सोमवार, 30 दिसंबर 2019

वाह फेविकोल वाह

*************************अपने आचरण के विपरीत कोई कोई वाणिज्यिक विज्ञापन भी हमें गुदगुदा जाते हैं।ऐसे विज्ञापन अपने उत्पाद का प्रचार प्रसार तथा विपणन विस्तार तो करते ही हैं;साथ में अपने संवाद संप्रेषण एवँ मिठास के कारण अति लोकप्रिय हो जाते हैं। इस वर्ष एक ऐसा ही विज्ञापन टीवी पर फेविकोल के लिए आया जिसका शीर्ष बोल है "सोफा बनाए तो दिल से बनाए "।अन्य विज्ञापनों से हट कर इस विज्ञापन ने, प्रचार प्रसार का काम करने के साथ साथ , कर्णप्रिय संगीत और प्रेरक सन्देश दिया है। सबसे बड़ी विशेषता यह कि शर्माईन के यहाँ से चल कर बंगालन तक पहुँचने वाली सोफे की साठ साल की यात्रा वयान करते करते पीडिलाइट इंडिया ने ,तेजी से, भारत के बदलते परिदृश्य का बड़ा ही सजीव  प्रस्तुतीकरण किया है।सफलता का राज भी तो यही है कि प्रयास दिल से किया जाय।मुझे ऐसा लगता है कि इस विज्ञापन ने आप का भी ध्यान अवश्य आकृष्ट किया होगा। अस्तु फिर कभी इसे जरा ध्यान से सुनिए गा और इसके सन्देश को महसूसिए गा।अच्छा लगे तो फिर सुनिए गा। प्रणाम।  ------------------------------------------------------मंगलवीणा
 वाराणसी :सोमवार दिनाँक 30 दिसम्बर 2019     

गुरुवार, 19 दिसंबर 2019

Mangal-Veena: इतिहास बनाए तो ऐसे बनाए

Mangal-Veena: इतिहास बनाए तो ऐसे बनाए: ***************किसी भी देश या समाज का इतिहास उसके अतीत में घटित घटनाओं और उनके प्रभावी आयामों का यथार्थ अभिलेखन होता है।कालक्रम में बिना कि...

