बुधवार, 15 नवंबर 2017

गुजरात से शँखनाद या साइरन ?

***************आज की तिथि में गुजरात हमारे देश के कतिपय सर्वाधिक विकसित राज्यों में एक है और हमारी प्रगति का पर्याय है ।सकल घरेलू उत्पाद या प्रति व्यक्ति सालाना आय अथवा खुशहाल जिंदगी के मानक आँकड़ों की बात न कर केवल विभिन्न राज्यों से गुजरात जाकर वहाँ अपनी जीविका चलाने वालों की संख्या तथा उस राज्य के विकास पर उनकी राय ले कर गुजरात विकास की चकाचौंध करने वाली सच्चाई समझी जा सकती है।न्यूनाधिक सभी राज्यों , विशेषतया पिछड़े राज्यों, के लोग गुजरात के विभिन्न शहरों या कस्बों में काम करते मिल जाँयगे जबकि व्यवसाय से इतर जीविका के लिए अन्य राज्यों में गुजराती न के समतुल्य मिलें गे। यही है गुजरात का विकास मॉडल जो आम लोगों को दिखता है।
***************परन्तु हमारे देश के तथाकथित यायावर नेता जो पीढ़ियों से गरीब देश के अमीर लुटेरे हैं और जिनके लिए यूरोपीय व अमेरिकन देश सुगम व सुरम्य सैर- गाह हैं ,उन्हें गुजरात में कहीं विकास दिखता ही नहीं। ये वही लुटेरे हैं जिनकी मान्यता है कि जहाँ लूट के अवसर नहीं वहाँ विकास कैसा। सन दो हजार चौदह तक देश की गद्दी जुगाड़े इन लुटेरों का कृत्य जन जन को पता है फिर भी निर्लज्ज बगुला भगत सा विश्वास पाले गुजरात के मैदान में धर्म ,जाति ,सवर्ण , पिछडों और दलितों का जहर घोल कर ये विजय की आशा पाल रहे हैं।इन हारे हुए काँग्रेसी खिलाडियों के पास हारने को कुछ नहीं है पर खेल बिगाड़ने को बहुत कुछ है। वहीँ गुजरात की जनता एक बड़ी कसौटी पर चढ़ी हुई है। वह या तो भारतीय जनता पार्टी को विजय देगी या पराजय ।
***************देश के हर राष्ट्रप्रेमी नागरिक की आकांछा है कि गुजरात के लोग भाजपा को विजयश्री पहना कर श्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र सरकार द्वारा चलाये जा रहे आर्थिक , सामाजिक तथा सामरिक सुधारों पर मुहर लगायें ताकि देश विदेश को एक संदेश मिल सके कि जिस  मोदी ने वर्षों तक गुजरातियों की बेहतरी के लिए साधना किया और जिस जनता ने उन्हें आज प्रधान मन्त्री के पद तक पहुँचाया वे आज भी थोड़ी दुश्वारियों के बावजूद  एक दूसरे के लिए चट्टान की भाँति खड़े हैं। याद रहे कि आर्थिक उतार- चढ़ाव तथा मत भिन्नता के बाद भी मोदी जी राष्ट्रवाद ,राष्ट्रभक्ति ,राष्ट्रगौरव व सर्वोपरि -राष्ट्र वाली अवधारणा के बेजोड़ नायक व आशा के किरण पुञ्ज हैं। इस तथ्य को हमें किसी भी पल दृष्टि से ओझल नहीं कर सकते क्योंकि सावधानी हटी कि देश लुटा।
***************दूसरी अर्थात पराजय की स्थिति में स्थिति के कारण महत्वपूर्ण हो जाँयगे और सारे विपक्षी नेता एक होकर देश को सन चौदह से पूर्व की स्थिति में घसीट ले जाने व सत्ता सुख के बंदरबाँट का पुरजोर प्रयास करेंगे।फलतः बचे डेढ़ वर्षों में केंद्र सरकार को उग्र विपक्षी विरोध का सामना करना होगा जिससे सरकार की दृढ इच्छाशक्ति डगमगा सकती है।हार भाजपा की होगी परन्तु खुशियाँ विघटनकारी नेता व पार्टियाँ मनाएँ गी। जो  कारण मतदाताओं को भाजपा के विरोध में जाने को प्रेरित कर सकते हैं वे क्रमशः पाटीदारों का आरक्षण के नाम पर प्रबल विरोध ,दलितों में उकसाया गया छद्म असंतोष ,व्यवसाय पर जीएसटी का कुप्रभाव ,पेट्रोलियम पदार्थों की घटी कीमतों का लाभ जनता को न देना ,स्थानीय भाजपा नेताओं के प्रति विकर्षण तथा सबसे ऊपर राज्य स्तर पर मोदी जी जैसे चमत्कारी नेता की अनुपलब्धता हैं।
*************** निश्चय ही राष्ट्रवाद की छाँव में भाजपा  यह भूल रही है की सरकार अपनी जनता के लिए एक चुनी हुई कल्याणकारी संस्था होती है और बिना कोई संकट की स्थिति आए वह जनता को आर्थिक बेहतरी के बदले आर्थिक बदहाली नहीं दे सकती।आम जन की जेब पर दबाव पड़ेगा तो समर्थन भी घटे गा।फिर भी दबाव ने कोई लक्ष्मण रेखा नहीं पार किया है कि जिस दल के सरकार ने गुजरात में वर्षों तक बेहतरीन परफॉर्मन्स दिया ,गुजरात को आधुनिक गुजरात बनाया व देश को मोदी जी जैसा अद्वितीय नायक दिया ;उसे राज्य से सत्ताच्युत कर दिया जाय।
