शुक्रवार, 6 जुलाई 2012

सारी बीच नारी

आज भारत के शहरों एवं गाँवों में जिनके पास खाली समय है ज्यादा से ज्यादा टी.वी. देखने में ब्यतीत करते हैं। कारण  भी सीधा-सपाट है कि  समाचार, मनोरंजन, खेल-कूद, ब्यवसाय एवं भक्तिजगत की जानकारी सिंगल विंडो सिस्टम (एकल खिड़की ब्यवस्था ) से होती रहती है बशर्ते बिजली आती हो और चैनेल वाले विज्ञापन प्रसारण से खाली हों। आज से साढ़े पाँच हज़ार वर्ष पहले मिस्टर संजय के पास आँखो देखा हाल( टी.वी ) प्रसारण का लाइसेंस था और वे महाराज धृतराष्ट्र के लिए प्रसारण का कार्य करते थे । क्यों कि  महाराज अंधे थे, वे महाराज के सारथी का दायित्व भी संभालते थे । संजय ने महाभारत का आँखों देखा हाल इतना सटीक प्रसारित किया था कि पूरी दुनिया आज भी पवित्र श्री मदभगवदगीता को सर्वश्रेष्ठ जीवन दर्शन मानती है । इस प्रसारण की मुख्य बात यह थी कि इसमें ब्रेक या अल्पविराम नही था और विज्ञापन का भी कहीं उल्लेख नहीं मिलता है । तब से हजारों वर्ष निकल चुके हैं और कलयुग अपनी पराकाष्ठा पर है । जमाना अपभ्रंश का हो चुका है अतः टी.वी  प्रसारण शुद्ध होने की  अपेक्षा करना भी बेमानी है । प्रतिद्वन्दिता, अस्तित्व एवं ब्यवसाय हित के लिए इलेक्ट्रोनिक मीडिया के प्रसारण में विज्ञापन दूध के साथ पानी की भूमिका में आ गये हैं । जिसको जितना पानी मिल रहा है, मिला रहा है। बहुत सारे दर्शक रिमोट के बटन दबाते-दबाते एलर्जी के शिकार हो रहे हैं या असहाय होकर समाचार या मनोरंजन की चाह में विज्ञापन झेलते रहते हैं  ।
मैं भी समाचार चैनलों का विज्ञापन झेलते-झेलते कभी इतना थक जाता हूँ कि ऐसा लगता है मानो मैं चैनल ही विज्ञापन के लिए लगा रखा हूँ । फिर जब समाचार की झलक मिलती है तो त्वरित प्रतिक्रिया होती है कि  यह क्या आने लगा । हाल ही में जब यह समाचार पढा,देखा और सुना कि सरकार के प्रयास से चैनलों पर विज्ञापन के समय सीमित किये जायेंगे-अच्छा लगा । परन्तु कैसे? तत्काल समझ न सका । थोड़ी देर चिंतन-मनन के बाद बात समझ में आई कि  शायद अब टी.वी. वाले समाचार,मनोरंजन या अन्य कार्यक्रमों  में  विज्ञापन दिखायेंगे न कि विज्ञापन में ये कार्यक्रम। परन्तु यह संभव  कैसे होगा? आज सभी प्रसारण विज्ञापन प्रवृत्ति से संक्रमित है । विज्ञापन से भी प्रसारण के विषय बन रहे हैं और विषयबस्तु विज्ञापन के लिए प्रसारित किये जा रहे है  ।  कौन  करेगा नीर-छीर या  सारी-नारी विभेद? संशय ही संशय है ।
--------सारी बीच  नारी  है  कि नारी बीच सारी है।
--------सारी की ही नारी है,या नारी की ही सारी है।
ज्यादा माथा पच्ची न करते हुए विज्ञापन का समय कम करने के लिए मेरा सुझाव है कि विज्ञापनदाताओं एव चैनेल चलाने वालों को कीमत बढाओ-कीमत घटाओ क्लब ज्योइन कर लेना चाहिए । ऐसा करने पर चैनेल वाले विज्ञापन का समय  घटाकर विज्ञापन दरें बढ़ा सकते है, फिर कुछ प्रतिशत छुट देकर विज्ञापन दाताओं  को खुश कर सकते है । इसी प्रकार जब कंपनियाँ एक बार विज्ञापन पर कुछ प्रतिशत खर्च बढ़ाएंगी तो उपभोक्ता  वस्तुएं महँगी होंगी । आम जनता कराहेंगी तो कम्पनियाँ कुछ से कम प्रतिशत कटौती कर उनको रहत दे देंगी, फिर जनता कहेंगी की कम्पनी के जय हों । ज्यादा जानकारी कीमत बढाओ-कीमत घटाओ क्लब के सीनियर सदस्यों जैसे इंडियन आयल, भारतीय रेल, बिजली, पानी, डायरेक्ट-इनडायरेक्ट टैक्स, शिक्षा कर,  सेवा कर विभागों से ली जा सकती है । जनता को भी कमर टूटने एवं कराहने में विविधता का अनुभव होगा । हमे चरितार्थ भी तो करना है कि मारो कहीं-लगे वहीँ । लोकतंत्र में जनता का पैसा, जनता के द्वारा,जनता के नाम पर संग्रह करना ही चाहिए ताकि नंगी भूखी आवाम कृतज्ञता भरी नज़रों से जय-जयकार करती रहे ।
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अंततः 
 ------------ आषाढ़ का महीना बीत गया। किसी तरह आज उत्तर भारत में मानसून आया और आकाश में मेघदूत दिखे।
------------ कालिदास द्वारा छठी शताब्ती में रचित मेघदूत में वर्णन है कि षाढ़ माह के पहले दिन ही हिमालय से उज्जैयनी तक, अवनी से अम्बर तक मेघदूत सक्रिय हो जाते थे और बरसात के साथ काब्यकल्पना में नायक- नायिका के सन्देश भी बड़े मनोहारी ढंग से उनतक पहुँचाया करते थे । संस्कृत भाषा कालिदास जैसे कवियों की  कल्पना के उडान को लालित्यपूर्ण एवं मनोहारी अभिब्यक्ति प्रदान किया करती थी ।
------------ अब न  छठी शताब्दी का प्राकृतिक सौन्दर्य रहा, न कालिदास जैसा रचनाधर्मी।आइए ;चलें- इस विलंबित मेघदूत का हार्दिक स्वागत करें।
दिनाँक 6.7.2012                                         mangal-veena.blogspot.com
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