बुधवार, 18 दिसंबर 2019

इतिहास बनाए तो ऐसे बनाए

***************किसी भी देश या समाज का इतिहास उसके अतीत में घटित घटनाओं और उनके प्रभावी आयामों का यथार्थ अभिलेखन होता है।कालक्रम में बिना किसी दूसरे समाज या संस्कृति से दबे या चोट खाए जो समाज अपनी संस्कृति और सभ्यता का विकास जारी रखते हुए उसे सही रूप में अभिलेखित कर पाता है वह अपने लिए गौरवान्वित करने वाले इतिहास का सृजन करता है अन्यथा  संघर्ष में पराजित होने या पिछड़ने पर उसे झेंपाने और ग्लानि देने वाले छद्म इतिहास का उत्तराधिकारी बनाया जाता है।यही कारण है कि सम्पूर्ण भारत के परिपेक्ष्य में पृथ्वीराज चौहान के बाद सन उन्नीस सौ सैंतालीस में देश को स्वतंत्र होने तक हमारा इतिहास, कुछ अपवाद खंडों को छोड़ कर, झेंपने- झेंपाने वाला बनाया और बताया गया। जो देश सांस्कृतिक सभ्यता एवं मानवता विकास का आदि काल से विश्व में सबसे अग्रणी भूभाग रहा उसके मध्य कालीन एवँ आधुनिक इतिहास को शासकों के इशारे पर वदनियत इतिहासकारों ने विद्रूप कर दिया।गणतंत्र बनने के बाद भी सत्ता में बैठे विदेशी संस्कृति वाले देशी लोग हमारे देश को औपनिवेशिक शासकों के ढर्रे पर चलाते रहे।  उनके संरक्षण में हमें हीन बताने वाला छद्म इतिहास पढ़ाया जाता रहा और हिन्दू बहुल समाज अपने अतीत के प्रति हो रहे दुराग्रह से छटपटाता और छला महसूस करता रहा।इस बीच भारत और भारतीयता पर गर्व करने वाले महापुरुषों एवँ संगठनों के नेतृत्व में सामाजिक एवँ सांस्कृतिक पुनरुत्थान के पुरजोर प्रयास भी जारी रहे । परिस्थितियाँ बनती गईं और सन दो हजार चौदह आते आते  हिंदू (भारतीय ) संस्कृति और राष्ट्रवाद का पूरे देश में ऐसा प्रचण्ड ज्वार उठा कि राष्ट्रवाद सह हिन्दू संस्कृति की उपेक्षा करने वाली विचार धाराएँ तहस नहस होने लगीं और भारतीय जनमानस ने मन ही नहीं बनाया बल्कि अपने राष्ट्र और संस्कृति को विश्वपटल  पर स्थापित करने के लिए मोदी नीत भाजपा को बहुमत से केंद्रीय सत्ता में बैठा दिया।
*************** फिर क्या  पिछले छः वर्षों के बेहतरीन घटनाक्रमों से सजा भारतीय इतिहास स्वर्णाक्षरों से अंकित हो रहा है। साथ ही पूर्व के इतिहास को भी सत्य एवँ यथार्थ के कसौटी पर कसा जा रहा है।सन दो हजार चौदह से वर्तमान वर्ष के पूर्वार्द्ध वाले पाँच वर्षीय कालखण्ड में नए धरातल पर खड़ी भाजपा सरकार  ने ,जनता से प्राप्त विश्वास के अनुरूप एक से बढ़ कर एक निर्णय एवँ क्रियान्वयन से, देश तथा दुनियाँ को चकाचौंध किया। जनता एवँ सरकार से इस कालखण्ड को स्वर्णिम कालखण्ड बनानेवाली अनेकानेक महत्वपूर्ण घटनाएँ उपजीं जो पूरी दुनियाँ में नई दृष्टि से देखी ,चर्चित और प्रशंसित हुई हैं। उल्लेख के लिए भारत के संसदीय चुनाव प्रणाली में पहली बार अमेरिका की भाँति पूरे देश में चुनाव केवल एक मुद्दे पर लड़ा गया कि श्री नरेंद्र मोदी देश के प्रधान मंत्री हों या न हों। कौन सांसद पद प्रत्याशी बनाया गया ,गौण हो गया। भाजपा को बहुमत देकर जनता द्वारा स्पष्ट सन्देश दिया गया कि शासन उसे सौपा जायगा जो भारत ,भारतीयता और भारतीय संस्कृति को पुनर्स्थापित करते हुए देश को पूरे विश्व में सम्मान और गौरव दिलाए गा।तथास्तु ,मोदी जी ने जनता के प्रबल जनसमर्थन को देश ही नहीं पूरी दुनियाँ में आत्मविश्वास के साथ प्रतिध्वनित किया। वे दुनियाँ में जहाँ भी गए ,वहाँ बसे प्रवासी भारतीयों ने उन्हें हाथोहाथ लिया और वे पूरे विश्व में सबसे बड़े लोकतंत्र के सर्वाधिक जनप्रिय नेता के रूप में प्रतिष्ठित हुए।नए भारत के इस नए नेता ने देश का ऐसा गौरव बढ़ाया कि दुनियाँ वालों का भारतीयों को देखने व उनसे व्यवहार का दृष्टिकोण ही बदल गया।लोग गर्व से कहने लगे कि हम भारतीय हैं।