सोमवार, 16 अप्रैल 2018

बजट ,तूँ मारेसि मोहि कुठाँव

***************हमारे देश में निम्न मध्यम आय वाले नौकरी पेशेवर बेहद तन्मयता से बजट की प्रतीक्षा करते हैं , उनकी वैसी तन्मयता शायद ही किसी अन्य वस्तु की चाहत में दिखती है। देश में एक और महत्वपूर्ण वर्ग है जो कुछ ऐसे ही या यूँ कहें कि प्यासे चकोर की भाँति केंद्रीय बजट की बाट जोहता है और वह है मध्यम आय वाली महिलाओं का वर्ग।केंद्रीय सत्ता में बैठा कोई भी योजनाकार यदि इन दोनों वर्ग की पीड़ा को नहीं जानता या जानते हुए उनकी उपेक्षा करता है तो मानिए कि वह हिंदुस्तान को नहीं जानता या  उसे प्रफुल्लित नहीं देखना चाहता।आशा तो नहीं थी कि मोदी युग में ऐसा होगा परन्तु दुर्भाग्य कि ऐसा ही हो रहा है।इस वर्ष के केंद्रीय बजट द्वारा वित्त मंत्री ने फिर परिलक्षित कर दिया है कि इनके शोषण पर ही हमारा लोकतंत्र खड़ा है।रोटी ,कपड़ा, मकान , महँगाई ,शिक्षा ,स्वास्थ्य,सुरक्षा,भ्रष्टाचार,राजस्व व राजतन्त्र सभी इनका बेहिचक शोषण कर रहे हैं।आर्थिक तथा सामाजिक लाभ मे अहर्निश हमारे देश में अनुसूचितों और पिछड़ों की बात होती है ,लुटेरे अमीरों की बात होती है,देश को वर्वाद करने वाले निरंकुश नेताओं के विशेषाधिकार व आय बढ़ोत्तरी की बात होती है परन्तु दो पाटन के बीच पिसती इन खालिस वासिंदों की कहीं गिनती नहीं।इन्हें मात्र श्रोत और साधन माना जाता है।
 ***************आज करोड़ों कर्मचारी परिवारों के साथ साथ मध्यम आय वर्ग की  महिलाएँ भी ठगी सी निहार रही हैं कि उनके सपनों की सरकार को किसकी बुरी नजर लग गई।उन्हें तो बताया गया था कि जीएसटी के बाद रोजमर्रा उपयोग की जींस सस्ती हो जाँय गी परन्तु हुआ ठीक उसका उलट।बताया गया था कि बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य तक सबकी सहनीय पहुँच सुनिश्चित की जाय गी परन्तु ये दोनों ही आवश्यकताएँ दुष्प्राप्य एवँ दिवालिया बनाने वाली सिद्ध हो रही हैं।इस  वर्ग पर तीसरी सर्वाधिक प्रभाव डालने वाली वस्तु पेट्रोलियम एवँ पेट्रोलियम उत्पाद की तो पूछिए मत जिनकी कीमतें सरकारें मनमाने ढंग से बढ़ा रही हैं और अब वे आसमान से बातें कर रही हैं।आमदनी की बात हो तो सातवें वेतन आयोग की सस्तुतियाँ न तो समय सापेक्ष उनकी चाहत के अनुरूप आईं  न कर्मचारी संगठनों की माँग पर सरकार गम्भीर हुई। इस निराशा और बढ़ती बेरोजगारी का परोक्ष प्रभाव निजी क्षेत्र में काम करने वाले पेशेवरों पर भी पड़ा जिससे उनकी वेतन बढ़ोत्तरी पर बुरा प्रभाव पड़ा है;ऊपर से आयकर की क्रूर कैंची साल दर साल उनकी आय को कतरती जा रही है।भ्रष्टाचार मिटाने की पुरजोर शंखध्वनि हुई थी परन्तु आकण्ठ भ्रष्टाचार में डूबी संस्थाएँ व व्यवस्था पहले से ज्यादा पल्लवित ,पुष्पित हो रही हैं और इस बड़े उपभोक्ता वर्ग को अपनी आय का कुछ अंश यदा कदा रिश्वत मद में  भी  ब्यय करने केलिए विवश कर रही हैं।इस प्रकार मध्यम वर्ग की घटती क्षमता और उनपर बढ़ते बोझ का सरकार द्वारा आकलन और समायोजन न कर पाना भविष्य में गम्भीर सामाजिक समस्याओं को जन्म दे सकता है।
*************** सरकारों के राजस्व में सर्वाधिक योगदान इसी वर्ग का है। फिर सरकार के ध्यान पर भी इसी वर्ग का सर्वाधिक हक़ बनता है। परन्तु सरकारों का कृतित्व अक्षरशः इसके विपरीत है।