*बात दिनांक 23 मार्च 23 की है ।। प्रातः जल्दी ही मैने अपनी एक्सयूवी ड्राइवर के साथ पिरियाडिक सर्विस के लिए वाराणसी बाबतपुर मार्ग पर स्थित महिन्द्रा डीलर के यहाँ भेज दिया था ताकि तीन चार बजे तक गाड़ी घर आ जाय ।यह तो पता ही था कि सर्विस के बाद ज्योंही भुगतान की बात होगी,ड्राइवर परेशान होगा ।अतः दो बजे तक तैयार होकर महीन्द्रा पहुँचने के लिए किसी वाहन के जुगाड़ मे लग गया ।एक बार तो सोचा अपनी बाइक से चलता हूँ;पूरी जिन्दगी तो इसी साधन से चलता रहा हूँ ।परंतु अन्दर से तुरंत प्रतिवाद हुआ,"बार बार भूलो मत कि सत्तर पार कर चुके हो और इक्कीसवीं सदी है ,ऊपर से मोदी जी द्वारा विकसित आज का बनारस -चौडी सडकें,कही गाडियों का रेलम-पेल जाम तो कहीं आँधी सी भागती ट्रैफिक।कब कौन उड़नबाज गाड़ीचालक किनारा पकड़े पैदल राही, साइकिल या बाइक सवार का छक्का लगा दे या भीम दुर्योधन के गदा की टकराहट वाली गर्जना के साथ गाड़ियों के परखचे उड़ जाँय;ईश्वर ही मालिक हैं ।सड़क पर अब पहले की न स्थितियाँ रहीं ,न डर ,न सब्र, न अनुशासन और न ही दूसरे की फिक्र ।सब तरफ भागती दुनियाँ ।अब तो जल्दी पर जल्दी ,सुरक्षा की ऐसी तैसी । अतः बाइक से जाने की तो सोचो ही मत ।"
*तब मन बनाया कि गूगल की शरण लेता हूँ और ओला एप से टैक्सी या औटोरिक्शा मँगा लेता हूँ । यह जानते हुए भी कि बनारस में यात्रियों के साथ टैक्सी और ऑटो चालकों का बकरी व कसाई सा निश्चित संबंध है सो किराये में तो बेवकूफ बनना तय था,फिर भी जल्दी निकलने का दबाव था । अंगुलियाँ मोबाईल पर चल ही रहीं थीं कि मुझे अकस्मात एक बाइक सवारी का विकल्प दिखा और वह विकल्प दब गया । किराया जाँचा तो पहुँचबिंदु तक मात्र एक सौ अट्ठारह रुपये दिखा और मेरे घर तक पहुँच समय सात मिनट । ओके करते ही बाइक चालक का मोबाईल नंबर और बाइक का विवरण संदेश मोबाईल पर चमक उठा ।श्रीमती जी को आवाज लगाया ,'बाइक टैक्सी आ रही है । मैं निकलता हूँ । काफी सस्ती भी है । "
*पीछे -पीछे श्रीमती जी भी यथा आदत बाहरी दरवाजे तक आ गईं । हमारी नजरें बाइक आगमन वाली सड़क पर एकाग्र हुईं ।पूरी जिंदगी में कभी बाइक टैक्सी से यात्रा करने का संयोग नहीं मिला था । अतः मन में अजीब सा कौतूहल होने लगा । श्रीमती जी को भी बहुत अटपटा सा लगा ।इंतजार ने उस कौतूहल को और बढ़ाया ।तभी हमें बाहर खड़ा देख पड़ोस वाले मेडिकल कम्पाउंडर जी भी पास आ गए और प्रणाम करते हुए पूछे कि अंकल ,ऑन्टी आप दोनों किसको देख रहे हैं ?बताना ही था - बेटा मैं बाइक टैक्सी की प्रतीक्षा कर रहा हूँ । बस क्या था ;सवालों की झड़ी लग गई ,कभी पहले बाइक टैक्सी की सवारी किए हैं ?आप का ड्राइवर कहाँ गया ?टैक्सी या ऑटो क्यों नहीं बुक कर लिया ?कहीं गिरा- पड़ा दे तो बिन बुलाए समस्या सर पर ।"
*अच्छी गेंद मिली । श्रीमती जी ने भी तगड़ा थ्रो फेंका ,"उम्र के आठवें दशक में प्रवेश कर गए हैं ,फिर भी आप हरकतें बचकानी करते हैं । कहीं चोट चपेट लगे तो यह मत कहिए गा कि चेताया नहीं ।"चुप होने के अलावा मेरे पास कोई बचाव युक्ति नहीं थी ।