दूसरी ओर पश्चिमी सीमा पर प्रतिद्वंदी पाकिस्तान को उनके दुस्साहस का उत्तर सर्जिकल स्ट्राइक एवँ एयर स्ट्राइक से देकर कड़ा सन्देश दिया गया कि नया भारत किसी भी प्रकार का आतंकवाद या भृकुटि विक्षेप सहन नहीं करे गा । ऐसा ही सन्देश चीन जैसी महा शक्ति को ढ़ोकलाम में दिया गया। नया भारत अब एक उदार देश वाली छवि से बाहर निकल एक दृढ़ इच्छाशक्ति वाला देश हो गया ।
***************अंतरिक्ष और रक्षा क्षेत्र में सराहनीय कार्यों के साथ साथ देश के अंदर वीआईपी संस्कृति और भ्रष्टाचार पर प्रहार ,स्वच्छ भारत अभियान ,उज्ज्वला एवँ  पीएम आवास जैसी योजनायें या गरीब सवर्णों को दस प्रतिशत आरक्षण देना कुछ ऐसे कार्य थे जो समाज के हर वर्ग को सुखद स्पर्श दिए। परिणामस्वरूप  विरोधिओं द्वारा वोट के लिए खड़ी जातिवाद और धर्म की छद्म दीवार तेजी से ढहीं।समाज से तुमुल ध्वनि हुई कि धर्मनिर्पेक्षता के मायने केवल अल्पसंख्यकों के हित की बात करना ही नहीं बल्कि भारत में बहुसंख्यकों की उससे पहले बात करना भी है।मोदी जी का  "सबका साथ- सबका विकास परन्तु तुष्टिकरण किसी का नहीं "नारा समाज में विश्वसनीयता के धरातल पर उतर गया।सच तो यह है की देशव्यापी समर्थन के बाद भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के विचार क्रियान्वित होने लगे और हमारी संस्कृति पुरानी जड़ों की ओर वापस लौट पड़ी परन्तु भारतीय संसद के ऊपरी सदन में राजग का बहुमत न होने और विरोधियों के असहयोग के कारण देश की कुछ अति महत्वपूर्ण समस्याएँ हल नहीं हो पा रही थीं। अतः इस वर्ष के पूर्वार्द्ध में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव के लिए एजेंडा में उन मुद्दों को पुनः समाहित करते हुए भाजपा ने राष्ट्रवाद से आगे प्रखर राष्ट्रवाद का नारा दे दिया। फल आशातीत रहा और भाजपा नीत राजग दो तिहाई बहुमत का  आँकड़ा पार कर गया।समय और प्रवंधन के बल पर अब भाजपा राज्यसभा में भी बहुमत सिद्ध करने की स्थिति में थी और वह समय आ गया कि युगान्तकारी निर्णय लिए जाँय।
***************हमारे इतिहास में अल्पावधि में उल्लेखनीय कार्यों के लिए शेरशाह सूरी का रिकार्ड था परन्तु यह क्या छः महीने में वे दीर्घकालिक समस्याएँ हल कर दी गईं जिनको माना जा रहा था कि इनको छेड़ने से देश के अस्तित्व को संकट है।स्वतन्त्रता के बाद से मोदी सरकार की दूसरी पारी शुरू होने तक कश्मीर समस्या देश के लिए नासूर सी कष्ट दे रही थी। कई हजार सैनिक ,नागरिक और कश्मीरी पण्डित जान गँवा चुके थे। पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद ने पूरी घाटी को रक्तरंजित कर रखा था। लाखों कश्मीरी पण्डितों को  घाटी से पलायन कर देश के अन्य भागों में शरण लेना पड़ा परन्तु विगत काँग्रेस सरकार हाथ पर हाथ धरे सत्ता सुख लेती रही। घाटी के अलगाववादी नेता कश्मीर के अलग होने का भय दिखाकर केंद्र से बेतहाशा धन लूटते रहे और धमकाते रहे कि यदि कश्मीर से धारा 370 या 35 ए हटाया गया तो घाटी में भारतीय ध्वज को कोई कन्धा देने वाला नहीं होगा। कमाल देखिए दृढ़ निश्चयी मोदी जी एवं उनकी सरकार का कि पहले मानसून सत्र के पाँच अगस्त को संसद में प्रस्ताव पास करा कर कश्मीर से धारा 370 एवँ 35 ए को समाप्त कर दिया और राज्य को जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख नाम से दो केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित कर दिया। इस निर्णय पर   कतिपय देशद्रोहियों को छोड़कर समूचा देश झूम पड़ा। सरकार ने संसद के इसी सत्र में जम्मू और कश्मीर  विधेयक से पहले तीस जुलाई को मुसलमानों में प्रचलित तीन तलाक कानून को अवैध  करने वाला विधेयक पास कर करोड़ों मुस्लिम महिलाओं के आँसू पोछा और समाज में सम्मानजनक जीवन का अधिकार दिया।यह सामान्य नागरिक संहिता की दिशा में बढ़ता एक कदम भी था।
 **************पूरा देश उल्लसित था कि अयोध्या विवाद पर उच्चतम न्यायलय के पाँच जजों वाले बेंच ने नौ नवम्बर को सुप्रीम फैसला दे दिया कि विवादित भूमि राम लला विराजमान की है और उस पर बाबरी मस्जिद का निर्माण अवैध था।