गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

सूरज कभी पूरब में भी उगता है

इट इज हाट के दौर में जब कोई फील गुड अहसास कराने वाली ख़बर आती है तो लगता है अब भी सूरज कभी पूरब में उगता है।
            बीते हाल में बिहार राज्य के किसी विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह की बात आई जिसमें राष्ट्रपति, वहां के राज्यपाल एवं मुख्यमंत्री को भाग लेना था। निमंत्रण पत्र पर राष्ट्रपति महोदय के नाम के साथ विशेषणार्थ महामहिम का मसौदा था जिस पर शायद राष्ट्रपति जी का सुझाव आया कि उनके नाम के साथ महामहिम न लगाया जाय, बेहतर होगा कि श्री लगाया जाय; साथ ही समारोह के मंच पर उनकी कुर्सी अन्य अतिथियों के समतल ही लगाई जाय। राष्ट्र के प्रथम भवन के प्रथम नागरिक से लोकतंत्र को पहला पसंदीदा विचार सुनने को मिला। यह प्रशंसनीय सोच राष्ट्रपति को निश्चय ही आम आदमी के समीप ले जाती है। शीर्ष पर विराजमान महानुभाव के इस सोच परिवर्तन का  राष्ट्रपति भवन से ग्रामसभा भवन तक  हर स्तर पर एक तो  बड़ा ही अनुकरणीय असर होगा दूसरे वे अपने को स्व. ज्ञानी जैल सिंह की परंपरा से अलग भी दिखा सकें गे।
             सोच को  आगे बढ़ाते हुए राष्ट्रपति भवन से कुछ इस प्रकार का प्रोटोकाल जारी भी कर दिया गया है कि देश में राष्ट्रपति महोदय को संबोधन के लिए हिज इक्सलेंसी शब्द का प्रयोग नहीं होगा और महामहिम के स्थान पर राष्ट्रपति जी/महोदय प्रयोग किया जायेगा। जब प्रथम भवन से लोकतंत्र  के साथ सामंजस्य बैठाते प्रोटोकाल की शुरुआत हो ही गई है तो सर्वप्रथम चर्चा राष्ट्रपति शब्द पर होनी चाहिए। यह शब्द किसी भी तरह प्रेसीडेन्ट का समानार्थी नहीं है। पति शब्द सदैव दम्भ एवं स्वामित्व का बोध कराता है और स्वयं को पति कहलाना अपने दम्भ एवं स्वामित्व भाव पर मुहर लगवाता है। शिष्टाचार की कसौटी पर किसी एक का पति होना अच्छी बात है परन्तु कईयों का पति होना बुरी बात है- ठीक वैसे ही जैसे किसी एक की पत्नी होना अच्छी बात है परन्तु बहुतों की पत्नी होना बहुत ही बुरी बात है।
             समय आ गया है कि भारतीय लोकतंत्र के प्रथम नागरिक अपने को देशपाल, भारतपाल, प्रथम सेवक, राष्ट्र सेवक, राष्ट्राध्यक्ष या प्रेसीडेन्ट कुछ भी कहलायें  परन्तु राष्ट्रपति शब्द को निरस्त करें। इसी प्रकार राष्ट्रपति-भवन के लिए देश निवास, भारत-भवन, प्रथम-भवन, प्रेसीडेंट हाउस जैसे समानार्थी किसी संबोधन को मान्यता दें ताकि भारत में एक नई लोकशाही धारा प्रेसीडेन्ट हाउस से निकले। इस विषय पर राजभाषा में एक राष्ट्रब्यापी चर्चा चला कर सूरज को पूरब में उगते देखा जा सकता है। राष्ट्रपति जितना ही आम होंगे, उतना ही गरिमा एवं महिमा मंडित होते चले जाएँ गे।
अंततः 
सन्निकट विजयादशमी एवं दुर्गापूजा के शुभावसर पर समस्त पाठकों एवं टिप्पणीकारों को उल्लासपूर्ण त्योहार के लिए सहृदय शुभकामनाएं। देश के प्रथम नागरिक एवं राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी साहब को भी नई पहल के लिए धन्यवाद एवं दुर्गा पूजनोत्सव पर मंगलमय एवं मंगलकारी कामनाएं।     

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