रविवार, 15 जुलाई 2012

गुवाहाटी काण्ड या ईश्वर के अवतार का समय

गुवहाटी में बीते सोमवार की रात जीएस रोड पर एक लड़की के साथ कुछ कुसंस्कारी लोगों ने अभद्र, घृणित, एवं हमारे सभ्य समाज में वर्जित कुकृत्य किया। यूट्यूब ने जब से विडिओक्लिप द्वारा इस घटना को दुनियां के संज्ञान में लाया है और आसाम पब्लिक वर्क्स नाम की एक संस्था ने बिलबोर्ड के माध्यम से लोगो में हिदायत जारी किया है, चारों तरफ हंगामा हो गया है। क्योंकि हमारा भारतीय समाज इस घटना से पूरी दुनियां में कलंकित हुआ है, अब तक कार्यवाही, रिपोर्टिंग और प्रतिक्रिया का दौर दौड़ पड़ा है। स्थानीय पुलिस अधिकारी कहते हैं कि वे एटीएम मशीन नही हैं कि अपराध का विवरण डाला और अपराधी हाथ में। महिला आयोग की सदस्याएं अपनी पूरी प्रतिक्रियां उड़ेल रही हैं कि सम्बन्धित प्रशासन से रिपोर्ट माँगी है, दौरा करेंगे, दण्ड सुनिश्चित करेंगे इत्यादि। केंद्र सरकार के मंत्रीगण बहुत गंभीर हुए हैं और राज्य सरकार को कानून ब्यवस्था की याद दिला रहे है। राज्य सरकार भी गंभीर हुई है। धर-पकड़ तेज होंगी और सरकार  एक समस्याटालू आयोग का गठन भी कर सकती है। क्रमशः सारी औपचारिकतायें पूरी होंगी और समय के साथ मामला नेपथ्य में चला जायेगा। अंत में शर्मिंदगी,चिंता, पश्चाताप, खेद, नियति एवं अवसाद उस पीड़ित लड़की और उसके घरवालों के शेष जीवन को अभिशाप बनकर घेर लेंगे जिससे वे लोंग इस जन्म में शायद ही उबर सकें। कहानी फिर कहीं किसी और रूप में दोहराई जाती रहेंगी।
परन्तु हम साधारण लोग इस अभूतपूर्व दुर्घटना से बेचैन हैं।  हम भरतवंशियों को क्या हो गया है कि चालीस लोग एक साथ एक कुन्ठा से प्ररित हो एक लड़की की इज्जत लूटने के लिए उसपर टूट पड़े। और तो और ऐसी निंदनीय घटना उनके क्षेत्र में घटने पर प्रतिक्रिया देते समय स्थानीय पुलिस अधिकारियों के चेहरे पर ग्लानि, खेद एवं पश्चाताप का भाव नहीं था। समाज को शर्मसार करने वाली घटना कहते समय मीडिया से रिपोर्टिंग करने वाले चेहरे शर्मसार होते नही दिख पा रहे हैं। न उनके पास भर्त्सना के कठोर शब्द हैं न इस लड़ाई में कूदने का अपना कोई तरीका। मीडिया के माध्यम से घटना की निंदा करने वालोँ की मुखमुद्रा भी करुण से रौद्र रस की ओर बढ़ती नही दिख रही है। कोई ऐसा नायक नही है जो कह सके कि अबऔर गुवहाटी  बर्दाश्त नहीं। घटना की वीडियोग्राफी करते समय रिपोर्टर को भी यह याद नही आया कि रिपोर्टिंग से पहले मानव की मानवता के प्रति सर्वोपरि ड्यूटी बनती है।  इस बीच मनोरंजन जगत एवं सामाजिक सरोकारियों से कुछ बहुत ही मार्मिक,सार्थक,सापेक्ष एवं संवेदनशील टिप्पड़ियां अवश्य आई हैं जो हम सभी को आईना दिखाने के लिए पर्याप्त हैं। क्या आज चालीस दु:शासनों द्वारा द्रौपदी के चीर हरण को हस्तिनापुर ऐसे ही देखती रहेगी। कहाँ गयी संवेदना। बस बहुत हो चुका। इस घटना पर हर भारतीय को लज्जित होना चाहिये और इसका कठोरतम से भी कठोर प्रतिकार होना चाहिए।
दूसरी ओर मेरा तो गाँधीवादी आग्रह है कि जिन भारीभरकम लोगो ने प्रतिक्रिया दिया है, कार्यवाही का भरोसा दिया है या कार्यवाही करने के लिए जिम्मेदार हैं - उनमे से कोई एक, अनेक या सबलोगों का एकगिल्ड आदर्श भारतीय बने  और उस लड़की एवं उसके परिवार को शतप्रतिशत अंगीकार(Adopt) कर ले। उनकी आर्थिक, सामाजिक, संस्कृतिक, कानूनी - सभी तरह की सुरक्षा की जिम्मेदारी वे लोंग उठाएँ और उन्हें न्याय दिलायें।  अस्वस्थ चल रहे अभिनेता राजेश खन्ना द्वारा अभिनीत हिंदी सिनेमा "दुश्मन" इस सन्दर्भ में अनुकरणीय उदाहरण हो सकता है। अच्छा होगा की जब यह पीड़ित लड़की बालिग हो जाय तो इसे महिला आयोग का सदस्या या अध्यक्षा बनाया जाय ताकि ऐसी परिस्थिति में उसकी सटीक प्रतिक्रिया हो सके।
न जाने क्यों यह घटना बार बार सोचने की ज़िद कर रही है कि एक, दो, पांच नही बल्कि बीस या उससे अधिक चालीस लोग एक साथ एक कुविचार से कैसे प्रेरित हो गये। उनमे से किसी की मानवता ने उसे विरोध का स्वर क्यों नही दिया?  कहीं ऐसा तो नही कि  कुछ लोगों ने बाकी को अंधेरे में रखते हुए ऐसा कुकृत्य रच डाला। आश्चर्य आकाशीय बिजली की भांति चौधियां रही है। ऐसी क्या खराबी हमारे लोकतंत्र में आ गई कि  इस तरह की प्रवित्तियाँ समाज में तेजी से उभर रहीं हैं और रिकार्ड दर रिकार्ड बना रही है।  जिज्ञासा को शांत  के लिए सरकार से निवेदन है कि वह गैर सरकारी विशेषज्ञों की एक समिति बनाये जो सामाजिक अध्ययन एवं विश्लेषण कर बताये कि हममे कहाँ और किस प्रकार के सुधार की आवश्यकता है। भय है कि यदि लोग अपनी सामाजिक संरचना भूल जायें और बड़ी संख्या में शासन और ब्यवस्था से बेख़ौफ़ हो जायें तो भारतीयता को कौन बचाएगा ? क्या भारत भूमि पर ईश्वर के अवतार का समय सन्निकट है?
अंततः 
जब पूरी दुनियाँ की निगाहें लन्दन में आयोजित हो रही ओलम्पिक खेलो पर टिकी हैं और किस देश के युवक-युवतियां कितने मेडल बटोर सकेंगे-पर बहस हो रही है, हम देशवासी  कुकृत्यों पर बहस में उलझे हैं।

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