पूरी दुनियाँ साक्षी है कि राम मंदिर बाबरी मस्जिद विवाद हिन्दुओं और मुस्लिमों के बीच चार सौ वर्षों से चल रहा सर्वाधिक त्रासद विवाद रहा है।आजादी के बाद भी तुष्टिकरण के चलते पूर्व सत्ताधारी और आज के विपक्षी सदैव मुस्लिमों के पक्ष में बात एवं आचरण करते रहे जब कि भाजपा, राष्ट्रीय स्वयँ सेवक तथा विश्व हिन्दू परिषद् ,अनेक हिन्दू एवँ संत संघटनों के साथ, लगातार राम मंदिर के पक्ष में संघर्षरत थे।इस प्रसंशनीय निर्णय को देश के हिन्दू और मुसलमानों ने अत्यंत सहजता और शान्ति से सर माथे लेकर भाई चारे का वह प्रकाश स्तम्भ बनाया जो भविष्य के इतिहास को भी प्रकाशित करता रहे गा।संसद का शीतकालीन सत्र समाप्त होते होते सरकार ने नागरिकता संशोधन विधेयक भी दोनों सदनों से पास करा कर राष्ट्रपति से स्वीकृति ले ली जिससे पड़ोसी मुस्लिम देशों से उत्पीड़ित होकर सन चौदह से पहले भारत आए हिन्दू ,सिख ,ईसाई ,बौद्ध ,पारसी या जैन शरणार्थियों को भारत की नागरिकता मिलने का रास्ता खुल गया। अब ऐसे लोग देश के एक आम नागरिक की भाँति जीवन यापन कर सकें गे।
***************निःसंदेह उपर्युक्त उपलब्धियाँ इतिहास में स्वर्णाक्षरीय हैं परन्तु कुछ विधेयकों का क्रियान्वयन उन्हें संसद से पारित कराने की अपेक्षा ज्यादा कठिन होगा क्योंकि अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे विपक्षी, सरकार को असफल करने में, कोई कोर कसर नहीं छोड़ें गे वरन उनके वंशवाद ,तुष्टिकरण और तथाकथित धर्मनिरपेक्षता का भविष्य क्या होगा।आने वाला समय संदर्भित निर्णयों के क्रियान्वयन की सफलता तथा देश की प्रगति में इनके योगदान का आकलन करे गा और इस अल्प काल खण्ड के इतिहास में परिणामी आयाम जोड़े गा परन्तु आज तक की अद्यतन स्थिति यह है कि देखते ही देखते तीन तलाक ,कश्मीर की धारा 370 और 35 ए ,अयोध्या का राम जन्मस्थान विवाद और शरणार्थियों के लिए नागरिकता जैसी विकराल राष्ट्रीय समस्याओं का चंद महीनों में निराकारण हो गया है ।सारांशतः देश के प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी की नेतृत्व वाली भाजपा सरकार और आज के भारत के लिए यह कहना समय संगत होगा कि इतिहास बनाए तो ऐसे बनाए।अब मोदी जी का पूरे विश्व में चर्चित नारा है ,"सबका साथ -सबका विकास और सबका विश्वास।साथ ही पूरे देश में एक धारणा बन गई है कि कोई भी असंभव या दुष्कर कार्य हो; वह मोदी जी के लिए संभव है अर्थात मोदी हैं तो मुमकिन है। यह है मोदी जी का करिश्माई व्यक्तित्व।अच्छा है कि देश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है और मोदी जी हमारे प्रधान मंत्री।अस्तु।----------------------------------------------मंगलवीणा
वाराणसी ;दिनाँक 17 दिसम्बर 2019                               mangal-veena.blogspot.com
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अंततः
***************प्रिय पाठकों ! वर्ष दो हजार उन्नीस हम भारतीयों को श्री रामजन्मभूमि जैसा हर्षद उपहार देते हुए अपनी विदाई के अन्तिम पादन पर है। निजी जीवन में हम सभी के लिए वर्ष मिश्रित फल देने वाला रहा। महँगाई और बच्चों की असहनीय मँहगी शिक्षा ने तो त्राहि माम् की गुहार लगाने को विवश कर रखा है।न जाने कब हमारे देश में प्रारम्भिक एवँ माध्यमिक शिक्षा माफियाओं के चंगुल से मुक्त हो पाए गी। भरोसे की डोर पकड़ प्रतीक्षा करें कि देश हित में एक से बढ़ कर चमत्कारी निर्णय लेने वाली सरकार शायद आने वाले वर्षों में आम जन की समस्याओं पर ज्यादा संवेदनशील होगी। प्रार्थना है कि हम भारतवासियों पर अयोध्या नरेश प्रभु श्री राम की अपार कृपा बनी रहे।इसी के साथ आँग्ल नव वर्ष की मंगलमयी कामनाएँ और प्रणाम  -----------------------------------------------------मंगलवीणा
वाराणसी ;दिनाँक 17 दिसम्बर 2019
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गुरुवार, 5 सितंबर 2019

