आकलन की बात हो तो कुछ सुखद दीखता नहीं ।
फिर भी प्रभु से प्रार्थना , नववर्ष मंगलमय रहे । (1)
जानता हूँ ‘विश' का , कोई मायने होता नहीं ।
पर शुभेच्छा चाहती , नववर्ष मंगलमय रहे । (2)
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तरणि तरना चाहती , झंझावतों पर वश नहीं ।
नाविक नदी से चाहता , कि पार सब होते रहें । (3)
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रश्मिओं को क्या पता , बादल घनेरे छा रहे ।
लहरें तो दिल से चाहतीं, अठखेलियाँ होती रहें । (4)
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उम्र ढलती जा रही , इस पर हमारा वश नहीं ।
पर सदा यह कामना,हम चिर युवा दिखते रहें । (5)
पर सदा यह कामना,हम चिर युवा दिखते रहें । (5)
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समय सब कुछ देखता,है बढ़ रहा निज राह पर।
आज इतना खुश रहें, कि कल हमारी बात हो। (6)
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पुष्प की क्या उम्र हो ,माली इतर है सोचता।
पवन जब पाए सुरभि , सारी धरा मस्ती में हो। (7)
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कर्म करते हैं सभी , "कर्तव्य क्या" सोचा नहीं ।
रात दिन उलझे रहे ,"जो चाह थी" पाया नहीं (8)
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बहुत हल्ला कर लिया,वर्तन हुआ कुछ भी नहीं ।
बहुत हल्ला कर लिया,वर्तन हुआ कुछ भी नहीं ।
भ्रष्ट रिश्वतख़ोर हँसते , और हम घुटते रहे । (9)
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उठो मिलकर थाम लें, उल्टी हवा के वेग को ।
स्वर्ग हो अपनी धरा,हर जन यहाँ खुशहाल हो। (10)
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यदि कैलेंडर जादुई,मिल जाय इस नव वर्ष में ?
टाँग दूँ घर घर पहुँच , सारा जहाँ खुशहाल हो। (11)
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करणीय या करने योग्य कर्म को कर्तब्य या धर्म कहते हैं। ----------------------------------------------------------------- मंगलवीणा
वाराणसी Mangal-veena.Blogspot.com
दिनाँक 30.12.2013
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