प्रत्यक्ष प्रमाण के रूप में चालू वित्त वर्ष के लिए केन्द्र सरकार के  आय व्यय विवरण का अनुशीलन पर्याप्त है।उदहारण चाहिए तो सरकार की राष्ट्रीय स्वास्थ्य संरक्षण योजना पर ध्यान दिया जा सकता है।सरकार पचास करोड़ गरीब लोगों को पाँच लाख प्रति परिवार स्वास्थ्य बीमा देने जा रही है।अब इनसे कौन पूछे कि मध्यम वर्ग को क्यों नहीं ?क्या वित्त मन्त्री इतना अनभिज्ञ हो सकते हैं कि उन्हें ज्ञात न हो कि एक मध्यम वर्ग का परिवार किसी बीमारी पर पाँच लाख रुपये खर्च करने के बाद निम्न आय वर्ग में फिसल सकता है।अतः उन्हें भी ऐसी सुविधाएं मिलती रहें जो कम से कम उन्हें मध्यम वर्ग में बनाए रखें।बजट व योजना वही बने जिससे सबका लाभ और विकास हो परन्तु राम राज्य की बातें करने वाले उसे धरातल पर उतारने के लिए कुछ भी करते हुए नहीं दीख रहे हैं।रामराज्य का निदेश है ---
_______________मुखिया मुख सो चाहिए खान पान कहुँ एक ।
______________पालइ पोषइ सकल अँग तुलसी सहित बिबेक ।
____राजधरम सरबसु एतनोई। जिमि मन माहँ मनोरथ गोई।(रामचरितमानस )
फिर क्यों न ऐसी धारणा बने कि सरकार सकल अंग का तात्पर्य सांसद ,विधायक ,गरीब ,निम्न वर्ग ,आरक्षित वर्ग ही समझती है और इसके लिए ये लोग ही साध्य हैं ;शेष  मध्यम वर्ग के लोग साधन।
***************कमियों को उजागर करना यदि लेखन दायित्व है तो उन कमियों को दूर करने के लिए व्यक्तिगत सुझाव देना भी वांछनीय लेखन धर्म।उदाहरण पर उतरें तो चुनाव के समय जिन भ्रष्टाचारी नेताओं को नित्य याद किया जाता था ,उन्हें कारागारों में पहुँच जाना चाहिए था।विदेशों में छिपाया धन देश वापस लाना चाहिए था और उसकी त्रैमासिक प्रगति दरबार -ए -आम में नियमित पढ़ी जानी चाहिए थी। प्रचारित किया गया था कि जी एस टी से रोजमर्रा उपयोग की चीजें सस्ती होंगी तो बजट में परिलक्षित होना चाहिए था और धरातल पर ऐसा ही दिखना चाहिए था।पेट्रोलियम पदार्थों को जी एस टी से बाहर रखने से तो  सरकार की नीयत ही कठघरे में खड़ी हो गई है क्योंकि यही एक वस्तु है जो सस्ती होने पर सस्ताई और महँगी  होने पर पूरे अर्थ व्यवस्था में महँगाई लाती है।इसकी कीमतें नियंत्रित कर रसोई घरों की रौनक बढ़ाई जा सकती थी। देश और अपनी पार्टी की  भलाई चाहने वाली सरकार को अब भी चाहिए कि वचनवद्धता एवँ पारदर्शिता को अविलम्ब पुनः  गले का हार बना ले।दिशा निर्देशों के बल पर सांसद और विधायक चाहे माननीय कहला लें या संवैधानिक शक्तियों से अपना वेतन भत्ता कल्पना की हद से परे तक बढ़ा लें , आम लोग इन्हें अनुज्ञाप्राप्त लुटेरा , अति निंदनीय प्राणी और योग्यता की कसौटी पर सरकारी ढांचे के न्यूनतम वेतन के लिए भी अयोग्य मानते हैं। अतः आम आदमी से जुटाए राजस्व को इनके ऊपर इस हद तक लुटाना जनता को बहुत चुभने लगा है। इस विषय पर युवा भारत की सोच को सांसद वरुण गाँधी ने आवाज देने का प्रयास किया परन्तु इन सर्व शक्तिमान लोगों को लूट पर मुहर लगवाने से वे नहीं रोक पाए।भारतीय संविधान आम आदमी के सब्र को ऐसे कब तक बाँध रखे गा; यह भारत भाग्य विधाता ही जानें।हमें भी पता है ,सरकार को भी पता है कि आज पाँच लाख रुपये वार्षिक आय से एक  परिवार का पालन पोषण कितना दुष्कर है फिर भी ऐसे लोगों को आयकर में घसीटा जा रहा है। आवश्यकता थी कि उन्हें इस बन्धन से मुक्त किया जाता और दस लाख की सीमा तक कर देयता दस प्रतिशत कर दी गई होती।