बुधवार, 9 मई 2012

भारत में राष्ट्रपति चुनाव

 लोगों में चर्चा के लिए चर्चा है कि अगला राष्ट्रपति कौन | अखबार वाले जो छाप दे रहे हैं या टी. वी. वाले जो दिखा दे रहे हैं, उसी पर पक्ष-विपक्ष में बहस करते हुए लोग चाय-काफी कि चुस्की ले रहे हैं | चुनाव में सीधी सहभागिता न रहने से बहसियों में गुण-दोष को अच्छा आयाम भी मिल रहा है | पड़ोस के गाशिप सेंटर पर चल रही गरमागरम बहस में एक सज्जन कह रहे थे कि यहाँ तो हर बात बिना मतलब लोगों के बीच चर्चा के लिए पहुँचा दी जाती है | जब संविधान में लिखा ही है कि भारत का कोई भी नागरिक, जो ३५ वर्ष की आयु पूरा कर चुका हो और लोकसभा का सदस्य बनने की योग्यता रखता हो, राष्ट्रपति बन सकता है  तो कोई भी योग्यता रखने वाला नागरिक जिसके पक्ष में गणित बैठ जायेगी, राष्ट्रपति बन जायेगा | देश के बड़े-बड़े राजनेता तलाश में लग गये हैं और किसी न किसी को इस सर्वोच्च पद पर बैठा ही देंगे | ऐसा तो कहीं लिखा नहीं है कि राष्ट्रपति का कद डॉ. राजेंद्र प्रसाद, कबीन्द्र रबीन्द्र नाथ टैगोर, डॉ. होमी भाभा, आचार्य भावे, डॉ. लोहिया, लोकनायक, नानाजी  या डॉ. कलाम सा ही होना चाहिए | इतना जरूर है कि जो राष्ट्रपति चुना जाय, वह चुनने वाले राजनेताओं को अंतर्मन से अपना नेता माने और गाहे-बगाहे महसूस भी कराये कि वह उनके प्रति वफादार है | 
दूसरे सज्जन प्रतिवाद करते हैं कि कुछ भी हो भारत के राष्ट्रपति को किसी न किसी क्षेत्र जैसे कला, साहित्य, विज्ञान, कृषि, तकनीकी, चिकित्सा, या शिक्षा विशेषज्ञ होना ही चाहिए | तीसरे सज्जन बोल पड़े कि यह कौन सी बात है | कोई न कोई विशेषता तो हर राष्ट्रपति में मिलती रही है जैसे हमारी वर्तमान राष्ट्रपति  देश की प्रथम महिला राष्ट्रपति हैं और परस्पर सौहार्द्र बढ़ाने के लिए विदेश भ्रमण की हिमायती रही हैं | अंतर्राष्ट्रीय संबंधो में उनके भ्रमण से आज नही तो कल बड़ा उछाल आने वाला है |
 चौथे सज्जन सबको चुप कराते हुए बोल पड़े कि आप लोग फिजूल का माथा पच्ची कर रहे हैं | हमारे माननीय सांसद एवं विधायक हैं न इस काम को करने के लिए | ये लोग देश कि सर्वोच्च संस्था के सदस्य हैं और हम जब भी यह भूलते हैं, ये माननीय वहाँ बैठ कर एक सुर से हमें याद दिलाते रहते हैं कि सर्वोच्च वे ही हैं | अतः सब अच्छा होगा | ये चुनने वाले माननीय कोई न कोई योग्य महामहिम ढूंढ़ निकलेगें - एकमत से नहीं तो बहुमत से ही सही | साथियों ! संविधान में नागरिक के साथ आदर्श या आस्था का केंद्र जैसा कोई विशेषण  नहीं लगाया गया है जिससे आम आदमी की सोच का राष्ट्रपति आम जनता को मिले | हाँ यह पक्का है कि कोई बाबू राष्ट्रपति नहीं होगा क्योंकि वह लाभ  उठाता है, लाभ न उठाने वाला ही कोई राष्ट्रपति बनेगा | बाकी नेता की गति नेता जानें और न जाने कोय | सबको यत्र-तत्र निकलने का समय हो गया था |
अंततः 
         खबर है कि इस वर्ष आम की अच्छी फसल  आने वाली है अतः आम आदमी को सस्ते दर पर आम चखने का आनंद मिल सकता है | ऐसा ही हो | लेकिन अभी तो पचास  रुपये प्रति किलो के नीचे किसी भी किस्म का आम बाजार में नहीं मिल रहा है |








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