शनिवार, 6 अप्रैल 2013

धन्यवाद होली ,स्वागत नवरात्रि 2013

                       विषम परिस्थितियों में बेहतरीन प्रदर्शन केलिए बीती होली को धन्यवाद । इस त्योहार की लोकप्रियता का ही कमाल है कि  स्थापना दिवस (वसंत पंचमी) से मुख्य उत्सव होते हुए बुडवा मंगल तक हुडदंगियों को संविधान से कई गुना अधिक बोलने एवं मनमानी की स्वतन्त्रता मिल जाती है।यहाँ तक कि संविधान के रखवाले भी यही बडबडाने लगते हैं कि बुरा ना मानो होली है। मंहगाई, पश्चिमी विक्षोभ एवं पूर्वी दबाव को दरनिकार करते हुए यह होली जवान एवं मदमस्त होकर भारतीयों पर छाई और छाई रही।
                      होरियार एवं हुड्दंगी, टोली में अपनी स्वतंत्रता का एहसास करते हुए, राहगीरों से जबरदस्ती चन्दा उगाही किये। फिर दारू, मुर्गा एवं भंग उड़ाते हुए लाऊड स्पीकरों से कान फाडू अश्लील गाने बजा- बजा कर ध्वनि नियंत्रण की माँ बहन करते रहे। नतीजन अभद्रता के चलते अपनी ही बहू - बेटियां घरों में कैद रहीं।
                      दूसरी ओर घुसहे विभाग के कर्मचारी दनादन फाइलों को आगे बढा कर अपनी शाही होली की व्यवस्था किये तो सूखे विभाग वाले आश्वासन एवं झूठ- झाठ का सहारा  ले अपना जुगाड़ बैठाये। व्यवसायी मिलावट, घट- तौली और जिंसो की मनमानी कीमत से पैसा बनाये तो मजदूर बिचारे पूरे परिवार को मजदूरी पर झोंककर या उधारी मांगकर जुगाड़ किये । अमीर सबपर भारी तो किसान लहलहाती फसल के बल पर उत्साहित हुआ । सब मिलाकर क्रूर महँगाई से मोर्चा लेते हुए सभीलोग अपने -अपने ढंग से रिकार्डतोड़ होली खेलने में रम गए ।
                      फिर क्या था ,असली -नकली खोया भी खूब बिका ;गुझिया ,पापड़ और पकवान भी खूब बने । रंग ,गुलाल ,पिचकारी एवं टोपियों के नए -नए चीनी संस्करण भी धूम मचाये । ब्रांडेड जीन्स ,शर्ट्स ,टॉप्स एवं जूतों -चप्पलों की हर घर में क्रेज रही । चूँकि किसी न किसी ढंग से लक्ष्मी सबके पास पहुंची थी ,पूरे जोश केसाथ होली जलाई गई ,एकसेएक बढ़कर हुड्दंग हुए ,रंग कुरंग भी खूब बरसे और जोरा -जोरियाँ भी हुईं । संत (आशाराम बापू )से श्रोता तक,सधवा से विधवा(मथुरा ) तक,दिगम्बरियों से अम्बरधारियों तक और क्या कहें होरियारों से पुलिस तक सभी मर्यादा से बगावत करते दिखे । महंगाई,कुब्यवस्था एवं परेशानियों की बारहोमासी पिचकारी मारनेवाले नेताओं ने भी जनता को होली का मुबारकवाद देकर खूब चिकोटी काटा ।यही तो एक त्यौहार है जब हास्यकवियों के पौ बारह होते हैं । उल्लू ,गधा ,भैंस,सांड ,ऊंट केरूप में उन्हें लोटपोट सुना और सराहा गया । होली के गीत भी अवध एवं ब्रज परंपरा से आगे बढ़ते हुए फिल्मों को लाँघ कर ठेठ देशी फूहड़पनतक पहुँच गए । असहनीय अश्लीलता केसाथ एक और विशेष बात रही कि घर -घर में चीन को होली खेलते पाया गया।
                    कुल मिलाकर ऐसा लगा कि भाँग ,दारू ,बेहयाई एवं अश्लीलता के साथ अब होली जवान हो गई है और नई पीढ़ी चाहती है कि यह होली बारहोमासी हो जाय ।बुढ़वा मंगल भी उल्टे जवान होता गया जैसे -जैसे चालाक  मूर्ख बनते गये।होली का दौर समाप्त हुआ तो रेल ,सड़क और जहाज पर रेलम -पेल है क्योंकि अब लोग कार्यक्षेत्र की होली खेलने भाग रहे हैं । सारांशतः सबने पाया कि बीती होली मोटा -मोटी शानदार ,जानदार एवं शांतिपूर्ण रही ।
                    आगे स्वागत है चैत्र का जब जनसैलाब अगले पर्व -पड़ाव अर्थात नवरात्रि की ओर अग्रसर होगा । यही है पारम्परिक तीज -त्योहारों के रूप में उमंगों का झोँका जो भारतीयों को तरोताजा बनाये रखता है । इस पवित्र माह को ,मर्यादा पुरुषोत्तम राम का जन्मदिन मनाने ,शक्ति के नव रूपों के दर्शन -पूजन करने एवं ग्रीष्म जनित  बीमारियों से बचाव केलिए मां शीतला को पूजने का स्वावसर प्राप्त है । इस माह का अनुभव करना है तो प्रातः किसी मदमाते महुए केपास से निकलें या चैती गुलाब की बगिया से अन्यथा अमरावती ही सही । कहीं न कहीं अपनी सुमधुर ध्वनि से ऋतुराज का स्वागत करती कोयल सुनाई दे जायगी । ऐसी सुखद परम्परा केलिए पूर्वजों को साधुवाद ।
दिनाँक 6 अप्रैल 2013 संवत 2070 -                         Mangal-Veena.Blogspot.com
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