सबके साथ सामान व्यवहार के आधार पर कृषि क्षेत्र को कर के दायरे में लाना चाहिए था।सर्वोपरि बात है कि हम सभी भारतीय कर देते हैं। अतः सभी का सरकारी  सुविधाओं पर  यथेष्ठ अधिकार है और वह हमें मिलना ही चाहिए।बहुत हो चुका असमान वितरण। अब नहीं चले गा।
***************वर्ष दो हजार चौदह में हुए लोकसभा चुनाव की पूरी दुनियाँ साक्षी बनी जब हमारे देश में  शासन की राष्ट्रपति प्रणाली न होने पर भी यह चुनाव हूबहू वैसे ही श्री नरेंद्र मोदी के लिए लड़ा गया और भाजपा अच्छी खासी बहुमत के साथ श्री मोदी जी नेतृत्व में सत्तारूढ़ हुई। जन जन ने उनके 'सबका साथ ,सबका विकास 'पर विश्वास किया। परन्तु जैसे जैसे समय बीतता गया, सरकार अपने वादों से दूरतर होती पाई गई।सरकार नित्य नए विचार व क्रियान्वयन के साथ जनता के बीच आती रही और चुनावी वादे व उनके क्रियान्वयन पीछे छूटते रहे। मोदी जी उत्तम किस्म के राजनीतिज्ञ होते हुए भी उसी प्रकार आधारहीन चाटुकार नेताओं से घिर गए जैसे कभी कांग्रेस का नेतृत्व घिरा रहता था। यदि मोदी जी जन धन की चौकीदारी ही सुनिश्चित कर दिए होते तो उन्हें आमजन को कुठाँव न मारना पड़ता।निःसंदेह जनता में अब भी मोदी जी की लोकप्रियता किसी भी अन्य नेता से अधिक बनी हुई है और सरकारी गाड़ियों से अति विशिष्ठता दर्शाने वाली लाल- नीली बत्ती  पर प्रतिबंध या स्वच्छता अभियान की भूरि भूरि प्रसंशा भी हुई है परन्तु यह तय है कि जनता आगामी चुनाव के समय उनसे सबके विकास ,चौकीदारी ,काले धन ,भ्रष्टाचार ,पारदर्शिता ,खुशहाली सूचकांक , स्वच्छ प्रशासन ,धारा तीन सौ सत्तर ,राम मन्दिर ,रोजगार इत्यादि पर प्रगति आख्या  माँगे गी।यह और रोचक होगा जब माननीयों की आर्थिक दीनता की चर्चा होगी क्योंकि सरकार की दृष्टि में वे ही गाँधी जी द्वारा रेखांकित पंक्ति में सबसे पीछे खड़े नजर आए हैं।सरकार के लिए गंभीर सोच का विषय है कि जिनसे देश बनता है ,समाज बनता है ,संस्कृति बनती है और सरकारें बनती हैं उनके साथ कैसा व्यवहार होना चाहिए। आज  मध्यम वर्ग आर्थिक चोट से घायल है और मोदी जी से निराश।------------------------------------------------------------------------------------------------------------मंगलवीणा
वाराणसी ;दिनाँक 16 अप्रैल 2018.                              mangal-veena.blogspot.com
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अंततःऋतु चर्चा
बसन्त को परास्त कर ग्रीष्म ऋतु ने अपने आगमन की भेरी बजवा दी है। भूमि जलस्तर, जलसंरक्षण,वृक्ष लगाओ ,वृक्ष बचाओ ,पर्यावरण इत्यादि पर कागजी और मीडिया वाली मौखिक परिचर्चाएँ भी प्रारम्भ हो चुकी हैं। इस बीच संयुक्त राज्य अमेरिका में कार्यरत मेरे जेष्ठ बेटे ने चार अप्रैल को व्हाट्सएप्प पर एक बड़ा ही मर्मभेदी सन्देश भेजा जिसे मैं प्रासंगिकतावश आप सभी के अनुशीलन हेतु प्रस्तुत कर रहा हूँ। कृपया देखें ," आम ,नीम ,पीपल और बरगद के पेड़ काटकर घर में मनी प्लांट लगाने वाले बुद्धिजीवियों को  भीषण गर्मी की शुभ कामना। "और फिर भारतेन्दु जी की इन पंक्तियों को गुनगुनायें ,"हम क्या थे ,क्या हो गए और क्या होंगे अभी ?
ग्रीष्म सबके लिए मंगलमय हो। इस शुभेच्छा के साथ ---------------------------------मंगलवीणा
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