मंगलवार, 4 अप्रैल 2017

कर्मयोगी से योगी तक

***************युवा भारत की नई सोच की बलिहारी कि देश को पहले प्रधान मंत्री के रूप में एक कर्मयोगी मिला फिर विश्व को योग दिवस मिला और अब राम कृष्ण की धरती को एक योगी। निःसंदेह ये सारी उपलब्धियाँ देश के नव जागृति क्रम में हो रही हैं। सन दो हजार चौदह में भारत में संपन्न हुए लोकसभा से अभी तक संपन्न हुए विधान सभा के चुनावों का  यदि सूक्ष्म विश्लेषण किया जाय तो ये युगान्तक घटनायें ही स्थापित नहीं होती हैं ,वरन आर्यावर्त में आगामी संभाव्य दृश्यावली भी लगती हैं। सोच बदलाव का ऐसा दौर चला है कि धर्मनिरपेक्षता ,अल्पसंख्यक ,पिछड़ा ,मुस्लिम आदि जैसे नारे, जो सत्ता पाने के लिए ब्रह्मास्त्र माने जाते थे,सब भोथरे हो गए। तुष्टीकरण रसातल में मिल गया।सच है, भारत नए युग में प्रवेश को मचल रहा है वरन मुस्लिम मतदाता जो भारतीय जनता पार्टी एवं इसके विचारधारा का पारंपरिक धुर विरोधी रहा है ,इसे विजय के लिए मतदान न करता।जनमत ने सीधा संकेत दिया है कि प्रगति और विकास के लिए आतुर भारतवासी को सरकार के रूप में उसे पोषक शासन चाहिये न कि शोषक।ऐसा लगने लगा है कि जो शोषक तथा विकास के बाधक बनें गे उन्हें नाकारा ही नहीं जाय गा बल्कि जनता के पैसे के दुरुपयोग के लिए कठघरे में भी खड़ा होते देखा जाय गा।भारत की बढ़ती आर्थिकशक्ति,राजनीतिक दक्षता व जनता को प्रदत्त बेहतरी से पडोसी देश भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकेंगे।ऐसे में आगे चल कर आर्यावर्त या वृहद् भारत विश्व पटल पर उभर सकता है।
***************आज के पड़ाव पर पहुंचने से पहले भारतीय लोक तंत्र की यात्रा कुछ यूँ हुई। आजाद भारत के तत्कालीन स्वप्न द्रष्टा नेताओं ने अपने सपने के भारत अभ्युदय के लिए उस समय गाँधी विचार तले दो सर्वोच्च संवैधानिक व्यवस्था समाज को दिया। उनमें पहली थी धर्मनिरपेक्ष लोकतान्त्रिक व्यवस्था व् दूसरी थी सामाजिक रूप से दलितों एवं पिछड़ों को आरक्षण की व्यवस्था।समय के साथ जैसे -जैसे हमारा लोकतंत्र आगे बढ़ा ,नेताओं ने इन ब्यवस्था की बहुमत के लिए ऐसी कुब्यवस्था कर डाली कि पूरा देश वर्गवाद ,धर्मवाद ,संख्यावाद,क्षेत्रवाद  व् जातिवाद में बँटता गया और इन गोलबन्दी के बाहर बचे देशप्रेमी हिन्दू उपेक्षा के शिकार होने लगे। अल्पसंख्यकों एवं अनुसूचित जातियों की बात कर कुलीन कांग्रेसी लंबे समय तक नेहरू परिवार को सत्ता पर बैठाये रहे। इस बीच हर उभरते वाद में नए स्वयं स्थापित नेतृत्व पैदा हुए और बंदरबाँट की सरकारें बनने लगीं। नेताओं का परम धर्म सरकार बनाना  और अपनी स्वार्थपूर्ति के लिए सरकार बनाये रखना हो गया।वंशवाद ,भ्रष्टाचार और सामाजिक विघटन विशाल बट बृक्ष होते गए। यह गौण हो गया कि सरकारें बनाई क्यों जाती हैं। साधन को साध्य बनते देख आम लोग भौंचक थे। सब कुछ ऐसा था जैसे आदमी अपनी आवश्यकता एवं इच्छा पूर्ति के लिए पैसे न कमा कर मात्र पैसा संचय के लिए पैसा कमाये । थक हार कर जनता  ने मन बना लिया कि मृग मरीचिका का छलावा देने वालों को बता दिया जाय कि यह जनता है जो सब जानती है।
***************बढ़ती शिक्षा ,वैश्वीकरण ,सोशल व् इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़ाव तथा विदेशों के साथ बढ़ते आवागमन से देश में नव जागरण की हवा प्रबल हुई। लोग जान पाए कि क्षमता के बावजूद  देश विकसित क्यों नहीं हो पा रहा है।लोग जान पाए कि देश से बाहर एक भारतीय; चाहे हिन्दू हो ,चाहे मुसलमान हो या कोई अन्य  धर्मावलंबी; की पहचान कैसे होती है और उसी भारतीय की  देश के अन्दर कैसी पहचान बताई जाती है।इन प्रश्नों के मंथन से ही सारे जन मन विरोधी दल नकारे जा रहे हैं और कभी सांस्कृतिक राष्ट्रवाद तथा  हिन्दू गौरव के लिए हाशिये पर रखी गई पार्टी आज नव जागरण की जन वाणी बन गई।भारत के हर नागरिक की बिना लाग लपेट यह अपेक्षा है कि उसे बेहतर से बेहतर शिक्षा ,स्वास्थ्य सेवा ,सड़क ,सुरक्षा ,शिष्टाचार तथा साथियाना अवसर मिले।साथ ही साथ सरकारें विश्व पटल  पर भारतवासियों को  भारतीयता और भारतीय संस्कृति अर्थात हिन्दू संस्कृति पर गौरवान्वित कराने वाली हों जैसे कि पूरे विश्व में प्रति वर्ष योगदिवस आयोजन से हमारी भारतीय संस्कृति गरिमामयी हुई है।हमारी हिन्दू संस्कृति ही हमारी विशिष्ठता  है जो वसुधैव कुटुम्बकं की बात करती है। अतः सबका साथ लेते हुए सबका आर्थिक ,सामाजिक और सांस्कृतिक विकास सुनिश्चित करना होगा।आज की सरकारों को यह हर पल याद रखना होगा कि जनता ने उन्हें जनता की सेवा करने के लिए सत्ता सौंपी है न कि जनता से सेवा कराने और अति विशिष्ठ बनने के लिए।वादों पर मुहर लग चुकी हैं ,अब परिणाम देने की बारी है।
***************नए नेतृत्व के सामने दो काम हैं। पहला है दिए गए दायित्व या मिशन को अक्षरशः बिना किसी किन्तु - परन्तु के पूरा करना तथा दूसरा है जनता की स्नायु को पकड़ना कि आगे वह सरकारों के लिए क्या लक्ष्य देने वाली है।मिशन और विज़न में कोई भी लोच हुआ नहीं कि  आगे का अवसर छिना। इतना इशारा काफी है कि अति विशिष्ठ संस्कृति ,काले धन  ,भ्रष्ट नौकरशाही ,नेताओं के अपार धन स्वामित्व ,माफियागिरी तथा कानून के गिरगिटिया रूप से जनता की घृणा अहर्निश बढ़ती जा रही है।शुभ संकेत यह है कि नव  जागरण का नेतृत्व योगियों के हाथ है जिनकी  कर्मयोग निष्ठा निर्विवाद है। नेतृत्व की अनुकूलता एवं प्रतिबद्धता से जनता की उम्मीदें अँगड़ाइयाँ लेने लगी हैं। अपेक्षा रहे गी कि उम्मीदें फलीभूत हों । ------------------------------------------------------------------मंगलवीणा
वाराणसी ;दिनाँक 4.4 . 2017
चैत्र शुक्ल अष्टमी मंगलवार संवत २०७४
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अंततः
सभी स्नेही पाठकों ,साथियों ,आलोचकों व् देशवासियों को मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जन्मोत्सव राम नवमी की मधुमासी शुभ कामनाएं।
चूँकि मधुमास में ही लोग गर्मी से झुलसने लगे हैं ;आइये , त्रेता युग में रामजन्म के समय  अवध के जलवायु का तनिक सानिद्ध्य लिया जाय -
*****नौमी तिथि  मधुमास  पुनीता।सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता।
*****मध्य  दिवस अति  सीत न घामा। पावन  काल  लोक  विश्रामा।
*****सीतल  मन्द  सुरभि  बह  बाऊ । हरषित  सुर संतन  मन चाऊ।
***** बन कुसुमित गिरिगन मनियारा।स्रवहिं सकल सरितामृतधारा।-------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------गोस्वामीतुलसीदास
अब मिल बैठ सब सोंचे कि वैसा मधुमास और वैसी परिस्थितियाँ कैसे अवतरित हों ?जलवायु और पर्यावरण को हमने ही तो वर्वाद किया।----------------------------------------------------------मंगलवीणा
वाराणसी ;दिनाँक 4.4 . 2017
चैत्र शुक्ल अष्टमी मंगलवार संवत २०७४ ------------mangal-veena.blogspot.com
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