रविवार, 3 फ़रवरी 2013

भारतीय रेल कोहिनूरी ......

       एक यात्री को भारत में रेलयात्रा के दौरान हर कदम भारतीयता के दर्शन का अवसर मिलता है ।जब ट्रेन किसी नदीसेतु ,गुफा ,पहाड़ ,पठार ,जंगल ,घाटी या विशाल कृषि मैदान से गुजरती है तो देश की प्राकृतिक समृद्धि हर यात्री का मन मोह लेती है। स्टेशन दर स्टेशन विभिन्न वेशभूषा एवं बदलती बोली में संवाद करते लोग उतरते- चढ़ते चटक भारतीय संस्कृति का रंग विखेरते रहते हैं।भारतीय रेल का यह एक परिचय है ।परन्तु जब ब्यवस्था ,सुविधा एवं समयवद्धता से सामना होता है ;यात्री खीझ उठता है और फिर विदेशी रेल सेवाओं की शान में कुछ बोलकर अपनी भड़ास उतारता है ।
        सोचने की बात है कि ज्यादातर रेलयात्री; तीर्थयात्री ,देशाटनी,भ्रमणार्थी ,शिक्षार्थी ,पेशेवर ,ब्यवसायी ,रोगी एवं नौकरी से जुड़े लोग; होते हैं।रेल से इनकी अपेक्षा होती है -सुरक्षा,संरक्षा ,सफाई ,समयवद्धता ,साफसुथरा खानपान एवं मित्रवत ब्यवहार। इसके लिए इन्हें सममूल्य कीमत चुकाने में कोई संकोच नहीं हैं ।याद कीजिए एक यात्री अपनी जेब के अनुसार टिकट की श्रेणी बदल लेता है, लेकिन कम मूल्य पर अपने लिए टिकट नही माँगता है। यात्री को खाने की चीजों की कीमत कम करने की बहस करते नहीं देखा जाता, लेकिन खान-पान की गुणवत्ता पर हर यात्री कोसता रहता है। यात्री कभी  रेलवे से यह नहीं कहता कि गाड़ी तेज चला कर उसे जल्दी गन्तब्य तक पहुँचाओ, परन्तु वह इतना चाहता है कि कम से कम अपने सुनिश्चित समय पर ट्रेन अवश्य गन्तब्य पर पहुँचे। यात्री यह नहीं चाहता है कि यात्रा के दौरान उसे स्वास्थ्यलाभ  हो,परन्तु वह यह भी नहीं चाहता है कि उसे स्वास्थ्यहानि  जैसे बीमारी, खटमल, खसरा, चूहा प्रताड़न इत्यादि हो। आज के भारत का यात्री वर्ग आर्थिक रूप से इतना कमजोर नहीं है कि उसे खस्ताहाल रेल से डरावनी एवं तनावग्रस्त यात्रा करनी पड़े। फिर रेल उनकी माँग पर पर खरी क्यों नही उतर रही है? भारतीय रेल वाजिब किराया और वाजिब सेवा पर काम क्यों नही कर पाती है? यदि रेल सुनिश्चित करे कि  उसकी आमदनी का तर्कसंगत खर्च हो रहा है और वह सेवा से कम है तो यात्री को बढ़ा किराया देने में कोई विरोध  नहीं है। हाँ उपभोक्ता के रूप में वह इतना तो चाहेगा कि सेवा केलिए (वादा)कथनी और करनी में अंतर न हो।
        आज अहं सवाल एक दो या दर्जन भर ट्रेनों को 200 कि.मी./घंटा रफ्तार देने, कुछ विश्व स्तरीय स्टेशन बनाने अथवा ऐसे कोरिडोर का विकास  नहीं है, बल्कि चाहत है कि आज तक किये गये वादे को पहले जमीन पर उतरा जाय। आज भी भारतीय रेल की औसत गति पचास  कि.मी./घंटा से कम है।  लेट लतीफी की बात तो घंटो से आगे अब आधे दिन, पौने दिन या पूरे दिन में होने लगी है। स्टेशनों का तो कहना ही क्या - उजड़े सरायों से बुरे हाल हैं। क्या रेल  इतनी भी गारंटी नहीं दे सकती है कि वह अपनी समयसारिणी केलिए प्रतिबद्ध है और निश्चित समय पर गन्तब्य तक न पहुँचने  पर वह देर के लिए यात्री को किराये का कुछ प्रतिशत वापस करेगी ? क्या रेल अपने यात्रियों को सादा - स्वच्छ भोजन व  जलपान उचित मूल्य पर देने की प्रतिज्ञा पूरी नहीं कर सकती है? ये समस्याएँ कोई क्रायोजनिक इंजन बनाने जैसी तकनीकी तो नहीं है कि रेल समाधान में असहाय है।
