*************** हाल मे दो एक संबंधियो के यहाँ आयोजित विवाहोत्सव मे निमंत्रण के कारण सम्मिलित होना पड़ा । समझ मे नही आया कि अब लोग निमंत्रण देते क्यों हैं?यदि किसी आयोजन मे परंपरा,व्यवस्था ,संचालन एवं समयबद्धता संभव न हो तो ऐसे आयोजन मे इन मान्यताओं के पथिकों को आमंत्रित करना क्या उन्हे पीड़ा पहुंचाना नहीं है ?शुभ कामनाएं एवं आशीर्वाद बटोरने के तो अब बहुत सारे सस्ते माध्यम सुलभ हैं और वे प्रयोग में लाये जा सकते हैं।
***************अपनी परंपरा जब विक्रित हो रही हो , अन्य समाजों की कुछ अच्छी बाते लोग क्यो नही आचरित करते ? ध्यान देना चाहिए कि हर कृत्य किसी को आकर्षित तो किसी को विकर्षित करता है ।अतः खुशियो केलिए आकर्षण को ही चुनना चाहिए ।विकर्षण की अनुपस्थिति अप्रिय टिपण्णी की संभावना से बचाती भी है।बीते दिनों की मान्यता थी -अतिथि देवो भव।लगता है कि आज की मान्यता है अतिथि दासो भव,तदकर्मं कुरु । ----------------------मंगलवीणा
वाराणसी ;दिनांक 09 . 05 . 2017