Mangal-Veena: सिच्छक हौं सिगरे जग को तिय....

Mangal-Veena: सिच्छक हौं सिगरे जग को तिय....: *****************शिक्षक दिवस पर शिक्षकों को समर्पित एक अनुरोधपत्र **** ***************शिक्षा रुपी अंगुली धरा कर मानव सभ्यता को समय के साथ ...

गुरुवार, 29 अगस्त 2019

Mangal-Veena: भारतीयता के दरकते कगार

Mangal-Veena: भारतीयता के दरकते कगार: ************भारत के इतिहास में सन दो हजार चौदह कुछ विशेष उपलब्धियों के लिए सदैव अविस्मरणीय रहे गा। इस वर्ष अंतरिक्ष क्षेत्र में छलाँग लगाते...

सोमवार, 22 अप्रैल 2019

Mangal-Veena: नवभारत का राष्ट्रवाद

Mangal-Veena: नवभारत का राष्ट्रवाद: ***************भारत में सत्रहवीं लोकसभा के सात चरणों में होने वाले चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। राजनीतिक दलों द्वारा अपने अनुकूल मुद्दों क...

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

नवभारत का राष्ट्रवाद

***************भारत में सत्रहवीं लोकसभा के सात चरणों में होने वाले चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। राजनीतिक दलों द्वारा अपने अनुकूल मुद्दों को उछालने एवँ प्रतिकूल मुद्दों को विरोधियों का षड्यंत्र बताने का बेहया प्रयास जारी है।इस बीच देश के जनमानस में एक बहुत बड़ा मुद्दा राष्ट्रवाद के रूप में उभरा है। केंद्र की भाजपानीत मोदी सरकार के  विगत पाँच वर्षीय शासन काल में राष्ट्रवाद, सबका साथ सबका विकास के साथ, चल रहा था परन्तु  चौदह फरवरी को फुलवामा (कश्मीर) में केंद्रीय रिज़र्व पुलिस बल के ऊपर पाकिस्तान प्रायोजित  जैश आतंकी हमला होते ही सरकार व जनता में पाकिस्तान को पाठ पढ़ाने की ज्वाला फूट पड़ी।प्रधान मंत्री मोदी जी का बयान आया कि पाकिस्तान एवँ उसके आतंकियों ने बड़ी गलती कर दी और उन्हें इसकी बड़ी कीमत चुकानी होगी। हुआ भी ऐसा ही,भारतीय वायुसेना ने 25 /26 फरवरी की रात में पाक अधिकृत कश्मीर में चल रहे आतंकी शिविरों पर सफल एयर स्ट्राइक किया।विश्व के अधिकाँश राष्ट्र जैसे अमेरिका ,इंग्लॅण्ड ,फ्राँस ,सोवियत रूस,जापान इत्यादि देश भारत के साथ खड़े हो गए।अमेरिका ने तो यहाँ तक कह दिया कि भारत को प्रतिकार का पूरा हक़ है।जब पाकिस्तानी वायु सेना ने 27 फरवरी को भारत पर जवाबी हमला किया ,विंग कमाण्डर अभिनन्दन ने मिग से उड़ान भर कर एक पाकिस्तानी ऍफ़ -16 जंगी जहाज को मार गिराया और खुद पैराशूट से छलाँग लगा लिया परन्तु दैववश पाकिस्तानी सीमा में जा गिरा। भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय दबाव के आगे झुकते हुए लाचार पाकिस्तान को दो दिनों के अंदर(एक मार्च 2019 )ही  अभिनन्दन वर्तमान को वापस सौंपना पड़ा।मोदी जी के नेतृत्व में भारत के बढ़ते दबदबा और सामरिक शक्ति से पूरा देश झूम उठा।साथ ही इन सोलह -सत्रह दिनों में भारत ने एक बदलाव का तीव्र आवेग देखा।यह बदलाव था प्रखर राष्ट्रवाद ,जिसकी अगुवाई प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में करोड़ों राष्ट्रवादी भारतीय करने लगे थे। सदिओं से एक नरम राज्य के रूप में पहचाने जाने वाला भारत एक कठिन राज्य बन गया अर्थात एक थप्पड़ मारने वाले को दस थप्पड़ मारने वाला भारत बन गया। फिर क्या ; सत्रहवीं लोकसभा चुनाव की घोषणा होते ही राष्ट्रवाद  सारे मुद्दों व प्राथमिकताओं को पीछे छोड़ते हुए चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा बन गया।
*************** वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत इस चुनाव में ऐसा पहली बार हुआ है कि भुखमरी,पेट्रोल ,मँहगाई ,बिजली ,सड़क ,स्वास्थ्य ,शिक्षा जैसी समस्याएँ चुनावी नैपथ्य के पीछे चली गईं हैं और देशभक्ति ,देशद्रोह, घुसपैठ ,कश्मीर संवंधित धारा 370 एवं 35 A ,सेना को अशान्त क्षेत्रों में अधिकाधिक  सुरक्षा कवच ,आतंक को कुचलने की रणनीति और भारत की सामरिक एवँ आर्थिक शक्ति बढ़ाने वाली या इनको क्षीण करने वाली या कुछ एक को समाप्त करने वाली घोषणाएँ रंगमंच पर परवान चढ़ रही हैं। ए सारे मुद्दे राष्ट्रवाद के ही अलग अलग धनात्मक या ऋणात्मक आयाम हैं। जहाँ मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा इन राष्ट्रवादी मुद्दों को पूरे जोश से उठा रही है वहीं भारतीय जन मानस भी इन मुद्दों पर भाजपा को भरपूर समर्थन दे रहा है।विपक्ष इन्हीं मुद्दों के ऋणात्मक आयाम को अपने घोषणापत्र में डाल कर जोर शोर से अपनी ढफली बजा रहा है।सारे विपक्षी दल का एक जुट होकर राष्ट्रवाद पर प्रश्नचिन्ह लगाना जनता में उनके प्रति गलत सन्देश दे रहा है कि ए मात्र अपने निजी एवँ दलगत स्वार्थ सिद्धि के लिए मोदी जी को सत्ता से हटाना चाहते हैं।वहीं राष्ट्रवाद पर खरा उतर रहे मोदी जी एवं भाजपा में जनता का विश्वास बढ़ता ही जा रहा है। देश विदेश के सारे सर्वेक्षणों में  मोदी जी के सामने पसंदगी में किसी नेता का न टिक पाना ;इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।चुनाव जैसे जैसे आगे बढ़ रहा है भाजपा का राष्ट्रवाद प्रखर राष्ट्रवाद का रूप लेता जा रहा है और मतदाताओं को भी इसमें भारत की बुलंद तसवीर दिख रही है। इसके विपरीत विपक्षी अनेक प्रकार के गठजोड़ ,झूठे वादे व जातीय समीकरण के बल पर सत्ता पाने का हर हथकंडा अपना रहे हैं।