***************सरकारी सेवा में रहते हुए उन्नीस सौ नवासी से वानवे तक मुझे गुजरात के विभिन्न स्थानों पर भ्रमण करने व वहाँ के विभिन्न वर्ग व समुदाय के  लोगों के साथ जब संपर्क का अवसर मिला तो समझ आई  कि प्रभु श्रीकृष्ण को द्वारकापुरी  रास क्यों आई याकि गाँधी जैसे सत्य एवँ अहिँसावादी और पटेल जैसे  लौहपुरुष वहीँ क्यों उपजे। वहीँ समझ सका कि पानी की कमी से जूझते प्रदेश में  अमूल जैसी श्वेत क्रान्ति ,खूबसूरत दस्तकारी ,वस्त्रोत्पादन ,हीरा उद्योग या अन्य भारी उद्योग क्यों परवान चढ़ पाए।वास्तव में शुद्ध भारतीय परिवेश व मीठासमयी संस्कृति को सँजोए हुए गुजरातियों में गजब की उद्यमिता एवँ संघर्ष क्षमता है। उन्हें सरकार  से मात्र  सरकार जैसी व्यवहार की अपेक्षा रहती है। उन्हें सरकार से सार्वजानिक सुविधा ,संरचना ,सुरक्षा और व्यवसाय परक वातावरण चाहिए न कि व्यक्तिगत सुविधाएँ। इस राज्य में मोदी जी के सफलता का मन्त्र भी यही रहा है। आज के संशय का कारण भी स्थानीय भाजपा नेताओं द्वारा इस मंत्र का थोड़ा बहुत विकृत किया जाना लगता है।
***************सभी धन ऋण  विचारों के समायोजनोपरान्त कहा जा सकता है कि मोदी जी के बाद की प्रदेश सरकार यदि पूर्ववत जनता के प्रति संकल्पित रही है और स्थानीय भाजपा के नेता जनता से मित्रवत संवाद में रहे हैं तो राष्ट्रहित को सर्वोपरि मानते हुए गुजरात के मतदाता भाजपा को विजय श्री देंगे। उभरते भारत में हो रहे बदलाव के दौर में जीएसटी से उत्पन्न अस्थाई व्यावसायिक कठिनाइयोँ  के कारण भी वे भाजपा को नहीं नकारें गे। हिमाँचल प्रदेश की भाँति वहाँ एन्टी इनकम्बेंसी जैसा कोई गुणक भी काम नहीं करेगा। ऐसे में भाजपा के हार की सम्भावना बहुत दूर तक नहीं है। हारे गी तभी यदि सत्तारूढ़ सरकार ने सरकार के लिए निर्धारित लक्ष्मण रेखा का अतिक्रमण किया होगा। जीत से भाजपा नीत केंद्र सरकार के आर्थिक सुधारों व विकास कार्यक्रमों  को और तीब्र आवेग (मोमेंटम )मिले गा अन्यथा  हार, आवेग में अस्थाई ठहराव का,गुजरात से एक साइरन होगा। फिर सिंहावलोकन की स्थिति बने गी और पुनः नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में  इन्हीं सुधारों व विकास को प्रचंड समर्थन मिलेगा  क्योंकि भारत को दुनियाँ मेँ अपना मुकाम पाना है और हम आम भारतीयों के लिए सबसे पहले भारत है।
वाराणसी ;दिनाँक 14 नवम्बर 2017         ------------------------------------ मंगलवीणा
******************************************************************************************
अंततः
 **********समूचे उत्तरभारत में दीपावली से आरम्भ हुए नव वर्ष का स्वागत धुन्ध ,धुँए ,गुबार व कुहरे से हुआ है। स्वागत भी ऐसा कि लोगों का श्वाँस लेना दुश्वार। सभ्य भाषा में स्मॉग  कहर बरपा रहा है और हम लोग जैसी करनी वैसी भरनी पा रहे हैं।
**********आश्चर्य होता है कि नए वर्ष का शुभारम्भ हुआ है और अगहन या मार्गशीर्ष का वह मनोहारी महीना चल रहा है जिसकी महत्ता में  प्रभु कृष्ण ने अर्जुन से कहा था कि ऋतुओं में बसन्त ऋतु और महीनों में मार्गशीर्ष का महीना मैं ही हूँ।यथा -
*****बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहं।
*****मासानां मार्गशीर्षः अहम् ऋतुनां कुसुमाकरः। 35 /10 श्रीमद्भगवद्गीता
**********ऐसे महीने में पर्यावरण को स्वयं प्रदूषित कर मानवता कराह रही है। धन्य हैं विज्ञान के उत्कर्ष युग या इस कल युग में जीने वाले हम विद्वान् लोग कि धरती को स्वर्ग न बना नरक बना डाले।क्यों न हम अपनी तुलना मूर्ख कालिदास से करें और कवि कालिदास की ओर अग्रसर हों।
वाराणसी                                                                              -------- मंगलवीणा
दिनाँक:14 नवम्बर 2017                                     mangal-veena.blogspot.com
********************************************************************************************           


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें