रविवार, 7 अप्रैल 2013

युवाओं के प्यार से जुड़ा यौन अपराध

            यदि प्यार शब्द LOVE का समानार्थी है तो जी हाँ, युवाओं का प्यार यौन अपराधों को बढ़ावा देता है। पहले भी यह शब्द भारतीय समाज में था, परन्तु इतना ब्यापक नहीं था जितना पश्चिमी सभ्यता के भौतिकवाद में। राधा-कृष्ण, नल-दमयन्ती, दुष्यंत-शकुंतला जैसे शालीन एवं अनुकरणीय उदाहरण हमारे अपने भारत के हैं जिनकी तुलना आज के युवाओं के प्यार से करना न ही उचित है न संभव। आज हम जिस प्यार की बात करते हैं, वह शब्द और संस्कृति पश्चिमवालों ने बड़े प्रयास से विदेशी शिक्षा एवं भारतीय सिनेमा के माध्यम से भारत में स्थापित किया और अब वेलेन्टाइन डे की स्वीकृति के साथ उस प्यार का पूर्ण प्रदार्पण हो चुका है।
            आज भारत में बनने वाले अधिकांश फार्मूला चलचित्रों के विषयवस्तु प्यार एवं अपराध के प्रेरक ही तो हैं। जो सिनेमा में होता है, वह कालेज और विश्वविद्यालयों में अनुकरण होकर, समाज में जहर की तरह फैलता है। आज के युवक एवं युवतियां जब प्यार की उम्र में पहुचते हैं तो तो इनके दो छोर बनते है, पहला सुन्दर काया  और सम्पन्नता वाला छोर, दूसरा इससे आंशिक या पूर्ण वंचित छोर। कोई रिझने में मुग्ध तो कोई रिझाने में और कोई असफल होने पर यौन अपराधों में लीन। अपराध का सम्बन्ध सदैव भूख से रहा है और यदि प्यार के कारण यौन अपराध हो रहा है तो निश्चय ही यह प्यार एवं इसमे ब्यवधान भी किसी अन्य शारीरिक भूख के कारण हैं और कुछ नहीं। फिर अपराध तो अपराध है और इसमें कमी लाने के लिए इस प्यार की संस्कृति में बदलाव लाना भी सभ्यता की पुकार है।
            हाल ही में एक अंग्रेजी समाचार पत्र के सम्पादकीय पृष्ठ पर एक दृष्टिकोण छपा था कि फ़िल्में हमें वह देती हैं जो हम चाहते है। बड़ी अजीब बात है कि मनोरंजन से जुडी इंडस्ट्री का उद्देश्य मनोरंजन से अलग क्यों होना चाहिए। यह इंडस्ट्री आज अधिकांशतः लव,सेक्स,हिंसा,यौन अपराध, रेप को उकसाती(induce) है, नकि कुछ देती है। यह उद्योग लोगों से मनोरंजन के नाम पर पैसा लेकर उन्हें गलतियों की ओर प्रेरित कर रहा है। इन्हें अपराध एवं प्यार के नायाब तरीके बताने एवं उकसाने का दायित्व किसने सौपा है?सिर्फ पैसा ने या सामाजिक दायित्व ने- एक दिन इसका सभी को उत्तर देना होगा। युवाओं का प्यार जिस रास्ते पर जा रहा है वह रास्ता विषम एवं विनष्टकारी है। समाज जितना जल्दी चेत जाय, हमारी सभ्यता के लिए उतना के लिए उतना ही अच्छा होगा क्योंकि प्यार करना सबका हक़ है और उससे वंचित होने पर अपराध बढ़ने की सदैव संभावना रहेगी।
            अच्छी बात है कि युवाओं एवं उनमें प्यार को धनात्मक दिशा देने के भी अभिनव प्रयास हो रहे हैं ।अभिभावक वर्ग भी चौकन्ना हो गया है । सेक्स एजुकेशन के लिए गंभीर प्रयास हो रहे हैं । बहुत सारी फ़िल्में स्वस्थ मनोरंजन या प्यार को केंद्र में रख कर सही दिशा में बन रही हैं ।  अतः भविष्य में यौन अपराधों में कमी की आशा भी की जा सकती है ।
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अंततः
Films give us what we want.-----------------------------------------------------NO.                                                      
Films give us what pays them crores even at the cost of let society go to hell .
7 April 2013                                                               Mangal-Veena.Blogspot.com
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