बुधवार, 1 अक्तूबर 2014

बुहारी के दिन बहुरे

**********किसके सितारे कब चमक जाँय ;यह तो प्रभु जानें या ज्योतिषी जोड़ें ,घटायें। पर यह ध्रुव की भाँति अटल है कि कभीं न कभीं सबके अच्छे दिन आते हैं।कुछ ऐसा ही बुहारी ,बढ़नी ,झाड़ू या कूँचे के साथ हो रहा  है। जो झाड़ू कभी भँगी ,भिस्ती ,मेहतर या झाड़ूबरदार के हाथ रहकर उनको रोटी की आश जगाए रखता था ,वह आज सार्वजनिक स्थानों पर बड़े -बड़े नेताओं ,नौकरशाहों ,उद्योगपतिओं ,समाजसेविओं के हाथ सुशोभित हो रहा है। लोगों को ईर्ष्या होने लगी है कि दिन बहुरे तो झाड़ू की भाँति। यह नंगा फटेहाल देशी झाड़ू अब ब्रांडिंग एवँ पैकेजिंग के साथ शालीन हो चुका है। साथ ही इस कारोवार से जुड़े दस्तकार ,निर्माता ,विक्रेता सभी मस्त हैं। हों भी क्यों न। अब यह भारी खपत और अच्छे मुनाफे का धँधा बन चुका है। कवि रहीम ने ठीक कहा था कि चुपचाप समय का उलट - फेर देखो।जब अच्छे दिन आयगें तो बनते देर नहीं लगेगी। सो हर घर ,गली ,गाँव ,मुहल्ला ,सड़क ,रेल ,दफ्तर,स्कूल  ,अस्पताल ,अत्र-तत्र ,सर्वत्र पूरे भारत में यदि कोई चीज चलन और चर्चा में है तो वह झाड़ू और स्वच्छता ही है।आशा करनी चाहिए कि समग्र स्वच्छता के ईमानदार क्रियान्वयन की निरन्तरता से विश्व में भारत की छवि स्वच्छ भारत के रूप में अवतरित होगी।
**********झाड़ू की सफलता बीते तीन -चार वर्षों के घटनाक्रमों की वर्तमान अभियान में परिणति है।त्वरित सिंघावलोकन करें तो इसका श्रीगणेश अन्ना हजारे की भ्रष्टाचार पर झाड़ू चलाने वाले आन्दोलन के साथ हुआ।अन्ना द्वारा जन लोकपल विधेयक के लिए चलाया गया आन्दोलन वास्तव में स्वतंत्रता के बाद का पहला सामाजिक पुनर्जागरण शँखनाद था जिसने भ्रष्टाचार एवँ सड़ी गली ब्यवस्था के विरोध में  पूरे देश के अंतर्मन को झकझोरा। जनता शनैः शनैः राष्ट्रहित, जनहित एवँ  स्वच्छ सामाजिक ब्यवस्था को जनतांत्रिक तरीकों से आगे बढ़ाने लगी। आन्दोलन में अग्रणी रहे अरबिंद केजरीवाल तथा उनके साथी अवसर का लाभ उठाते हुए एक राजनितिक दल बना लिए और झाड़ू लेकर चल पड़े- राजनितिक एवँ भ्रष्टाचारीय गन्दगी साफ करने। लोगों ने उन्हें सिर आँखों पर बैठाया और झाड़ू लेकर चलने वालों की बाढ़ आ गई।अभिनव प्रयोग में इन्हें दिल्ली राज्य की सत्ता भी मिल गई।परन्तु जल्दी ही जनता समझ गई कि ये भी भ्रष्ट सत्तेबाजों की भाँति सत्ता लोलुप हैं और इनकी महत्वाकांछा भी पूरे देश की सत्ता हथियाने की है नकि अन्ना के संकल्प को सफल करने की।इस प्रकार इनकी सत्ता और संभावना दोनों समाप्त हो गईं। परन्तु जनता ने झाड़ू चलाना तय कर लिया था और उन्हें राष्ट्र स्तर पर नरेंद्र मोदी में सबसे विश्वसनीय  एवँ योग्य झाड़ू चलाने वाला विकल्प दिखने लगा था। अतः ऐतिहासिक सूझ -बूझ का परिचय देते हुए भारी बहुमत ने अपने सपनों का झाड़ू प्रधान सेवक श्री मोदी को पकड़ा दिया। आशा के अनुरूप मोदी जी अनेकानेक क्षेत्रों में पूरी क्षमता से झाड़ू चलाने लगे हैं और झाड़ू का इक़बाल बुलंद हो रहा है। आज कार्यपालिका ,न्यायपालिका ,विधायिका और संचार माध्यम सभी स्वच्छता के प्रति अभूतपूर्व गम्भीर हो गए हैंऔर स्वच्छ भारत मिशन की गाड़ी तेज गति से दौड़ने जा रही है।