***************वर्तमान चुनाव में विपक्षी मात्र मोदी विरोध और मोदी हटाओ अभियान पर केंद्रित हैं तथा इसके लिए इन लोगों ने अभूतपूर्व ढंग से पूरे देश में असमतल ध्रुवीकरण किया है।सारा खेल जनता समझ रही है। सभी दलों के कथनी ,करनी और विश्वसनीयता पर भी मन्थन हो रहा है और सभी चैतन्य मतदाता इस बात से चिन्तित हैं कि ए विपक्षी राष्ट्रवाद और विकास के मुद्दे पर ढुलमुल क्यों हैं। यदि विश्व समुदाय में भारत की प्रतिष्ठा एवँ क्षमता मोदी जी के नेतृत्व में बढी है तो विरोधियों द्वारा मुक्त कण्ठ से उसकी प्रशंसा क्यों नहीं होती है। प्रशंसा करते हुए भी तो विपक्षी इस मुद्दे को राष्ट्रहित के सन्दर्भ में और आगे बढ़ाने की बात कर सकते हैं।ऐसा भी नहीं कि ए विपक्षी यह नहीं जानते कि राष्ट्रवाद क्या है और इसके विरुद्ध आचरण करने वाले को क्या कहा जाता है। फिर भी  सारे विपक्षी राष्ट्र द्रोहियों का समर्थन करते हैं क्योंकि उन्हें जातिवाद और मुस्लिमवाद पर भरोसा रहा है और अब भी है। हिन्दुओं के मत को जाति के नाम पर तितर वितर करना ,मुस्लिमों के मत का अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करना और चुनाव जीतकर सत्तासुख भोगना ही इनके लिए राष्टवाद है।फिर देश और देश का भविष्य ? ऐसी परिस्थिति में हर भारतीय जागृत मतदाता समझता है कि यदि किसी राज्य की व्यवस्था ढुलमुल हो जाय , वंशवादी सत्ता में जड़ें जमा लें, बहुमत के लिए जाति और धर्म की चाल चलें, धर्म निरपेक्षता के नाम पर बहुसंख्यकों का निरादर हो और देश की सीमाएँ असुरक्षित रहें तो राज्य के अस्तित्व पर संकट मँडराते हैं।समय की माँग है कि विरोधी अपने आचरण और मुद्दों में सकारात्मक बदलाव लाएँ  और राष्ट्रवाद को अपने मन ,कर्म और वाणी में वैसे ही बैठा लें जैसे कि श्री मोदी ,एक सीमा प्रहरी सैनिक या एक आम राष्ट्रवादी  नागरिक। राष्ट्रवाद राष्ट्रवाद है और इसका अर्थ भी राष्ट्रवाद है ,इसके दाएं बाएँ कुछ नहीं।यह राष्ट्रवाद प्रखर तो हो सकता है परन्तु ढुलमुल कदापि नहीं।
***************वस्तुतः जिस राष्ट्रवाद ,प्रखर राष्ट्रवाद या सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की आज चतुर्दिक चर्चा है इसका उद्भव भाजपा के पैतृक सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयँसेवक संघ के विचार धारा रूपी प्रांगण से हुआ। फिर  संघ ने उद्देश्यों की समग्र उपलब्धि के लिए अनेक और सगठन खड़ा किया जिसमें राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पूर्व की जनसंघ आज की भाजपा बनी।वर्षों राष्ट्रवाद का ध्वज लिए अनवरत चलते हुए यही  भारतीय जनता पार्टी न केवल भारत या विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनी है अपितु  सवा सौ करोड़ भारतीयों के गौरव को बढ़ाते हुए उनके आकांछा को परिणाम के धरातल पर उतारने वाली इकलौती राष्ट्रीय पार्टी है तथा श्री नरेंद्र मोदी इस दल के यूएसपी हैं। इनके कथनी करनी और विश्वसनीयता पर आम लोगों का जाँचा परखा भरोसा है।इस दल में न वंशवाद है न तुष्टिकरण है।यहाँ न छद्म धर्म निर्पेक्षता है और न भ्रष्टाचार। विगत पाँच वर्षों में भाजपा सरकार ने आवश्यक आवश्यकता जैसे बिजली ,सड़क ,आवास ,शौचालय  रसोई गैस,स्वच्छता पर ध्यान दिया जिससे भारत में विकास की एक अच्छी यात्रा हुई। अनुकूल समर्थन से अन्तरिक्ष विज्ञानिकों ने कई मील के पत्थर गाड़े। आतंक और नक्सलवाद पर अंकुश लगा। सैनिकों का सम्मान बढ़ा और सीमाएँ जबरदस्त ढंग से जल ,थल ,नभ में सुरक्षित हुई हैं। बढ़ती सामरिक और आर्थिक शक्ति के साथ साथ सफल विदेश नीति से आज पूरी दुनियाँ में भारत के नागरिकों के साथ सम्मान का व्यवहार हो रहा है। देश विदेश जहाँ कहीं भी हमारे प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी जाते हैं;  मोदी- मोदी के नारों से उनका स्वागत होता है।आचरण की शुद्धता के साथ श्री मोदी में नेतृत्व ,सूझबूझ और निर्णय की अतुल्य क्षमता है जो उन्हें अन्य नेताओं से बहुत ऊपर प्रतिष्ठित करती है। यही कारण है कि प्रधान मंत्री की दावेदारी में वे निरंतर पहली पसंद बने हुए हैं।नव भारत में राष्ट्रवाद की पर्याय बन चुकी भाजपा यदि सोना है तो श्री मोदी सोने में सुहागा। अस्तु यदि भाजपा पुनः सत्ता में लौटती है तो अगला पाँच वर्षीय कालखण्ड देशवासियों की आकांछा पूर्ति वाला स्वर्णयुग हो सकता है।                मंगलवीणा
वाराणसी ;दिनाँक 22 अप्रैल 2019 ----------------------------------mangal-veena.blogspot.com
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आज के उद्धरण
1 . राष्ट्रवाद राष्ट्रवाद है और इसका अर्थ भी राष्ट्रवाद है ,इसके दाएं बाएँ कुछ नहीं।यह राष्ट्रवाद प्रखर तो हो सकता है परन्तु ढुलमुल कदापि नहीं।
नव भारत में राष्ट्रवाद की पर्याय बन चुकी भाजपा यदि सोना है तो श्री मोदी सोने में सुहागा। अस्तु यदि भाजपा पुनः सत्ता में लौटती है तो अगला पाँच वर्षीय कालखण्ड देशवासियों की आकांछा पूर्ति वाला स्वर्णयुग हो सकता है।------------------------------------------------- मंगलवीणा 
वाराणसी ;दिनाँक 22 अप्रैल 2019
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शुक्रवार, 5 अप्रैल 2019

