रविवार, 29 जुलाई 2012

कुछ ख़री - खोटी बातें


दादा भारत के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए , उन्हें हम सर्वश्रेष्ठता के लिए बधाई देते हैं । बिसात कैसी भी बिछाई गयी हो, दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश का सबसे बड़ा चुनाव जीतना उतना ही बड़ा मायने भी रखता है । दिल्ली में अनशन पर बैठी अन्ना टीम ने पीछे मंच पर पंद्रह भ्रष्ट केंद्रीय मंत्रियो की फोटो टांग रखी थी । दादा ने राष्ट्रपति पद का शपथ ग्रहण किया - टीम को बात समझ में आयी और दादा की फोटो को किसी आवरण से ढक दिया । दादा शिष्टाचार युक्त हो गए। अन्ना टीम की ओर से आदर्श आचरण का यह नमूना, अधूरा ही सही, सराहनीय रहा । अन्ना समर्थको और सरकार को राहत मिलनी चाहिए को उनका प्रयास रंग ला रहा है । भ्रष्टाचार पंद्रह से चौदह हो गया, आगे भी घटता ही रहेगा  । 

जेहन में बात आई की गणित के कुछ सिद्धांत सीधे  एवं' उलटे दोनों प्रकार सत्य सिद्ध होते हैं जैसे दोनों बिन्दुओं को न्यूनतम दूरी से मिलाने वाली रेखा को सीधी  रेखा कहते हैं । इसके उलट सीधी रेखा से जुडी दो बिन्दुओं की उस रेखा पर दूरी न्यूनतम होती है अर्थात न्यूनतम दूरी से सीधी रेखा और सीधी रेखा से न्यूनतम दूरी । यह सिद्धांत देश काल से परे और प्रश्नातीत है । इसे अन्ना की टीम भी झुठला नहीं सकती । चूँकि  कोई भ्रष्ट नागरिक देश का राष्ट्रपति नहीं हो सकता इसलिए मानना ही होगा उस पद पर बैठा व्यक्ति भ्रष्ट नहीं है । फिर हमारे महामहिम का शिष्ट , सदगुणी , ईमानदार एवं शानदार होना सत्य ही सत्य है । आगे देखना होगा की समान गुणधर्मिता के  सिद्धांत शेष माननीयों पर कब और कैसे लागू होते हैं । जनता समय समय पर भौचक होती रहेगी । 

इधर मीडिया वाले उछाल  रहें हैं की अन्ना आन्दोलन की धार कुंद हो रही है क्योंकि भीड़ नहीं जुट रही है । सत्ताधारियों की बाछें खिल रहीं हैं की आन्दोलन दम तोड़ रहा है और उन्हें उनका  भविष्य फिर उज्ज्वल दिखने लगा है । विरोधी भी पूरे देश में, कहीं तुम - कहीं हम, खेल रहें हैं । उधर बाबा रामदेव की टीम पर सरकारी ब्रह्मास्त्र का प्रहार हो चुका  है । इन सबके बावजूद आम जनता एवं युवाओं का सच यह है उन्हें अन्ना हजारे एवं रामदेव में भारत का सुनहरा भविष्य दिखने लगा है । सभी लोग गौर से इन शांतिपूर्ण आंदोलनों पर माननीयों की प्रतिक्रिया का आकलन कर रहें हैं और उचित समय एवं मंच की प्रतीक्षा में हैं । किसी को भी नहीं भूलना चाहिए की भीड़ जुटाना अब कोई उद्देश्य नहीं है । उद्देश्य तो विदेशों से काला धन भारत में लाना और भारत को भ्रष्टाचार मुक्त कराना है ।