**********इस बुहारी के अनेक पर्याय ही नहीं अपितु विस्तार देने वाली ढेर सारी सहायक क्रियाएँ भी हैं यथा पोंछा लगाना ,धूल  झाड़ना ,धुआँ उड़ाना ,प्रकाश करना ,फिनायल ब्लीचिंग या क्लोरिनेट करना ,ऑक्सीजन उत्सर्जन के लिए अधिकाधिक पेंड़ -पौधे लगाना,रासायनिक कचरे का प्रबंधन करना ,कूड़े  का निरंतर अंतिम निस्तारण करना इत्यादि इत्यादि। इन सबसे बड़ी सहायक क्रिया है-- गन्दगी या तो की ही न जाय या न्यूनतम की जाय और कूड़े का निस्तारण बुहारी करने से उसके अस्तित्व मिटाने तक की जाय।इन सभी क्रियाओं को समाहित करते हुए स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत भारत सरकार का एक उत्कृष्ट कदम है। इसकी सफलता के लिए देश के हर नागरिक की सहभागिता अपेक्षित है। यह सहयोग हमें असहज भी नहीं लगाना चाहिए क्योंकि हिन्दुस्तानी संस्कृति ही स्वच्छता की नींव पर खड़ी हुई है। परंपरागत तौर पर हमलोगों की अपनी, अपने घरों एवँ द्वार- दरवाजों की स्वच्छता बेमिशाल होती है यहाँ तक कि हमारी एक पूज्य देवी के हाथ सदैव झाड़ू शोभायमान रहता है।परन्तु उस परिधि से बाहर हमें सार्वजानिक स्थलों जैसे सरकारी चिकित्सालय ,विद्यालय ,कार्यालय ,रेलवे स्टेशन ,बस पड़ाव,गली , सड़क, नदी,बाजार इत्यादि में गन्दगी करने ,देखने और सहने की आदत सी बन गई है। एक प्रचलित कथन है कि जिससे छुटकारा मिलना सम्भव न हो उसके साथ रहना सीख लो।इस सोच से बहार  निकलने और स्वच्छ भारत निर्माण का समय आ गया है क्यों कि झाड़ू के सितारे आसमान छू रहे हैं।
**********महात्मा गाँधी अपने जीवन में स्वतंत्रता से अधिक स्वच्छता को महत्व देते थे। स्वच्छता जीवन पर्यन्त उनकी चर्या में समाहित थी। इसकी छाप आज भी साबरमती या सेवाग्राम आश्रम में द्रष्टब्य है। महात्मा जी की अगुआई में हुई जनजागृति ने हमें स्वतंत्र भारत दिया परन्तु स्वच्छ भारत का स्वप्न वर्षों से स्वप्न बना रहा। अब दूसरी जन जाग्रति ने वर्तमान सरकार की अगुआई में  हमें स्वच्छ भारत देने की ठान ली है। अतः अपनी -अपनी भूमिका निभाते हुए स्वच्छ भारत अभ्युदय का उत्सव मनाना चाहिए। स्वतंत्र भारत का स्वच्छ भारत होना महात्मा की पुनीत जयन्ती पर उन्हें सर्वाधिक प्रिय श्रद्धांजलि होगी। यह झाड़ू की ही बलिहारी है कि स्वच्छ भारत  अवतरित हो रहा है। बुहारी तेरे दिन बार बार बहुरे।
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अंततः
विजय पर्व दशहरा की सभी सुधी प्रिय पाठकों को मंगल कामनाएँ। सुत्योहारमस्तु।___मंगल वीणा
दिनाँक :2 अक्टूबर 2014  स्थान :वाराणसी
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