Mangal-Veena: चुनावी आचार संहिता

Mangal-Veena: चुनावी आचार संहिता: ***************भारत वर्ष में सत्रहवीं लोकसभा गठन हेतु आम चुनाव का  डंका बज चुका है। अब इससे उत्पन्न तुमुल ध्वनियाँ कानों में धमकने लगी हैं ...

चुनावी आचार संहिता

***************भारत वर्ष में सत्रहवीं लोकसभा गठन हेतु आम चुनाव का  डंका बज चुका है। अब इससे उत्पन्न तुमुल ध्वनियाँ कानों में धमकने लगी हैं ,पल पल रंग बदलती दृश्यावली आँखों में घूमने लगी हैं और सुरसा सी बढ़ती चुनावी गर्मी  दिनचर्या को झेलाने लगी हैं।चुनाव की घोषणा के साथ चुनाव आयोग द्वारा आदर्श चुनाव संहिता भी लागू कर दी गई है।करें भी क्यों न ;यही एक चाबुक है जिससे आयोग सम्पूर्ण चुनावी गतिविधियाँ नियंत्रित करता है।वरन सांसदी के अधिकाँश भ्रष्ट प्रत्याशी हर संभव कदाचार के अपकीर्तिमान को  स्थापित करने से न चूकें। आश्चर्य होता है कि एक आदर्श शिष्टाचारी परम्परा वाले देश में हम इतने आचार विहीन हो चुके हैं कि चुनाव के खातिर हम पर आचार रूपी अंकुश लगता है और बताया जाता है कि हम क्या करें और क्या न करें ।जहाँ तक नेताओं , प्रत्याशियों और समर्थकों की बात है ,वे चुनाव संपन्न होने तक आचार संहिता के साथ तूँ डार -डार मैं पात -पात का जम कर खेल खेलें गे परन्तु स्वभाव से आचारशील नागरिक इस संहिता से बुरी तरह प्रताड़ित होते हैं।निश्चय ही लोकतंत्र में चुनाव एक पर्व है जिसे हर नागरिक को बढ़चढ़ कर मनाना चाहिए और हर मतदाता को अपना मत अवश्य डालना चाहिए परन्तु यह भी अपेक्षित है कि चुनाव के नाम पर नागरिकों का प्रताड़न न हो। अन्यथा प्रश्न तो उठे गा कि प्रताडन और पर्व साथ साथ कैसे।
***************यथार्थ की जमीन पर उतरें तो सबको मालूम है कि ध्वनि प्रदूषण स्वाथ्य के लिए बहुत ही हानिकारक है फिर भी चुनाव में ध्वनि विस्तारक यंत्रों की दहाड़ से हम सभी को त्रस्त होना पड़ता है। घर,गली ,सड़क ,चौराहा ,पार्क ,मैदान कहीं भी जाइये ;इन भोंपुओं पर अपने प्रत्याशियों के लिए चीखने चिल्लाने वाले समर्थकों से बच नहीं सकते।टीवी पर समाचार चैनलों को खोलिए तो वही कर्कश और कुतर्की परिचर्चा ;एंकर का प्रश्न कुछ तो प्रवक्ताओं का जवाब कुछ और। सब बेसुरी ढफली बजाते मिलते हैं। ऐसा वातावरण शायद यह मान कर बनता है कि अब लोग ऊँचा सुनने लगे हैं।रात्रि में यह प्रदूषण नियंत्रित कर लिया जाता है ;यह भी कहना कठिन है।घर से किसी गंतव्य के लिए निकलिए तो यह संभव ही नहीं कि संहिता की छाया में चेकिंग के नाम पर पुलिस अवरोध और रौब से यहाँ- वहाँ दो चार न होना पड़े। किसी कार्यालय से कोई काम करना तो कोई सोच भी नहीं सकता क्योंकि  सबसे एक ही जवाब मिलता है कि चुनाव बाद मिलिए। सबसे अधिक साँसत तो उन भद्र लोगों की होती है जिनके पास सुरक्षा के लिए लइसेंसी असलहे होते हैं।पुलिस वाले इसे थाने या शस्त्र दुकानों पर जमा करने का मौखिक दबाव बनाने लगते हैं। समझ से परे है कि चुनाव के समय शस्त्र पास न रहने पर लाइसेंसधारिओं की सुरक्षा कैसे सुनिश्चित हो जाती है। ऐसा प्रतीत होने लगता है कि पुलिस को अवैध असलहे धारी असामाजिक तत्वों पर तो सिकंजा कसना ही है परन्तु भद्र लोगों को भी चुनाव के समय चैन से नहीं रहने देना है।
*************** जब संहिता पालन की बात राजनीतिक दलों ,चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों एवँ नेताओं पर हो तो आयोग उनसे जूझता दिखता है। चुनाव में प्रत्याशियों के लिए खर्च निर्धारित करना और निगरानी कराना एक बात है परन्तु उसे सुनिश्चित कराना और बात है।सामान्यतया माना जाता है कि पैसे जैसे  संसाधन से प्रत्याशी अपनी विचारधारा और जनसेवा के संकल्प को अपने मतदाता तक पहुँचाते हैं ;अतः इस खर्च का हिसाब वे आसानी से आयोग को दे सकते हैं। वस्तुस्थिति इससे विल्कुल इतर है। आज के चुनाव इस अच्छे आचरण वाले परदे के पीछे लड़े जाते हैं जहाँ काले धन का ताण्डव होता है ;मतदाताओं तक पैसे ,प्रलोभन और दावतें पहुँचा कर मत खरीदने का खड्यंत्र होता है। यही नहीं बड़े बड़े असामाजिक  तत्व  विभिन्न दलों  के शीर्ष नेताओं को करोड़ों रूपए का काला  धन टिकट केलिए भेंट करते हैं। अब तो मिडिया वाले स्टिंग ऑपरेशन कर ऐसे काले धन्धों का खेल सबको प्रत्यक्ष दिखाने भी लगे हैं।