जब जनता को यकीन हो गया कि भारत में सारी-की सारी कुब्यवस्था भ्रष्टाचार से अनुप्राणित पुष्पित एवं पल्लवित है, तो वह सारे दुःख-दर्द झेलते हुए भ्रष्टाचार के विरुद्ध उठ खडी हुई और अन्ना साहब के माध्यम से मुखरित हुई जिसे सारी दुनियाँ ने देखा और सुना | इससे भारतीय लोकतंत्र की बेजोड़ जीवन्तता भी विश्व पटल पर महसूस की गई |
अब समय आ गया है की भारतीय संसद एवं सांसद,विधायिकाएं एवं विधायक जन आकांक्षा को यथाशीघ्र मूर्तरूप दें | लोकपाल विधेयक की मंशा विल्कुल पाक एवं साफ़ हैं |समय आगया है जबसभी विधानविशेषज्ञों,कानूनविदों,राजनेताओं एवं बुद्धिजीविओं को इसे संवैधानिक जामा तत्काल पहनाना चाहिए | मीडिया से भी अपेक्षा है की बढ़ते कदम की रिपोर्टिंग हो एवं कदम पीछे खीचने बालो को लोकतंत्र की इस पवित्र मांग की याद दिलाई जाय |
परन्तु अजीब से हालात हो रहे हैं । चर्चाएँ आम भ्रष्टाचार पीड़ित जनता एवं समाजसेवियों के बीच हो रही हैं जबकि नेता लोग तो संदर्भ को ही परिधि के बाहर घसीट रहे हैं ।
पिछले सप्ताह से बक्तब्य देने वाले आदती लोग (राजनेता )अमरूद एवं हाथी जैसी बातें कर रहे हैं | फिर भी कहूँगा की हाथी यदि अपने को सुराज की परिधि में लेले तो अमरूद की बेहतरी स्वयं सुनिश्चित होगी |
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अंततः
लोगो के बीच स्वार्थ के सामंजस्य को मित्रता एवं स्वार्थ की टकराहट को दुश्मनी कहते हैं |
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दिनाँक 14.4.2011 mangal-veena.blogspot.com
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