बुधवार, 12 सितंबर 2012

भरोसा टूट गया

जी हाँ; भरोसा टूट गया। फिर तो आप जो थे-वह नहीं हैं। यह मानकर अपनी मति के अनुसार मैं जो समझूँ , वह आप हैं। उटपटांग वाक्य परन्तु सीधा-साधा सन्देश। कोलगेट कांड में सीबीआई ने कई कंपनी कार्यालयों में  छापा मारा। फिर श्री अरविन्द केजरीवाल का खुलासा आया कि सीबीआई ने छापे से पहले ही कम्पनियों को सचेत कर दिया था कि छापे मारे जायेंगे। सीबीआई एक बार पुनः स्वायत्तताविहीन एवं सत्यनिष्ठा से दूर दिखने लगी। आम लोगों को यकीन हो गया कि भ्रष्टसत्ता के अधीन एवं उसके इशारे पर काम करने वाली यह संस्था सत्यनिष्ठ हो ही नहीं सकती। गई भैंस पानी में। कभी अच्छी खबर आती है कि सीबीआई ने अपने विभाग के ही अधिकारी को घूसखोरी में रंगे हाँथ पकड़ लिया है तो जनता की समझ बनती है कि यह सब चोर- सिपाही वाला खेल है। क्यों नही सीबीआई कभी अपने मालिक घराने को रंगे हाँथ पकड़ती है? वाह रे भरोसे का संकट।
         हाल में सुब्रह्मण्यमस्वामी जी  ने चिदंबरम महोदय को दो-जी (2 जी ) में लपेटने का न्यायालयीय प्रयास किया । सब टांय-टांय फिस्स हो गया। सत्ताधारियों का तेजहीन चेहरा खिल उठा। परन्तु जनता में राय बनी कि  न्यायालय सत्ता की वीटो पॉवर प्रेशर में आ गया।यह कैसे हो सकता है कि जब सरकार ने कम्पनियों से कहा कि दो जी (प्लीज गिव ) तो लो जी समूह में ए राजा साहब के अलावा अन्य महोदय लोग नहीं रहे होंगे ।अब तो माननीयों को भरोसामाई मंदिर जाकर पूजापाठ करना चाहिए कि माई भरोसा बहाल करें ।
         भरोसा-भंग विभागों में पुलिस महकमें का अपना रुतबा है। पुलिस थाने का कोई अधिकारी हमारे एक मित्र को फर्जी केस से उनका नाम निकालने का आश्वासन, बिना लक्ष्मी दर्शन, दे दिया। मित्र का खाना-पीना छूट गया क्योंकि शुभचिंतकों ने उन्हें बताया कि यह तो किसी शनि, राहू या केतु जैसे ग्रह के कुदृष्टि की आहट है। पुलिस पैसा न ले और कोई सत्यनिष्ठ काम कर दे- यह तो हो ही नहीं सकता। बाद में पता चला कि वह अधिकारी कर्तब्यपरायण था और सचमुच मेरे मित्र को उबार दिया था। परन्तु जनता क्या करे, अपवाद को नियम तो नहीं कहा जा सकता।
         वैसे भरोसा-भंग मामले में हमारा देश भारत भी कम करम फूटा नहीं है। चीन पर भरोसा करे की पाकिस्तान पर। हाल ही में चीन के रक्षामंत्री भारत आये सो जानकारी के अनुरूप कुछ अधिकारियों को डाली, दस्तूरी या टिप देने का उपक्रम किये। हम तो चौंक गये कि इसके पीछे चीन की क्या मंशा होगी। भारत के विदेशमंत्री अभी पाकिस्तान गये तो वहां की विदेशमंत्री मैडम हीना रब्बानी खार, पीछे न देखकर, आगे साथ-साथ डग भरने की इच्छा जताने लगी। सभी भारतीय कृष्णा साहब की खैर मनाने लगे कि कहीं वे खार खाए पाकिस्तान की खार मैडम की बात में न आ जाँय वरन पीछे न देखने पर पीठ में फिर छूरा भोंका जा सकता है।प्रभु भरोसे जीने वाला यह नरम देश क्या करे। परमात्मा जानते हैं कि दुनियां के अन्य देशों को जब वहां के लोग चला रहे हैं  भारत को तो उन्हीं का भरोसा है। नहीं तो इस देश के कैसे लोग और कैसी लोकशाही।
         नवोदित भरोसा भंगियों में अरबपति एवं करोड़पति कथावाचक धर्मगुरू या उपदेशक उभरे हैं जो बड़े-बड़े  सत्तासीनों  एवं धनपतियों से सांठ-गांठ  कर भोली-भाली जनता का भरोसा लूट रहे हैं। बोरे में भरे रुपये चढ़ाने  वाले भक्तों पर ईश्वर की असीम कृपा बरसा रहे हैं और गरीबों को कोपर की भाँति चूसकर बदले में ईश्वर प्रदत्त कर्म का फल खिला रहे हैं। ये भोली-भाली जनता को क्या नहीं दे सकते-ईश्वर कृपा, पुत्र-पुत्री, आरोग्य, पाप-शमन, आशीर्वचन या सब कुछ। बदले में इन्हें तो केवल साधुभेष में इंद्रवत सत्ता, भोग-विलास, इन्द्राणियाँ, उड़नखटोला, परिचारिकाएँ, अपार धन-दौलत से भरी पूरी एक अमरावती चाहिये- बस। मन बेचैन होने लगता है कि अब धरमं शरणं आगच्छामि से भाग कर कहाँ जांय।
        वर्षा के दिनों में नदी को जब जलघमंड हो जाता है, वह दोनो किनारों(कगारों) से अपना रिश्ता भूल जाती है कि वे उसे सागर तक पहुँचाते हैं। फिर कगारों को धक्के दे-देकर गिराने लगती है। जब कगारों को याद आता है कि यह तो भरोसा-भंग कर रही है तब वे कगार गिर-गिरकर नदी के पाट को इतना फैला देते हैं कि वह सिमट कर तलहटी में भागने लगती है। सो निराशा जैसी कोई बात नहीं।

अंततः

रहिमन पानी रखियें, बिन पानी सब सून।
पानी गए न ऊबरें, मोती, मानुष , चून ।।







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