भीड़ का यदि पूर्वावलोकन करें तो पहली बार जब  अन्ना साहब अनशन पर बैठे , देश का आम आदमी सड़क पर उतर आया कि  अब हम जन लोकपाल ले कर लौटेंगे । आन्दोलन निर्णायक होने से पहले अन्ना टीम आश्वासन के झांसे में आ गयी । आम जनता हाथ मलते रह गयी ।  मुंबई में फिर  शीतकाल में अनशन ठान लिए । कब क्या और कैसे करना है - इसपर कोई स्पष्ट पुकार नहीं लगाई गयी । अब चतुर्मासा में टीम फिर अनशन पर आ गयी । अरविंद , मनीष  और गोपाल बैठे ही थे ,  वयोवृद्ध अन्ना भी ठान लिये । मुद्दा में जुड़ाव आया है की पंद्रह भ्रष्ट केंद्रीय मंत्रियों के रहते जन लोकपाल बिल पारित नहीं हो पा रहा है - यह जन जन को बताना है । अरे भाई ! हम भारतीय प्राचीन काल से मानते रहें हैं की चतुर्मासा में एक जगह ठहर कर समय बिता लेना चाहिए । ऐसे में लोग बरसात एवं वायरल झेलने से बच रहें हैं  । फिर भी यदि बाबा या अन्ना आवाज़ देते हैं तो भारत का हर त्रस्त नागरिक उनके साथ खड़ा मिलेगा । आवश्यकता है तो स्पष्ट निर्देश एवं सुगठित पुकार की । 

दूसरी ओर सरकार भी प्रयासरत है कि  एक सरकारी लोकपाल बिल पास हो जाए और काले धन पर हां-हूं होता रहे तो इन शोर- शराबा करने वालों से जान बचे । साँप मर जाए और लाठी भी न टूटे । परन्तु हो कैसे -- इसी  में  सारे  दल एवं नेता डूब-उतरा रहें हैं । भला ऐसा बिल क्यों पास करें जिसमे उनका कोई भविष्य नहीं । यदि सीबीआई जैसा ब्रह्मास्त्र पास में न हो तो सरकार की हनक कैसी । उससे बड़ी बात - यदि करोड़ों  में काली कमाई नहीं तो नेतागिरी क्यों । फिर काली कमाई विदेश में छिपाने की सुविधा भी नहीं तो माननीय कैसा।ये यक्ष प्रश्न बिल पास करने वालों को खाए जा रहें हैं ।

अंततः न सुनने वालो को अब कुछ खरी खोटी बातें सुना देनी चाहिए कि  नई पीढ़ी भ्रष्टाचार से नफरत करने लगी है और उसकी समझ भी बहुत कुशाग्र है  । वे  यह सुनकर बहुत गुनते हैं कि  लोक तंत्र में भी नेताओं के पास राज हैं और उन्हें छिपाने की उनमे प्रतिबद्धता भी । वे यह सुनकर भी चौंक जातें हैं -- जब कोई नेता - अभिनेता या कोई क्रिकेट सितारा कहता है कि  उसने अपना जीवन देश की सेवा में बिताया है । वे खूब समझते हैं कि  देश की सेवा हो रही है या देश से सेवा ली जा रही है । वे सर्वाधिक अचंभित यह जानकर हैं कि भारत का विदेश में जमा धन वापस लाने वाले  कानून और लोक पाल  बिल के विरोधी कौन और क्यों हैं । रात दिन अपने श्रम से भारत को विश्व शिखर पर पहुँचाने को उद्यत नयी पीढ़ी भारत को चीन या विश्व के किसी देश से पीछे देखने को राज़ी नहीं है । उनका स्पष्ट सन्देश है - 
                  हमें भ्रष्टाचार मिटाना है , कला धन वापस लाना है।
                  भावी इतिहास हमारा है , भारत को आगे जाना है ।।

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अन्ततः --
ज़रा सोचिये-- प्रधानमंत्री दंगाग्रस्त असाम  के दौरे पर बोले की यह दंगा भारत के चेहरे पर कलंक है परन्तु उनके कपड़े या चेहरे पर कलंक का कोई धब्बा नहीं दिखाई दिया |
दिनाँक 29.7.2012                                             mangal-veena.blogspot.com
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