*पुनर्विचार का दौर चलने ही वाला था कि एक हेलमेट लगाया बाइक सवार हमारे सामने ही अपनी बाइक पर ब्रेकलेकर मोबाईल से किसी को फोन मिलाया।अरे ,यह तो मेरे मोबाईल की घंटी बज उठी और यह सुनिश्चित हो गया कि बुलाई गई बाइक टैक्सी यही थी । जो पहचान संदेश में भेजे गए थे ,मिलान में वे ठीक वही निकले ।विमर्श का केंद्र बदल चुका था।तब हममे से किसी ने उससे सुरक्षा की बात पूछी तो किसी ने इस रोजगार से आमदनी की बात की ।प्रजापति उपनामधारी उस युवक ने हल्की सी मुस्कान लिए जवाब दिया था ,"महँगाई का जमाना है ।अपने से धंध-फंध होता नहीं ।खाली समय मे इसी बाइक से तीन -चार सौ रुपए कमा लेता हूँ जो मेरी मुख्य आमदनी में जुड़ जाता है और गृहस्थी की नाइया ठीक ठाक चल जाती है -अंकल जी । रही बात सुरक्षा की ;तो हम भी परिवार वाले हैं और हमारा भी घरवाले इंतजार करते हैं ।"हम सभी निरुत्तर थे ।सुरक्षा की इससे बड़ी गारंटी क्या हो सकती थी ।
*चलो; मैं होकर आता हूँ; बोलते हुए पीछे बाइक पर उछल कर बैठ गया । बाइक गली से मुख्य सड़क पर ,कभी भीड़ में कभी भीड़ से आगे ,कभी बीच सड़क तो कभी बायें किनारे दौड़ती जा रही थी । आदतन मैं "देखो बेटा !सँभाल के या ब्रेक पर ध्यान रखना "दोहराता जा रहा था । इत्मीनान से प्रजापति दायें- बायें ,चौराहे ,तिराहे का पूरा ध्यान रखते हुए सड़क को पीछे छोड़ रहा था और मैं गिरने- पड़ने वाले भय से सशंकित बाइक पर अपनी पकड़ मजबूत बनाने में लगा हुआ था । जाने कब गाड़ी के लयबद्ध चालन व तेज हवा के मनभावन स्पर्श मुझे अच्छा लगने लगे और मैं आनंद के लहरों पर तैराने लगा।फिर इस लघु यात्रा के आनंद में इतना विस्मृत हुआ कि ब्रेक का झटका लगने पर ही तंद्रा टूटी। लगा कि टैक्सी रुक गई है और सुन रहा हूँ" अंकल, वर्कशॉप आ गया ।तंद्रा टूटी ।मन में विचार उठा कि काश !वर्कशॉप थोड़ा और दूर होता ।
नीचे उतर कर मैंने उसे धन्यवाद दिया और किराया पूछा
अंकल ,वही एक सौ अट्ठारह रुपये ।
बटुए से एक सौ तथा एक बीस का नोट निकाल कर उसकी ओर बढ़ाया ।
*दो रुपये का सिक्का मुझे पकड़ाते हुए वह आगे बढ़ गया और मैं रोमांच की सवारी से उतर कर वर्कशॉप के गेट पर खड़ा था ।इस छोटी सी यात्रा ने मुझे स्फूर्ति और ताजगी से ऐसा भर दिया कि कई घंटों तक वय संबंधी थकान का कहीं अता पता नहीं । । प्रसन्नमन वर्कशॉप में दाखिल हुआ । ड्राइवर से सर्विस की जानकारी लिया और भुगतान के बाद गाड़ी लेकर ड्राइवर से बातचीत करते घर आ गया । अभी भी याद आने पर वह उन्नीस बीस मिनट की यात्रा कमोवेश रोमांचित कर देती है ।
सच है कि झुर्रियाँ चेहरे पर पड़ती हैं ,दिल पर नहीं । लड़कपन ,जवानी तथा बुढ़ापा मुख्य रूप से दिल /सोच से जुड़ी मनः स्थितियां हैं न कि उम्र से ; और जीवन में रोमांच,एडवेंचर तथा आनंद देने वाली ऐसी घटनाएँ , यात्राएँ व तदन्तर उनके वृतांत के अनुगमन मन को तरोताजा किंवा जवान कर देते हैं--------------मंगलवीणा
वाराणसी ,बुद्ध पूर्णिमा ;दिनाँक 5 मई 2023
mangal-veena.blogspot.com
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