        जब कभी भारत सरकार  के नवरत्न  कम्पनियों जैसे भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, इंडियन आयल, नैवेली लिग्नाइट इत्यादि की बात होती है तो सोच उभरती है कि भारतीय रेल भारतीय कोहिनूरी रेल क्यों नही हो सकती है । ऐसा क्यों नहीं हो सकता कि हर भारतीय की  ललक हो  कि  चलो रेल यात्रा का आनन्द उठायें और फिर तरो ताजा  हो काम पर लग जांय। सभी अनुभव करते हैं कि जब हम साइकिल, रिक्शा या टैक्सी से चलते हैं तो स्थानीयता का अनुभव करते है, बसों से चलते हैं तो प्रान्तीयता और जब रेल से यात्रा करते हैं  तो हमें भारतीयता की अनन्दानुभूति होती है। हो भी क्यों न- भारतीय रेल की परम्परा डेढ़ सौ वर्षो से अधिक पुरानी हो रही है और इसमे आवश्यक आवश्यकता से मनोरंजक आवश्यकता पूर्ति तक सारे संसाधन उपलब्ध हैं । ऐसे में हमारे देश के यात्री को न फ्रांस की रेल चाहिए न चीन की, उसे तो सम्पूर्ण अर्थो में भारतीय रेल चाहिए जो आधुनिक भारत में कोहिनूर की तरह चमकती दमकती हो।
        हर कमी को दूर करते हुए भारत सरकार और रेलवे बोर्ड को चाहिए कि वे भारतीय रेल को अपना यू यसपी(USP) बनायें । इसके लिए आज नवाचारी सोच एवं प्लानिंग केसाथ क्रियान्वयन समरूपता की सर्वोपरि आवश्यकता है । भारतीय रेल किसी राजनैतिक दल को खुश करने केलिए गिफ्ट पैक नही है, बल्कि  यह यात्रियों को खुश करने के लिए इस देश की सबसे बड़ी यातायात ब्यवस्था अर्थात भारतीय रेल सेवा है।ट्रेनों को निर्धारित स्पीड पर तथा रेलप्रबंधन सुधार को सुपर स्पीड में चलाने की आवश्यकता है। यात्री चाहता है कि उसे वाजिब किराये पर वाजिब सेवा मिले। उसे भाड़े में राहत नहीं , सेवा में सुधार चाहिए।। रेल बजट प्रस्ताव का समय निकट है । भारत सरकार व रेलवे बोर्ड को ईमानदार प्रस्ताव के साथ देशवाशियो के सामने आना चाहिए कि वे भारतीय रेल को कोहिनूरी भारतीय रेल बनाने केलिए क्या करने जा रहे हैं।यदि सरकार कुछ बड़ा सपना देखे तो हम भरतवासी कोहिनूरी सपने को सच करने का सामर्थ्य भी रखते हैं ।  
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एक यात्रा संस्मरण 
        दिनांक 27 अप्रैल 2012 को मुझे संघमित्रा की वातानुकूलित द्वितीय श्रेणी शयनयान में नागपुर से वाराणसी की यात्रा का अवसर मिला। जब भी इस यात्रा की याद आती है मै सिहर उठता हूँ। गंदे ट्वायलेट, गंदे डिब्बे, बदबूदार कम्बल और घटिया खाना तो रेल यात्रा के दौरान आदत में शामिल हो गये है परन्तु रात होते ही खटमलों और चूहों का ऐसा आक्रमण पूरे डिब्बे के यात्रियों पर हुआ कि हाहाकार मच गया। आगे पीछे सभी लोग उठकर बैठ गये। कोई बेडरोल फेक रहा था तो कोई हाथ, जूते या चप्पल से खटमल मार रहा था। कोई बर्थ के नीचे झोले चेक कर रहा था कि कहीं चूहे काट तो नही रहे हैं। चूहे उत्पात एवं खटमल आतंक  से पूरे बोगी में भगदड़ मच रही थी। खटमल पहनावे के अन्दर तक जा घुसे थे। भारतीय रेल का एक भयावह सच सामने था। किसी तरह डिब्बे के अन्दर टहलते, खुजलाते, खटमल मारते सबकी  रात बीती।
        28 अप्रैल 2012 को सुबह जब मै मुगलसराय स्टेशन पर उतरा तो लगा कि जेल से सश्रम सजा काट कर छूटा हूँ। घर पहुँच कर आवाज दिया कि  मुझे घर के बाहर ही पानी, साबुन और कपड़े दे दो, ताकि कपड़े धो कर नहाने के बाद घर में अन्दर आ सकूँ । श्रीमती जी ने पूछा- क्या हुआ? फिर मामला समझ कर उन्होंने तत्काल आवाज दिया कि रास्ते के सारे कपड़े धूप में ही छोड़ दीजिये नही तो घर में खटमलो का अभयारण्य हो जायेगा।
        यह है हमारी भारतीय रेल एवं इसकी प्रबंधन ब्यवस्था की एक झलक ।जय हो ....
3 February  2013                                                        Mangal-Veena.Blogspot.com
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