं धार्मिक बन जॉय गे । रिट्रीट का समय निकट है अतः बस । जय भारत ,जय गणतंत्र ।
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अंततः
अजीब लगता है जब "जो शहीद हुए हैं ,उनकी जरा याद करो कुर्बानी "जैसे कालजयी गाने की याद आते ही लता जी की ओर ध्यान चला जाता है परन्तु जिसकी अन्तःपीड़ा इस कविता के रूप में अवतरित हुई उस महान कवि प्रदीप को लोगों में याद कराना पड़ता है । उन्हें भारतरत्न देने वाले किस श्रेणी में रखते हैं ?
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दिनाँक 29 जनवरी 2014                                              mangal-veena.blogspot.com
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