जनता है उदास ,उनकी नियति यही
भारतेन्दु हरिश्चंद्र जी ने ,अपने भारत-दुर्दशा नामक काव्य में ,अंग्रेजी राज के दौर में देश की दुर्दशा पर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए कुछ ऐसा लिखा था -अंग्रेज राज सुख साज सजे सब भारी । पै धन विदेश चलि जात इहै अति ख्वारी । । आज मोदी राज में यही पंक्तियाँ हमें कुछ यूँ लगती हैं -मोदी राज सुख साज सजे सब भारी ।पै रुपया होत कमजोर इहै अति ख्वारी ।जी एस टी का कम होना सरकार की ओर से एक तरफा प्रयास हो सकता है परंतु डालर के विरुद्ध रुपये का कमजोर होना सारे प्रयास पर पानी फेरने जैसा है । जब महँगाई की बात होती है तो तत्काल अतीत की ओर तुलनात्मक ध्यान जाता है और कारण के मूल में रुपये की घटती क्रय शक्ति ही दिखती है ।एक शताब्दी पहले हमारा रुपया डालर के टकाटक बराबर चला करता था और आज ?इस क्रमशः कमजोरी के अनेक कारण हैं जिनसे देश जूझ रहा है । फिर विचार में निम्नलिखित पंक्तियाँ गूँजती हैं --
सरकारी राहत का कोई लाभ नहीं ।
जब तक प्रदाता उसे देवे ही नहीं ।।
गाड़ी मोटर एसी की बात छोड़िये ।
रोजमर्रा सामानों की बात कीजिये।।जनता है उदास,उनकी नियति यही ?
भाग्यविधाता कुछ तो करो न सही ।।
नोटबंदी का लाभ बैंकवाले ले गये ।
जीएसटी का लाभ अब व्यापारी लेगये । ।
हो रहा विकास, ठेकेदार मस्त हैं ।
ठगे हुए लोग बंगले झाँक रहे हैं ।।जनता है उदास,इनकी नियति यही ?
भाग्यविधाता कुछ तो करो न सही ।।
नेतागीरी से बड़ी कमाई न कोई।
इनके सफेदी सी सफेदी न कोई।।
सारी भ्रष्ट नदियाँ,यहीं हैं समाई ।
ऐसा महासागर,महासागर न कोई।।जनता है उदास,इनकी नियति यही ?
भाग्यविधाता कुछ तो करो न सही ।
पैसा कमाना है,तो स्कूल खोलिये ।
सारा श्रोत जनता का चूस लीजिये ।।
शिक्षा के खातिर बाप तार-तार है ।
बच्चे के फीस का जुगाड़ नहीं है ।।जनता है उदास,इनकी नियति यही ?
भाग्यविधाता कुछ तो करो न सही ।।
योगी,मोदी जैसों को मालूम सब है ।
पर जादू की छड़ी, इनके पास नहीं है।।
करें तो क्या करें,सब उपाय फेल हैं ।
भ्रष्टाचारी रावण के तो दस माथ हैं ।।जनता है उदास ,इनकी नियति यही?
भाग्यविधाता कुछ तो करो न सही ।।
इनके हनन का, कोई जतन नहीं ।
जब तक विभीषण कई मिलते नहीं ।।
याकि कोई जेनजी का बादल न फटे।
भ्रष्टाचार का क्लेश, नहीं जड़ से मिटे।।जनता है उदास, इनकी नियति यही ??
भाग्यविधाता कुछ तो करो न सही ।।
जनता की बात कोई सुनता नहीं ।
इन्हें चुनने का ढंग बदलता नहीं ।।
जज,बाबू,नेता बिपदा के बड़े जड़ ।
लोग कहें ,चक्कर में इनके न पड़।। जनता है उदास,इनकी नियति यही?
भाग्यविधाता कुछ तो करो न सही ।
नहीं तो विपति बन ए टूट पड़ें गे ।
और आप जड़ से उखड़ जाएँ गे ।।
आप के चाहे न चाहे ए न बदलें गे ।
कोई कल्कि ही सबको ठीक करेंगे।। जनता है उदास ,इनकी नियति यही ?
भाग्य विधाता कुछ तो करो न सही ।
सारांशतः कुछ भी समझने या समझाने का प्रयास करें परंतु "सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे संतु निरामया । सर्वे भद्राणि पश्यन्तु ,मा कश्चित् दुख भाग् भवेत।"जैसी भारत की महान सोच गंभीर प्रश्नचिन्ह के घेरे में है ।
---------मंगला सिंह / मंगलवीणा
mangal-veena.blogspot.com
कार्तिक ,शुक्ल पक्ष, पंचमी ,संवत् २०८२
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दिनाँक :26.10 .2025 ;वाराणसी