गुरुवार, 27 दिसंबर 2012

रेप का नाश हो

                       हमारा लोकतंत्र पुष्ट हो रहा है ।साथ ही साथ समाज में धर्म ,कर्म एवं कुकर्म भी खूब फल -फूल रहे हैं ।बिना कारण कोई कार्य नहीं होता है ।अतः सोलह दिसंबर की रात नई दिल्ली में एक युवती केसाथ हुए जघन्य बलात्कार केलिए भी भारत के बुद्धिजीवी ,नेता ,प्रशासक,समाजसेवक,अखबार एवं मिडिया केलोग अनेकानेक कारण बता रहे हैं साथही प्रस्तावित समाधान की झड़ी लगाये हुए हैं ।ऐसा लगता है कि यदि उन्हें एक मौका मिल जाय तो वे रेप को समूल नष्ट दें।केंद्र एवं दिल्ली की सरकारें उठे बवंडर से हांफ रही हैं। दिल्ली पुलिस अवाक् है कि कहां की आफत आ पड़ी।
                      बेचारी पीड़िता पहले दिल्ली फिर सिंगापुर के एक अस्पताल में तेरह दिनों तक मौत से जूझते हुए हम भारतीयों को हमारे कर्तब्य की याद दिलाती रही।करोड़ों भारतवासी दुआ करते रहे कि वह मौत पर विजय पाए और न्यायपालिका /ब्यवस्था उसे तत्काल एवं यथेस्ट न्याय दे।।रेपिस्टों को सजा दिलाने केलिए बहुत बड़ी संख्या में युवक एवं युवतियों ने राजधानी को इस कदर सर पर उठा लिया कि पुलिस कार्यवाही पर उतर पड़ी और दिल्ली पुलिस का एक कर्ताब्यनिष्ट सिपाही इस रेप पर बलि चढ़ गया।भीड़ उमड़ी थी न्याय मांगने कि एक दहला देनेवाला अन्याय हो गया।दामिनी स्वयं भी पूरे देश को झकझोरते हुए बलिदान हो गई।यह सब बड़ा ही दुखद है।सच तो यह है कि ऐसे प्रदर्शनों से यह कुकृत्य विरामबिंदु पर पहुँचने वाला नहीं है।कुछ महीना पहले (09.07.2012)गुवाहाटी में एक ऐसा ही जघन्य रेप हुआ था।खूब हो-हल्ला भी मचा था।रेपिस्टों को पकड़कर कानून के हवाले कर दिया गया।समाज और सरकार ने अपने कर्तब्य का इतिश्री समझ लिया ।ऐसा ही होता हुआ इस बार भी दिखता है।रेपिस्ट कानून के हवाले हो चुके हैं।सरकार लूला-लंगड़ा प्रयास करेगी कि उन्हें कड़ी से कड़ी सजा मिले।तबतक रेप कहीं और कई घिनौने नाच कर चुका होगा क्योंकि रेप एक विकृत मनोदशा है जो परिस्थिति एवं समय को अनुकूल पा रेपिस्टों के सर पर सवार हो जाता है और फिर समाज रेप का एक नया नंगा नाच देखता है।          
                       यह रेप आतंकवाद के स्लीपिंग माड्यूल जैसा हो गया है जो हमारी बहन,बेटिओं के इर्द -गिर्द पूरे देश में पैठा हुआ है।रेपिस्ट मुहल्ले या गाँव में किसी पड़ोसीरूपमें,कार्यालय में किसी बास या सह्कर्मीरूपमें,सड़क पर किसी यात्रीरूप में, विद्यालय में किसी शिक्षक या छात्ररूप में,राजनीति में किसी नेतारूप में या रिश्तों में किसी रिश्तेदाररूप में यत्र -तत्र सर्वत्र विद्यमान हैं।सावधानी हटी कि दुर्घटना घटी।रेप सर्वकालिक है और बढ़ते -घटते कलंकित चंद्रमा की भांति यह अतीत में था,वर्तमान में वीभत्स ताण्डव कर रहा है और भविष्य में भी शायद रहेगा परन्तु इस रेप ने हम भारतवासियों को गहरे चिंतन की ओर ढकेल दिया है कि हम क्या थे,क्या हैं और आगे क्या होना चाहते हैं।इस सन्दर्भ में वे असंख्य लोग वन्दनीय हैं जो इस रेप के विरुद्ध आवाज उठाये हैं।ठीक है कि क्रियारूप में हम कुछ भी करलें, जो "हुआ" उसे "नहीं हुआ " नहीं बनाया जा सकता है परन्तु एलार्म बजा दिया गया है कि भारत अब ऐसा कुकृत्य बिलकुल सहन नहीं करे,रेपिस्टों को सरकार एवं न्यायालय तत्काल एवं कठोरतम दंड दें और महिलाओं की मर्यादा सर्वोपरि सुनिश्चित करे।साथ ही समाज से सरकार तक सभीलोग सत्यनिष्ठा से अपना कर्तब्य निभाएं,हर संभावना को घेर दें जो ऐसे कुकृत्य केलिए अवसर पैदा करते हों और एक -एक महिला एवं पुरुष को इस बुराई के प्रति जागरूक एवं संवेदनशील बनादें फिर निश्चय ही हमारी धरती से इस कुकृत्य का उन्मूलन हो सकेगा।इन सारी ब्यवस्था के बावजूद महिलाओं को सावधानी रूपी सुरक्षा घेरा सदैव अपने साथ रखना चाहिए --    
                                         बेटी ,बहना ,भार्या ;सदा  रहो  होशियार ।
                                         ना जानें रेपिस्ट ये ;कौन भेष मिल जांय ।
                    अब जबकि पूरे देश के एकस्वरीय शंखनाद से सोलह दिसंबर को  महिला के साथ हुई रेप दुर्घटना इतिहास के पन्नों में एक घुमावबिंदु की तरह अंकित होने जा रही है, हम भारतीयों को दामिनी के बलिदान को शीश झुकाते हुए प्रति वर्ष इस दिन को महिला सम्मान दिवस के रूप में मानना चाहिए और हर भारतवासी को यह संकल्प दुहराना चाहिए कि ---- 
रेप का नाश हो ;उत्पीड़न समाप्त हो ; नारी का सम्मान हो ;भारत महान हों ।साथ -साथ हर स्तर पर जागरूकता के कार्यक्रम चलने चाहिए क्योंकि यह वह प्रकाश है जिससे सभी कुकर्म रूपी अंधकार डरते हैं।इसकी अगुआई सरकार करे ,समाजसेवी करें ,पंडित और मौलवी करें।निवेदन है कि लोग मेरे उद्गार को गंभीरता से मनन करेंगे क्योंकि हम अपनी बहन ,बेटी,पत्नी और माताओं की मर्यादा की बात कर रहे हैं कि जिनके बिना हमारा अस्तित्व ही नहीं है।
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अंततः
आइए नारी के प्रति श्रद्धा पर महाकवि जयशंकर प्रसाद को याद करें -
                                       नारी तुम केवल श्रद्धा हो ,विश्वास -रजत -नग पगतल में ।
                                       पियूष श्रोत  सी बहा करो ,जीवन  के  सुन्दर समतल  में ।
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नोट :पाठक कृपया इस सन्दर्भ में इसी ब्लाग पर हमारा लेख गुवाहाटी कांड या ईश्वर के अवतार का समय भी देखें।

























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