आम आदमी बहुत चिंतित है कि ऐसी बेशर्म ,भ्रष्ट और आचरणहीन राजनीति देश को कहाँ पहुँचाने को उद्यत है।वर्तमान की बहती बयार में भारतीय लोकतंत्र के सामने सबसे ज्वलंत प्रश्न है कि आयोग एक हाथ आचार संहिता लिए और दूजे हाथ प्रशासनिक शक्तियाँ लिए क्या क्या करता है या क्या कर सकता है।
***************चाहे कितनी भी विस्तारित परिचर्चा की जाय सत्य यही है कि आदर्श आचार किसी संहिता से नहीं संस्कारों से उपजता और पलता है। साथ ही यदि चोर सिपाही से शक्तिशाली होगा तो कानून की बेवसी बढ़ती है। आचार संहिता और आयोग की शक्तिओं के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है।आगे इससे भी बड़ा सत्य यह है कि हमारा भारत बदल रहा है। शिक्षा के साथ  इलेट्रॉनिक , प्रिंट और सोशल  मीडिया ने हमारे समाज में जागरूकता की एक अभूतपूर्व क्रान्ति ला दी है और इसी जन जागरण से चुनावी भ्रष्टाचार का संहार होने भी लगा है।विशेष रूप से नई पीढ़ी के रंगमंच पर उदित होने से राजनितिक भ्रष्टाचार के दिन और तेजी से लदने लगे हैं।सब मिलाकर बदलती हवाएँ शुभ संकेत दे रही हैं कि भविष्य में आचारशील चुनाव आयोग ,आचारशील नेता, आचारशील मतदाता और आचारशील नागरिक अपने भारत को इसके स्वर्णिम युग की ओर अग्रसर करें गे।
***************परन्तु वर्तमान चुनावी परिदृश्य में हर परेशानी से ऊपर उठ कर  भारत के प्रत्येक मतदाता का प्रथम दायित्व है कि वह मतदान अवश्य करे और स्वविवेक से सबसे बेहतर प्रत्याशी को मत दे। नदी की धारा को मोड़ने का यही बेहतर तरीका है और इसी प्रकार मतदान द्वारा देश को सुरक्षित हाथों में सौंपा जा सकता है।नए भारत की इसी जनाकांछा की परिणीति का ज्वलन्त उदाहरण आज की भाजपानीत केंद्र सरकार है। वर्तमान चुनाव में भी जनाकांछा उसी भाजपा के मोदी जी पर टिकी हुई है।और यह संभव हुआ था- पिछले चुनाव में मतदान की आँधी से। इस चुनाव में भी ऐसे ही प्रबलतर आँधी की परिस्थितियाँ बन रही हैं। अस्तु हमारी प्रतिबद्धता और शुभकामना हो कि भारत का चुनाव आयोग तथा उसकी घोषित आचार संहिता 2019 चल रहे लोक सभा चुनाव को अच्छे से संपन्न करने में सफल हों और नागरिकों को कोई असुविधा भी न हो।------------------------------------------------------------------------------------------------------------------- मंगलवीणा
वाराणसी ,चैत्र कृष्ण अमावस्या सँ. 2076                                                         
दिनाँक 05 अप्रैल 2019
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अंततः
आइए एक नेता जी से मिलें जो पूर्व में माननीय मंत्री जी रह चुके हैं। हर सीधी उलटी कोशिश के बावजूद किसी जिताऊ  पार्टी से सांसदी का टिकट नहीं मिल पा रहा है  सो जल बिन मछली की भाँति छटपटा रहे हैं और अपनी व्यथा कुछ यूँ व्यक्त कर रहे हैं।
भाई ! मोहि कुर्सी विसरत नाहिं।
 मन डोलत ही इच्छा पूरी ,जादू कुर्सी माहिं।
ढके कुकर्म सभी खादी में ,महामहिम कहलाहिं। भाई ------
दिन जनता दरबार बैठना ,निशा मौज़ क्लब माहिं।
न्याय नियम को फेंक किनारे ,लूटम लूट मचाहिं। भाई ------
बन गाँधी के छद्मी वारिस ,मॉल मलाई खाहिं।
राजा रजवाड़ों से न्यारे , नेता  भारत  माहिं। भाई --------
गर एक टिकट पुनः मत भारी ,शक्र देइ  बरसाहिं।
वहि इन्द्रासन फिर मिल जाए,सुफल जनम होइ जाहिं। भाई ------
-----------------अब उनकी ब्यथा सुन आम आदमी की क्या दशा होगी ;यह विचारणीय है। इति।
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  --------------- पुनः सभी सुधी पाठकों एवँ शुभेच्छुओं को चैत्र की नवरात्रि एवँ पावन राम नवमी की शुभ कामनायें। नया विक्रम सँवत वर्ष आप के लिए स्वास्थ्यप्रद ,यशप्रद एवं सुखप्रद हो ;यह हमारी  कामना है।------------------------------------------------- --मंगलवीणा
वाराणसी ;चैत्र कृष्ण अमावस्या  सँ. 2076 ------------------------ mangal-veena ,blogspot .com
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