रविवार, 5 फ़रवरी 2012

आस्था के डगमगाते केंद्र

                           जिसकी जितनी अधिक विश्वसनीयता रहेगी,उसमे लोगो की उतनी ही आस्था होगी । कार्य या उत्पाद की  उत्कृष्टता एवं उसके लिए प्रतिबद्धता विश्वास का निमार्ण करती हैं, फिर समाज में उसके प्रति आस्था बनने लगती है। भारतीय समाज में आस्था के सबसे बड़े केंद्र रहे महात्मा गाँधी ने समाज में अतुल्य विश्वाश जगाया था | अब स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति के भाषण को भी कोई गंभीरता से नहीं लेता। उन्हें देख कर या सुनकर श्रद्धा स्थापित हो ऐसा कुछ उनके ब्यक्तित्व में है ही  नहीं।

                           विश्वास  गायब है । ब्रांडिंग स्थापित हो नही रही है कि आस्था उनकी ओर खिंचे । सामाजिक सरोकार रखने वाली प्रशासनिक,राजनीतिक या धार्मिक संस्थाएं आस्था विहीन हो रही हैं, इसीलिए डगमगा रही हैं ।इन्हें हम सो-सो कहकर टाल जाते हैं । हैं तो हैं ,परन्तु उनमे कोई रूचि नही । ब्रांड अच्छा हो तो मार्केटिंग आसान हो जाती है। मार्केटिंग एजेंसियां ज्यादा लाभ भी कमा लेती हैं । वैश्विक व्यवस्था में ऐसे बहुत सारे उत्पादब्रांड हैं जिनका बाजार में जादू चलता है । परन्तु अच्छे ब्रांड वाले जननायकों की कमी ने आमलोगों को मायूस कर दिया हैं ।

                          उत्तर प्रदेश में विधान-सभा का चुनाव निकट है । नेता पर नेता आ रहे हैं । छोटभैया नेता रामू,घुरहू,पवारू,करीम को घेर-घार अपने नेता को सुनाने के लिए सभा स्थलों तक ले जाने कि पुरजोर कोशिश  कर रहे हैं, परन्तु ये आम लोग हैं और भागे-भागे फिर रहे हैं कि इन नेताओं से कैसे जान बचे ।घूम फिर इन्ही महानुभाओं को लखनऊ,दिल्ली में विराजना है और वही करना है जो विगत साठो वर्ष से कर रहे हैं । फिर कोई चक्रीय व्यवस्था क्यों नही बना लेते । इससे जनता/मतदाता को परेशानी से राहत मिलेगी । कम से कम उनके जीवन संघर्ष का समय तो बर्बाद नही होगा । कल इसी जीवन संघर्ष से ब्रांड वाले हीरो(नेता) सामने आयेंगे । फिर रामू,घुरहू,पवारू,करीम खुद व खुद इन आस्था केन्द्रों की तरफ खिचते चले आयेंगे । बड़े गौर से नायको को देखेंगे,सुनेंगे और उनके साथ आगे बढ़  गौरवशाली एवं आदर्श भारत का निमार्ण करेंगे ।  वही भारतीय जनतंत्र का सही परिदृश्य होगा । 

                          ऐसा भी नही है कि लोग मतदान नही करेंगे-खूब मतदान करेंगे, क्योकि प्रश्न व्यवस्था का है । यह वैसा ही है कि जब तक नये पहनावे की ब्यवस्था  नही हो जाती वर्तमान जीर्ण पहनावे को निकाल कर फेका नही जा सकता ।
 अंततः-
                          जब दूसरो की खुशी से तुम्हारा अंतर्मन खुश होने लगेगा, तुम्हारे हर कदम पर खुशियाँ पलक पावड़े बिछाने लगेगी ।

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